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सुनीता गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी ज्योति को मिलने के लिए चल पड़ी। सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। स्कूल में छुट्टियां चल रही थीं।
ज्योति उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, “कौन है?”
जब सुनीता की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और सुनीता को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।
सुनीता ने नमस्ते किया तो ज्योतिजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, “अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।”
फिर सुनीता का हाथ पकड़ ज्योतिजी उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और सुनील की पत्नी सुनीता को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया।
सुनीता तो ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में ज्योतिजी गजब का कमाल ढा रही थीं।
पलंग की और इशारा कर के ज्योतिजी बोली, “बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।”
सुनीता समझ गयी की पिछली रात जस्सूजी ने जरूर अपनी पत्नी ज्योतिजी की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर सुनीता के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जस्सूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जस्सूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर सुनील की पत्नी सुनीता काँप उठी।
अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की सुनीता को ज्योति जी के पति जस्सूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा।
सुनीता ने पहली बार ज्योतिजी को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। सुनीता ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी ज्योतिजी जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं।
वह सुनीता से करीब चार या पांच साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! सुनीता को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति सुनील जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी के पीछे पागल थे।
ज्योतिजी के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं।
तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ ज्योति के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं।
ज्योतिजी ने सुनीता को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो सुनीता को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध सुनीता ज्योतिजी के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे।
सुनीता का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर ज्योतिजी की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं ज्योतिजी सुनीता की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।
सुनीता को ज्योतिजी के पति जस्सूजी से इर्षा हुई जो ज्योतिजी के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले।
जब ज्योति जी ने सुनीता की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। सुनीता ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर ज्योति के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी।
हायरे दैया!! जिस ढंग से ज्योतिजी अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया ज्योतिजी की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी।
ज्योतिजी की जाँघें देखकर सुनीता से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, “ज्योतिजी आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जस्सूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवी के वह पति हैं।”
ज्योति ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर सुनीता, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। सुनीता भौंचक्का सी ज्योतिजी को देखती ही रही और वह ज्योतिजी की बाहों में उनसे जुड़ गयी।
सुनीता को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब ज्योति ने कहा, “देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ।
ज्योति जी ने अपना हाथ सुनीता के बदन पर सरकाते हुए सुनीता के कँधों को सहलाना शुरू किया।
ज्योति ने कहा, “देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?”
सुनीता क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। सुनीता ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही।
तब ज्योति बोली, “तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।”
सुनीता के हाथ में हाथ ले कर सुनीता के हाथ को सहलाते हुए पूछा, “पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?”
सुनीता ने ज्योति के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, “दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।”
ज्योति को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ज्योति ने पूछा, “मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?”
सुनीता तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और ज्योति के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, “दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जस्सूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती…
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जस्सूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जस्सूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।”
ज्योति ने सुनीता को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, “सुनीता, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जस्सूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।”
ज्योति जी ने सुनीता को अपने और करीब खींचा और बोली, “सुनीता, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?”
सुनीता ने कहा, “दीदी, मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?”
ज्योति ने सुनीता की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ…
देखो मेरी छोटी बहन सुनीता, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जस्सूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती है…
वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?” सुनीता ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी।
सुनीता के हाथ अपने हाथ में लेकर ज्योति बोली, “बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?”
सुनीता ने ज्योति जी की और देखा और बोली, “दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?”
तब ज्योति ने सुनीता की नाक पकड़ कर कहा, “देखो बहन, मैं जस्सूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।”
सुनीता ज्योति जी की बात सुनकर कुछ खिसियानी सी लग रही थी तब ज्योतिजी ने सुनीता के गले में अपनी बाँहें डाल कर सुनीता की आँखों में आँखें मिलाकर कहा, “देखो, शादी के कुछ सालों बाद मर्द लोग इधर उधर ताकते ही रहते हैं। हमारे पति तो फिर भी अच्छे हैं की ज्यादा इधर उधर ताँक झाँक नहीं कर रहे। और की भी तो वह हम पर ही की…
कर्नल साहब तुम पर डोरे डाल रहे हैं तो तुम्हारे पति की नजर मुझपर है। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है की तुम्हारे पति सुनीलजी मुझे बहुत पसंद हैं और अगर मौक़ा मिला तो मैं उनके साथ सोना भी चाहती हूँ। मेरे पति जस्सूजी को भी इस बारे में पता है, हालांकि हमारी साफ़ साफ़ बात नहीं हुई।”
ज्योति जी की ऐसी बेख़ौफ़ वाणी सुनकर सुनीता की आँखें फटी की फटी ही रह गयीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या बोले। एक भारतीय नारी इतनी खुल्लमखुल्ला कैसे अपने मन की बात बता रही थी?
उनकी बात गलत तो नहीं थी। पर समझने में और बोलने में फर्क है। सुनीता ने भी तो ज्योति जी के पति जस्सूजी का लण्ड पकड़ा था? वह कैसे यह झुठला सकती थी?”
सुनीता ने अपना सर हिलाकर हामी भरी की वह समझ रही है।
ज्योति ने कहा, “देखो बहन, मैं जानती हूँ की हम मर्द की तरह इतने खुल कर वह सब नहीं कर सकते जो वह कर सकते हैं। एक मेरी निजी और गुह्य बात मैं तुमसे आज शेयर करना चाहती हूँ। क्या मैं तुमसे हमारी कुछ गुप्त बातें शेयर कर सकती हूँ?”
सुनीता ने कहा, “हाँ बिलकुल दीदी। मैं वादा करती हूँ की आपने अपने मन की बात कही है तो मैं उसे किसीके साथ भी शेयर नहीं करुँगी। यहां तक की आपने पति से भी नहीं। मैं भी आजसे आपको मेरे मन की हर एक बात बताउंगी और कुछ भी नहीं छुपाउंगी। हम एक दूसरे से अपनी कोई भी बात नहीं छुपायेंगे।”
ज्योति ने हँस कर कहा, ” मेरे पति और तुम्हारे जस्सूजी ने हमारी शादी से पहले कई महिलाओं को आकर्षित किया था और मैं जानती थी की उन्होंने कई स्त्रियों को चोदा भी था…
तुम नहीं जानती की मैं मेरे पति यानी जस्सूजी से शादी से पहले हमारी दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवा चुकी थी। मैं उनसे एक क्लब मैं मिली थी और पहली ही मुलाक़ात में उनपर फ़िदा हो गयी थी। मैंने तब तय किया था की अगली मुलाक़ात में ही मैं जस्सूजी से जरूर चुदवाउंगी।“
सुनीता ज्योतिजी का यह रूप पहली बार देख रही थी। वह जानती थी की ज्योति जी साफ़ साफ़ बोलती हैं। पर वह इतना खुल्लमखुल्ला चोदना, चुदाई, लण्ड, चूत बगैरह इस तरह बेबाक बोलेंगी उसकी तो कल्पना भी सुनीता ने नहीं की थी।
ज्योतिजी की हद तक और सुनीता के साथ खुलती है बरहाल ये तो आगे वाले समय में ही पता चलेगा, तो बने रहिएगा!
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