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जैसे ही मेट्रो ट्रैन रुकी, की अजित ने लगभग मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और दौड़ कर दरवाजा खुलते ही अंदर घुस गया।
जब अजित ने मुझे अपनी बाहों में उठाया तो उसके एक हाथ की उँगलियाँ सीधी मेरे स्तनोँ को दबा रही थीं। वह अपनी उंगलियां ऊपर निचे करके मेरे स्तनोँ का मजा ले रहा था। मैंने यह साफ़ साफ़ अनुभव भी किया।
मेरा एक बार मन भी किया की मैं उसे कहूं की ऐसा ना करे। पर मैं भी तो उसके इस कार्य से काफी उत्तेजित हो रही थी और दिल से नहीं चाहती थी की वह रुके।
मुझे उस समय यह चिंता भी थी की मैं ऑफिस कैसे जल्दी पहुंचूं। बल्कि मैं अजित की आभारी रही की उसने कैसे भी करके मेट्रो में मुझे पहुंचा ने का जुगाड़ तो किया।
मुझे सीट तो नहीं मिली पर मुझे दिवार से सट कर खड़े रहने की जगह मिलगई। अजित मेरे बिलकुल सामने ढाल की तरह खड़ा हो गया, ताकि और कोई मुझे धक्का नहीं दे सकें. जिस कोच में 100 इंसान होने चाहिए उसमें 2000 लोग जमा हो तो क्या हाल होगा? इतने लोग घुसे की तिल भर की जगह नहीं थी।
अजित खड़ा भी नहीं हो सकता था। उसको मेरी और अपनी कमर आगे करनी पड़ रही थी क्यूंकि पीछे से उसको ऐसा धक्का लग रहा था।
जैसे तैसे ट्रैन चल पड़ी। अजित और मैं ऐसे भीड़ में चिपके हुए थे की जैसे हमारे दोनों के बदन एक ही हों।
अजित का लण्ड मेरी चूत को इतने जोर से दबा रहा था की यह समझ लो की अगर कपडे नहीं पहने होते तो उसका लण्ड मेरी चूत में घुस ही जाता। अजित की छाती मेरे स्तनों को कस कर दबा रही थी।
मैंने महसूस किया की मेरे बदन का सहवास पाते ही अजित का लण्ड खड़ा हो रहा था। कुछ ही देर में तो वह लोहे की छड़ की तरह खड़ा हो गया था। और क्यूँ ना हो? मेरे जैसी औरत अगर उसके बदन चिपक कर खड़ी हों तो भला कोई नामर्द का लण्ड भी खड़ा हो जाए। तो अजित तो अच्छा खासा हट्टाकट्टा नौजवान था। उसका लण्ड खड़ा होना तो स्वाभाविक ही था।
पर मेरा हाल यह था की अजित का लण्ड मेरी चूत में चोँट मारते रहने से मेरी हालत खराब हो रही थी। मेरी कमजोरी है की मैं थोड़ी सी भी उत्तेजित हो जाती हूँ तो मेरी चूत में से पानी रिसने लगता है और पेरी निप्पलेँ फूल जाती हैं।
उस समय भी ऐसा ही हुआ। मैंने जीन्स पहन रखी थी। मुझे डर था की कहीं ज्यादा पानी रिसने कारण वह गीली न हो जाए। और अगर वह ज्यादा गीली हो गयी तो गड़बड़ हो जायेगी। ख़ास तौर से अजित को यह पता ना लगे की मैं ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी, वरना वह कहीं उसका गलत मतलब ना निकाल ले।
मुझे देखना था की कहीं मेरी जीन्स ज्यादा गीली तो नहीं हो गयी थी। मैंने अपना हाथ निचे की और करने की कोशिश की। भीड़ इतनी थी की मैं अपना हाथ इधर उधर नहीं कर पा रही थी। मेरा हाथ एक स्टील के पकड़ ने वाले पाइप को पकडे हुए था। वैसे तो मैं ऐसी फँसी हुई थी की कोई चीज़ को पकड़ने की जरुरत ही नहीं थी।
अजित ने मुझे इतना कस के पकड़ा था की मैं कहीं भी टस की मस नहीं हो पा रही थी। जब अजित ने देखा की मैं अपना हाथ निचे ले जाने की कोशिश कर रही थी तो उसने बड़ी ताकत लगाई और मेरा हाथ पकड़ कर निचे किया।
मैंने जैसे ही मेरा हाथ निचे किया की सीधा अजित के खड़े हुए लौड़े पर जा पहुंचा। बापरे! अजित का लण्ड उसकी पतलून में होते हुए भी बड़ा ही कडा और भारी भरखम लग रहा था। काफी लंबा और मोटा भी था। मेरे ना चाहते हुए भी उसका लण्ड मेरी मुठी में आ ही गया।
अब मेरा हाथ तो उसके लण्ड को पकड़ कर वहीँ थम गया। मैं अपने हाथ को ना इधर ना उधर कर पा रही थी। मेरा अजित का लण्ड पकड़ ने से अजित की हालत तो मुझसे भी ज्यादा पतली हो रही थी।
मैंने उसकी और देखा तो वह मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। मुझे महसूस हुआ की उसकी पतलून गीली हो रही थी। उसके लण्ड में से उसका पूर्व स्राव भी रिस रहा था। वह इतना ज्यादा था की उसकी पतलून गीली हो गयी थी और चिकनाहट मेरे हाथों में महसूस हो रही थी। मैं गयी थी अपना गीलापन चेक करने और पाया की अजित मुझसे भी ज्यादा गीला हो रहा था।
मैंने हाथ हटाने की बड़ी कोशिश की पर हटा नहीं पायी। आखिर मजबूर होकर मुझे मेरा हाथ अजित के लण्ड को पकडे हुए ही रखना पड़ा। अजित का लण्ड हर मिनिट में बड़ा और कड़क ही होता जा रहा था।
मैं डर गयी की कहीं ऐसा ना हो की अजित का लण्ड धीरे धीरे उसकी पतलून में से निकल कर मेरी जीन्स ही ना फाड़ डाले और मेरी चूत में घुस जाए।
जब मैंने मेरा हाथ हटाने की ताकत लगा कर कोशिश की तो नतीजा उलटा ही हुआ। मेरा हाथ ऐसे चलता रहा की जैसे शायद उसे ऐसा लगा होगा की मैं उसके लण्ड की मुठ मार रही हूँ। क्यूंकि मैंने देखा की वह मचल रहा था। मैं अजित के मचल ने को देखकर अनायास ही उत्तेजित हो रही थी।
अब मुझसे भी नियत्रण नहीं रखा जा रहा था। आखिर में मैंने सोचा ऐसी की तैसी। जो होगा देखा जाएगा। मुझे अजित के लण्ड को हाथ में लेने की ललक उठी। मैंने उसके लण्ड को उसकी पतलून के उपरसे सहलाना शुरू किया।
ट्रैन में कोई भी यह हलचल देख नहीं सकता था क्यूंकि पूरा डिब्बा लोगोँ से ऐसे ख़चाख़च भरा हुआ था, जैसे एक डिब्बे में बहुत सारी मछलियाँ भर दी जाएँ, यहां तक की सब के बदन एकदूसरे से सख्ती से भींच कर जुड़े हुए थे।
मेरे और अजित के बिच कोई थोड़ी सी भी जगह नहीं थी जिसमें से किसी और इंसान को हमारी कमर के निचे क्या हो रहा था वह नजर आये।
उतनी ही देर में मेरे हाथों में अनायास ही उसकी ज़िप आयी। पता नहीं मुझे क्या हो रहा था। मेरी उंगलियां ऐसे चल गयीं की उसकी ज़िप निचे की और सरक गयीं और अजित के अंडर वियर में एक कट था (जिसमें से मर्द लोग पेशाब के लिए लण्ड बाहर निकालते हैं) उसमें मेरी उंगलियां चली गयीं। और क्या था? मेरी उँगलियाँ अजित के खड़े, चिकनाहट से सराबोर मोटे लण्ड के इर्दगिर्द घूमने लगीं। मुझे पता ही नहीं लगा की कितनी देर हो गयी।
मैं अजित के चिकनाई से लथपथ लण्ड को सहलाती ही रही। मैंने अजित की और देखा तो वह आँखें मूंदे चुपचाप मेरे उसके लण्ड सहलाने का आनंद ले रहा था। उसके चेहरे से ऐसे लग रहा था जैसे कई महीनों के बाद किसी स्त्री ने उसका लण्ड का स्पर्श किया होगा।
जैसे ही मैंने उसका लण्ड सहलाना शुरू किया की अजित भी अपनी कमर आगे पीछे कर के जैसे मेरी मुट्ठी को चोदने लगा।
कुछ देर बाद अचानक मैंने महसूस किया की अजित के बदन में एक झटका सा महसूस हुआ, उसके लण्ड में से तेज धमाकेदार गति से गरम गरम फव्वारा छूटा और मेरी मुट्ठी और पूरी हथेली अजित के लण्ड में से निकली हुई चिकने चिकने, गरम प्रवाही की मलाई से भर गयी।
मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या करूँ। मैंने फ़टाफ़ट अपना हाथ अजित के पतलून से बाहर निकाल ने की लिए जोर लगाया। बड़ी मुश्किल से हाथ बाहर निकला। इस आननफानन में मेरा हाथ भी अजित की पतलून से रगड़ कर साफ़ हो गया।
अचानक ही एक धक्का लगा और मेट्रो झटके के साथ रुकी। मैं अजित की और देखने लायक नहीं थी और अजित मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। हमारा स्टेशन आ गया था। धक्कामुक्की करते हुए हम बड़ी मुश्किल से निचे उतरे। उतरते ही अजित कहाँ गायब हो गया, मैंने नहीं देखा।
वह मेरा मेरे पति से बेवफाई का पहला मौक़ा था। पर तबसे मैंने तय किया की मुझसे बड़ी भूल हो गयी थी और अब मैं ऐसा कभी नहीं करुँगी और पति की वफादार रहूंगी।
अगली सुबह अजित मेरे इंतजार में वहीँ खड़ा था। हम लोग साथ साथ चलने लगे पर शायद वह भी पछतावे से सहमा हुआ था और शर्म से मुझसे बात करने की हिम्मत नहीं करता था।
मैंने भी चुप रहना ठीक समझा। अगर वह कुछ बोलता तो मेरे लिए एक अजीब परिस्थिति हो जाती, क्यूंकि मैं उन दिनों चुदाई करवाने के लिए तो बेताब रहती थी, पर पति से बेवफाई करना नहीं चाहती थी।
मेरे मन में एक अजीब सी गुत्थमगुत्थी चल रही थी। तब शायद चुप्पी तोड़ने के लिए उसने आगे आकर मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “प्रिया, मुझे माफ़ कर दो। ऐसे गुस्सा करके मुझ से बोलना बंद मत करो प्लीज?”
पता नहीं क्यों उस की बात सुनकर मैं गुस्सा हो गयी। मैंने उसका हाथ झटक दिया और बोली, “मेरा हाथ छोडो। तुमने मुझे कोई चालु औरत समझ रखा है क्या? मुझसे दूर रहो।” ऐसा बोल कर मैं उससे दूर हो गयी।
हम स्टेशन पहुंचे तो मैंने देखा की वह काफी पीछे हो गया था और धीरे धीरे चल रहा था। वह बड़ा दुखी लग रहा था। मैं मन ही मन अपने आप पर गुस्सा हुई। यह क्या बेहूदगी भरा वर्ताव मैंने अजित के साथ किया। उस बेचारे का क्या दोष? गलती तो मेरी थी। मैंने ही तो उसका लण्ड हिला हिला कर उसका वीर्य निकाला था। मुझे बड़ा पछतावा हुआ। पर औरत मानिनी होती है। मैं भी अपनी गलती आसानी से स्वीकार नहीं करती। पर मेरा मन अजित के लिए मसोस रहा था।
खैर मैंने उससे ट्रैन में सफर के दरम्यान भी बात नहीं की। मैं अपने स्टेशन पर उतर गयी तब मेरे पास अजित का मैसेज आया। “प्रिया प्लीज मुझे माफ़ कर दो। गलती हो गयी। आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगा।”
मैं बरबस हँस पड़ी। मैंने उसे मैसेज किया, “ठीक है। जाओ माफ़ किया। पर तुम्हें सजा मिलेगी। शाम को मेरे ऑफिस के सामने मेरा इंतजार करना। मैं आकर तुम्हें सजा सुनाऊँगी।”
जाहिर था मेरा मैसेज पढ़ कर अजित उछल पड़ा होगा। उसने जवाब दिया, “आपकी हर कोई सजा सर आँखों पर।”
मैं सोचने लगी, किस मिट्टी से बना है यह आदमी? उसकी गलती ना होने पर मेरे इतने डाँटने के बाद भी वह माफ़ी माँग रहा था? मुझे अच्छा लगा। मैंने तय किया की जो हो गया सो हो गया।
फिकर मत कीजिये मेरी यह कहानी आगे जारी रहेगी..
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