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मैं अंश बजाज फिर से हाजिर हूँ अपनी हाल ही की आपबीती के साथ… अगर आपने मेरे द्वारा लिखी गई गे सेक्स स्टोरीज अपनी पसंदीदा सेक्सी स्टोरी साइट अन्तर्वासना पर पढ़ी हैं तो आप जानते होंगे कि मुझे देसी मर्दों के लंड चूसना बहुत पसंद है और खासकर हरियाणा के जाट मर्दों के… या यूं कहें कि हरियाणा के जाटों के अलावा मुझे कोई पसंद आता ही नहीं है. वैसे देखा जाए तो आजकल हरियाणा में भी जो नई पीढ़ी सामने आ रही है, उसमें वो पहले जैसी मर्दानगी कम होती जा रही है, वो शहरी पप्पूओं की तरह लगने लगे हैं. फिर भी हरियाणा के कुछ गांव ऐसे हैं जहाँ पर अभी भी वही देसीपन बचा हुआ है जिसे देखकर मेरे मुंह से आह निकल जाती है. खैर कहानी पर आता हूँ…
यह गे सेक्स स्टोरी भी हरियाणा के एक गांव से ही जुड़ी है, नाम तो मैं नहीं बता सकता लेकिन इतना जरूर है कि वहाँ से एक बड़ी पानी की नहर गुजरती है जिसके आस-पास ज्वार(चरी) के खेत भी हैं.. उन खेतों में आजकल तो इतने मर्द देखने को नहीं मिलते लेकिन क्योंकि गर्मी होने की वजह से या तो वो सुबह ज्वार काटने आते हैं या फिर देर रात शाम को नहर पर नहाने आते हैं.
लेकिन जल्दी ही बरसात का मौसम शुरु हो जाएगा और धान की फसल में ट्यूबवेल चलने शुरु हो जाएंगे.. इस मौसम में गीले अंडरवियर में लटकते लंड देखने वालों की दिल की हर कामना पूरी होने के चांस होते हैं क्योंकि इस समय जाट अक्सर खेतों में नहाते हुए दिख जाते हैं और वो भी एक नहीं बल्कि तीन या चार साथ-साथ.. लेकिन उसमें अभी थोड़ा वक्त है.
फिलहाल मैं अपनी बात पर आता हूँ… लंड तो पैंट में से ही दिख जाए तो दिल की धड़कन तेज हो जाती है और अगर लंड वाले का ध्यान मुझ पर चला जाए कि मैं उसके लंड की तरफ देख रहा हूँ तो मेरी तो सांसें भारी होने लगती हैं और तब जगती है उस लंड को चूसने की प्यास…
ऐसा ही कुछ हुआ पिछले दिनों जब मैं सुबह के वक्त नहर किनारे टहलने जा रहा था. वापस आते हुए नहर की पगडंडी के साथ में ही ज्वार का एक खेत है जिसमें कुछ दिन से मैं देख रहा था कि रोज थोड़ी थोड़ी ज्वार काटी जा रही है.. मतलब कोई न कोई यहाँ पर आता है, अब वो लड़का है या मर्द है या कोई औरत बस इसका पता लगाना था… इसलिए मैं ज्यादा वक्त खेत के पास ही बिताने लगा, दो तीन चक्कर लगाने लगा.
और एक दिन मेरे मन की मुराद पूरी हो गई… लौटते वक्त देखा कि एक बाइक खेत में खड़ी है और कोई खेत में से ज्वार काट रहा है. उसकी पीठ मेरी तरफ थी इसलिए चेहरा देखना और जरूरी हो गया. वैसे तो कोई जवान लड़का ही लग रहा था, उसने काले रंग की लोअर और ग्रे रंग की टी-शर्ट पहनी हुई थी, हाथ में दराती और कतर-कतर ज्वार काटे जा रहा था, मेरे मन में वही हलचल कि एक बार दिखे तो सही कि मर्द कैसा है, देसी है या शहरी पप्पू…
और अगले ही पल उसने घूमते हुए कटी हुई ज्वार जमीन पर पटकी और दोबार कटाई में लगने ही वाला था कि उसने मुझे देख लिया… लड़का सही था… ज्यादा ठेठ मर्द तो नहीं था फिर भी उसकी काली लोअर में बने लंड के उभार ने मुझे उसकी तरफ देखते रहने पर मजबूर कर दिया… 25-26 साल का जवान था, सामान भी अच्छा मालूम हो रहा था. ऊपर से उसकी पसीने में लथपथ भीगी टी-शर्ट में से दिखते उसकी छाती के उभारों ने मेरे पैरों में जैसे बोझ बांध दिया और मैं चाहकर भी वहाँ से हिल नहीं पा रहा था… शर्म के मारे मेरे चेहरा लाल हुआ जा रहा था और मैं कभी नजरें चुराता, कभी मिलाता हुआ धीरे धीरे अपने रास्ते पर आगे बढ़ने लगा.
उसने भी मेरी तरफ देखा लेकिन उसके चेहरे पर कुछ प्रश्नवाचक भाव थे.. कि मैं उसकी तरफ क्यों देख रहा हूँ. 15-20 कदम तक मैंने उसे दो तीन बार देखा… कभी उसके लोअर की तरफ और कभी उसकी आँखों में… फिर मन मार कर मैं आगे निकल आया… धड़कन धक-धक कर रही थी… हाथ पैर फूले हुए थे… लेकिन मेरी वापस जाने की हिम्मत नहीं हुई.
अब मैं घर चला गया और रात भर उसी के बारे में सोचता रहा. कल की सुबह का इंतजार करने का कौतूहल भी मन में था और एक अजीब सा डर भी था कि दोबारा उसका सामना कैसे करूंगा.
खैर सुबह भी हो गई और मैंने सबसे पहले खेत में घूमने का प्लान किया और निकल पड़ा. करीब 7.30 बजे का समय हो रहा था और धूप चढ़ने लगी थी, मैं नहर की पगडंडी पर जाकर कुछ हल्की एक्सरसाइज करने लगा, पर आज एक्सरसाइज में मन नहीं लग रहा था, बार-बार देखता कि कोई बाइक तो नहीं आ रही.
और 10 मिनट बाद वो मुराद भी पूरी हो गई, दूर से एक बाइक आती हुई दिखाई दी.. कुछ सेकेन्ड्स वो मेरे पास से गुजरा… मैंने उसे देखा और उसने मुझे… लेकिन आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था. वो कुछ दूर जाकर खेत में बाइक रोक कर ज्वार काटने नीचे उतर गया.
मैं हिम्मत करके खेत की तरफ बढ़ा… कल की तरह वो आज भी मेरी तरफ पीठ किए हुए था.
जैसे ही मैं गुजरने लगा… वो मुड़ा और खड़ा हो गया. मैंने उसके लोअर की तरफ देखा तो आज उसके लंड का उभार कल से बड़ा लग रहा था… मानो जैसे कोई लंड खड़ा होने की तैयारी में हो. मैंने एकदम नजर हटा ली और आगे जाने लगा, आज मेरी मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं हुई. लेकिन वो जरूर समझ गया कि मैं क्या चाहता हूँ.
मैं दौड़ता हुआ घर पहुंचा और उसके बारे में सोचते हुए मुट्ठ मारी… माल निकालने के बाद जाकर कहीं मैं शांत हुआ. मैंने सोचा कि कल नहीं जाऊँगा, नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी.
लेकिन ये हवस है… बुझने के बाद फिर जग जाती है… अगली सुबह फिर घूमने निकला और उसी जगह उसका इंतजार करने लगा… कुछ देर बाद बाइक आई और वो मुस्कुराता हुआ मेरी तरफ देखकर निकल गया. मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि मैं भी उसे पसंद करने लगा था… गांडू हूँ तो क्या हुआ दिल तो मेरा भी धड़कता है… यह भी चाहता है कि कोई मुझे पसंद करे!
मैं ना चाहते हुए भी उस खेत की तरफ बढ़ने लगा… वो रोज की तरह पसीने से लथ-पथ था और मेरे पैरों की आहट सुनते ही हाथ में दराती लिए मेरी तरफ घूमा और खड़ा हो गया. मेरे अंदर की हवस भी जग रही थी जो मुझे उसकी लोअर की तरफ देखने को मजबूर कर रही थी.
जैसे ही मैंने देखा, उसने लोअर के ऊपर से अपना लंड खुजला दिया… खुजलाते ही मेरी नजर वहाँ टिक गई और देखते ही उसका लंड उसकी लोअर में बड़ा होने लगा.. और पूरा तन गया. अब मैं क्या करूं… एक मन था कि जाकर उसको पकड़ लूं और दूसरा मन था कि नहीं ‘कहीं बदनामी न हो जाए, किसी को बता दिया तो..’
पर लंड तनकर फुंफकारने लगा और वो मेरी तरफ देखकर मुस्करा दिया… उसके चेहरे पर पसीना था जो गर्दन से होते हुए उसकी छाती को भिगोता हुआ नीचे लोअर में जा रहा था.. और वहीं पर नीचे वो मर्दाना तरीके से तना हुआ लंड जिसकी कल्पना मैं सपने में करता हूँ… जी तो कर रहा था कि जाकर चूस लूं… लेकिन शुरुआत कौन करे… उसे भी पता था मैं क्या चाहता हूँ और मुझे भी पता था कि वो क्या चाहता है.. मेरी तो हिम्मत नहीं हुई.
जब मैं नजरें चुराता हुआ आगे बढ़ने लगा तो वो अपनी मर्दाना आवाज़ में बोला- कित का है मानस…(कहाँ से है भाई) मैंने अपने मौहल्ले का नाम बता दिया.. वो बोला- रोज़ आता है… मैंने कहाँ- हाँ, घूमने आ जाता हूँ… उसने पूछा- इतनी गर्मी में? मैंने भी दिल की बात कहते हुए कहा- हाँ, इस टाइम आप जो दिख जाते हो… वो ठहाका मारकर हंस पड़ा और बोला- और कुछ भी देखना हो तो बता दिए… मैं शरमा गया और हंसने लगा.
लेकिन नजर अभी भी उसके लंड पर ही जा रही थी… उसने फिर कहा- गर्मी बहुत ज्यादा हो रही है. मैंने कहा- हाँ.. वैसे पास में ही नहर है.. नहा लो..
वो कामुक अंदाज में अपने लंड को रगड़ता हुआ बोला- ये भी काफी दिनों से गर्मी में है, कोई मिल ही नहीं रहा इसकी गर्मी निकालने वाला… उसने मेरे मुंह की बात छीन ली.. मैं भी बेशर्म होकर बोल पड़ा- मैं कुछ मदद करुं? वो बोला- आ जा फिर ज्वार के खेत में अंदर…
उसके कहते ही मैं खेत में अंदर चला गया.. वो आगे-आगे और मैं पीछे-पीछे… फसल के अंदर सेफ जगह जाकर मैं घुटनों के बल बैठ गया और वो अपने तने हुए लंड को मेरे मुंह के सामने लाकर खड़ा हो गया और बोला- कर ले जो करना है..
यह हिंदी गे सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
हाय.. मेरे मन में लड़्डू फूट गए.. मैंने उसके तने हुए लौड़े को लोअर में से सूंघा.. और चाटने लगा.. उसकी पसीने की खुशबू में उसके वीर्य की हल्की गंध भी मिली हुई थी… लग रहा था जैसे सारी रात का लौड़ा खड़ा हुआ कामरस निकाल रहा था और सुबह वो सूख गया था जिसकी हल्की महक मुझे पागल कर रही थी.
अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था लेकिन मैं आगे कुछ करता उससे पहले ही उसने मेरा सिर पकड़ा और लोअर में घुसा दिया और दबा दिया. वो कामुक सिसकारियाँ लेने लगा और बोला- चूस ले ना यार… जल्दी.. कहते हुए उसने लोअर नीचे की और माचो के अंडरवियर में उसका तना हुआ लंड दिख गया जिसकी टोपी गीली हो चुकी थी.
मैंने उसको चूमा-चाटा, प्यार किया.. अब बात काबू से बाहर हो गई. उसने कच्छा निकाला और लंड मेरे मुंह में दे दिया. मैं भी पूरे मन से उसको चूसने लगा, उसके आंड मेरे होठों को छू रहे थे जो पसीने में गीले हो चुके थे, उसकी झाँटों की खुशबू मुझे पूरा लंड गले में लेने के लिए उकसा रही थी.
मैंने एकदम से लंड मुंह से निकाला और आंडों में मुंह दे दिया… वो बोला- हाय… मेरी जान… मारेगा तू तो आज कती (बिल्कुल)… चूस यार चूस! हम दोनों मदमस्त हो चुके थे.
अब उसने मेरे बाल पकड़ते हुए सिर पर दोनों हाथ रखे और मुंह को चोदने लगा, ‘आह…उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह…’ करते हुए उसका लंड मेरे गले में उरतने लगा और मुझे उल्टी होने लगी. लेकिन वो हवस में पागल हो चुका था और मैं उसके इस मजे को खराब नहीं करना चाहता था तो मैं उसका साथ देता रहा… मेरे हाथ उसकी पसीने से गीली हो चुकी गांड पर कसे हुए थे जिस पर हल्के हल्के बाल भी थे.
वो मेरे मुंह को चोदे जा रहा था… दो मिनट बाद उसने मेरे गले में वीर्य की पिचकारी मारी दी जिसे मैं बाहर नहीं थूक सका और पी गया. झटके मारते हुए वो शांत हो गया और अंडरवियर ऊपर करके बाहर निकल गया. 2 मिनट बाद मैं भी बाहर आ गया ताकि किसी को शक न हो.
जब तक खेत में ज्वार की फसल रही मैंने रोज उसके लंड का रस पीया.. उसके बाद वो फिर कभी नहीं दिखा.. मैंने भी कभी उसे ढूंढने की कोशिश नहीं की.
ऐसे होते हैं ये जाट… अगर खुश हो गए तो बल्ले-बल्ले और अगर बिगड़ गए तो चल साले निकल ले… लेकिन कुछ भी हो, जाटों के सिवा किसी का लंड पसंद ही नहीं आता.
कोई जाट भाई पढ़ रहा हो तो बुरा न मानना.. जल्द ही लौटूंगा अगली गे सेक्स स्टोरी के साथ!
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