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सुनील की पत्नी सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी का मुंह छोटा हो गया। उनके मुंह पर लिखे निराशा और कुंठा के भाव सुनीता को साफ़ नजर आ रहे थे।
वह खुद बड़ी निराश और दुखी महसूस कर रही थी। पर क्या करे? माँ को जो वचन दिया था। उसे तो निभाना ही था। सुनीता ने ज्योतिजी की और देखा। ज्योतिजी कुछ बोल नहीं पा रही रहीं। सुनीता को लगा की ज्योतिजी अब उससे बात नहीं करेंगी।
निराश सी होकर वह उठ खड़ी हुई और कपडे पहनने लगी; तब ज्योतिजी ने सुनीता का हाथ थामा और बोली, “देखो बहन, तुम्हारी बात सही है की प्यारी माँ को दिया हुआ वचन तोड़ना नहीं चाहिए। पर एक बात को समझो। तुम्हारी माँ ने सबसे पहले तुम्हें जो सिख दी थी वह समय के चलते बदली थी की नहीं? बोलो?”
सुनीता ने ज्योति की तरफ देखा और मुंडी हिला कर कहा, “हाँ दीदी, बदली तो थी। पहले तो वह मुझे कोई लड़के से ज्यादा मिलने या बातचीत करने से ही मना कर रही थी; पर बाद में उन्होंने समय को बदलते हुए देखा तो छूआछुही और चुम्मा चाटी से आगे बढ़ने के लिए मना किया था।”
ज्योतिजी ने कहा, “देखो बहन, अगर तुम्हारी माँ आज होती ना, तो मुझे पक्का पता है की वह तुम्हें रोकती नहीं। क्यूंकि वह यह समझती की तुम अब बड़ी समझदार और परिपक्व हो गयी हो और अपना सही निर्णय तुम खुद ले सकती हो। मैं तुम्हें कोई जबरदस्ती नहीं कर रही। पर मैं तुम्हें जो मैंने कहा वह सोचने के लिए आग्रह जरुर करुँगी। बाकी निर्णय लेना तुम्हारे हाथमें है।”
सुनील की पत्नी सुनीता ने कर्नल साहब की पत्नी ज्योतिजी का हाथ थाम कर बड़ी विनम्रता से कहा, “दीदी, आप मुझसे नाराज तो नहीं हो ना? मैं आपकी छोटी बहन और अंतरंग सहेली बने रहना चाहती हूँ। कहीं मेरी यह सोच के कारण आप मुझसे रिश्ता ही ना रखना चाहो ऐसा तो नहीं होगा ना?
हमारे दोनों के बिच अभी जो प्यार हुआ मैं उससे बहुत ही रोमांचित हूँ और उसके कारण आपके प्रति मेरा सम्मान और प्यार और भी बढ़ा है। अगर मैं आपको थोड़ी सी भी सेक्सी लगती हूँ और अगर आपको मेरे बदन से थोड़ा सा भी प्यार करने का मन करता हो तो मुझे ‘मालिश करने के लिए बुला लेना। हमारे बिच अभी जैसे हमने किया ऐसे प्यार करने का कोड होगा ‘मालिश’ करनी है’।”
सुनीता की प्यारी और मीठी सरल बोली सुनकर ज्योतिजी बरबस हँस पड़ी। सुनीता को गले लगाते हुए बोली, “शायद कर्नल साहब के भाग्य में तुम्हारी ‘मालिश’ करना लिखा नहीं। पर तुम उन्हें प्यार करने से तो नहीं रोकेगी ना? और हाँ, मैं तुम्हें जल्दी ही ‘मालिश’ करने के लिए बुलाऊंगी।”
सुनीता भी ज्योतिजी के साथ हँस पड़ी और बोली, “दीदी, मैं एक राज की बात कहती हूँ। मैं खुद भी आपका बार बार ‘मालिश’ करना चाहती हूँ और आपसे बार बार ‘मालिश’ करवाना चाहती हूँ। आपके पति से भी मैं बहुत प्यार करती हूँ। आपकी इजाजत हो तो मौक़ा मिलने पर मैं उनको बहुत प्यार दूँगी। और जहां तक उनसे ‘मालिश’ करवाने का सवाल है, तो क्या पता कल क्या होगा?”
बड़ी देर तक दोनों बहनें एक दूसरे से लिपटी रहीं और एक दूसरे की गीली आँखें पोछती रहीं और एक दूसरे की गीली चूत पर हाथ फिराती रहीं।
कहते हैं की समय सब का समाधान है। समय सारे दुःख और सुख को लाता है और ले भी जाता है। ज्योतिजी और सुनील की पत्नी को मिले हुए कुछ दिन हो गए। कर्नल साहब (जस्सूजी) और सुनील दोनों अपने काम में व्यस्त हो गए। स्कूल की छुट्टियां भी खत्म हो गयीं और जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी और सुनील की पत्नी सुनीता दोनों भी अत्याधिक व्यस्त हो गए।
देखते ही देखते गर्मियां शुरू हो गयीं। स्कूलों में परीक्षा की चिंता मैं बच्चे पढ़ाई में लग गए थे। एक दिन शाम सुनील दफ्तर से घर पहुंचा ही था की कर्नल साहब का फ़ोन आया की उनके घर में चोरी हुई है। सुनील और सुनीता ने जब यह सूना तो वह दोनो भागते हुए कर्नल साहब के फ्लैट पहुंचे। उनके घर पुलिस आकर चली गयी थी। ड्राइंग रूम में सारा सामान बिखरा हुआ था।
सुनीता ने जस्सूजी की पत्नी के पास जा कर उनका हाथ थामा और पूछा की क्या हुआ था तो ज्योतिजी बोली, “समझ में नहीं आता। हम सब बाहर थे। दिन दहाड़े कोई चोर घरमें ताला तोड़ कर घुसा। चोर ने पूरा घर छान मारा। पर एक लैपटॉप, कुछ डायरियां और एक ही जूते को छोड़ कुछ भी नहीं ले गया। जूता ले गया तो भी बस एक। दुसरा जूता यहीं पड़ा है। पता नहीं, एक जूते को तो वह पहन भी नहीं सकता। उसका वह क्या करेगा? घर में इतनी महंगी चीजें हैं। मेरे गहने हैं। उन्हें छुआ तक नहीं। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता।”
सुनील ने कहा, “हो सकता है, अचानक ही कोई आ गया हो ऐसा उसे लगा तो जो हाथ आया उसे लेकर वह भाग निकला।”
जस्सूजी बड़ी गहरी सोचमें थे। उन्होंने कहा, “हो सकता है। पर हो सकता है कुछ और बात भी हो।”
सुनील कर्नल साहब की और आश्चर्य से देख कर बोलै, “आपको क्यों ऐसा लगता है की कुछ और भी हो सकता है?”
कर्नल साहब बोले, “वह इस लिए की पिछले कुछ दिनों से कोई मेरा पीछा कर रहा है। उसे पता नहीं की मैं जानता हूँ की वह मेरा पीछा कर रहा है। अगर यह चालु रहा तो एक ना एक दिन मैं उसे पकड़ पर पता कर ही लूंगा। पर इस बात में कुछ ना कुछ राज़ जरूर है।”
सुनील और उसकी पत्नी सुनीता कुछ समझ नहीं पाए और कुछ औपचारिक बातें कर अपने घर वापस लौट आये। कुछ दिनों में यह बात सब भूल गए।
गर्मी की छुट्टियां कुछ दिन के बाद शुरू होने वाली ही थीं। सुनील, कर्नल साहब उनकी पत्नी ज्योति और सुनील की पत्नी सुनीता एक दिन निचे कार पार्क में ही मिल गए..
तब कर्नल साहब ने कहा, “सुनील और सुनीता सुनो। आर्मी में इस छुट्टियों में सामान्य नागरिकों के लिए आतंक विरोधी अभियान के तहत एक ट्रेनिंग एवं जागरूकता कार्यक्रम हिमाचल की पहाड़ियों में रखा है। इसमें नाम रजिस्टर करवाना है। कार्यक्रम सात दिनों का है। उसमें पहाड़ों में घूमना, तैराकी, शारीरिक व्यायाम, मनोरंजन इत्यादि कार्यक्रम हैं। सारा कार्यक्रम बड़ा रोमांचक होता है। मैं भी उसमें एक ट्रेनर हूँ। हमें तो जाना ही है। अगर आप की इच्छा हो तो आप भी शरीक़ हो सकते हो।”
ज्योतिजी सुनील की पत्नी ने सुनीता के करीब आयी, प्यार से उसका हाथ थामा और सुनीता के कानों में मुँह रख कर शरारत भरी आवाज में धीमे से बोलीं, “बहन चलो ना। राज की बात यह भी है की काफी दिन से मैंने तुमसे ‘मालिश’ भी नहीं करवाई। यह बहुत बढ़िया मौक़ा है। छुट्टियां हैं। घूमेंगे फिरेंगे और मजे करेंगे। तुम हाँ कह दोगी ना, तो सुनीलजी तो अपने आप ही आ जाएंगे।”
सुनील ने ज्योतिजी की और देखकर कहा, “अगर आप कहते हैं तो हम चलेंगे।” अपनी पत्नी सुनीता की और देखते हुए सुनील ने पूछा, “क्यों डार्लिंग, चलेंगें ना?”
सुनीता समझ गयी की ज्योतिजी के मन में कुछ जबरदस्त प्लान है। इतने करीब रहते हुए भी व्यस्तता के कारण पिछले कुछ दिनों से ज्योतिजी से मिलना भी नहीं हो पाया था।
वह शर्माती हुई अपने पति की और देखती हुई बोली, “अगर आप कहेंगे तो भला मैं क्यों मना करुँगी? वैसे भी वेकेशन में हमें कहीं ना कहीं तो जाना ही है; तो क्यों ना हम इसी कार्यक्रम में हिस्सा लें? लगता है यह काफी रोमांचक और मजेदार होगा साथ साथ पहाड़ों में घूमना और एक्सरसाइज दोनों हो जाएंगे।”
तो फिर तय हुआ की पहाड़ों में छुट्टियां बिताने के लिए इस कार्यक्रम में सुनील और उनकी पत्नी सुनीता के नाम भी रजिस्टर कराएं जाएं। सब अपना सामान जुटाने में और तैयारी में लग गये।
उसी दिन शामको सुनील ने फ़ोन कर के कर्नल साहब को बताया की उसे उनसे कुछ जरुरी बात करनी है। बात फ़ोन पर नहीं हो सकती थी। कर्नल साहब आधे घंटे में ही सुनील और सुनीता के घर पहुँच गए।
सुनील डाइनिंग कुर्सी पर अपना सर पकड़ कर बैठे थे साथ में सुनीता उनसे कुछ सवाल जवाब कर रही थी। जब कर्नल साहब पहुंचे तो सुनील खड़ा हो गया और औपचारिकता पूरी होते ही उसने अपनी समस्या सुनाई।
सुनीलजी ने कहा की वह जब शाम को मार्किट में गए थे तो उन्हें लगा की कोई उनका पीछा कर रहा था। पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ की भला कोई उसका पीछा भी कर सकता है।
पर चूँकि कर्नल साहब ने उन्हें बताया था की कुछ दिन पहले उनका भी कोई पीछा कर रहा था इसलिए सुनीलजी ने तय किया की वह भी ध्यान से देखेंगे की क्या वह बन्दा सचमुच उनका पीछा ही कर रहा था की या फिर वह सुनिलजी का वहम था।
सुनीलजी चेक करने के लिए थोड़ी देर अचानक ही रुक गए। जब सुनीलजी रुक गए तो वह बन्दा भी रुक गया और दिखावा करने लगा जैसे वह कोई दूकान में सामान देख रहा हो।
दिखने में वह काफी लंबा और हट्टाकट्टा था। उसने कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था। सुनील को लगा की शायद उन्हें वहम हुआ होगा। वह चलने लगे तो वह शख्श भी चलने लगा। तब सुनीलजी को यह यकीन हो गया की वह उनका पीछा कर रहा था। सुनील फुर्ती से एक गली में घुसे और कहीं छुप कर उस शख्श का इंतजार करने लगे।
जैसे ही वह शख्श उनके पास से गुजरा तो सुनील ने उसे ललकारा। सुनील ने उसे पूछा, “अरे भाई, तुम कौन हो, और मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?”
सुनील की आवाज सुनकर उसने पलट कर देखा तो सुनीलजी पीछे से उसके करीब आने लगे। सुनीलजी को करीब आते हुए देख कर वह एकदम भाग खड़ा हुआ। सुनीलजी उसके पीछे दौड़ते हुए गये पर वह बन्दा अचानक कहीं गायब ही हो गया।
सुनीलजी ने कर्नल साहब से कहा, “जस्सूजी मैं वाकई में चिंतित हूँ। मैं यह समझ नहीं पाता हूँ की मेरा पीछा करने की जरुरत किसीको क्यों पड़ गयी? आखिर मेरे पास ऐसा क्या है? मेरी समझ में तो कुछ नहीं रहा।”
कर्नल साहब काफी चिंतित दिखाई दे रहे थे। उन्होंने सुनीलजी के कंधे पर हाथ फिराते हुए कहा, “आपके पास कुछ ऐसा है जिसकी किसीको जरुरत है। खैर, कोई बात नहीं। मैं पता लगाता हूँ और देखता हूँ की यह मसला क्या है।”
सुनील की पत्नी सुनीता जस्सूजी की बात सुनकर और भी चिंतित दिखाई दे रही थी। उसने कर्नल साहब से पूछा, “जस्सूजी, आखिर बात क्या है? इनका कोई पीछा क्यों करेगा भला? कुछ गड़बड़ तो नहीं? आप की बात से लगता है की हो ना हो आपको कुछ पता है जो हमें नहीं मालुम। कहीं आप हमसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो?”
कर्नल साहब रक्षात्मक हुए और बोले, “नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊंगा। इतना तो जरूर है की कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ तो रहस्य जरूर है। पर जब तक मुझे पक्का पता नहीं चले तब तक क्या बताऊँ?”
सुनील ने पूछा, “जस्सूजी, क्या यह नहीं हो सकता की वह किसी और का पीछा कर न चाह रहा था और गलती से मुझे वह आदमी समझ कर मेरा पीछा कर रहा हो?”
जस्सूजी ने कहा, “हो भी सकता है। पर अक्सर ऐसे शातिर लोग इतनी बड़ी गलती नहीं करते।“
सुनीता को शक हुआ की जस्सूजी जरूर कुछ जानते थे पर बताना नहीं चाहते जब तक उन्हें पक्का यकीन ना हो। सुनीता इसका राज़ जानने के लिए बड़ी ही उत्सुक थी पर चूँकि जस्सूजी बताना नहीं चाहते थे इस लिए सुनीता ने भी उस समय उन्हें ज्यादा आग्रह नहीं किया। पर उसी समय सुनीता ने तय किया की वह इस रहस्य की सतह तक जरूर पहुचेंगी।
सुनीलजी ने कर्नल साहब को धन्यवाद कहा। जस्सूजी जब जाने के लिए तैयार हुए तो सुनीलजी ने सुनीता को कर्नल साहब को छोड़ने के लिए कहा और खुद घरमें चले गए।
सुनीता जस्सूजी को छोड़ने के लिए घर से सीढ़ी उतर कर जब निचे उतरने लगी तब उसने जस्सूजी का हाथ पकड़ कर रोका और कहा, “जस्सूजी आप इसका राज़ जानते हैं। पर हमें बता क्यों नहीं रहें हैं। बोलिये क्या बात है?”
जस्सूजी ने सुनीता की और देखा और आँखें झुका कर बोले, “मैं आपको खामखा परेशानी में नहीं डालना चाहता। मैं खुद इसकी सतह तक पहुंचना चाहता हूँ पर क्या बताऊँ? वक्त आने पर मैं आपको खुद बताऊंगा। अभी आप मुझे इस बारेमें प्लीज आग्रह नहीं करें तो अच्छा है।”
इतना कह कर कर्नल साहब फुर्ती से सीढ़ियां निचे उतर गए। सुनीता उन्हें देखती ही रह गयी। जस्सूजी के जाने के तुरंत बाद सुनीता ने सुनीता ने तय किया की वह जल्द ही जस्सूजी से बात कर उनसे इसके बारे में सारे राज़ बताने के लिए आग्रह करके मजबूर करेगी। पर उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था की उसे जस्सूजी से एकांत में मिलने का मौक़ा कब मिलेगा। पर दूसरे ही दिन यह मौक़ा मिल गया।
सुबह ही ज्योतिजी का फ़ोन आया। ज्योतिजी ने कहा, “सुनीता बहन एक समस्या हो गयी है। जस्सूजी को बुखार है और वह ऑफिस नहीं जा रहे। मेरी स्कूल में स्कूल के वार्षिक दिवस का कार्यक्रम है। मुझे तो जाना पडेगा ही। मैं गैर हाजिर नहीं रह सकती। तो क्या तुम अगर फ्री हो तो आज छुट्टी ले सकती हो? दिन में दो तीन बार जस्सूजी के पास जा कर उनकी तबियत का जायजा ले सकती हो प्लीज? मेरी बेटी भी बाहर ट्रेनिंग में गयी हुई है।”
यह सुन कर सुनीता खुश हो गयी। वह पिछली शाम से यही सोच रही थी की कैसे वह जस्सूजी से अकेले में बात करे।
सुनीता ने फ़ौरन कहा, “ज्योतिजी आप निश्चिन्त जाइये। जस्सूजी की देखभाल मैं कर लुंगी। वह मेरे गुरु हैं और उनकी सेवा करना मेरा सौभाग्य होगा। मुझे आज स्कूल में कोई ख़ास काम है नहीं। ज्यादातर पीरियड फ्री हैं। मैं छुट्टी ले लुंगी।”
ज्योतिजी सुबह ही घर से निकल गयीं। सुनील के दफ्तर चले जाने के बाद सुनीता थोड़ा सा ठीकठाक होकर नहा धो कर फ्रेश हुई और ज्योतिजी और जस्सूजी के फ्लैट की और चल पड़ी। फ्लैट की घंटी बजायी तो जस्सूजी ने दरवाजा खोला।
सुनीता ने देखा तो जस्सूजी तैयार हो रहे थे। उन्होंने बनियान और पतलून पहन रखा था और अपना यूनिफार्म पहनने जा रहे थे। जस्सूजी सुनीता को देख कर थम गए और आश्चर्य से बोल पड़े, “अरे सुनीता तुम, इस वक्त. यहां ? क्या बात है?”
शायद ज्योतिजी ने अपने पति को नहीं बताया था की उन्होंने सुनीता को आने के लिए कहा था।
सुनीता ने पूछा, “अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार क्यों हो रहे हैं?”
जस्सूजी, “अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएंगे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तुम्हें ज्योति ने बता दिया है। ज्योति तो फ़ालतू में बात का बतंगड़ बना रही है।”
सुनीता ने आगे बढ़ कर जस्सूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। सुनीता ने जस्सूजी का हाथ सख्ती से पकड़ा और बोली, “यह छोटा मोटा बुखार ही? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हरबार आपकी नहीं चलेगी। चलो कपडे निकालो।”
कर्नल साहब यह सुनकर आश्चर्य से सुनीता की और देखने लगे और बोले, “कपडे निकालूँ? क्यों?”
सुनीता को समझ आया की जस्सूजी कहीं उसकी बात का गलत मतलब ना निकालें। उसने तुरंत ही कहा, “मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑफिस जाने की कोई जरुरत नहीं है। आज आप घर में ही आराम करेंगे। यह मेरा हुकम है।”
कर्नल साहब चुपचाप सुनीता की अधिकारपूर्ण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उन्होंने सुनीता की ऐसी सख्त आवाज सुनी नहीं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, सुनीता को अंदर आने दिया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए। उनकी कमजोरी साफ़ दिख रही थी।
सुनीता ने कहा, “कपडे निकाल कर पयजामा पहन लीजिये। दफ्तर में फ़ोन करिये की आज आप नहीं आएंगे। मैं आपके सर पर ठन्डे पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोशिश करती हूँ।”
कर्नल साहब चुपचाप बैडरूम में अंदर चले गए और पतलून निकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए।
सुनीता ने बर्फ के कुछ टुकड़े निकाल कर एक कटोरी में डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह जस्सूजी के बगल में उनके सीने के पास ही अपने कूल्हे टिका कर पलंग पर बैठ गयी। जस्सूजी का बुखार काफी तेज था।
सुनीता ने कपड़ा भिगोया और उसे निचोड़ कर जस्सूजी के कपाल पर लगाया और प्यार से उसे दबा कर जस्सूजी के सर पर हाथ फिराने लगी। जस्सूजी आँखें बंद कर सुनीता के कोमल हाथोँ के स्पर्श का आनंद ले रहे थे।
बिच में जब वह अपनी आँखें खोलते तो सुनीता के करारे, फुले हुए, ब्लाउज और ब्रा के अंदर से बाहर आने को व्याकुल मस्त स्तन उनकी आँखों और मुंह के ठीक सामने दीखते थे।
सुनीता के स्तनोँ के बिच की गहरी खाई में से उसकी हल्के चॉकलेट रंग की एरोला की गोलाइयों में कैद निप्पलोँ की हलकी झांकी भी जस्सूजी को हो रही थी। सुनीता के बदन की खुसबू उनको पागल कर रही थी।
कई बार सुनीता के स्तन जस्सूजी के मुंह को और आँखों को अनायास ही स्पर्श कर रहे थे। सुनीता अपने काम में इतनी मशगूल थी की उसे इस बात का कोई भी ख़याल ही नहीं था की उसके मदमस्त स्तन जस्सूजी की हालत खराब कर रहे थे।
सुनीता बार बार झुक कर कभी कपड़ा भिगो कर निचोड़ती तो कभी उसे जस्सूजी के कपाल पर दबा कर अपने हाथोँ से इनका कपाल और उनका सर प्यार से दबाती और अपना हाथ उस पर फिराती रहती थी।
जब सुनीता कर्नल साहब के सर पर कपड़ा दबाती तो उसे काफी झुकना पड़ता था जिसके कारण उसके स्तन जस्सूजी के मुंहमें ही जा लगते थे।
कर्नल साहब ने कई बार कोशिश की वह उन्हें नजरअंदाज करे पर आखिर वह भी तो एक मर्द ही थे ना? कब तक अपने आपको रोक सकते थे?
एक बार अचानक ही जब सुनीता झुकी और उसकी चूँचियाँ जस्सूजी के मुंह में जा लगीं तो बीन चाहे जस्सूजी का मुंह खुल गया और सुनीता का एक स्तन जस्सूजी के मुंह में घुस गया।
कर्नल साहब अपने आपको रोक नहीं पाए और उन्होंने सुनीता के स्तन को मुंह में लेकर वह उसे मुंह में ही दबाने और चूसने लगे।
सुनीता ने ब्लाउज और ब्रा पहन रखी थीं, पर जस्सूजी के मुंह की लार से सुनीता का ब्लाउज और ब्रा भीग गए। सुनीता को महसूस हुआ की उसके स्तन जस्सूजी अपने मुंह में लेकर चूस रहे थे।
सुनीता को इस कदर अपने इतने करीब पाकर जस्सूजी का सर तो ठंडा हो रहा था पर उनके दो पॉंव के बिच उनका लण्ड गरम हो गया था। जल्दी में जस्सूजी ने अंदर अंडरवियर भी नहीं पहना था।
उनका पयजामा के ऊपर उनके लण्ड के खड़े होने के कारण तम्बू जैसा बन गया था। सुनीता की पीठ उस तरफ थी इस कारण वह उसे देख नहीं सकती थी।
सुनीता ने जब पाया की जस्सूजी ने उसके एक स्तन को मुंह में लिया था तो वह एकदम घबड़ा गयी। उसने पीछे हटने के लिए एक हाथ का टेका लेने केलिए अपना हाथ पीछे किया तो वह जस्सूजी की टाँगों के बिच में जा पहुंचा।
सुनीता ने अपना हाथ वहाँ टिकाया तो जस्सूजी का लण्ड ही उसके हाथ में आ गया। यह दूसरी बार हुआ की सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपने हाथ में कपडे के दूसरी और महसूस किया था।
एक तरफ सुनीता को जस्सूजी का बुखार की चिंता थी तो दूसरी और उनके नजदीक आने से वह भी तो गरम हो रही थी। सुनीता की समझ में यह नहीं आ रहाथा की वह करे तो क्या करे? उसका एक स्तन जस्सूजी के मुंह में था तो उसका हाथ जस्सूजी का लण्ड पकडे हुए था।
उसके हाथ में जस्सूजी के लण्ड से निकल रही चिकनाहट महसूस हो रही थी। जस्सूजी का पजामा भी उनकी टाँगों के बिच में फैली हुई चिकनाहट से भीग चुका था। सुनीता ने अपना हाथ हिलाया तो उसकी मुठ्ठी में जस्सूजी का लण्ड भी हिलने लगा।
अब सुनीता और जस्सुजी की हद तक आगे बढ़ जायेगे, बरहाल ये तो अगले एपिसोड में ही पता चलेगा, तो बने रहियेगा!
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