Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 5

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000

कर्नल साहब के घर पर हुई पहली मुलाकात के चंद दिन बाद सुनील की पत्नी सुनीता के पिता, जो एक रिटायर्ड आर्मी अफसर थे, का हार्ट अटैक के कारण अचानक ही स्वर्गवास हो गया। सुनीता का अपने पिता से काफी लगाव था।

पिता के देहांत के पहले रोज सुनीता उनसे बात करती रहती थी। देहांत के एक दिन पहले ही सुनीता की पिताजी के साथ काफी लम्बी बातचीत हुई थी। पिताजी के देहांत का समाचार मिलते ही सुनीता बेहोश सी हो गयी थी। सुनील बड़ी मुश्किल से उसे होश में ला पाया था।

सुनीता के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। सुनीता की माताजी का कुछ समय पहले ही देहांत हुआ था। पिताजी ने कभी सुनीता को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी।

सुनील अपनी पत्नी सुनीता को लेकर अपने ससुराल पहुंचा। वहाँ भी सुनीता के हाल ठीक नहीं थे। वह ना खाती थी ना कुछ पीती थी।

पिताजी के क्रिया कर्म होने के बाद जब वह वापस आयी तो उसका मन ठीक नहीं था। सुनील ने सुनीता का मन बहलाने की बड़ी कोशिश की पर फिर भी सुनीता की मायूसी बरकरार थी। वह पिता जी की याद आने पर बार बार रो पड़ती थी।

जब यह हादसा हुआ उस समय कर्नल साहब और उनकी पत्नी ज्योति दोनों ज्योति के मायके गए हुए थे।

ज्योति अपने पिताजी के वहाँ थोड़े दिन रुकने वाली थी। जिस दिन कर्नल साहब अपनी पत्नी ज्योति को छोड़ कर वापस आये उसके दूसरे दिन कर्नल साहब की मुलाक़ात सुनील से घर के निचे ही हुई।

कर्नल साहब अपनी कार निकाल रहे थे। वह कहीं जा रहे थे। सुनील को देख कर कर्नल साहब ने कार रोकी और सुनील से समाचार पूछा तो सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता के पिताजी के देहांत के बारे में कर्नल साहब को बताया।

कर्नल साहब सुनकर काफी दुखी हुए। उस समय ज्यादा बात नहीं हो पायी।

उसी दिन शामको कर्नल साहब सुनील और सुनीता के घर पहुंचे। ज्योति कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी थी। सुनील ने दरवाजा खोल कर कर्नल साहब का स्वागत किया।

कर्नल साहब आये है यह सुनकर सुनीता बाहर आयी तो कर्नल साहब ने देखा की सुनीता की आँखें रो रो कर सूजी हुई थीं।

कर्नल साहब के लिए सुनीता रसोई घर में चाय बनाने के लिए गयी तो उसको वापस आने में देर लगी। सुनील और कर्नल साहब ने रसोई में ही सुनीता की रोने की आवाज सुनी तो कर्नल साहब ने सुनील की और देखा।

सुनील अपने कंधे उठा कर बोला, “पता नहीं उसे क्या हो गया है। वह बार बार पिताजी की याद आते ही रो पड़ती है। मैं हमेशा उसे शांत करने की कोशिश करता हूँ पर कर नहीं पाता हूँ। चाहो तो आप जाकर उसे शांत करने की कोशिश कर सकते हो। हो सकता है वह आपकी बात मान ले।”

सुनील ने रसोई की और इशारा करते हुए कर्नल साहब को कहा। कर्नल साहब उठ खड़े हुए और रसोई की और चल पड़े। सुनील खड़ा हो कर घर के बाहर आँगन में लॉन पर टहलने के लिए चल पड़ा।

कर्नल साहब ने रसोई में पहुँचते ही देखा की सुनीता रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ी सिसकियाँ ले कर रो रही थी। सुनीता की पीठ कर्नल साहब की और थी।

कर्नल साहब ने पीछे से धीरे से सुनीता के कंधे पर हाथ रखा। सुनीता मूड़ी तो उसने कर्नल साहब को देखा। उन्हें देख कर सुनीता उनसे लिपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दुखों का गुब्बारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी।

सुनीता के आँखों से आंसूं फव्वारे के सामान बहने लगे। कर्नल साहब ने सुनीता को कसके अपनी बाँहों में लिया और अपनी जेब से रुमाल निकाला और सुनीता की आँखों से निकले और गालों पर बहते हुए आंसू पोंछने लगे।

उन्होंने धीरे से पीछे से सुनीता की पीठ को सहलाते हुए कहा, “सुनीता, तुमने कभी किसी आर्मी अफसर की लड़ाई में मौत होते हुए देखि है?”

सुनीता ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कर्नल साहब की और देखा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी हिलाते हुए इशारा किया की उसने नहीं देखा।

तब कर्नल साहब ने कहा, “मैंने एक नहीं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दुश्मन की गोली यों से भरी जवानी में शहीद होते हुए देखा है। मैंने मेरी दो भाभियों को बेवा होते देखा है। मैं उनके दो दो बच्चों को अनाथ होते हुए देखा है। और जानती हो उनके बच्चों ने क्या कहा था?”

कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कर्नल साहब की आँखों में आँखें डालकर देखने लगी पर कुछ ना बोली।

फिर कर्नल साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “मैं जब बच्चों को ढाढस देने के लिए गया, तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई में जाना चाहते है और दुश्मनों को मार कर उनके पिता का बदला जब लेंगे तब ही रोयेंगे। जो देश के लिए कुर्बानी देना चाहते हैं वह वह रो कर अपना जोश और जस्बात आंसूं के रूप में जाया नहीं करते।”

कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना और तेज हो गया। वह कर्नल साहब से और कस के लिपट गयी बोली, “मेरे पिता जी भी लड़ाई में ही अपनी जान देना चाहते थे। उनको बड़ा अफ़सोस था की वह लड़ाई में शहीद नहीं हो पाए।”

कर्नल साहब ने तब सुनीता का सर चूमते हुए कहा, “सुनीता डार्लिंग, जो शूरवीर होते हैं, उनकी मौत पर रो कर नहीं, उनके असूलों को अमल में लाकर, इनके आदर्शों की राह पर चलकर, जो काम वह पूरा ना कर पाए इन कामों को पूरा कर उनके जीवन और उनके देहांत का गौरव बढ़ाते हैं। यही उनके चरणों में हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके क्या उसूल थे? उन्होंने किस काम में अपना जीवन समर्पण किया था यह तो बताओ मुझे, डिअर?”

उनकी बात सुनकर सुनीता कुछ देर तक कर्नल साहब से लिपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया।

फिर वह अपने को सम्हालते हुए कर्नल साहब से धीरे से अलग हुई और उनकी और देख कर उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, “कर्नल साहब, आप ने मुझे चंद शब्दों में ही जीवन का फलसफा समझा दिया। मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ?”

कर्नल साहब ने सुनीता की हथेली दबाते हुए कहा, “तुम मुझे जस्सू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा।”

सुनीता ने कहा, “कर्नल साहब मेरे लिए आप एक गुरु सामान हैं। मैं आपको जस्सू कह कर कैसे बुला सकती हूँ?”

कर्नल साहब ने कहा, “चलो ठीक है। तो तुम मुझे जस्सू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?”

सुनीता कर्नल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, “जस्सूजी, आपका बहुत शुक्रिया, मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए। मेरे पिताजी ने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया था। उनका एक मात्र उद्देश्य यह था की हमारा देश की सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहे। उस पर दुश्मनों की गन्दी निगाहें ना पड़े। उनका दुसरा ध्येय यह था की देश की सेवा में शहीद हुए जवानों के बच्चे, कुटुंब और बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आर्थिक रूप से आहत ना हो।”

कर्नल ने कहा, “आओ, हम भी मिलकर यह संकल्प करें की हम हमारी सारी ताकत उन के दिखाए हुए रास्ते पर चलने में ही लगा दें। हम निर्भीकता से दुश्मनों का मुकाबला करें और शहीदों के कौटुम्बिक सुरक्षा में अपना योगदान दें। यही उनके देहांत पर उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उनका सच्चा श्राद्ध होगा।”

सुनीता की आँखों में आँसू आ गये। सुनीता कर्नल से लिपट गयी और बोली, “जस्सूजी, जितना योगदान मुझसे बन पडेगा मैं दूंगी और उसमें आपको मेरा पथ प्रदर्शक और मार्ग दर्शक बनना होगा।”

कर्नल ने मुस्कराते हुए कहा, “यह मेरा सौभाग्य होगा। पर डार्लिंग, मुझमें एक कमजोरी है और मैं तुम्हें इससे अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। जब मैं तुम्हारी सुन्दरता, जांबाज़ी और सेक्सीपन से रूबरू होता हूँ तो अपने रंगीलेपन पर नियत्रण नहीं रख पाता हूँ। मैं आपका पूरा सम्मान करता हूँ पर मुझसे कभी कहीं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना प्लीज?”

सुनीता ने भी शरारती मुस्कान देते हुए कहा, “आप के रँगीलेपन को मैंने महसूस भी किया और वह दिख भी रहा है।”

क्या सुनीता का इशारा कर्नल की टाँगों के बिच के फुले हुए हिस्से की और था? पता नहीं। शायद सुनीता ने जब कर्नल साहब को जफ्फी दी तो जरूर उसने कर्नल साहब का रँगीलापन महसूस किया होगा।

पढ़ते रहिये, क्योकि यह कहानी अभी जारी रहेगी..

[email protected]

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000