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आपके लिए पेश है मेरी इन्सेस्ट सेक्स स्टोरीज इन हिन्दी का अगला एपिसोड.. रंजन पूरा काम करने से पहले ही बाहर झड़ गया था. मैं ठगी सी रह गयी मेरे प्लान का क्या होगा.
उसके लंड का सारा पानी मेरे सीने पर फैला हुआ था, तो मैं उसको इधर उधर फैलने से रोक रही थी. रंजन को मैंने बताया कि पेपर नैपकिन कहा पड़े हैं और उसने लाकर कुछ मुझे दिए और बाकी से अपना लंड साफ़ करने लगा.
अपनी सफाई करने के बाद हम दोनों ने अपने कपडे पहन लिए. मैं पहले वाशरूम में गयी और बाकी की सफाई कर बाहर हॉल में आ गयी तब तक रंजन वाशरूम में गया.
पति मुझसे जानकारी लेने लगे.
अशोक: “क्या हुआ, निपटा दिया उसे?”
एक बार तो मैंने सोचा कि झूठ बोल दूँ कि रंजन ने कर लिया हैं, इस बहाने अपने गर्भवती होने का ठीकरा उसके माथे फोड़ सकती हूँ.
पर फिर ये विचार त्याग दिया क्योकि रंजन बाहर आकर सब सच बता देगा तो मुसीबत हो जाएगी.
मैं: “नहीं, वो पहले ही बाहर झड़ गया.”
अशोक: “मतलब, उसने नहीं किया?”
मैं: “वो मेरे सीने पर रगड़ रहा था और उसका वही पानी निकल गया.”
अशोक: “तो अब? एक बार करने की बात हुई थी, देखा जाये तो हो गया उसका.”
मैं: “पता नहीं वो इसको मानेगा या नहीं.”
तभी रंजन वाशरूम से बाहर हॉल में आ गया.
रंजन: “सॉरी, मेरा काम पूरा होने से पहले ही मैं निपट गया. अभी मैं कल कर लूंगा. अभी फिर से करना मुश्किल हैं.”
मैं मन ही मन खुश हुई, कि मुझे एक और मौका मिलेगा कि मैं उस पर इल्जाम डाल पाऊँगी.
अशोक: “एक बार का बोला था, वो हो गया, अब क्या हैं?”
रंजन: “पर हुआ कहाँ? बात तो चोदने की हुई थी, वो तो हुआ ही नहीं. तुम चाहो तो प्रतिमा को पूछ लो. क्यों प्रतिमा मैंने पूरा नहीं किया हैं ना?”
मैं: “हां, पूरा तो नहीं हुआ.”
अशोक मुझे घूरने लगे. मुझे अपना बचाव भी करना था.
मैं: “पर, काम तो हो गया न तुम्हारा.”
रंजन: “नहीं नहीं, अभी शर्त पूरी नहीं हुई हैं. कल मेरी जब इच्छा होगी तब में बता दूंगा और आप मुझे मना नहीं करोगे. वरना हमारी डील टूट जाएगी.”
मैं और अशोक अब बैडरूम में आ गए. रंजन को बाहर ही सोने के लिए छोड़ आये. अशोक योजना बनाने लगे कि कल कैसे बचा जाए रंजन से.
सुबह मैं और अशोक उठ गए थे और रोजमर्रा के काम निपटा दिए थे. रंजन अभी भी सो रहा था.
अशोक का प्लान था कि हम सुबह ही शहर के थोड़ा बाहर पहाड़ी पर स्थित मंदिर के दर्शन को निकल जायेंगे और देर से आएंगे. तब तक रंजन अपनी शॉपिंग के लिए निकल जायेगा और हम बच जायेंगे.
शाम को वैसे भी उसको घर लौटना हैं तो उसको समय ही नहीं मिल पायेगा कुछ करने का.
मैं और अशोक बिना आवाज किये नाश्ता कर रहे थे. मुझे मेरा प्लान फेल होते हुए दिखा. नाश्ता करने के बाद मैं जान बुझ कर बर्तनो को टकरा कर आवाज निकलवाने की कोशिश कर रही थी कि रंजन हमारे जाने से पहले जाग जाए.
ऐसा ही हुआ और रंजन जाग गया. मैं मन ही मन बड़ा खुश हुई. रंजन वाशरूम में गया तब तक मैं और अशोक तैयार होने चले गए.
मुझे कुछ ऐसे कपडे पहनने थे कि मैं रंजन को उत्तेजित कर पाऊ. मैंने अपनी मरून रंग की साड़ी पहन ली और उस पर बिना ब्रा के बड़े गले वाला ब्लाउज जो की पीछे से पूरा खुला था. मेरी पूरी पीठ नंगी थी सिर्फ ब्लाउज को दो डोरियाँ थी बांधने के लिए.
मैंने अपना पेटीकोट भी नाभी से तीन इंच नीचे बाँधा था ताकि ज्यादा से ज्यादा मेरी पतली कमर दिखे.
साड़ी के बीच से झांकती मेरी पतली कमर, आईने में अपने आप को देख कर मैं खुद ही मोहित हुए जा रही थी तो रंजन का क्या होता.
अशोक तो जल्दी से तैयार हो बाहर हॉल में इंतजार करने लगे. मैं अपने साज श्रृंगार में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. साथ ही थोड़ा समय भी व्यतीत करना था ताकि रंजन वाशरूम से बाहर आये और मुझे देख कर रोक ले.
मैं जब तैयार हो कर बाहर हॉल में आयी तो रंजन भी नहा कर वाशरूम से बाहर आया. मुझ पर नजर पड़ते ही उसकी आँखें वही ठहर गयी.
मरून साड़ी पर गहरी लाल लिपस्टिक में लिपटे मेरे होंठ देख वो वैसे ही घायल हो गया. मैंने उसकी तरफ पीठ घुमा कर पीठ के थोड़े और जलवे भी दिखा दिए.
उसको सदमे में से बाहर आने में कुछ सेकण्ड्स लगे. फिर उसने पूछा.
रंजन: “आप लोग तैयार हो कर कही जा रहे हो क्या?”
अशोक: “हां, हम लोग मंदिर जा रहे हैं. तुम्हारे लिए नाश्ता रखा हैं खा लेना और फिर तुम्हारी बची हुई शॉपिंग पर निकल जाना.”
रंजन: “आप लोग कब तक आओगे?”
अशोक: “दो तीन घण्टे में आ जायेंगे.”
ये झूठ अशोक ने पहले ही तैयार कर लिया था, असल मैं हम शाम को ही लौटने वाले थे.
रंजन: “तो ठीक हैं आप रुको, मैं भी आ जाता हूँ मंदिर दर्शन करने.”
अशोक: “अरे तुम्हारी शॉपिंग का क्या होगा फिर? मंदिर और कभी चले जाना.”
रंजन: “आज कुछ ख़ास नहीं बचा हैं, एक घंटे का ही काम हैं, मंदिर से वापिस आकर कर लूंगा.”
अशोक थोड़ी चिंता में पड़ गए. कही रंजन बीच रास्ते में ही कल रात वाली मांग ना रख दे. पर मैं खुश थी, इसलिए नहीं की रंजन मेरे साथ कुछ कर सकता था पर इसलिए कि मुझे इल्जाम डालने वाला एक बकरा मिल गया था.
अशोक के पास और कुछ विकल्प तो था नहीं तो उसको मानना पड़ा. हम लोग इंतजार करने लगे कि रंजन नाश्ता कर तैयार हो जाये. उसके तैयार होते ही हम गाड़ी से निकल पड़े.
वहा पर आपस में लगी हुई दो पहाड़िया थी, दूसरी पहाड़ी पर स्तिथ मंदिर तक पहुंचने के लिए उन पर से एक सीढ़ियों का घुमावदार रास्ता बनाया गया था. सोमवार का दिन था तो मंदिर पर कोई था ही नहीं. हम तीनो दर्शन कर वापिस नीचे उतरने लगे.
मंदिर वाली पहाड़ी पार कर ली थी और दूसरी वाली पहाड़ी से नीचे उतरने लगे. एक जगह आकर रंजन सीढ़ियों पर रुक गया. उसे देख हम दोनों भी रुक गए और उसकी तरफ देखने लगे.
रंजन: “अशोक मेरा अभी मूड बन गया हैं, मैं और प्रतिमा उन झाड़ियों के पीछे जाकर कर लेंगे तुम यही निगरानी रखो और कोई आये तो हमें सचेत कर देना.”
उसने सीढ़ियों के रास्ते से बीस कदम दूर एक झाड़ियों की तरफ इशारा किया. वो छोटा सा घना झाड़ था. इससे पहले कि मेरे पति कुछ बोलते, रंजन मेरी कलाई पकड़ कर मुझे उन झाड़ियों की तरफ ले जाने लगा.
रंजन आगे आगे और मैं उसके पीछे पीछे खींचते हुए चली जा रही थी. पीछे मुड़ कर अशोक को देखा, उसके चेहरे पर एक मज़बूरी थी और वो हमें उन झाड़ियों के पीछे जाता देखता ही रह गया.
वो झाड़ पांच फ़ीट ऊँचा और सात फ़ीट चौड़ा था. हम दोनों झाड़ के पीछे बैठ गए. उस झाड़ के पीछे से पत्तो के बीच की जगह से ऊपर जाने की सीढिया बड़ी मुश्किल से दिखाई दे रही थी.
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रंजन ने मुझे नीचे घास पर लिटा दिया और मेरी साड़ी को मेरे पेट और कमर से हटा दिया. अब वो मेरे शरीर के मध्य भाग को चूमने लगा, जिसको इतनी देर से साड़ी के बीच से देखना चाह रहा था.
कल रात की तरह काम पूरा होने से पहले ही कही झड़ ना जाए इसलिए वो आज कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. उसने मेरी साड़ी नीचे से पेटीकोट सहित ऊपर उठा दी. आगे से मेरे पाँव, फिर जाँघे और फिर मेरी पैंटी दिखने लगी थी.
उसने अब अपने दोनों हाथों से मेरी पैंटी पकड़ कर पैरो से निकाल दी. वो मेरी दोनों टांगे चौड़ी कर बीच में घुटनो के बल बैठ गया. उसने अपनी पैंट और अंडरवियर घुटनो तक नीचे कर दी.
उसका लंड तो मुझको चोदने के ख्याल से पहले से ही तैयार था, फिर भी थोड़ा सा और रगड़ कर उसको लंबा और कठोर करने लगा, जैसे कोई कारीगर अपने औजार इस्तेमाल से पहले तीखे करता हैं.
जब उसे लगा कि उसका सामान तैयार हैं, तो उसने अपना हाथ मेरी चूत पर रख मेरी खुली दरारों में अपनी ऊँगली रगड़ कर वहा चिकना करने लगा.
कुछ सेकंड में ही मेरी चूत के वहा अच्छा ख़ासा गीला हो चूका था. उसके ऊँगली करने से मेरी हलकी आहें भी निकलने लगी थी.
अब वो तैयार था मेरी चूत को भेदने के लिए. उसने मेरी टांगे थोड़ी और चौड़ी की और अपने लंड की टोपी मेरी चूत के अंदर रख दी. मेरी दोनों टांगो को ऊपर उठाते हुए पकड़ा और अंदर जोर लगाते हुए धीरे धीरे अपना लंड मेरी चूत में पूरा उतार दिया. मेरी एक जोर की आहह्ह्ह् निकली.
अब वो बिना रुके आगे पीछे धक्के मारते हुए मुझे चोदने के मजे लेने लगा. थोड़ी देर में मुझे भी मजे आने लगे और मेरी सिसकियाँ निकलने लगी.
उसने मेरे घुटने से पाँव मोड़ते हुए मेरे कंधो तक ऊपर कर दिए. मेरी पूरी चूत खुल गयी तो वो आगे झुकते हुए और भी जोर जोर से चोदने लगा.
हम दोनों ही इतनी जोर से सिसकियाँ निकाल आहें भर रहे थे कि आवाज जरूर अशोक तक पहुंच रही होगी. ये जरुरी भी था, ताकि अशोक को अहसास हो कि रंजन ने ही मुझे माँ बनाया हैं. रंजन ने तो साल भर से शायद सेक्स नहीं किया था तो वो अपनी तड़प मिटा रहा था.
मजे के मारे मैं अपनी आँखें बंद कर चुदवाती रही और आहें भरती रही. मुझे पता ही नहीं चला कब अशोक भी झाड़ियों के पीछे आ हमारे पास खड़ा हो हमे चुदते हुए देख रहा था.
अशोक की डायरी के हिसाब से तो वैसे भी उसकी इच्छा थी कि वो मुझे किसी के साथ चुदते हुए देखना चाहता था. तो इसको अभी वो मौका मिल रहा था.
रंजन को तो कोई फर्क नहीं पड़ा पर आँखें खुलते ही अशोक को वहा देख मैं झेंप गयी. सदमे से मेरी आवाज निकलना बंद हो गयी. मेरा शरीर लगातार रंजन के झटको से आगे पीछे हिल रहा था.
जैसे जैसे हम दोनों का थोड़ा थोड़ा पानी निकलता रहा मेरी चूत से फच्चाक फच्चाक की आवाजे आने लगी. जिससे जोश में आ रंजन और दम लगा के चोदने लगा.
अब मेरे से भी बर्दाश्त नहीं हुआ और उसके साथ मैं भी आवाजे निकलने लगी आह्हहह आह्हह्ह्ह ओहहह उहह्ह्ह अम्म्म सीईईइ.
तभी अशोक ने कहा कि रुक जाओ कोई सीढ़ियों से आ रहा हैं. रंजन ने झटके मारना बंद कर दिया. पर मेरे अंदर तो एक ररक उठ रही थी. मैं नीचे से ही हौले हौले अपनी गांड को हिला अपनी चूत को रंजन के लंड पर धीरे धीरे आगे पीछे रगड़ने लगी. इससे मुझे थोड़ी शांति मिली.
रंजन ने भी ये महसूस किया तो उसने धीरे धीरे से अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. ताकि हम चुप भी रहे और अंदर की खुजली भी शांत होती रहे. रंजन ने आगे झुक कर लाल लिपिस्टिक में लिपटे मेरे होंठो को चूसना शुरू कर दिया.
दो तीन महिला-पुरुष बातें करते हुए सीढ़ियों से होते हुए ऊपर चढ़ गए और थोड़ी देर में उनकी आवाजे आनी भी बंद हो गयी. तो अशोक ने हमको बताया वो लोग चले गए हैं.
ये सुनते ही रंजन फिर से ऊपर उठा और जोर जोर से धक्के मारते हुए मुझे चोदने लगा और मेरी सिसकिया एक बार फिर से शुरु हो गयी.
अशोक वही खड़ा हो मुझे चुदता हुआ देखता रहा और मैं शर्मिंदा होती रही. मेरी भी कोई इच्छा तो नहीं थी कि मैं रंजन से चुदवाऊ पर बच्चे के बाप का नाम भी तो चाहिए था.
अशोक के खड़े रहने से मेरी तो सारी इच्छाएं ही मर गयी. पर एकाएक रंजन में कोई भूत घुस गया, वो जोर जोर से आवाज निकालते हुए गहरे गहरे झटके मारने लगा.
ओह्ह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह्ह्ह अह्ह्हह्ह्ह्ह उम्म्मम्म करते हुए उसने अपना रात भर से जमा पानी मेरी चूत में खाली कर दिया और झड़ गया.
फिर दो चार धीमे धीमे झटके मारते हुए बाकी की बची खुची बूंदें भी मेरे अंदर टपका दी. मैं अपनी चूत को गरम गरम पानी से भरा हुआ महसूस कर पा रही थी.
उसने जब अपना लंड बाहर निकाला तो मेरी चूत से वजन थोड़ा कम हुआ. पर उसके लंड के साथ ही वो ढेर सारा पानी भी बाहर ले आया और मेरी गांड के नीचे फंसे पेटीकोट पर वो सारा पानी गिर गया. मेरा पेटीकोट उस हिस्से से गीला हो गया जो मेरी गांड पर आने वाला था.
अशोक इतना सारा पानी मेरी चूत और रंजन के लंड से से लिपटा हुआ देख शरमा गया और हमें बोल कर वापिस सीढ़ियों की तरफ चला गया, ताकि हम दोनों कपड़े पहन उधर चले जाये.
मैंने अपनी नीचे की हालत देखी और अपने पर्स में रखे नैपकिन निकाल पोछने लगी. थोड़े नैपकिन रंजन को भी दिए. वो बड़ा संतुष्ट लग रहा था.
मेरा एक काम तो हो चूका था कि बच्चे के बाप का नाम मिल गया. पर इतनी देर चुदवाने के बाद भी मैं प्यासी थी. सोचा अशोक ही आ जाये और मेरा काम पूरा कर दे पर वो तो दूर जाकर खड़ा था.
अब मेरी प्यास कौन मिटाएगा अशोक या रंजन? आगे के एपिसोड में पढ़िए. क्योकि मेरी इन्सेस्ट सेक्स स्टोरीज इन हिन्दी अभी जारी रहेंगी.
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