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अब तक आपने पढ़ा.. माया मुझे बेसब्री से प्यार करे जा रही थी। उसने मेरा लंड चूस कर मुझे झड़वा दिया था। अब आगे..
माया- आह्ह.. तेरी खुशबू कितनी अच्छी है। वो फिर से लंड चाटने लगी, उसने मेरे लंड को दो ही मिनट में फिर से खड़ा कर दिया, लंड को पूरा सूखने भी नहीं दिया।
फिर से मेरा लंड कड़ा होकर अपनी जवानी में मस्त होने लगा था। वो मेरे लंड को अपने मुँह में लॉलीपॉप की तरह अन्दर खींचते हुए अपने होंठों में दबाते हुए चूस रही थी। मेरी तो जान निकलकर मानो लंड तक आ गई थी। मैं ‘माया.. माया.. थोड़ी देर तो रुको..’ चिल्लाता हुए कांप रहा था।
वो अब मानो मेरे लिए थोड़ा असहनीय था, मुझे लंड के अन्दर जोर से झटके लग रहे थे और मेरी आंखें मुंदने लगी थीं।
मेरा लंड लाल चटख हो गया था और मेरा ऊपरी चमड़ी की सील टूट चुकी थी। वो कभी-कभी मेरे लंड पर अपने दांतों से भी रगड़ मारती थी, कभी वो अपनी गीली जुबान मेरे अधखुले सुपारे पर फेर रही थी, मैं आंखें बन्द करके तड़प रहा था।
अब वो अपने मुँह में मेरा पूरा लंड भर-भर के आगे-पीछे करने की स्पीड बढ़ाने लगी। मेरे दिमाग में एक अजीब सा नशा छा रहा था। मेरा शरीर अकड़ने लगा.. तो उसने अपने मुँह में मेरे लंड को आगे-पीछे करने की स्पीड और भी बढ़ा दी।
मेरे पाँव को और फैला कर वो बीच में आ गई.. मानो उसने कभी लंड देखा ही न हो और शायद मिलने वाला ही न हो, वो इसी भाव से मेरे लंड को खा रही थी।
मैं- माया आग लगी है.. आह्ह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… आई लव यू.. मेरी रानी मैं तेरा गुलाम बन गया.. आह्ह.. और जोर से.. और जोर से रगड़ो माया.. आह्ह.. मुझे अपने अन्दर ले लो ओह्ह्ह्ह.. माया माया..
मैं अभी ऐसे चिल्ला ही रहा था कि मेरी गांड की तरफ से कुछ झटके आने लगे। मैं अभी भी चीख रहा था- जोर से.. और जोर से.. वो अपने मुँह में मेरे लंड को जुबान से चिपका कर आगे-पीछे करने लगी।
लगभग 5 मिनट में ही मेरे शरीर में बिजली का करंट लगा, मुझे गांड की ओर से जोरदार झटके महसूस हुए, मैंने अपने पैर सिकोड़े और चीख पड़ा ‘ओह्ह्ह्ह.. माँ..या.. मैं फिर से.. गया.. मुझे पकड़ो माया..’ पर उसने इसे अनसुना करते हुए अपने मुँह से धक्के चालू रखे।
थोड़ी ही देर मुझे तो लगा कि मेरी जान ही चली जाएगी, मैं निहाल होकर अपनी आँखों को मूंदते हुए उसके सर को पकड़ने नाकाम कोशिश करने ही जा रहा था कि मुझे एक जोर का झटका लगा और मेरे लंड में से गर्मागर्म वीर्य की जबरदस्त पिचकारी छूट गई, मेरे वीर्य से उसका पूरा मुँह फिर से लबालब भर गया, वो थोड़ा खांसी!
मेरी तो मानो जान निकल गई, मैं निढाल होकर अपने पैरों को बिस्तर में ढीला छोड़ कर थोड़ी देर आंखें बन्द करके ढेर हो गया। मुझे जिन्दगी की यह दूसरी बार चरम सीमा प्राप्त हुई थी। जैसे इंसान बेहोश होते हैं.. मैं ऐसी अवस्था में आंखें बन्द करके बिस्तर पर पड़ा रहा।
माया मेरा पूरा लंड ‘चप.. चप..’ करती हुई चाट कर साफ़ करने लगी, वो अभी भी मेरे लंड को छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी- यार विकी.. मुझे तेरे लंड की गंध बहुत मीठी लगती है। तेरा वीर्य कितना खुशबूदार है, तेरे लंड को कच्चा चबा कर काट के खा जाने दिल कर रहा है। वो अपने होंठों से मेरा वीर्य उंगली में लेकर सूंघने लगी।
फिर बाद में उठकर वो बाथरूम में अपना मुँह धोने चली गई। मैं ऐसे ही पूरा का पूरा नंगा और बेहाल.. बिस्तर पर आंखें बन्द किए हुए पड़ा था।
मेरे मन को एक गजब की शांति मिल गई थी, मेरी चीखें अब शांत हो गई थीं। यारो.. आज मैं बिना चुदाई का सेक्स करते हुए दो बार झड़ा था।
एक शांति का अहसास था.. कमरे में भी शांति हो गई थी। शांत कमरे में बाथरूम में नल से गिरते हुए पानी की आवाज़ आ रही थी, वो शायद अपने आपको साफ कर रही थी। इधर बिखरे हुए बिस्तर पर मैं एक घायल सैनिक की तरह पड़ा था मानो आज मेरे साथ जोर आजमाइश हुई थी।
अभी मैं शिथिल अवस्था में पड़ा हुआ ही था कि तभी मेन दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई। मेरी तो गांड फट गई, मैं झट से उठा और अपने कपड़े ढूंढ़ने लगा और माया को दबी आवाज़ में कहा- माया मर गए.. कोई आ गया लगता है, देखो कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।
माया जल्दी से नेपकिन से अपना चेहरा साफ़ करती हुई बाहर निकली। वो भी डरी हुई थी कि आखिर कौन आ गया।
वो मुझे बाथरूम में छुपाकर डर के मारे कांपते हुए दरवाजे पर गई। दरवाजा खोला तो उसकी सहेली सरोज थी.. जो बिल्कुल हमारे मकान से सटे मकान में रहती है।
माया को दरवाजे से हटाते हुए वो जबरन अन्दर घुस आई और उसने माया को नजदीक बुलाकर कहा।
सरोज ने दबी आवाज में आंख मारते हुए कहा- माया मेरे कमरे से सटी तुम्हारी खिड़की से मुझे अजीब-अजीब सी आवाजें सुनाई दीं.. तो मैं भाग कर तुझे बताने आई हूँ कि तुम्हारे कमरे की आवाज़ बाहर तक आ रही है.. कोई सुन लेगा। ‘किधर..?’ माया ने हैरानी जताई। सरोज- इधर और किधर.. क्यों क्या हो रहा है मायादेवी..! मैंने ऐसी तड़पने वाली कसकती आवाज़ इतने साल में तुम्हारे कमरे से कभी नहीं सुनी। क्या चक्कर है.. मेरी जान?
माया हड़बड़ाते हुए बोली- न..न..नहीं.. ऐसा तो कुछ भी नहीं है.. घर में कोई है ही नहीं, तो आवाज़ कैसी..! त..त..तू जा.. ऐसा कुछ भी नहीं है।
सरोज ने मेन दरवाजा बन्द किया और जबरन माया के कमरे की ओर आ गई। वो उसकी बहुत अच्छी सहेली थी। वो दोनों अक्सर छत पर दोनों मकान के बीच की दीवार के पास खड़ी रहकर घंटों तक फुसफुसाती रहती थीं, दोनों बहुत ही अच्छी सहेलियां थीं।
सरोज- ओह्ह्ह्ह.. तो मायादेवी कोई नहीं है, तो फिर आप सजधज के क्या कर रही थीं? खिलाड़ियों से खेल..! अगर कुछ नहीं है.. तो तेरा रंग क्यों उतरा हुआ है.. और ये तेरे गाल पर क्या चिपका है?
उसने उसके गाल पर चिपके मेरे वीर्य को अपनी उंगली पर लिया और उसे सूंघने लगी। वीर्य की महक पाते ही वो कमरे के अन्दर की ओर बढ़ने लगी।
माया ने उसका हाथ पकड़ा और चिढ़ते हुए कहा- सरू प्लीज.. कुछ नहीं है तू बेकार में मुझ पर शक कर रही हो.. और मेरे गालों पर दूध की मलाई चिपकी थी, जो अभी दूध पीते हुए लगी होगी। मैं साबुन से मुँह धो रही थी.. तो साबुन आँखों में जाने से मेरी आवाजें आ रही होंगी मेरी माँ रुक जा..! सरोज- अच्छा.. तुझे पता है ना.. मैं बड़ी चुदक्कड़ हूँ। मैंने कईयों के पानी छुड़ा दिए हैं.. समझीं, मुझे उल्लू न बना.. चल बता अन्दर कौन है? बताती है या मैं अन्दर जा कर उसकी पिटाई करके पूरे मोहल्ला जमा कर दूँ? अभी तो केवल शाम के 7.30 बजे हैं महारानी पूरा मोहल्ला इकट्ठा होते देर नहीं लगेगी।
मैं अन्दर से सब सुन रहा था और मेरी गांड भयंकर फट रही थी, मेरा दिल डर के मारे जोर-जोर से धड़क रहा था। सरोज लगभग हमारे कमरे में आ चुकी थी, वो कमरे की हालत देखकर बोल उठी- साली झूठी.. ये कैसी बू आ रही है.. और यह तेरे बिस्तर की हालत देख कोई भी कह सकता है कि यहाँ तू अकेली नहीं थी। बोल कौन था तेरे साथ..? जल्दी बोल दे.. वरना मुझसे बुरा कोई ना होगा।
माया- ओह सरू.. कोई भी तो नहीं.. तू यार खामखां मुझपर शक कर रही है। अगर कोई होता तो पगली मैं तुझे न बताती? तुझसे मेरी कोई बात छिपी है क्या?? सरोज- साली.. तो ये तेरे गालों पर जो माल चिपका था और खिड़की से मुझे सिसकियां सुनाई दीं.. वो क्या भूत की थीं?
वो धमकी भरे शब्दों में जोर से बोली- मैंने मेन दरवाजा बन्द कर दिया है और मैं माया की खास सहेली हूँ.. और जो भी अन्दर छिपा है, वो मेहरबानी करके बाहर आ जाए। अगर मैंने उससे ढूंढ लिया तो बहुत बुरा होगा।
माया- सरू कोई नहीं है यार.. मुझपर भरोसा नहीं क्या? वो बेचारी सरोज के सामने गिड़गिड़ा रही थी और उससे हाथ जोड़कर मिन्नतें कर रही थी- यार तू जा.. कुछ नहीं है.. सरोज- तुम बाहर आते हो.. या मैं अन्दर आऊँ? अगर पकड़े गए तो तुम दोनों का हाल बुरा होगा.. यह लास्ट वार्निंग है।
माया ने उसके कान के पास जाकर कुछ कहा तो और भी चिल्लाई- अच्छा तो ये बात है.. आने दे भैया भाभी को.. यह सुनकर मैं झट से बाहर निकला, मैं बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए था- नहीं प्लीज़ दीदी.. ऐसा मत करना। मैंने भी लाचारी से हाथ जोड़ लिए।
सरोज- प्लीज़ के बच्चे.. मैं तेरी दीदी नहीं.. साली हूँ समझा, मुझे दीदी कहा तो तेरा चोदन कर भाईचोद बन जाऊँगी। इतना छोटा है.. पर मेरी भोली सहेली को फंसा लिया.. साले..! वो इतने साल से तड़पी है.. पर भाई की इज्ज़त को देखते हुए कभी बाहर नहीं गई.. और साले तूने उसको फुसला कर उसको ठोकने भी आ गया।
मैं घबराया, मुझे बात बिगड़ती दिख रही थी। माया- नहीं सरोज.. उससे कुछ मत कहो यार.. वो निर्दोष है। वो उसे मैंने.. यार वो ऐसा नहीं है.. वो अभी कुंवारा है। उसने किसी को किस तक नहीं किया। वो ऐसा नहीं है.. अभी भी बच्चा ही है। सरोज- ओह्ह्ह मेरी जान.. दोनों में इतना प्यार भी हो गया? एक-दूसरे को बचाने के लिए आगे आ रहे हो। सालों आने दो भैया को।
वो हम दोनों को ब्लैकमेल करते हुए मेरे पास आई, मेरा कान पकड़ कर बोली- साले.. इसने इतने सालों में जो नहीं किया.. वो तूने 30 दिनों में करवा लिया।
उसने बरमूडा में ही मेरा लौड़ा कस कर पकड़ लिया और मेरे होंठ पर जोर से किस कर लिया। माया- सरोज बहुत हो गया। यह कह कर माया बहुत अधिक गुस्से में आ गई।
मेरी सेक्स कहानी में क्या मोड़ आ रहा है, इसके बारे में मैं आपको विस्तार से लिखूँगा। आपके ईमेल मुझे प्रोत्साहित करते हैं.. सो प्लीज़ भेजते रहिएगा। [email protected] कहानी जारी है।
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