This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000
सुनीता को डर था की उस रात कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पति सुनील ने उससे से वचन जो लिया था की दिन में ना सही पर रात को जरूर वह सुनीता को खाने मतलब सुनीता की लेने (मतलब सुनीता को चोदने) जरूर आएंगे। शादी के इतने सालों बाद भी सुनील सुनीता का दीवाना था।
दूसरे जस्सूजी जो सुनीता को पाने के पिए सब कुछ दॉंव पर लगाने के लिए आमादा थे। जिन्होंने कसम खायी थी की वह सुनीता पर अपना स्त्रीत्व समर्पण करने के लिए (मतलब चुदवाने के लिए) कोई भी दबाव नहीं डालेंगे।
पर सुनीता और जस्सूजी के बिच यह अनकही सहमति तो थी ही की सुनीता जस्सूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ करने दे सकती है।
यह बात अलग है की जस्सूजी खुद सुनीता का आधा समर्पण स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या नहीं। वह भी तो आर्मी के सिपाही थे और बड़े ही अड़ियल थे।
सुनीता को तब जस्सूजी का प्रण याद आया। उन्होने बड़े ही गभीर स्वर में कहा था की जब सुनीता ने उन्हें नकार ही दिया था तब वह कभी भी सामने चल कर सुनीता को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोशिश नहीं करेंगे।
सुनीता के सामने यह बड़ी समस्या थी। वह जस्सूजी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी पर फिर वह उनको अपना समर्पण भी तो नहीं कर सकती थी।
सुनीता जस्सूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था जस्सूजी तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक सुनीता कोई पहल ना करे।
वैसे तो माननीयों पर मॅंडराने के लिए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते हैं। पर उस रात तो उलटा ही हो गया। सुनीता अपने पति की अपनी बर्थ पर इंतजार कर रही थी। साथ साथ में उसे यह भी डर था की कहीं जस्सूजी ऊपर से सीधा निचे ना उतर जाएँ।
पर जहां सुनीता दो परवानोँ का इंतजार कर रही थी, वहाँ कोई भी आ नहीं रहा था। उधर नीतू अपने प्रेमी के संकेत का इंतजार कर रही थी, पर कुमार था की कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था।
दोनों ही मानीनियाँ अपने प्रियतम से मिलने के लिए बेताब थी। पर प्रियतम ना जाने क्या सोच रहे थे? क्या वह अपनी प्रिया को सब्र का फल मीठा होता है यह सिख दे रहे थे? या कहीं वह निंद्रा के आहोश में होश खो कर गहरी नींद में सो तो नहीं गए थे?
काफी समय बीत जाने पर सुनीता समझ गयी की उसका पति सुनील गहरी नींद में सो ही गया होगा। वैसे भी ऐसा कई बार हो चुका था की सुनीता को रात को चोदने का प्रॉमिस कर के सुनीलजी कई बार सो जाते और सुनीता बेचारी मन मसोस कर रह जाती।
रात बीतती जा रही थी। सुनीलजी का कोई पता ही नहीं था। तब सुनीता ने महसूस किया की उसकी ऊपर वाली बर्थ पर कुछ हलचल हो रही थी। इसका मतलब था की शायद जस्सूजी जाग रहे थे और सुनीता के संकेत का इंतजार कर रहे थे।
सुनीता की जाँघों के बिच का गीलापन बढ़ता जा रहा था। उसकी चूत की फड़कन थमने का नाम नहीं ले रही रही थी।
कुमार और नीतू की प्रेम लीला देख कर सुनीता को भी अपनी चूत में लण्ड लड़वाने की बड़ी कामना थी। पर वह बेचारी करे तो क्या करे? पति आ नहीं रहे थे। जस्सूजी से वह चुदवा नहीं सकती थी।
रात बीतती जा रही थी। सुनीता की आँखों में नींद कहाँ? दिन में सोने कारण और फिर अपने पति के इंतजार में वह सो नहीं पा रही थी। उस तरफ ज्योतिजी गहरी नींद में लग रही थीं।
ट्रैन की रफ़्तार से दौड़ती हुई हलकी सी आवाज में भी उनकी नियमित साँसें सुनाई दे रहीं थीं। सुनीलजी भी गहरी नींद में ही होंगें चूँकि वह शायद अपनी पत्नी के पास जाने (अपनी पत्नी को ट्रैन में चोदने) का वादा भूल गए थे। लगता था जस्सूजी भी सो रहे थे।
सुनीता की दोनों जाँघों के बिच उसकी में चूत में बड़ी हलचल महसूस हो रही थी। सुनीता ने फिर ऊपर से कुछ हलचल की आवाज सुनी।
उसे लगा की जरूर जस्सूजी जाग रहे थे। पर उनको भी निचे आने की कोई उत्सुकता दिख नहीं रही थी। सुनीता अपनी बर्थ पर बैठ कर सोचने लगी। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे।
अगर जस्सूजी जागते होंगे तो ऊपर शायद वह सुनीता के पास आने के सपने ही देख रहे होंगे। पर शायद उनके मन में सुनीता के पास आने में हिचकिचाहट हो रही होगी, क्यूंकि सुनीता ने उनको नकार जो दिया था। सुनीता को अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था तो जस्सूजी पर तरस आ रहा था।
तब अचानक सुनीता ने ऊपर से लुढ़कती चद्दर को अपने नाक को छूते हुए महसूस किया। चद्दर काफी निचे खिसक कर आ गयी थी।
सुनीता के मन में प्रश्न उठने लगे। क्या वह चद्दर जस्सूजी ने कोई संकेत देने के लिए निचे खिस्काइथी? या फिर करवट लेते हुए वह अपने आप ही अनजाने में निचे की और खिसक कर आयी थी?
सुनीता को पता नहीं था की उसका मतलब क्या था? या फिर कुछ मतलब था भी या नहीं? यह उधेङबुन में बिना सोचे समझे सुनीता का हाथ ऊपर की और चला गया और सुनीता ने अनजाने में ही चद्दर को निचे की और खींचा। खींचने के तुरंत बाद सुनीता पछताने लगी। अरे यह उसने क्या किया? अगर जस्सूजी ने सुनीता का यह संकेत समझ लिया तो वह क्या सोचेंगे?
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सुनीता के चद्दर खींचने पर भी ऊपर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
सुनीता को बड़ा गुस्सा आया। अरे! यह कर्नल साहब अपने आप को क्या समझते हैं? क्या स्त्रियों का कोई मान नहीं होता क्या? भाई अगर एक बार औरत ने मर्द को संकेत दे दिया तो क्या उस मर्द को समझ जाना नहीं चाहिए?
फिर सुनीता ने अपने आप पर गुस्सा करते हुए और जस्सूजी की तरफदारी करते हुए सोचा, “यह भी तो हो सकता है ना की जस्सूजी गहरी नींद में हों? फिर उन्हें कैसे पता चलेगा की सुनीता कोई संकेत दे रही थी? वह तो यही मानते थे ना की अब सुनीता और उनके बिच कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होगी? क्यूंकि सुनीता ने तो उनको ठुकरा ही दिया था।
इसी उधेड़बुन में सुनीता का हाथ फिर से ऊपर की और चला गया और सुनीता ने चद्दर का एक हिस्सा अपने हाथ में लेकर उसे निचे की और खींचना चाहा तो जस्सूजी का घने बालों से भरा हाथ सुनीता के हाथ में आ गया।
जस्सूजी के हाथ का स्पर्श होते ही सुनीता की हालत खराब! हे राम! यह क्या गजब हुआ! सुनीता को समझ नहीं आया की वह क्या करे?
उसी ने तो जस्सूजी को संकेत दिया था। अब अगर जस्सूजी ने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसमें जस्सूजी का क्या दोष? जस्सूजी ने सुनीता का हाथ कस के पकड़ा और दबाया। सुनीता का पूरा बदन पानी पानी हो गया।
वह समझ नहीं पायी की वह क्या करे? सुनीता ने महसूस किया की जस्सूजी का हाथ धीरे धीरे निचे की और खिसक रहा था। सुनीता की जाँघों के बिच में से तो जैसे फव्वारा ही छूटने लगा था। उसकी चूत में तो जैसे जलजला सा हो रहा था। सुनीता का अपने बदन पर नियत्रण छूटता जा रहा था। वह आपने ही बस में नहीं थी।
सुनीता ने रात को नाइटी पहनी हुई थी। उसे डर था की उसकी नाइटी में उसकी पेन्टी पूरी भीग चुकी होगी इतना रस उसकी चूत छोड़ रही थी।
जस्सूजी कब अपनी बर्थ से निचे उतर आये सुनीता को पता ही तब चला जब सुनीता को जस्सूजी ने कस के अपनी बाहों में ले लिया और चद्दर और कम्बल हटा कर वह सुनीता को सुला कर उसके साथ ही लम्बे हो गए और सुनीता को अपनी बाहों के बिच और दोनों टांगों को उठा कर सुनीता को अपनी टांगों के बिच घेर लिया।
फिर उन्होंने चद्दर और कम्बल अपने ऊपर डाल दिया जिससे अगर कोई उठ भी जाए तो उसे पता ना चले की क्या हो रहा था।
जस्सूजी ने सुनीता का मुंह अपने मुंह के पास लिया और सुनीता के होँठों से अपने होँठ चिपका दिए। जस्सूजी के होठोँ के साथ साथ जस्सूजी की मुछें भी सुनीता के होठोँ को चुम रहीं थीं। सुनीता को अजीब सा अहसास हो रहा था।
पिछली बार जब जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाहों में किया था तब सुनीता होश में नहीं थी। पर इस बार तो सुनीता पुरे होशो हवास में थी और फिर उसी ने ही तो जस्सूजी को आमंत्रण दिया था।
सुनीता अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। उससे जस्सूजी का यह आक्रामक रवैया बहुत भाया। वह चाहती थी की जस्सूजी उसकी एक भी बात ना माने और उसके कपडे और अपने कपडे भी एक झटके में जबरदस्ती निकाल कर उसे नंगी करके अपने मोटे और लम्बे लण्ड से उसे पूरी रात भर अच्छी तरह से चोदे। फिर क्यों ना उसकी चूत सूज जाए या फट जाए।
सुनीता जानती थी की अब वह कुछ नहीं कर सकती थी। जो करना था वह जस्सूजी को ही करना था। जस्सूजी का मोटा लण्ड सुनीता की चूत को कपड़ों के द्वारा ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वह सुनीता की चूत को उन कपड़ों के बिच में से खोज क्यों ना रहा हो?
या फिर जस्सूजी का लण्ड बिच में अवरोध कर रहे सारे कपड़ों को फाड़ कर जैसे सुनीता की नन्हीं कोमल सी चूत में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। जस्सूजी मारे कामाग्नि से पागल से हो रहे थे। शायद उन्होंने भी नीतू और कुमार की प्रेम गाथा सुनी थी।
जस्सूजी पागल की तरह सुनीता के होँठों को चुम रहे थे। सुनीता के होँठों को चूमते हुए जस्सूजी अपने लण्ड को सुनीता की जाँघों के बिच में ऐसे धक्का मार रहे थे जैसे वह सुनीता को असल में ही चोद रहें हों।
सुनीता को जस्सूजी का पागलपन देख कर यकीन हो गया की उस रात सुनीता की कुछ नहीं चलेगी। जस्सूजी उसकी कोई बात सुनने वाले नहीं थे और सचमें ही वह सुनीता की अच्छी तरह बजा ही देंगे।
जब सुनीता का कोई बस नहीं चलेगा तो बेचारी वह क्या करेगी? उसके पास जस्सूजी को रोकने का कोई रास्ता नहीं था। यह सोच कर सुनीता ने सब भगवान पर छोड़ दिया। अब माँ को दिया हुआ वचन अगर सुनीता निभा नहीं पायी तो उसमें उसका क्या दोष?
सुनीता जस्सूजी के पुरे नियत्रण में थी। जस्सूजी के होँठ सुनीता के होँठों को ऐसे चुम और चूस रहे थे जैसे सुनीता का सारा रस वह चूस लेना चाहते थे। सुनीता के मुंह की पूरी लार वह चूस कर निगल रहे थे।
सुनीता ने पाया की जस्सूजी उनकी जीभ से सुनीता का मुंह चोदने लगे थे। साथ साथ में अपने दोनों हाथ सुनीता की गाँड़ पर दबा कर सुनीता की गाँड़ के दोनों गालों को सुनीता की नाइटी के उपरसे वह ऐसे मसल रहे थे की जैसे वह उनको अलग अलग करना चाहते हों।
जस्सूजी का लण्ड दोनों के कपड़ों के आरपार सुनीता की चूत को चोद रहा था। अगर कपडे ना होते तो सुनीता की चुदाई तो हो ही जानी थी। पर ऐसे हालात में दोनों के बदन पर कपडे कितनी देर तक रहेंगे यह जानना मुश्किल था।
यह पक्का था की उसमें ज्यादा देर नहीं लगेगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। सुनीता के मुंह को अच्छी तरह चूमने और चूसने के बाद जस्सूजी ने सुनीता को घुमाया और करवट लेने का इशारा किया।
सुनीता बेचारी चुपचाप घूम गयी। उसे पता था की अब खेल उसके हाथों से निकल चुका था। अब आगे क्या होगा उसका इंतजार सुनीता धड़कते दिल से करने लगी।
जस्सूजी ने सुनीता को घुमा कर ऐसे लिटाया की सुनीता की गाँड़ जस्सूजी के लण्ड पर एकदम फिट हो गयी। जस्सूजी ने अपने लण्ड का एक ऐसा धक्का मारा की अगर कपडे नहीं होते तो जस्सूजी का लण्ड सुनीता की गाँड़ में जरूर घुस जाता।
सुनीता को समझ नहीं आ रहा था की वह कोई विरोध क्यों नहीं कर रही थी? ऐसे चलता रहा तो चंद पलों में ही जस्सूजी उसको नंगी कर के उसे चोदने लगेंगे और वह कुछ नहीं कर पाएगी।
पर हाल यह था की सुनीता के मुंह से कोई आवाज निकल ही नहीं रही थी। वह तो जैसे जस्सूजी के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली की तरह उनके हर इशारे का बड़ी आज्ञा कारी बच्चे की तरह पालन कर रही थी।
जस्सूजी ने अपने हाथसे सुनीता की नाइटी के ऊपर के सारे बटन खोल दिए और बड़ी ही बेसब्री से सुनीता की ब्रा के ऊपर से ही सुनीता की चूँचियों को दबाने लगे।
सुनीता के पास अब जस्सूजी की इच्छा पूर्ति करने के अलावा कोई चारा नहीं था। सुनीता ना तो चिल्ला सकती थी नाही कुछ जोरों से बोल सकती थी क्यूंकि उसके बगल में ही उसका पति सुनील , ज्योतिजी, कुमार और नीतू सो रहे थे।
सुनीता समझ गयी की जस्सूजी सुनीता की ब्रा खोलना चाहते थे। सुनीता ने अपने हाथ पीछे की और किये और अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा की पट्टियों के खुलते ही सुनीता के बड़े फुले हुए उरोज जस्सूजी के हथेलियों में आगये।
जस्सूजी सुनीता की गाँड़ में अपने लण्ड से धक्के मारते रहे और अपने दोनों हाथोँ की हथलियों में सुनीता के मस्त स्तनोँ को दबाने और मसलने लगे।
सुनीता भी चुपचाप लेटी हुई पीछे से जस्सूजी के लण्ड की मार अपनी गाँड़ पर लेती हुई पड़ी रही। अब जस्सूजी को सिर्फ सुनीता की नाइटी ऊपर उठानी थी और पेंटी निकाल फेंकनी थी। बस अब कुछ ही समय में जस्सूजी के लण्ड से सुनीता की चुदाई होनी थी।
सुनीता ने अपना हाथ पीछे की और किया। जब इतना हो ही चुका था तब भला वह क्यों ना जस्सूजी का प्यासा लण्ड अपने हाथोँ में ले कर उसको सहलाये और प्यार करे? पर जस्सूजी का लण्ड तो पीछे से सुनीता की गाँड़ मार रहा था (मतलब कपडे तो बिच में थे ही).
सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड उनके पयजामें के ऊपर से ही अपनी छोटी सी उँगलियों में लेना चाहा। जस्सूजी ने अपने पयजामे के बटन खोल दिए और उनका लण्ड सुनीता की उँगलियों में आ गया।
जस्सूजी का लण्ड पूरा अच्छी तरह चिकनाहट से लथपथ था। उनके लण्ड से इतनी चिकनाहट निकल रही थी की जैसे उनका पूरा पयजामा भीग रहा था।
चूँकि सुनीता ने अपना हाथ अपने पीछे अपनी गाँड़ के पास किया था उस कारण वह जस्सूजी का लण्ड अपने हाथोँ में ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी। खैर थोड़ी देर में उसका हाथ भी थक गया और सुनीता ने वापस अपना हाथ जस्सूजी के लण्ड पर से हटा दिया।
जस्सूजी अब बड़े मूड में थे। वह थोड़े से टेढ़े हुए और उन्होंने अपने होँठ सुनीता की चूँचियों पर रख दिए। वह बड़े ही प्यार से सुनीता की चूँचियों को चूसने और उसकी निप्पलोँ को दाँत से दबाने और काटने लगे।
उन्होंने अपना हाथ सुनीता की जाँघों के बिच लेना चाहा। सुनीता बड़े असमंजस में थी की क्या वह जस्सूजी को उसकी चूत पर हाथ लगाने दे या नहीं।
यह तय था की अगर जस्सूजी का हाथ सुनीता की चूत पर चला गया तो सुनीता की पूरी तरह गीली हो चुकी पेंटी सुनीता के मन का हाल बयाँ कर ही देगी। तब यह तय हो जाएगा की सुनीता वाकई में जस्सूजी से चुदवाना चाहती थी।
जस्सूजी का एक हाथ सुनीता की नाइटी सुनीता की जाँघों के ऊपर तक उठाने में व्यस्त था की अचानक उन्हें एहसास हुआ की कुछ हलचल हो रही थी। दोनों एकदम स्तब्ध से थम गए। सुनीलजी बर्थ के निचे उतर रहे थे ऐसा उनको एहसास हुआ।
सुनीता की हालत एकदम खराब थी। अगर सुनीलजी को थोड़ा सा भी शक हुआ की जस्सूजी उसकी पत्नी सुनीता की बर्थ में सुनीता के साथ लेटे हुए हैं तो क्या होगा यह उसकी कल्पना से परे था। फिर तो वह मान ही लेंगें के उनकी पत्नी सुनीता जस्सूजी से चुदवा रही थी।
फिर तो सारा आसमान टूट पडेगा। जब सुनीलजी ने सुनीता को यह इशारा किया था की शायद जस्सूजी सुनीता की और आकर्षित थे और लाइन मार रहे थे तब सुनीता ने अपने पति को फटकार दिया था की ऐसा उनको सोचना भी नहीं चाहिए था। अब अगर सुनीता जस्सूजी से सामने चलकर उनकी पीठ के पीछे चुदवा रही हो तो भला एक पति को कैसा लगेगा?
सुनीता ने जस्सूजी के मुंह पर कस के हाथ रख दिया की वह ज़रा सा भी आवाज ना करे। खैर जस्सूजी और सुनीता दोनों ही कम्बल में इस तरह एक साथ जकड कर ढके हुए थे की आसानी से पता ही नहीं लग सकता की कम्बल में एक नहीं दो थे।
पर सुनीता को यह डर था की यदि उसके पति की नजर जस्सूजी की बर्थ पर गयी तो गजब ही हो जाएगा। तब उन्हें पता लग जाएगा की जस्सूजी वहाँ नहीं थे। तब उन्हें शक हो की शायद वह सुनीता के साथ लेटे हुए थे।
खैर सुनीलजी बर्थ से निचे उतरे और अपनी चप्पल ढूंढने लगे।
सुनील जी को जल्दी ही अपने चप्पल मिल गए और वह तेज चलती हुई, और हिलती हुई गाडी में अपना संतुलन बनाये रखने के लिए कम्पार्टमेंट के हैंडल बगैरह का सहारा लेते हुए डिब्बे के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए।
उनके जाते ही सुनीता और जस्सूजी दोनों की जान में जान आयी। सुनीता को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भेंट हुई और जान बच गयी।
जैसे ही सुनीलजी आँखों से ओझल हुए की जस्सूजी फ़ौरन उठकर फुर्ती से बड़ी चालाकी से कम्पार्टमेंट की दूसरी तरफ जिस तरफ सुनीलजी नहीं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े।
सुनीता ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक किये और अपना सर ठोकती हुई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज बचाई ऐसा उसे लगा।
थोड़ी ही देर में पहले सुनील जी टॉयलेट से वापस आये। उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता को हिलाया और उसे जगाने की कोशिश की। सुनीता तो जगी हुई ही थी। फिर भी सुनीता ने नाटक करते हुए आँखें मलते हुए धीरे से पूछा, “क्या है?”
सुनीलजी ने एकदम सुनीता के कानों में अपना मुंह रख कर धीमी आवाज में कहा, “अपना वादा भूल गयी? आज हमने ट्रैन में रात में प्यार करने का प्रोग्राम जो बनाया था?”
सुनीता ने कहा, “चुपचाप अपनी बर्थ पर लेट जाओ। कहीं जस्सूजी जग ना जाएँ।”
सुनीलजी ने कहा, “जस्सूजी तो टॉयलेट गए हैं। अब तुमने वादा किया था ना? पूरा नहीं करोगी क्या?”
सुनीता ने कहा, “ठीक है। जब जस्सूजी वापस आजायें और सो जाएँ तब आ जाना।”
सुनीलजी ने खुश हो कर कहा, “तुम सो मत जाना। मैं आ जाऊंगा।”
सुनीता ने कहा, “ठीक है बाबा। अब थोड़ी देर सो भी जाओ। फिर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे बिस्तर में घुस जाना, ताकि किसी को ख़ास कर ज्योतिजी और जस्सूजी को पता ना चले।”
सुनील ने खुश होते हुए कहा, “ठीक है। बस थोड़ी ही देर में।” ऐसा कहते हुए सुनीलजी अपनी बर्थ पर जाकर जस्सूजी के लौटने का इंतजार करने लगे। सुनीता मन ही मन यह सब क्या हो रहा था इसके बारे में सोचने लगी।
आगे की कहानी अगले एपिसोड में, तब तक के लिए आज का एपिसोड केसा लगा निचे कमेंट्स लिख कर जरुर बताइयेगा!
[email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000