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मेरे अति प्रिय पाठक गण, आपको कहानी का एक चैप्टर पढ़ते हुए शायद चंद मिनट लगते हैं जिसे लिखने में मुझे दो या तीन दिन लगते हैं। मैं आप सब की तरह ही एक साधारण व्यस्त आदमी हूँ।
मुझे यह कहानी लिखते हुए जो समय लगता उसका सिर्फ एक ही पारितोषिक है पाठकों का प्यार और प्रशंशा। अगर आप कमैंट्स लिखेंगे नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा की मेरी कहानी आप को पसंद आयी या नहीं? और अगर आप नहीं लिखेंगे तो मुझे लगता है, मैं अपना इतना सारा समय क्यों जाया करूँ? आगे आप सोचिये और समझिये।
वापस आइये कहानी पर… ———– सुनीता ने अपने पति सुनीलजी की और अपना सर घुमा कर देखा और कहा, “देखिये आज आपने दो दुश्मन के फौजी और आतंकवादी को मार दिए इससे आप को इतनी ज्यादा रंजिश हुई और आप इतना दुखी हुए। हमारे फौजी नवजवानों को देखिये। लड़ाई में वह ना सिर्फ दुश्मनों को मौत के घाट उतारते हैं, वह खुद दुश्मनों की गोली पर बलिदान होते हैं। देश के लिए वह कितना बड़ा बलिदान है? जस्सूजीने वह कालिये को मारने में एक सेकंड का भी समय जाया नहीं किया। अगर उस कालिये को चंद सेकंड ही मिल जाते तो वह हम सब को मार देता।”
फिर सुनीता ने वापस जस्सूजी की और घूम का देखा और बोली, “जस्सूजी, आप ने हम सब पर इतने एहसान किये हैं की हम कुछ भी करें, हम आप का ऋण नहीं चुका सकते।”
ऐसा कह कर सुनीता ने जस्सूजी का सार अपनी छाती पर अपने उन्मत्त स्तनोँ पर रख दिया और उनके सर को अपने स्तनोँ पर रगड़ने लगी। सुनीता जस्सूजी के घुंघराले बालों को संवारने लगी।
पुरे कमरे में एक अत्यंत जज्बाती भावुक वातावरण हो गया। सुनीलजी और सुनीता की आँखों में प्यार भरे आंसूं बहने लगे। सुनीलजी ने पीछे से सुनीता को धक्का देते हुए सुनीता को जस्सूजी के आहोश में जाने को मजबूर कर दिया। जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में भर लिया और अपने बाजु लंबा करके सुनीलजी को भी अपने आहोश में लेना चाहा।
सुनीता बेचारी दोनों मर्दों के बिच में पीस रही थी। एक तरफ उसके पति सुनीलजी और दूसरी और उसके अतिप्रिय प्रियतम जस्सूजी। सुनीता ने अपने पति सुनीलजी की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। वह पूछना चाहती थी की क्या वह जस्सूजी के आहोश में जाए और उनको प्यार करे।
सुनीलजी ने अपनी पत्नी की और देखा और अपनी मुस्कुराते हुए उसे कोहनी मारकर जस्सूजी के और करीब धकेला और आँख की पालक झपका कर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। सुनीता फ़ौरन जस्सूजी के गले लिपट गयी और बोली, “आपने मुझे मरने से बचाया इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।”
सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी कुछ नाराज से हो गए। उन्होंने सुनीता की पीठ थपथपाते हुए कहा, “सुनीता यह तुम लोग बार बार शुक्रिया, शुक्रिया कहते हो ना, तो मुझे परायापन महसूस होता है। क्या कोई अपनों के लिए काम करता है तो शुक्रिया कहलवाना चाहता है? यह सभ्यता विदेशी है। हम तो एक दूसरों के लिए जो भी कुछ करते हैं वह तो स्वाभाविक रूप से ही करते हैं। अब तुम दोनों सो जाओ। मैं भी थोड़ी देर सो जाता हूँ।”
यह कह कर जस्सूजी करवट बदल कर लेट गए। सुनीता को समझ नहीं आया की क्या वह सुनीता से प्यार करने से कतरा रहे थे या फिर सुनीलजी की हाजरी के कारण शर्मा रहे थे। कुछ ही देर में जस्सूजी की खर्राटें सुनाई देने लगीं।
जस्सूजी का रूखापन देख कर सुनीता को दुःख हुआ। फिर उसने सोचा की शायद सुनीलजी की हाजरी देख कर जस्सूजी कुछ असमंजस में पड़ गए थे। सुनीता ने करवट बदली और अपने पति के सामने घूम गयी। सुनीलजी पूरी तरह जाग चुके थे। सुनीता ने अपने पति से कहा, ” आप कुछ खा लीजिये न? खाना टेबल पर रखा है।”
सुनीलजी ने हाँ में सर हिलाया तो सुनीता फ़ौरन उठ खड़ी हुई और उसने अपने कपड़ों को सम्हालती हुई खाना गरम कर सुनीलजी को परोसा और खुद सुनील जी के करीब की कुर्सी में अपने कूल्हों को टिकाके बैठ गयी।
खाते खाते सुनीलजी ने सुनीता से एकदम हलकी आवाज में पूछा ताकि सो रहे जस्सूजी सुन ना पाए और जाग ना जाए, “सुनीता, यह तुमने ठीक नहीं किया। जस्सूजी ने तुम्हारे लिए इतना किया और तुमने बस? खाली शुक्रिया? ऐसे? तुम्हें जस्सूजी ने मरने से बचाया और तुम कह रही हो, बचाने के लिए शुक्रिया? ऐसा शुक्रिया तो अगर तुम्हारा रुमाल गिर जाये और उसे उठाकर कोई तुम्हें दे दे तो कहते हैं। जान जोखिम में डाल कर बचाने के लिये बस शुक्रिया?”
सुनीता ने मूड कर अपने पति की और देखा और बोली, “क्या मतलब? ऐसे नहीं तो कैसे शुक्रिया अदा करूँ?”
सुनीलजी ने कहा, “जाने मन, जब मैंने शादी के समय आपके लिए दुनिया का सब कुछ कुर्बान करने की सौगंध खायी थी तो बादमें आपने मुझे क्या तोहफा दिया था?”
सुनीता ने सोचकर कहा, “तोहफा? मैंने आपको कोई तोहफा नहीं दिया था। मैंने तो आपको अपना सर्वस्व और अपने आपको भी आपके हवाले कर दिया था।”
सुनीलजी, “सुनीता डार्लिंग, मैंने तो सिर्फ वादा ही किया था. जस्सूजी ने तो जैसे अपनी जान ही कुर्बान करदी थी और आपको बचाया। क्या आपका कोई फर्ज नहीं बनता?”
सुनीता के गालों पर शर्म की लालिमा छा गयी। सुनीता की नजरें निचे झुक गयीं। सुनीता समझ गयी थी की पति क्या कहना चाहते हैं। हालांकि सुनीता ने जस्सूजी से चंद घंटों पहले ही जम के चुदाई करवाई थी, पर अपने पति के सामने उसे इसके बारे में बात करना भी एकदम अजीब सा लग रहा था। वह अपने पति के सामने जस्सूजी से कैसी प्यार करे?
सुनीता ने शर्माते हुए कहा, “मैं जानती हूँ तुम क्या चाहते हो। पर मुझे शर्म आती है।”
सुनीलजी ने पूछा, “देखो, जानेमन, मैं जानता हूँ की तुम भी जस्सूजी से बहुत प्यार करती हो। शर्म अथवा लज्जा प्यार का एक अलंकार है। पर कभी कभी वह प्यार में बाधा भी बन सकता है। क्या तुम्हें मेरे सामने उन्हें प्यार करने में शर्म आती है?”
सुनीता ने लज्जा से सर नीचा करके अपना सर हिलाते हुए “हाँ” कहा। सुनीलजी का माथा ठनक गया। वह अपनी बीबी को अपने सामने जस्सूजी से चुदवाती हुई देखना चाहते थे। वह जानते थे की उसी रात को ही शायद जस्सूजी ने सुनीता की चुदाई कर के सुनीता को चोदने की शुरुआत तो कर ही दी थी। पर वह अपनी पत्नी को इस के बारे में पूछ कर उसे उलझन में डालना नहीं चाहते थे।
अब अगर वह अपनी बीबी को जस्सूजी से चुदवाती हुई नहीं देख पाए तो उनका सपना अधूरा रह जाएगा। उन्होंने सुनीता से दबी आवाज में पूछा, “पर अगर मैं चोरी से छुप कर देखूं तो?”
सुनीता ने अपना सर हिला कर मना कर दिया। सुनीता ने कहा, “तुम अपने सामने मुझसे यह सब क्यों करवाना चाहते हो?”
सुनीलजी ने कहा, “यह मेरी दिली ख्वाहिश है।” सुनीता ने अपने पति की बात का कोई जवाब नहीं दिया।
सुनीलजी ने कहा, “ठीक है भाई। मैंने इसे स्वीकार किया। तो फिर एक काम करो तुम्हें जस्सूजी के सामने मुझसे चुदवाने में तो कोई आपत्ति नहीं है ना?” यह तो तुम एक बार कर ही चुकी हो?”
सुनीता चुप हो गयी। वह इस बात से मना नहीं कर सकती थी। उसने अपने पति से जस्सूजी के देखते हुए अपनी चुदाई तो करवाई ही थी। तो अब कैसे मना करे? सुनीता ने कुछ ना बोल कर अपने पति को अपनी स्वीकृति दे दी।
सुनीलजी जब उस कमरे में दाखिल हुए थे तो उन्होंने देख ही लिया था की सुनीता नग्न अवस्था में बिस्तर में लेटी हुई थी और जस्सूजी ने भी अपने कपडे आनन फानन में ही पहन रक्खे थे।
इसका मतलब साफ़ था की सुनीता और जस्सूजी एक ही बिस्तर में एक साथ नंगे सोये थे। तो जस्सूजी को जानते हुए यह सोचना कठिन नहीं था की जस्सूजी ने सुनीता को उस रात जरूर चोदा होगा। यह तो एकदम स्वाभाविक था। अगर एक हट्टाकट्टा नंगा जवान मर्द एक खूब सूरत नग्न स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में रात भर सोता है तो उनके बिच चुदाई ना हो यह तो एक अकल्पनीय घटना ही मानी जा सकती है।
पर फिर भी सुनीलजी खुद अपनी आँखों से अपनी बीबी की चुदाई देखना चाहते थे। और साथ साथ वह भी अपनी बीबी को किसी और के सामने चोदना भी चाहते थे।
वह चाहते थे की कोई और उनको उनकी बीबी को चोदते हुए देखे और फिर दोनों मर्द मिलकर सुनीता को चोदें। इसे इंग्लिश भाषा में “थ्री सम एम् एम् ऍफ़” याने दो मर्द मिलकर एक औरत को एक साथ या बारीबारी से एकदूसरे के सामने चोदें।
अब जब सुनीता के माँ को दिए हुए वचन की भलीभाँति पूर्ति हो चुकी थी तो सुनीता के अवरोध का बांध तो टूट ही चुका था। अब मौक़ा था की सुनीलजी अपनी ख्वाहिश या यूँ कहिये की पागलपन पूरा करना चाहते थे। वह यह भी जान गए थे की सुनीता को भी अब धीरे धीरे यह बात गले उतर ही गयी थी की उसके पति अब उससे यह “थ्री सम एम् एम् ऍफ़” करवाकर ही छोड़ेंगे।
सुनीता ने सोचा, अब उसके पास कोई चारा भी तो नहीं था। पर सुनीता ने तय किया की वह पहल नहीं करेगी। अगर उसके पति या जस्सूजी, दोनों में से कोई एक पहल करेगा तो वह उसका साथ जरूर देगी। पर पहल नहीं करेगी। आखिर वह मानिनी जो ठहरी।
सुनीता ने अपने पति को अपनी बाँहों में लिया और उन्हें होठोँ पर एक गहरा चुम्बन करती हुई बोली, “तुम ना, सुधरोगे नहीं। तुम वाकई में ही मेरे पागल पति हो। तुम ने एक बार ठान लिया तो फिर तुम जो चाहते हो वह मुझसे करवाके ही छोड़ोगे। देखो तुम यह सब मुझसे करवा कर बड़ा ही जोखिम ले रहे हो। अपनी बीबी को किसीके हाथ में सौपना ठीक नहीं। खैर, चलो आप जा कर लेट जाओ। मैं बर्तन साफ़ कर के आती हूँ।”
जल्द ही सुनीता ने सारे बर्तन और टेबल साफ़ कर ठीक सजा कर अपने आपको ठीक ठाक कर वह सुनीलजी और जस्सूजी के बिच में अपनी जगह पर जाकर अपने पति की रजाई में घुस गयी।
सुनीलजी ने सोच ही लिया था की अब उन्हें अपनी पागल ख्वाहिश को पूरा करने का इससे अच्छा मौक़ा फिर नहीं मिलेगा। उन्होंने सुनीता को जस्सूजी के सामने घुमा दिया और खुद सुनीता की गाँड़ में सुनीता के गाउन के ऊपर से अपना लण्ड टिकाकर उन्होंने सुनीता को अपनी दोनों टाँगों के बिच में जकड लिया।
पीछे से सुनीलजी ने सुनीता के कान, उसकी गर्दन और उसके बालों को चूमना शुरू किया। वह सुनीता को चुदवाने के लिए तैयार कर रहे थे।
सुनीता ने अपने पति के इशारे और बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह जस्सूजी के सामने ही उनकी छाती से छाती मिलाकर अपने पति की बाहों में ही छिप कर अपनी आँखें बंद कर अपना सर निचा कर आगे क्या होगा उसका इंतजार करती हुई चुपचाप पड़ी रही।
सुनीलजी ने अपनी पत्नी सुनीता की पीठ को प्यार से सहलाना शुरू किया। हालांकि जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे, अपने पति की हरकतें जस्सूजी के सामने करते हुए देख कर सुनीता एकदम रोमांचित हो उठी। सुनीता के पुरे बदन में एक सिहरन सी फ़ैल गयी।
सुनीलजी ने धीरे से अपनी बीबी के गाउन के अंदर अपना हाथ डाल कर उसके भरे हुए स्तनोँ को अपनी हथेली में लेकर उसे बारी बारी से सहलाना और दबाना शुरू किया। ना चाहते हुए भी सुनीता के होठों के बिच से सिसकारी निकल ही गयी।
सुनीलजी ने सुनीता की पीठ सहलाते हुए कहा, “डार्लिंग, यह सफर मेरे लिए एक अजीब, रोमांचक, उत्तेजना से भरा और साथ साथ बड़ा ही खतरनाक भी रहा। पर हर पल भगवान ने हमारा हर कदम पर साथ दिया। सब से बुरे वक्त में भी आखिरी वक्त में भगवान ने हमें बचा लिया। सबसे बड़ी बात यह रही की जस्सूजी ने तुम्हें मौत के मुंह में से बचा के निकाला। हमारे लिए तो जस्सूजी भगवान के सामान हैं। हैं की नहीं?”
सुनीता ने थोड़ा ऊपर उठकर जस्सूजी के हाथों को सहलाते हुए कहा, “वह तो हैं ही।”
पति पत्नी दोनों जस्सूजी उनकी बात सुनकर उठ ना जाएँ इस लिए बड़ी ही हलकी आवाज में बात कर रहे थे।
सुनीलजी ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा, “सुनीता डार्लिंग, जहां इतना गहरा प्यार होता है, वहाँ कुछ भी मायने नहीं रखता है। अब आगे तुम समझदार हो, की तुम्हें क्या करना चाहिए।”
सुनीता ने बड़े ही भोलेपन से कहा, “डार्लिंग, मुझे नहीं मालुम, मुझे क्या करना चाहिए। तुम्ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए।”
सुनीलजी ने बड़े ही प्यार से सुनीता के गाउन के पीछे के बटन खोलते हुए कहा, “जो चीज़ में तुम सबसे ज्यादा मास्टर हो तुम वही करो। तुम बस प्यार करो।”
सुनीता के बटन खुलते ही सुनीलजी ने अपनी बीबी का गाउन कन्धों के निचे सरका दिया। सुनीता के बड़े उन्नत वक्ष फूली हुई निप्पलों के साथ गाउन से बाहर निकल पड़े।
पीछे से हाथ डाल कर सुनीलजी ने अपनी बीबी दोनों फुले स्तनोँ को अपनी हथेलियों में उठाया और उन जेली के समान डोलते हुए स्तनोँ को हिलाते हुए सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता से कहा, “जानेमन यह तुम्हारे दो गोल गुम्बज पर कोई भी मर्द अपनी जान न्योछावर कर सकता है।” यह कर सुनीलजी ने सुनीता के बॉल अपनी हथली में दबाने और मसलने शुरू किये।
सुनीता के मुंह से फिर से सिसकारी निकल गयी। इस बार कुछ ज्यादा ही ऊँची आवाज थी।
सुनीता को डर था की कहीं उसकी सिसकारी सुनकर जस्सूजी जाग ना जाएँ। सुनीलजी तो चाहते थे की जस्सूजी जाग जाएँ और यह सब देखें।
वह जितना हो सके अपनी पत्नी को उकसाना चाहते थे ताकि उसकी कराहटें और सिकारियों का आवाज बढे और जस्सूजी उठ कर वह नजारा देखें जो वह उन्हें दिखाना चाहते थे।
कहानी जारी रहेगी..
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