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नमस्कार दोस्तो, मैं महेश कुमार सरकारी नौकरी करता हूँ। मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि मेरी सभी कहानियाँ काल्पनिक हैं.. जिनका किसी से भी कोई सम्बन्ध नहीं है.. अगर होता भी है तो ये मात्र संयोग ही होगा।
मेरी पहले की कहानियों में आपने मेरे बारे में जान ही लिया होगा। अब मैं उसके आगे का एक वाकिया लिख रहा हूँ उम्मीद करता हूँ कि ये आपको पसन्द आएगा। चलो अब कहानी का मजा लेते हैं।
मेरी परीक्षाएं समाप्त हुए हफ्ता भर ही हुआ था कि मेरे भैया दो महीने की छुट्टी आ गए जिसके कारण मुझे ड्राईंगरूम में सोना पड़ा।
मैंने सोचा था कि परीक्षाएं समाप्त होने के बाद पायल भाभी के साथ खुल कर मजे करूंगा.. मगर भैया के छुट्टी पर घर आ जाने के कारण मेरे सारे ख्वाब अधूरे रह गए, मेरे दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहे थे, भैया को भाभी के कमरे में सोते देखकर, मैं बस जलता रहता था और वैसे भी मैं क्या कर सकता था, आखिरकार वो उनकी बीवी है।
बस इसी तरह दिन गुजर रहे थे कि एक दिन पापा ने मुझे बताया कि गाँव से रामेसर चाचा जी काफी बार फोन कर चुके हैं, वो मुझे गाँव बुला रहे हैं।
पापा ने बताया कि फसल की कटाई होने वाली है और गाँव के मकान की हालत देखे भी काफी दिन हो गए हैं इसलिए छुट्टियों में मैं कुछ दिन गाँव चला जाऊँ।
रामेसर चाचा मेरे सगे चाचा नहीं हैं.. वो गाँव में हमारे पड़ोसी हैं जिसके कारण उनसे हमारे काफी अच्छे सम्बन्ध हैं। मेरे पापा की शहर में नौकरी लग गई थी इसलिए हम सब शहर में रहने लग गए थे। गाँव में हमारा एक पुराना मकान और कुछ खेत हैं। घर में तो कोई नहीं रहता है.. पर खेतों में रामेसर चाचा खेती करते हैं, फसल के तीन हिस्से वो खुद रख लेते हैं.. एक चौथाई हिस्सा हमें दे देते हैं।
गाँव में मेरा दिल तो नहीं लगता है.. मगर यहाँ रहकर जलने से अच्छा तो मुझे गाँव जाना ही सही लगा, इसलिए मैं गाँव जाने के लिए मान गया और अगले ही दिन गाँव चला गया।
गाँव में जाने पर चाचाजी के सभी घर वाले बड़े खुश हो गए। चाचाजी के घर में चाचा-चाची, उनकी लड़की सुमन, रेखा भाभी व उनका छः साल का लड़का सोनू है।
रेखा भाभी विधवा हैं उनके पति विनोद भैया का दो साल पहले ही खेत में पानी लगाते समय साँप काटने के कारण स्वर्गवास हो गया था।
मैं देर शाम से गाँव पहुंचा था इसलिए कुछ देर सभी से बातें करते-करते ही खाने का समय हो गया। वैसे भी गाँव में सब लोग जल्दी खाना खा कर.. जल्दी ही सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठ भी जाते हैं।
खाना खाने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे।
गर्मियों के दिन थे और गर्मियों के दिनों में गाँव के लोग अधिकतर बाहर ही सोते हैं इसलिए मेरी चारपाई भी चाचाजी के पास घर के आँगन में ही लगा दी गई।
वैसे तो उनका घर काफी बड़ा है.. जिसमें चार कमरे और बड़ा सा आँगन है, मगर इस्तेमाल में वो दो ही कमरे लाते हैं। जिसमें से एक कमरे में चाची व सोनू सो गए और दूसरे कमरे में सुमन व रेखा भाभी सो गए। बाकी के कमरों में अनाज, खेती व भैंस का चारा आदि रखा हुआ था।
खैर.. कुछ देर चाचाजी मुझसे बातें करते रहे और फिर सो गए। मुझे नींद नहीं आ रही थी.. क्योंकि जहाँ हम सो रहे थे.. भैंस भी वहीं पर बँधी हुई थी, जिसके गोबर व मूत्र से बहुत बदबू आ रही थी, साथ ही वहाँ पर मच्छर भी काफी थे।
मैं रात भर करवट बदलता रहा.. मगर मुझे नींद नहीं आई। सुबह पाँच बजे जब चाची जी भैंस का दूध निकालने के लिए उठीं.. तब भी मैं जाग ही रहा था।
मैंने चाची को जब ये बताया तो वो हँसने लगीं और उन्होंने कहा- तुम्हें रात को ही बता देना चाहिये था, तुम यहाँ पर नए हो ना.. इसलिए तुम्हें आदत नहीं है, कल से तुम रेखा व सुमन के कमरे में सो जाना। वो दोनों उठ गई हैं.. तुम अभी उनके कमरे में जाकर सो जाओ।
मगर मैंने मना कर दिया और तैयार होकर चाचा-चाची के साथ खेतों में चला गया। रेखा भाभी के लड़के सोनू को भी हम साथ में ले आए। सुमन की परीक्षाएं चल रही थीं इसलिए वो कॉलेज चली गई।
रेखा भाभी को खाना बनाना और घर व भैंस के काम करने होते हैं.. इसलिए वो घर पर ही रहीं।
फसल की कटाई चल रही थी.. इसलिए चाचा-चाची तो उसमें लग गए.. मगर मुझे कुछ करना तो आता नहीं था इसलिए मैं सोनू के साथ खेलता रहा और ऐसे ही खेतों में घूमता रहा।
सभी के लिए दोपहर का खाना रेखा भाभी को लेकर आना था। मगर मैं ऐसे ही फ़ालतू घूम रहा था, इसलिए मैंने चाची जी से कहा- दोपहर का खाना मैं ले आता हूँ। इस पर चाचाजी ने भी हामी भरकर कहा- ठीक है.. ऐसे भी रेखा को घर पर बहुत काम होते हैं।
करीब दस बजे मैं दोपहर का खाना लेने के लिए घर चला गया। जब मैं घर पर पहुँचा तो देखा कि घर पर कोई नहीं है। मैंने सोचा कि रेखा भाभी यहीं कहीं पड़ोस के घर में गई होंगी.. इसलिए मैं भाभी के कमरे में जाकर बैठ गया और उनके आने का इन्तजार करने लगा।
मुझे कुछ देर ही हुई थी कि तभी रेखा भाभी दौड़ती हुई सी सीधे कमरे में आईं।
अचानक ऐसे रेखा भाभी के आने से एक बार तो मैं भी घबरा गया मगर जब मेरा ध्यान रेखा भाभी के कपड़ों की तरफ गया तो बस मैं उन्हें देखता ही रह गया। क्योंकि रेखा भाभी मात्र ब्रा व एक पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी थीं।
रेखा भाभी नहाकर आई थीं.. इसलिए भाभी ने नीचे बस काले रंग का पेटीकोट व ऊपर सफेद रंग की केवल एक ब्रा पहन रखी थी। भाभी ने अपने सिर के गीले बालों को तौलिए से बाँध रखा था। उन कपड़ों में रेखा भाभी का संगमरमर सा सफेद शरीर.. ना के बराबर ढका हुआ था।
मुझे देखते ही भाभी दरवाजे पर ही ठिठक कर रूक गईं क्योंकि उन्हें अन्दाजा भी नहीं था कि कमरे में मैं बैठा हो सकता हूँ। मुझे देखकर रेखा भाभी इतनी घबरा गईं कि कुछ देर तक तो सोच भी नहीं पाईं.. कि वो अब क्या करें। भाभी वहीं पर बुत सी बनकर खड़ी हो गईं, उम्म्ह… अहह… हय… याह… तब तक मैं भाभी के रूप को आँखों से पीता रहा।
फिर रेखा भाभी जल्दी से पलट कर दूसरे कमरे में चली गईं। भाभी के दूसरे कमरे में चले जाने के बाद भी मैं भाभी के रूप में ही खोया रहा।
सच में रेखा भाभी इस रूप में कयामत लग रही थीं.. ऐसा लगता था कि भाभी को ऊपर वाले ने बड़ी ही फुर्सत से बनाया होगा।
भाभी का गोल चेहरा.. काली व बड़ी-बड़ी आँखें, पतले सुर्ख गुलाबी होंठ, लम्बा व छरहरा शरीर, बस एक बड़े सन्तरे से कुछ ही बड़े आकार की उन्नत व सख्त गोलाइयां और भरे हुए माँसल नितम्ब.. आह्ह.. उनको देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वो छः साल के बच्चे की माँ भी हो सकती हैं।
कुछ देर बाद रेखा भाभी कपड़े पहन कर फिर से कमरे में आईं और उन्होंने मुझसे पूछा- तुम कब आए? भाभी मुझसे आँखें नहीं मिला रही थीं क्योंकि रेखा भाभी बहुत ही शरीफ व भोली हैं.. ऊपर से वो विधवा भी हैं।
मैंने भी भाभी से आँखें मिलाने की कोशिश नहीं की.. ऐसे ही उन्हें अपने आने का कारण बता दिया।
रेखा भाभी ने जल्दी ही मुझे खाना बाँध कर दे दिया और मैं भी बिना कुछ कहे चुपचाप खाना लेकर खेतों के लिए चल पड़ा। मैं रास्ते भर भाभी के बारे में ही सोचता रहा।
रेखा भाभी के बारे में पहले मेरे विचार गन्दे नहीं थे.. मगर भाभी का रूप देखकर मेरी नियत खराब हो रही थी, मेरे दिल में हवश का शैतान जाग गया था, मैं सोच रहा था कि विनोद भैया का देहान्त हुए दो साल हो गए है इसलिए रेखा भाभी का भी दिल तो करता ही होगा। यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
खेत में भी मैं रेखा भाभी के बारे में ही सोचता रहा और दिल ही दिल में उन्हें पाने के लिए योजना बनाने में लग गया।
शाम को मैं चाचा-चाची के साथ ही खेत से वापस आया, घर आकर खाना खाया और फिर सभी सोने की तैयारी करने लगे। चाची ने मेरी चारपाई रेखा भाभी व सुमन दीदी के कमरे में लगवा दी थी और साथ ही मेरी चारपाई के नीचे मच्छर भगाने की अगरबत्ती भी जला दी।
उस कमरे में एक डबलबैड था.. जिस पर सुमन व रेखा भाभी सोते थे और साथ ही कुर्सियां टेबल, अल्मारी व कुछ अन्य सामान होने के कारण ज्यादा जगह नहीं थी.. इसलिए मेरी चारपाई बेड के बिल्कुल साथ ही लगी हुई थी।
सुमन की परीक्षाएं चल रही थीं.. इसलिए खाना खाते ही वो पढ़ाई करने लगी। रेखा भाभी घर के काम निपटा रही थीं.. इसलिए वो थोड़ा देर से कमरे में आईं और आकर चुपचाप सो गईं।
मैंने उनसे बात करने की कोशिश की.. मगर उन्होंने बात करने के लिए मना कर दिया क्योंकि सुमन भी वहीं पढ़ाई कर रही थी। कुछ देर पढ़ाई करने के बाद सुमन भी सो गई।
दीवार के किनारे की तरफ सुमन थी और मेरी चारपाई की तरफ रेखा भाभी सो रही थीं। वो मेरे इतने पास थीं कि मैं चारपाई से ही हाथ बढ़ाकर उन्हें आसानी से छू सकता था। लेकिन यह बहुत ही खतरनाक हो सकता था। जब तक भाभी की तरफ से मुझे कोई सिग्नल नहीं मिलता.. कुछ भी करना मतलब अपनी इज्जत का फालूदा करवाना हो सकता था।
मगर मेरे दिमाग में तय ही चुका था कि भाभी की जवान चूत को तो चोदना ही है।
आप मुझे ईमेल जरूर कीजिये। [email protected] भाभी की जवान चूत की कहानी जारी है।
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