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जीवन की भूलभुलैया में कुछ ऐसे लम्हे आते हैं। जिन को हम कितना ही चाहें फिर भी न कभी भूल पाते हैं।।
जब मानिनियोँ का मन लाखों मिन्नत मन्नत नहीं मानता है। तब कभी कभी कोई बिरला रख जान हथेली ठानता है।।
कमसिन कातिल कामिनियाँ भी होती कुर्बां कुर्बानी पर। न्यौछावर कर देती वह सब कुछ ऐसी वीरल जवानी पर।।
राहों में मिले चलते चलते हमराही हमारे आज हैं वह। जिनको ना कभी देखा भी था देखो हम बिस्तर आज हैं वह।।
वह क्या दिन थे! आज भी उन दिनों की याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह खूबसूरत वादियां, वह दिलचश्प नज़ारे, वह जीवन और मौत की टक्कर, वह तनाव भरे दिन और रातें, वह उन्मादक बाहें, वह टेढ़ी निगाहें, वह गर्म आहें, वह दुर्गम राहें और वह बदन से बदन के मिलन की चाहें!!
जरुरी सुचना: यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के आशय से लिखी गयी है। इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है, और यह कहानी किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान या समाज की ना तो सच्चाई दर्शाता है और ना ही यह कहानी उन पर कोई समीक्षा या टिपण्णी करने के आशय से लिखी गयी है। ———- सुनील एक सम्मानित और देश विदेश में काफी प्रसिद्ध राजकीय पत्रकार थे। देश की राजकीय घटना पर उनकी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती थी। वह ख़ास तौर पर देश की सुरक्षा सम्बंधित घटनाओं पर लेख लिखते थे। देश की सुरक्षा सेवाओं से जुड़े हुए लोगो में उनका काफी उठना बैठना होता था।
उन दिनों सुनील करीब 40 साल के थे और उनकी पत्नी सुनीता करीब 35 की होगी। सुनील और उनकी पत्नी सुनीता उनकी एक संतान के साथ एक आर्मी हाउसिंग कॉलोनी में किराए के मकान में रहने के लिए आये थे। उनका अपना घर नजदीक की ही कॉलोनी में ही निर्माणरत था।
सुनील की बीबी सुनीता करीब 35 की होते हुए भी 25 साल की ही दिखती थी। खान पान पर कडा नियत्रण और नियमित व्यायाम और योग के कारण उसने अपना आकार एकदम चुस्त रखा था। सुनीता का चेहरा वयस्क लगता ही नहीं था। उसके स्तन परिपक्व होते हुए भी तने और कसे हुए थे। उसके स्तन 34+ और स्तन सी कप साइज के थे।
व्यवहार और विचार में आधुनिक होते हुए भी सुनीता के मन पर कौटुम्बिक परम्परा का काफी प्रभाव था। कई बार जब ख़ास प्रसंग पर वह राजस्थानी लिबास में सुसज्जित होकर निकलती थी तो उसकी जवानी और रूप देख कर कई दिल टूट जाते थे।
राजस्थानी चुनरी, चोली और घाघरे में वह ऐसे जँचती थी की दूसरों की तो बात ही क्या, स्त्रियां भी सुनीता को ताकने से बाज ना आती थीं। सुनीता को ऐसे सजने पर कई मर्दों की मर्दानगी फूल जाती थी और कईयों की तो बहने भी लग जाती थी।
सुनीता के खानदान राजपूती परम्परा से प्रभावित था। कहते हैं की हल्दीघाटी की लड़ाई में सुनीता के दादा परदादा हँसते हँसते लड़ते हुए शहीद हो गए थे।
उधर सुनीता के पिता भी कुछ ऐसी ही भावना रखते थे और अपनी बेटी को कई बार राजपूती शान की कहानियां सुनाते थे। उनका कहना था की असली राजपूत एहसान करने वाले पर अपना तन और मन कुर्बान कर देता है, पर अपने शत्रु को वह बख्शता नहीं है।
उन्होंने दो बड़ी लड़ाइयां लड़ी और घायल भी हुए। पर उन्हें एक अफ़सोस रहा की वह रिटायर होने से पहले अपनी जान कोई भी लड़ाई में देश के लिए बलिदान नहीं कर पाए।
सुनीता की कमर का घुमाव और उसकी गाँड़ इतनी चुस्त और लचीली थी की चाहे कोई भी पोशाक क्यों ना पहनी हो वह गजब की सेक्सी लगती थी। उस कॉलोनी के ब्लॉक में उनके आते ही सुनील की बीबी सुनीता के आशिकों की जैसे झड़ी लग गयी थी। दूध वाले से लेकर अखबार वाला। सब्जी वाले से लेकर हमारी कॉलोनी के जवान बूढ़े बच्चे सब उसके दीवाने थे।
स्कूल और कॉलेज में सुनीता एक अच्छी खासी खिलाड़ी थी। वह लम्बी कूद, दौड़ इत्यादि खेल प्रतियोगिता में अव्वल रहती थी। इसके कारण उसका बदन गठीला और चुस्त था। उन दिनों भी वह हर सुबह चड्डी पहन कर उनकी छत पर व्यायाम करती रहती थी।
जब वह व्यायाम करती थी तो कई बार उनके सामने रहते एक आर्मी अफसर कर्नल जसवंत सिंह को सुनीता को चोरी चोरी ताकते हुए सुनीता के पति सुनील ने देख लिया था।
हालांकि सुनील को कर्नल जसवंत सिंह से मिलने का मौक़ा नहीं मिला था, सुनील ने कर्नल साहब की तस्वीर अखबारों में देखि थी और उन के बारे में काफी पढ़ा था।
कर्नल जसवंत सिंह जैसे सुप्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति को अपनी बीबी को ताकते हुए देख कर सुनील मन ही मन मुस्करा देता था। कर्नल साहब के घर की एक खिड़की से सुनील के घर की छत साफ़ दिखती थी।
चूँकि मर्द लोग हमेशा सुनीता को घूरते रहते थे तो सुनील हमेशा अपनी बीबी सुनीता से चुटकी लेता रहता था। उसे छेड़ता रहता था की कहीं वह किसी छैल छबीले के चक्कर में फँस ना जाये।
सुनीता भी अपने पति सुनील को यह कह कर शरारत से हँस कर उलाहना देती रहती की, “अरे डार्लिंग अगर तुम्हें ऐसा लगता है की दूसरे लोग तुम्हारी बीबी से ताक झाँक करते हैं तो तुम अपनी बीबी को या ताक झाँक करने वालों को रोकते क्यों नहीं? यदि कहीं किसी छैल छबीले ने तुम्हारी बीबी को फाँस लिया तो फिर तुम तो हाथ मलते ही रह जाओगे। फिर मुझे यह ना कहना की अरे यह क्या हो गया? जिसकी बीबी खूबसूरत हो ना, तो उस पर नजर रखनी चाहिए।”
ऐसे ही उनकी नोंक झोंक चलती रहती थी। सुनील सुनीता की बातों को हँस कर टाल देता था। उसे सुनीता से कोई शिकायत नहीं थी। उसे अपनी बीबी पर खुदसे भी ज्यादा भरोसा था।
सुनील और सुनीता एक ही कॉलेज में पढ़े थे। कॉलेज में भी सुनीता पर कई लड़के मरते थे, यह बात सुनील भाली भाँती जानता था। पर कभी सुनीता ने उनमें से किसी को भी अपने करीब फटकने नहीं दिया था।
बल्कि सुनीता से जब कॉलेज में ही सुनील की मुलाक़ात हुई और धीरे धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी और शादी भी पक्की हो गयी तब भी सुनीता सुनील को आगे बढ़ने का कोई मौक़ा नहीं देती थी। उनमें चुम्माचाटी तो चलती थी पर सुनीता सुनील को वहीँ रोक देती थी।
सुनीता एक प्राथमिक स्कूल में अंग्रेजी शिक्षक की नौकरी करती थी। और वहाँ भी स्कूल के प्रिंसिपल से लेकर सब उसके दीवाने थे।
वैसे तो सुनील की प्यारी बीबी सुनीता काफी शर्मीली थी, पर चुदाई के समय बिस्तर में एकदम शेरनी की तरह गरम हो जाती थी और जब वह मूड़ में होती थी तो गजब की चुदाई करवाती थी।
सुनीता की पतली कमर सुनील की टांगों के बिच स्थापित जनाब को हमेशा वक्त बे वक्त खड़ा कर देती थी। अगर समय होता और मौक़ा मिलता तो सुनील सुनीता को वहीँ पकड़ कर चोद देता।
पर समय गुजरते उनकी चुदाई कुछ ठंडी पड़ने लगी, क्यूंकि सुनीता स्कूल में और घर के कामों में व्यस्त रहने लगी और सुनील उसके व्यावसायिक कामों में।
सुनील और सुनीता कई बार बिस्तर में पड़े पड़े उनकी शादी के कुछ सालों तक की घमासान चुदाई के दिनों को याद करते रहते थे। सोचते थे कुछ ऐसा हो जाए की वह दिन फिर आ जाएँ।
उनका कई बार मन करता की वह कहीं थोड़े दिन के लिए ही सही, छुट्टी लें और सब रिश्ते दारी से दूर कहीं जंगलों में, पहाड़ियों में झरनों के किनारे कुछ दिन गुजारें, जिससे वह उनकी बैटरियां चार्ज कर पाएं और अपनी जवानी के दिनों का मजा फिर से उठाने लगें, फिर वही चुदाई करें और खूब मौज मनाएं।
चूँकि दोनों पति पत्नी मिलनसार स्वभाव के थे इसलिए सोचते थे की अगर कहीं कोई उनके ही समवयस्क ग्रुप के साथ में जाने का मौक़ा मिले तो और भी मजा आये।
सुनीता के स्कूल में छुट्टियां होने के बावजूद सुनील अत्याधिक व्यस्तता के चलते कोई कार्यक्रम बन नहीं पा रहा था। सुनीता को मूवीज और घूमने का काफी शौक था पर यहाँ भी सुनील गुनेहगार ही साबित होता था। इस के कारण सुनीता अपने पति सुनील से काफी नाराज रहती थी।
सुनील को अपनी पत्नी को खुले में छेड़ने में बड़ा मजा आता था। अगर वह कहीं बाहर जाते तो सुनील सुनीता को खुले में छेड़ने का मौक़ा नहीं चुकता था।
कई बार वह उसे सिनेमा हाल में या फिर रेस्तोरां में छेड़ता रहता था। दूसरे लोग जब देखते और आँखे फिरा लेते तो उसे बड़ी उत्तेजना होती थी। सुनीता भी कई बार नाराज होती तो कई बार उसका साथ देती।
नए घर में आने के कुछ ही दिनों में सुनीता को करीब पड़ोस की सब महिलाएं भी जानने लगीं, क्यूंकि एक तो वह एकदम सरल और मधुर स्वभाव की थी। दूसरे उसे किसी से भी जान पहचान करने में समय नहीं लगता था। सब्जी लेते हुए, आते जाते पड़ोसियों के साथ वह आसानी से हेलो, हाय से शुरू कर कई बार अच्छी खासी बातें कर लेती थीं।
घर में सुनील जब अपने कमरे में बैठकर कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा होता था, तो अक्सर उसे खिड़की में से सामने के फ्लैट में रहने वाले कर्नल साहब और उनकी पत्नी दिखाई देते थे। उनकी एक बेटी थोड़ी बड़ी थी और उन दिनों कॉलेज जाया करती थी।
कर्नल साहब और सुनील की पहेली बार जान पहचान कुछ अजीबो गरीब तरीके से हुई।
एक दिन सुनील कुछ जल्दी में घर आया तो उसने अपनी कार कर्नल साहब के गेराज के सामने खड़ी कर दी थी। शायद सुनील को जल्दी टॉयलेट जाना था। घर में आने के बाद वह भूल गया की उसे अपनी गाडी हटानी चाहिए थी।
अचानक सुनील के घर के दरवाजे की घंटी बजी। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो कर्नल जसवंत सिंह को बड़े ही गुस्से में पाया। आते ही वह सुनील को देख कर गरज पड़े, “श्रीमान, आप अपनी कार को ठीक तरह से क्यों नहीं पार्क कर सकते?”
सुनील ने उनको बड़े सम्मान से बैठने के लिए कहा तो बोल पड़े, ” मुझे बैठना नहीं है। आप को समझना चाहिए की कई बार कोई जल्दी में होता ही तो कितनी दिक्कत होती है…”
आगे वह कुछ बोलने वाले ही थे की सुनील की पत्नी सुनीता जो कुछ ही समय पहले बाथरूम से निकली ही थी, चाय बना कर रसोई से चाय का प्याला लेकर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई।
सुनीता के बाल घने, गीले और बिखरे हुए थे और उनको सुनीता ने तौलिये में ढक कर लपेट रखा था। और ब्लाउज गीला होने के कारण सुनीता की छाती पर उसके फुले हुए स्तन कुछ ज्यादा ही उभरे हुए लग रहे थे। सुनीता का चेहरे की लालिमा देखते ही बनती थी।
सुनीता को इस हाल में देखते ही कर्नल साहब की बोलती बंद हो गयी। सुनीता ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के सामने ही झुक कर मेज पर जैसे ही चाय का कप रखा तो सुनील ने देखा की कर्नल साहब की आँखें सुनीता के वक्षों के बिच का अंतराल देखते ही फ़टी की फटी रह गयीं।
कहानी आगे जारी रहेगी.. तब तक फीडबैक देना मत भूलियेगा!
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