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मैंने पहली बार किसी लड़की या आंटी की चुची को हाथ से सहलाया, यह तब की कहानी है।
मेरा नाम सूर्या (बदला हुआ) है, अपनी सेक्स स्टोरी लेकर आया हूँ। मैं गाज़ीपुर के एक छोटे से एरिया से हूँ। मेरी उम्र 19 साल है, मेरी हाइट 170 सेंटीमीटर है, लंड का नाप पूरे 5 इंच का और मोटा कुछ ज्यादा है। मैं दिखने में स्मार्ट हूँ, मेरा सीना चौड़ा है व कलर गोरा है।
मैं अभी सिविल से डिप्लोमा कर रहा हूँ, मेरा इस समय दूसरा साल है। मुझे मध्यम आकार की चुची और बड़ी गांड वाली गर्ल, भाभी या आंटी पसंद आती हैं। मैंने अब तक बहुत सी लड़कियों, आंटी और भाभियों को चोदा है।
घर पर अकेला होने के कारण मुझे अक्सर घर और कॉलेज से आना-जाना पड़ता है, मैं ट्रेन से घर पर आता-जाता हूँ।
एक बार मैंने ऐसे ही घर जाने के लिए लखनऊ से ट्रेन पकड़ी। उस दिन ट्रेन में कुछ ज़्यादा ही भीड़ थी, मैं सीट की तलाश में इधर-उधर भटकता रहा लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था।
जब सीट नहीं मिली तो मैं एक डिब्बे में जाकर खड़ा हो गया। उस डिब्बे में भी भीड़ थी। मैं जहाँ खड़ा था वहाँ पर कुछ औरतें.. लड़कियां और आदमी भी कुछ बैठे, कुछ खड़े थे।
उन्हीं में एक 25-26 साल की लेडी अपनी बर्थ पर बैठी थी.. बाद में मालूम हुआ कि उसका नाम मनीषा था।
वो दिखने में एकदम टाईट माल लग रही थी, उसका रंग हल्का गोरा था। उसने काले रंग का सलवार सूट पहना हुआ था। ब्लैक कलर के सूट में से उसकी चुची ऐसी दिख रही थीं.. मानो सेक्स की देवी हो। उसकी चुची ऐसी उठी हुई थीं कि देखते ही किसी का भी लंड खड़ा हो जाए।
मेरा भी यही हाल हुआ मेरा मन करने लगा कि साली को अभी पटक कर चोद दूँ।
वो बार-बार हँस रही थी। ट्रेन समय होने से टाइम पर छूटी.. और कुछ देर चलने के बाद अगला स्टेशन आ गया। कुछ लोग उतर गए, जगह हुई तो मैं उस माल के बगल में बैठ गया।
मैंने अपना हैण्ड बैग अपने हाथों में रख लिया और उनकी बर्थ पर ही बैठ गया। ट्रेन के कुछ दूर चलने पर मैंने देखा कि वो थोड़ा झुक कर ऊंघ रही थी.. उसकी बड़ी सी गांड गाड़ी चलते समय बड़े थिरक रहे थे। मैंने ध्यान दिया कि वो सो गई थी और उसका दुपट्टा उसकी बड़ी सी चुची से हट गया था और उसके गुब्बारे भी हिलते हुए क़यामत बिखेर रहे थे, जिसे देखकर मेरे अन्दर वासना का शैतान जाग गया।
मैंने सोचा कि आंटीजी तो सो रही हैं.. क्यों ना थोड़ा सा मजा लिया जाए और माल टटोला जाए।
मैंने भी अपने दोनों हाथों को बैठे-बैठे इस तरह से मोड़ा कि एक हाथ आंटी की चुची से टच हो जाए। मैंने तो पहले हाथ की हथेलियों से इस तरह रखा कि आंटी की चुची के करीब हो जाएं। जब ट्रेन हिली तो मैंने उनकी चूची को टच कर दिया। उनका कोई विरोध नहीं हुआ तो मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने हाथ को उनकी चुची सटा ही दिया। अब ट्रेन के धक्कों के कारण मेरा हाथ इधर-उधर हो रहा था। अब मैं उनकी चुची को केवल ऊपर से छूते हुए सहला सा रहा था।
एक बार जोर से चुची दब जाने से पहले तो आंटी जी हिलीं.. लेकिन बाद में उन्होंने कोई रिएक्ट नहीं किया। इसके बाद तो उन्होंने अपनी शाल निकाली और कुछ इस तरह ओढ़ी कि शाल से मेरा हाथ छुप जाए।
मैंने भी इसे ग्रीन लाइट समझ कर अपना चादर इस प्रकार ओढ़ लिया कि पुरानी स्थिति बनी रहे और मेरा हाथ उनकी चुची को टच करता रहे।
इस बार मैं थोड़ा कॉन्फिडेंट हो गया था और मैंने अपने हाथ की हथेली से पहले उसकी चुची को स्पर्श किया और फिर धीरे-धीरे पूरी हथेली में एक दूध पकड़ कर कुछ देर यूं ही ट्रेन के झटकों से हथेली को हिलते हुए आंटी की चुची पर रखे रहा।
मैं उनकी चुची को दबाना चाहता था लेकिन उनका हाथ जरा दिक्कत कर रहा था। उन्होंने शायद इस दिक्कत को समझा और अपना पैर मोड़ कर इस प्रकार हाथ सैट किया कि मेरा हाथ पूरा उनकी चुची पर घूम जाए।
अब मैंने उनकी रजामंदी सी देखी तो मैंने साइड से हाथ निकाल कर चुची को पकड़ लिया। चूंकि जगह काफ़ी नहीं थी और ये सब मेरे साथ पहली बार हो रहा था, तो मुझे बहुत डर लग रहा था। लेकिन जो भी था.. सो था मुझे डर मिश्रित मजा उम्म्ह… अहह… हय… याह… आ रहा था।
अब मैंने सीधे ही उनकी कमीज से नीचे से हाथ डाल कर उनके मम्मों को पकड़ लिया और कुछ देर तक दबाता रहा।
फिर बीच में फ्रंट ओपन होने वाली ब्रा का हुक था.. मैंने उसको खोल दिया।
अब तो मजा आ गया, मैं आंटी की चुची को नंगा स्पर्श करते हुए मस्ती से दबाए जा रहा था।
इधर मेरे लंड का बहुत बुरा हाल था.. मैं मज़े और डर दोनों के सातवें आसमान पर था।
मैं उनके गोल-गोल मम्मों को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ रहा था.. लेकिन आंटी की तरफ से कोई भी हरकत ना हुई.. वो गहरी नींद में होने का नाटक कर रही थीं। मैं समझ नहीं पाया कि आंटी किधर तक साथ देने के मूड में हैं।
उनके मम्मों को दबाने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी पीठ की तरफ किया और मैं उनकी पीठ को सहलाने लगा। वो अब जोश में आ चुकी थीं। तभी एक सज्जन ने सोने का कारण बताकर लाइट को बन्द कर दिया।
आंटी ने कोई आपत्ति नहीं की और मैं भी खुश हो गया कि एक बार फिर से ग्रीन सिग्नल मिल गया, मैं बहुत खुश हुआ।
लाइट बंद होने के कारण कोई देख नहीं पा रहा था। आंटी अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थीं और वे अपना एक पैर मेरे पैर के ऊपर रखकर सहलाने लगीं।
अब मेरा काम हो गया.. मैं अब अपना हाथ आंटी की गांड की तरफ ले गया तो पाया कि सलवार के नाड़े के कारण मेरा हाथ अन्दर नहीं जा पा रहा था।
ये दिक्कत समझ कर आंटी थोड़ा हिलीं.. दोनों पैरों को मोड़कर पलटी मारकर बैठ सी गईं।
मैंने भी अपना हाथ पीछे की बजाए आगे की तरफ ले आया और आंटी के पेट को कुछ देर तक सहलाया। फिर मैं अपना हाथ नीचे को ले गया तो नाड़ा बंद पाया।
मैंने कुछ देर तक सलवार के ऊपर से उनकी बुर को टटोला.. लेकिन मुझसे रहा नहीं गया।
मैंने अपने हाथ से उनके नाड़ा को खोल दिया।
मैंने आंटी की तरफ देखा तो मेरी गांड फट गई.. मेरा खड़ा लंड सिकुड़ गया और अपनी पुरानी औकात में आ गया क्योंकि आंटी की आँखें खुली हुई थीं। मैं एकदम डर गया और अपना हाथ पीछे खींचने लगा तो उन्होंने अपना हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनी बुर के ऊपर रख दिया।
लेकिन तभी कोई स्टेशन आ गया और काफ़ी लोग ट्रेन में चढ़े, मेरा बना बनाया मामला बिगड़ गया। मेरे अधूरे सेक्स आंटी की चुची सहलाने की कहानी पर आपके सुझाव का इन्तजार रहेगा। [email protected]
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