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यह कहानी मेरे जीवन का सच है। जब मैं छोटा था तभी से मुझे आंटियों की चुचियाँ और मोटी गाण्ड देखने का बहुत शौक रहा है। बड़ी और मोटी औरतें हमेशा से मेरी पसंद रही हैं। जो मज़ा बड़ी चुचियों में है.. वो और कहाँ! चुचियाँ तो होती ही कमाल की हैं.. गोलमटोल गद्देदार.. कोमल मक्खन जैसी.. वाह..!
खैर मैं अपनी चुदाई की कहानी पर आता हूँ। हमारे घर के सामने एक परिवार रहता था। इस परिवार में अंकल आंटी और उनके दो बच्चे थे। आंटी के बारे में बताता हूँ, वो एक सामान्य कद की गोरी महिला थीं.. पर थोड़ी मोटी थीं। उनका भरा मांसल शरीर, भरी-भरी गोल चुचियाँ, मस्त मोटी गाण्ड और गोल से पेट को देख कर तो अच्छे ख़ासे बुड्डों का भी लंड खड़ा हो जाए। जब वो अपनी गांड को मटका-मटका कर चलती थीं.. तो ऐसा लगता था मानो बिजलियाँ गिर रही हों।
आंटी ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं। उनके घर पर एक गाय थी, उस गाय का ख्याल भी वही रखती थीं। उनके यहाँ से ही हमारे यहाँ भी दूध आता था और लेने भी मैं ही जाता था।
अब मैं जवान हो चला था। अक्सर रात को उनकी चुचियों के बारे में सोच-सोच कर मुठ मार लेता था। मैं अक्सर किसी ना किसी बहाने उनके यहाँ जाने की कोशिश करता था, ताकि मैं उनके हुस्न से अपनी आँखें तर कर सकूँ।
देखते-देखते वक़्त गुज़रते गया। अब मैं हट्टा-कट्टा सांड जैसा हो गया था, लंबा चौड़ा, शरीर से काफ़ी मजबूत हो गया था। ये सब जिम और आंटी के दूध का असर था.. ओह मतलब आंटी के यहाँ की गाय के ताजे दूध का असर था। मैं अक्सर सोचता था काश एक बार आंटी की चुचियाँ मसलने का मौका मिले.. तो मज़ा आ जाए।
एक दिन शाम में अंकल और बच्चे किसी शादी में गए हुए थे, आंटी किसी वजह से नहीं जा पाईं। मैं हमेशा की तरह दूध लेने पहुँचा, आंटी उस वक़्त किचन में सब्जी काट रही थीं, मुझे देख कर वो मुस्कुरा कर बोलीं- क्या बात है राहुल आज बहुत देरी कर दी आने में! मैंने कहा- हाँ आंटी कुछ काम से मार्केट चला गया था, अभी सीधा वहीं से आ रहा हूँ।
मैंने उन्हें दूध का डिब्बा पकड़ाया और अपने फ़ोन में कुछ देखने लगा।
तभी अचानक से धम्म से आवाज़ आई मैंने देखा आंटी ज़मीन पे गिरी हुई हैं और दर्द से कराह रही हैं।
आंटी फर्श पर गिरे हुए पानी से फिसल गई थीं और उनको घुटने में बहुत चोट आई थी। मैं उनको उठाने उनकी ओर दौड़ा, पर आंटी थोड़ी भारी थीं.. तो मैं कैसे उठा पाता। मैंने पीछे से उनके दोनों हाथों के नीचे से सहारा दे कर उनको उठाने की कोशिश की। इस कोशिश में अंजाने में मेरा हाथ से उनकी चुचियाँ दब गई, मेरे अन्दर तो जैसे करेंट दौड़ गया हो।
इतनी कोमल और गद्देदार चुचियाँ मेरे हाथ से रगड़ खा रही थीं। आंटी अभी दर्द से कराह रही थीं.. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था।
किसी तरह मैंने उनको उठाया और उनके कमरे तक ले गया। आंटी ने मुझसे बाम लाने को कहा, मैं बाम ले आया। मैंने कहा- आंटी मैं आप के घुटने पर बाम लगा देता हूँ।
उन्होंने मना किया, पर मेरे जोर देने पे मान गईं। मेरे दिमाग़ में खुराफात चलने लगी थी। मैंने उनको अच्छे से लेटने को कहा और उनकी साड़ी घुटने तक उठा के दोनों पैर घुटने तक खोल दिए।
आंटी आँख बंद कर के लेट गईं। अंजाने में उनकी साड़ी का पल्लू भी हट गया था और उनकी चुचियाँ बाहर झाँकने की कोशिश कर रही थीं। मेरा तो पारा चढ़ रहा था, आंटी को ऐसे देख कर मेरा गला सूखने लगा। मैं जैसे-तैसे उनके घुटने पर बाम लगाने लगा। तभी मुझे तरकीब सूझी मैं घुटने के साथ-साथ थोड़ा ऊपर भी हाथ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे उनकी जांघों की मालिश करने लगा था। उन्हें भी शायद मज़ा आ रहा था, वो भी लंबी-लंबी साँसें लेने लगीं। अब तो जैसे मेरी हिम्मत से बढ़ने लगी थी।
मैंने उनकी जांघें छोड़ कर उनके पेट पे हाथ रखा। अचानक उन्होंने आँखें खोलीं और मुझे घूर के देखा और बोलीं- ये क्या कर रहे हो? मेरी तो जैसे हालत खराब हो गई, पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा- कुछ नहीं बस थोड़ी सी मालिश। वो कहने लगीं- राहुल ये ग़लत है। मैं थोड़ा और ढीठ हो गया.. मैंने कहा- क्या ग़लत.. आप क्या बोल रही हैं? वो बोलीं- कुछ नहीं.. तुम अब जाओ यहाँ से..!
आंटी को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद को रोक रही थीं। मैंने अपनी किस्मत आज़माई और मैंने उनके दोनों हाथों को पकड़ कर बोला- इतनी भी जल्दी क्या है, अभी तो मालिश बाकी है। वो बोलीं- ये क्या बदतमीज़ी है?
मैंने कुछ नहीं कहा और अपने होंठ उनके होंठ पर रख कर चूसने लगा। पहले तो उन्होंने छुड़ाने की कोशिश की.. फिर थोड़ी देर बाद मेरा साथ देने लगीं। वे अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर चूसने लगीं। ये चुंबन करीब 5 मिनट तक चला।
हम दोनों की साँस बहुत तेज हो गई थीं। फिर अचानक उन्होंने मुझे जोर से धक्का दे कर खुद को छुड़ा लिया। अब तक मेरे सिर पर भी चुदाई का बहुत सवार हो चुका था, मेरा लंड मेरी पतलून फाड़ कर बाहर आने वाला था। मुझे धक्का देने के बाद वो अब बिस्तर से उठ चुकी थीं और कमरे से बाहर जा रही थीं।
मैंने तुरंत उनके दोनों हाथ पीछे से पकड़े और अपनी और खींचा और हम दोनों बिस्तर पर जा गिरे। उनके मुँह से ‘आह..’ निकल गई। मैं उसी वक़्त उनके ऊपर चढ़ गया और उनको अपने दोनों हाथों से कसके दबा कर फिर से होंठों पे चुंबन करने लगा।
अब वो कुछ शांत हो गई थीं, मैंने उनके हाथ छोड़ दिए और उनके गले से ले कर चुचियों के ऊपरी भाग तक जोर से चूमने लगा।
अब आंटी गरम हो गई थीं, उन्होंने अपने दोनों हाथों से मुझे कस के पकड़ लिया। इधर मेरा लंड भी साड़ी के ऊपर से ही उनसे रगड़ रहा था। मैं आंटी को चूम रहा था और साथ ही मेरा एक हाथ उनकी एक चुचि को मसल रहा था।
आज जा कर मेरा सपना पूरा हो रहा था। इस खेल में आंटी की साड़ी आधी खुल चुकी थी.. उसे मैंने खींच-खींच के पूरा अलग कर दिया। आंटी बस ब्लाउज और पेटीकोट में बिस्तर पर पड़ी थीं, ऐसा लग रहा था जैसे कि वासना की देवी खुद मेरे सामने लेटी हो।
अब मैंने उनका ब्लाउज भी खोल दिया। उनकी ब्रा उनकी चुचियाँ छुपाने में असमर्थ थी। बस उस वक़्त चूचे जैसे ब्रा को फाड़ के बाहर आने वाले थे।
मैंने उनके पेटीकोट की डोरी खोली और उसे उनकी कमर से सरकाने लगा। तभी मैंने देखा कि आंटी ने अंडरवियर नहीं पहना था और उनकी झांट वाली चूत बाहर आ गई थीं।
आंटी उस वक़्त बस आँख बंद करके लेटी हुई थीं और बड़ी-बड़ी साँसें ले रही थीं। मैं अपना मुँह उनकी चूत के पास ले गया, अह.. क्या मस्त सुगंध आ रही थी। मैं बस चूत की महक में खोता जा रहा था, मैं अपना एक गाल उनकी झांटों पर रगड़ने लगा जिससे आंटी की बेचैनी बढ़ने लगी, वो सिसकारियाँ लेने लगीं, साथ ही वो मेरा सिर अपनी चूत में दबाने लगीं। मैं उनकी जांघों को नोंचने लगा, इससे वो और भी ज़्यादा उत्तेजित हो उठी थीं।
इधर मुझे लग रहा था जैसे मेरा लंड बस फटने वाला था, मैंने अपनी पतलून का बटन और चैन को खोल दिया और पैन्ट सरका कर उनके ऊपर आकर लेट गया।
जैसे ही मैं उनके ऊपर आया, उन्होंने मेरी पतलून और अंडरवियर एक ही झटके में नीचे कर दी। मैंने भी अपनी शर्ट उतार फेंकी।
अब हम दोनों के बीच में कोई दीवार नहीं थी। आंटी दोनों हाथों से मेरी गाण्ड को पकड़ कर अपनी और दबाने लगी। मैं उठा और उनकी ब्रा खोल दिया, अब उनके चूचे आज़ाद थे। मैं उनके मम्मों को आम जैसे चूस रहा था.. बीच-बीच में मैं उनके निप्पल काट भी लेता।
इस सब से उनके मुँह से ‘आह..’ निकालने लगी थी, वो बोलने लगीं- प्लीज़ राहुल अब मुझे चोद दो। मैंने कहा- इतनी भी जल्दी क्या है आंटी! मैंने अपना लंड उनके मम्मों के बीच में डाल दिया और उनके मम्मों को चोदने लगा। मेरे हर झटके में मेरा लंड आंटी के मुँह तक जाता। आंटी अब चुदने के लिए भीख माँगने लगीं। मेरा लंड बिल्कुल लोहे जैसा सख़्त हो गया था।
मैं उठा और उनके पैरों की तरफ आ कर उनके दोनों पैरों को एक झटके में अलग कर दिए और पैरों के बीच में बैठ गया। उनकी चूत बहुत पानी छोड़ चुकी थी, क्या सुगंध आ रही थी। मैंने अपनी उंगलियों से उनकी चूत की पंखुड़ियों को अलग किया और अपना मोटा लंड उस पर टिका दिया। मैंने कहा- आंटी, अब असली मालिश के लिए तैयार हो जाओ। वो बोलीं- बस बोलेगा ही या कुछ करेगा भी?
मैंने उनकी मोटी सी कमर को पकड़ा और पहला झटका दे मारा। पहले ही झटके में पूरा लंड अन्दर चला गया। वो जोर से चीख पड़ीं- उम्म्ह… अहह… हय… याह… मादरचोद आराम से डाल ना। मैंने दूसरा झटका मारा.. इस बार वो झेल गईं।
अब मैं उनके पेट की लटकी चर्बी से खेल रहा था और लगातार झटके मार रहा था, बीच-बीच में मैं रुक भी जाता था।
दस मिनट बाद मैं और वो एक साथ झड़ गए। मैं झड़ने के बाद उनके ऊपर ही लेट गया। कुछ मिनट बाद हम दोनों उठे, वो बोलीं- मुझे नहीं पता था तू इतना बड़ा हो गया। मैंने कहा- अब तो पता चल गया ना! और हम दोनों हँसने लगे।
फिर हम दोनों उठे और वो नहाने चली गईं और मैं भी कपड़े पहन कर अपने घर आ गया।
यह थी मेरी आंटी की चुदाई की कहानी.. उम्मीद करता हूँ आप लोग को पसंद आई होगी, अपने विचार ज़रूर बताएं.. धन्यवाद। [email protected]
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