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अब तक आपने पढ़ा.. शिप्रा मेम और मेरा मिलना-जुलना जारी था। अब आगे..
बिजली जाने के बाद लॉन में बहुत अँधेरा हो जाता था.. जो हमारे लिए फायदेमंद था। हम चुपके से लॉन में मिलते और चुम्मा-चाटी करते थे। कॉलेज में एक हाल था.. जहाँ काफी अँधेरा होता था। हम लोग वहीं पर जा कर एक-दूसरे से चिपककर अपनी सारी हसरतों को पूरा कर लिया करते थे।
एक रविवार को सुबह कॉल करने पर पता चला कि शिप्रा घूमने जा रही है, वो भी अकेली… मैंने ज़िद की कि मुझे भी जाना है। उसने मान लिया और मैंने अनिल सर के पास जा कर अपना पास साइन करा लिया।
वो और मैं अलग अलग ऑटो में निकल गए, हम दोनों सीआरपी चौक पर उतरे और फिर साथ मिल गए।
यह मेरी ज़िन्दगी में किसी लड़की के साथ डेट का पहला मौका था, अजीब सी फीलिंग आ रही थी। पहले कभी किसी लड़की से इस तरह पब्लिक प्लेस में मिला नहीं था।
हम लोग दोनों पैदल ही पूरा सीआरपी चौक घूमे। सुबह 10 बजे से 3 कैसे बीत गया.. पता ही नहीं चला। हम दोनों ने एक रेस्टोरेंट में खाना खाया.. जहाँ मुझे पता चला कि अनिल सर की माल भी आने वाली है, उसका नाम ज्योति था, वो लंबी-चौड़ी मस्त चूचों वाली माल थी।
जब शिप्रा ने मुझे उसके आने के बारे में बताया तो मैंने बोला- ठीक है मिल लेंगे।
खाना खा कर बाहर आने के बाद ज्योति हमसे मिली, शिप्रा ने ज्योति का स्वागत किया और ज्योति ने मेरा! ज्योति को मेरे और शिप्रा के बारे में पता था और वो खास कर मुझसे मिलने ही आई थी।
इतने में ज्योति के मुँह से निकल गया- तुम अभी जाओ.. अनिल आएगा। शिप्रा तुम दोनों के बारे में अनिल से बात करना चाहती है। मेरे तो पैर के नीचे से ज़मीन ही गायब हो गई। मुझे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दूँ और क्या रियेक्ट करूँ। पर शिप्रा का कुछ और ही प्लान था, शिप्रा और ज्योति दोनों मिल के मेरी गांड मारने वाली थीं। मैंने वहीं से एक बस पकड़ी और हॉस्टल आ गया।
रात को फ़ोन आया, सब कुछ सामान्य लग रहा था। मेरे पूछने पर शिप्रा ने बताया कि अनिल नहीं मान रहा था.. पर उसने मना लिया। मैं काफी हताश था।
उस दिन से मैंने धीरे-धीरे उससे बात करना कम कर दिया। मिलना भी बंद हो गया। उसे समझ आ गया कि उसकी इस हरकत से मुझे परेशानी हो सकती है।
उसने एक दिन फ़ोन करके कहा- तुम चिंता मत करो। तुम्हें अनिल से कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। ये समझो कि अनिल को हमारे बारे में कुछ पता ही नहीं है। तुम बस मुझे मेरा पुराना विक्की दे दो।
मैंने कुछ दिन नोटिस किया। अनिल ने मुझसे सच में न कुछ कहा.. ना रियेक्ट किया। शिप्रा से फिर धीरे-धीरे बात होने तो लगी थी.. पर मैं खुश नहीं था।
मैंने एक दिन ना चाहते हुए भी कह दिया- अगर साथ रहना है तो रिश्ते को अगले लेवल पर ले जाना होगा.. वरना रिश्ता नहीं चल पाएगा। उसने बात को समझ कर भी अनदेखा कर दिया।
जब मुझे लगा कि काम नहीं बन रहा है.. तो मैंने एक दिन बड़े प्यार से उसके पूरे शरीर को सहलाते हुए कह दिया- जान.. मुझे तुम्हारे साथ हनीमून मनाना है। उसने कहा- ठीक है.. मैं कुछ करती हूँ।
तीन या चार दिन बाद उसने बताया कि शनिवार को कॉलेज बंद है और अगले दिन रविवार की छुट्टी है ही.. और सोमवार के फर्स्ट हाफ में उसकी कोई क्लास भी नहीं है। इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था।
अनिल को हमारे बारे में पता था.. तो उसके पास छुट्टी मांगने के लिए जाना बेवकूफी था। मैं सीधा वार्डन के पास गया, अपनी छुट्टी की अर्ज़ी दी। पहले तो साला मान ही नहीं रहा था। जब मैंने बताया कि दो दिन के लिए जा रहा हूँ तो मुझसे अनेक सवाल जवाब करने लगा।
मुझे लगा कि शायद इसे भी मेरे प्लान की भनक सी हो गई थी। मैंने सीधे साफ़-साफ़ कह दिया- मेरा घर ज्यादा दूर नहीं है.. और वैसे भी कुछ जरूरी काम से जा रहा हूँ। दो दिन बाद आ जाऊंगा। फिर वो मान गया।
मैंने सीधा शिप्रा को कॉल किया और बता दिया कि अब हम लोग चल सकते हैं। उसने कहा कि वो तो कल सुबह निकलेगी और मुझे किसी भी तरह आज शाम में हॉस्टल से निकलना था।
मैंने अपने दोस्त सौरव को कॉल किया और रात को उसके साथ रुकने का पूछा, उसने कहा- आ जाओ।
शाम को हॉस्टल से निकल कर मैं सौरव के पास चला गया। वो रवि टॉकीज़ के पास रहता था। मैं वहाँ गया तो देखा सौरव अपने बड़े भाई और भाई के दोस्तों के साथ रहता था। उन सबसे बातचीत करते काफी रात हो गई।
सुबह सौरव ने मुझे उठाया और मैं तैयार हो गया। उसके भैया के एक दोस्त ने मुझे स्टेशन तक छोड़ दिया।
हॉस्टल से पहली बार बंक मार कर बाहर जा रहा था। गांड फटी हुई थी पर यही सोच कर शांत बैठा था कि कुछ नया करने वाला हूँ।
इतने में शिप्रा का कॉल आ गया। वो रास्ते में थी और मुझे पुरी जाने वाली बस में बैठ जाने को कहा। क्योंकि सुबह का टाइम था और पुरी जाने की पहली सिटी बस थी.. तो पूरी बस ख़ाली थी।
सब लोगों को आगे बैठना पसंद है.. क्योंकि पीछे बहुत झटके लगते हैं। मैं सोच समझकर एकदम पीछे जा कर एकदम कोने में बैठ गया। धीरे-धीरे लोग आने लगे और आगे से लेकर बस के बीच तक पूरी बस भर गई।
पीछे कोई नहीं आया। इतने में मैंने देखा। एक लड़की मुँह पर चुन्नी बांधे एकदम टाइट टी-शर्ट और जीन्स पहने बस में चढ़ी। उसका शरीर देख कर मैं समझ गया कि ये शिप्रा है, वो सीधा मेरे पास आई और मुझे हटाकर विंडो सीट ले ली।
सच में उसकी इस हरकत से मेरी झाँटें जल कर राख हो गईं। कोई मुझसे विंडो सीट लेता है.. तो मन करता है इसकी माँ चोद दूँ।
खैर.. अभी तो शिप्रा की चूत चोदनी थी सो मैंने उसको प्यार से बोला- मुझे विंडो सीट चाहिए। उसने कहा- जो मैं कर रही हूँ.. करने दो, इसमें तुम्हारा ही फायदा है। तो मैं समझा नहीं।
फिर बस चली.. तो आधे घंटे तक हम यूँ ही बात करते रहे। जैसे बस से भीड़ कम हुई और पीछे हमें देखने के लिए कोई नहीं दिखा.. तो मैंने अपना हाथ उसके कंधों पर रख दिया। ऐसा करने पर उसके चेहरे पर अजीब से भाव दिख रहे थे.. मानो वो मुझे कितना बुद्धू समझती हो।
उसने मेरा हाथ अपने कंधों से हटाया और सीधे अपनी चूचियों पर ले आई। मुझे हँसी आ गई। मैं धीरे-धीरे वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए उसके चूचियों को सहलाने लगा।
वो बहुत जागरूक थी। उसका ध्यान बस इसी में लगा रहता था कि कोई देख तो नहीं रहा है और यही कारण था कि वो बाहर खुले में इन चीज़ों का खुल के मज़ा नहीं ले पाती थी।
धीरे-धीरे चूचियों को दबाने से उसको काफी अच्छा लग रहा था। इतने में उसको भी कुछ करने का मन कर रहा हुआ। वो मेरे पैंट के ऊपर से ही मेरा खड़ा लंड मसलने लगी। थोड़ी देर ही उसने लंड मसला होगा.. इतने में मैंने अपना हाथ उसकी टी-शर्ट के अन्दर डाल दिया। उसकी चूचियां एकदम गरम हो गई थीं और मसलने में एकदम मुलायम भी थीं।
वो कहने लगी- प्लीज यहाँ मत करो, होटल में जा के करना!
मैंने उसकी बात मानते हुए हाथ निकाल लिया और फिर ऊपर से दबाने लगा। बहुत देर तक यूँ ही दबाने से मेरा मन कुछ और करने को हुआ तो मैंने उसके कान में कहा- अपनी जीन्स का बटन खोलो। उसने मना किया, तो मैंने गुस्सा होने का नाटक किया। हम दोनों का एक जैसी हालत थी।
मुझे चूत की भूख थी और उसे लंड की। हम दोनों गरजू थे। उसने कुछ देर सोचने के बाद धीरे-धीरे अपना जीन्स का बटन खोल दिया। मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसकी जीन्स से होते हुए उसकी पेंटी में घुसा दी, उसकी चूत पूरी गीली थी, पानी निकल रहा था।
पूछने पर पता चला कि चूचियों को दबाने से वो गर्म हो गई और चूत से प्री-कम निकलने लगा।
मैं आहिस्ते-आहिस्ते उसकी चूत सहलाता रहा। वो और गर्म हुए जा रही थी। थोड़ी देर के बाद उससे बर्दाश्त न हुआ और वो मेरे लंड की डिमांड करने लगी।
मैंने अपनी ज़िप खोली और खड़ा लंड उसकी हाथ में थमाते हुए कह दिया ‘माल नहीं निकालना बस।’ वो बड़े प्यार से मेरे लंड को सहलाने लगी। जब जब मुझे लगता मेरा माल गिर जाएगा.. मैं उसका हाथ हटा देता।
इसी तरह हम पुरी पहुँच गए, वहाँ एक ऑटो लेकर हम बीच पर पहुँचे, बीच के किनारे बहुत सारे होटल थे। सब होटल घूमने के बाद अपने बजट का एक होटल मिला।
नाम था ‘होटल जयश्री’ रूम बुक करने पहुँचा तो मालिक ही रिसेप्शन में बैठा था। मैंने उसे कोने में ले गया और सारी बात बताई। उसने निश्चिन्त होने को कहा और वापस आ कर रजिस्टर में एंट्री कराने लगा। जैसे-जैसे वो बोलता गया मैं लिखता गया।
मेरे पूछने पर उसने खुलासा किया कि शाम अँधेरा होने पर पुलिस वाले आ कर रजिस्टर चैक करते हैं। तो वो हमसे इस वजह से एंट्री करवा रहा था जैसे हम दोनों शादीशुदा हैं और घूमने आए हैं।
मैंने उससे पूछा- क्या मैं आप पर विश्वास कर सकता हूँ? उसने कहा- हाँ बिल्कुल.. हमारा होटल आप लोगों की वजह से चलता है।
उस पर विश्वास करने का मेरा मन तो नहीं था, पर कोई और विकल्प भी नहीं था। मैंने सोचा चलो देखते हैं क्या होता है।
उसने हम दोनों के आईडी कार्ड ले लिए और रूम दिखाया, रूम काफी अच्छा था, जितना सोचा था उससे अच्छा।
मैंने हाउस कीपिंग को पानी लाने को बोला और वो चला गया। थोड़ी देर में वो आया और पानी के साथ नए चादर भी ले आया। यही सब में 8 बज गए थे।
अब रूम में हम दोनों थे और मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया, सारे परदे लगा दिए। यह मेरा पहली बार था जब मैं किसी लड़की के साथ रूम में बंद था, दिल जोरों से धड़क रहा था, सोच ही रहा था कि कहाँ से शुरूआत करूँ। इतने में शिप्रा बोली- इससे पहले कि तुम शुरूआत करो.. पहले पूरे रूम में चैक करो कि कोई कैमरा आदि तो नहीं लगा है।
अब बस चुदाई होना बाकी थी और साला डर ये लग रहा था कि कोई लफड़ा न हो जाए। आपके ईमेल के इन्तजार में हूँ। [email protected] यह सेक्स स्टोरी जारी रहेगी।
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