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यारो, कुछ समय पहले एक कहानी छपी थी जिसका शीर्षक था ‘फौजी अफसर की नवविवाहिता बीवी ने अपने घर में चूत चुदवाई‘ और यह कहानी उसी चुदने वाली मोना रानी ने स्वयं लिखी थी।
उसके कुछ दिनों के पश्चात मुझे कार्यवश मुंबई जाना था तो हम दोनों ने फैसला किया कि मोना रानी भी साथ चलेगी जिससे मैं उसका परिचय अपनी मुंबई वाली दो रानियों से भी करवा दूँ और उसको मुंबई घुमा भी दूंगा।
मैंने हवाई जहाज़ की जगह रेल से जाने का सोचा ताकि रात भर के सफर में रेल में चुदाई का भी मज़ा लूटा जाए। ये लुत्फ़ मैं पहले भी तीन चार बार ले चूका था इसलिए जानता था कि चलती रेल में चुदाई का एक अलग ही आनन्द है। राजधानी एक्सप्रेस में फर्स्ट AC में बुकिंग मिल गई। फर्स्ट AC में इसलिए कि इसमें एक कूपा मिल जाता है जो बिल्कुल प्राइवेट होता है। कूपे दो बर्थ या चार बर्थ के होते हैं। यह फैसला किया था कि यदि कूपा चार बर्थ वाला मिला तो ट्रेन टिकट कैंसिल करके जहाज़ से चले जाएंगे। तक़दीर अच्छी थी और दो बर्थ का कूपा मिल गया।
अब इसके आगे की कहानी मोना रानी के शब्दों में पढ़िए।
रानी की लिखी हुई पिछली कहानी भी पढ़ने वालों ने बहुत पसंद की थी। न सिर्फ अब तक प्रशंसा के मेल आ रहे हैं बल्कि चार चुदक्कड़ लड़कियां भी कहानी से प्रभावित होकर चुदवा के मेरी रानियां बन गईं।
मोना रानी के शब्द
अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज पढ़ने वालों को मोना का प्रणाम, मैं सब पाठक पाठिकाओं की धन्यवादी हूँ, उन्होंने मेरी लिखी हुई कहानी को इतना पसंद किया जिसका मैंने कभी स्वप्न भी नहीं देखा था। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि चूतनिवास सरीखे सिद्धहस्त लेखक की तुलना में मैं ठहर सकूंगी।
चलिए कहानी आगे बढ़ाते हैं।
जैसा राजे ने ऊपर बताया हम लोग राजधानी एक्सप्रेस से मुंबई जाने वाले थे। राजधानी में खाना, नाश्ता, चाय इत्यादि सब मिलने के कारण साथ में खाने का सामान ले जाने की टेंशन तो थी नहीं! गाड़ी दोपहर 4 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से चलती है, हम लोग पौने चार बजे प्लेटफार्म पहुँच गए।
राजे ने घर से आते हुए मुझे मेरे घर से पिक कर लिया था। मेरे घर से स्टेशन तक का रास्ता करीब आधे घंटे का है, रास्ते भर राजे मेरे साथ मस्ती करता रहा जैसे हम पहली बार मिले हों, कभी मेरी गर्दन पर होंठ रखकर चूमता, कभी मेरी टॉप में हाथ डालकर चूचुक दबाता, कभी मेरे पैर उठाकर सैंडल्स के ऊपर से ही चुम्मियां लेता तो कभी मेरे हाथ अपने हाथों के थाम कर उसको चूमता।
कई बार कमीने ने मुझे बाहुपाश में भर के चुम्मी के ऊपर चुम्मी ली। साले ने ड्राइवर भी सेट किया हुआ है, इसलिए इतने दिनों में मुझे उससे शर्म लगनी बंद हो चुकी थी।
सच कहूं तो मुझे उसकी इन हरकतों पर बहुत प्यार भी आ रहा था और आनन्द भी। बहनचोद, अभी से मेरी चूत रसीली होने लगी थी तो बाद में क्या होगा, यह सोच सोच कर मैं मस्ताते हुए राजे के कार्यकलाप में खुश होती रही, ऊपर से मैं झूठ मूठ का नाटक करती रही कि राजे क्या करता है, कुछ तो शर्म कर मादरचोद… मैं कहीं भागी जा रही हूँ क्या… इतना उतावला क्यों हो रहा है कुत्ते… प्लीज तंग न कर अब… चुपचाप बैठने दे ना यार शांति से!
किन्तु वो बेटीचोद चूत निवास ठहरा, वो कहाँ रुकता है। साले ने सैकड़ों बार मेरे कानों में मोना रानी, मोना रानी, मोना रानी बोल बोल के मुझे ऐसा जता दिया जैसे कि संसार की सबसे हसीन स्त्री मैं ही हूँ। इतनी अधिक सुन्दर लड़की न कोई पहले हुई, न है और न होगी। यह जानते हुए भी कि यह सच नहीं है मैं ख़ुशी से फूली न समा रही थी। खैर स्टेशन पहुंचे, ड्राइवर ने कहा कि आप लोग प्लेटफार्म पहुंचो मैं गाड़ी पार्क करके, सामान लेकर आता हूँ। राजे ने उसको प्लेटफार्म नंबर और बोगी नंबर बता दिया।
अब आप देखिये कैसे राजे ने मुझे ऐसा प्रतीत करवा दिया कि मैं वाकई में कोई रानी हूँ। ड्राइवर को निर्देश देकर, कार से उतर कर झट से मेरी वाली साइड में आया, गाड़ी का दरवाज़ा खोला और अपना हाथ देकर मुझे बड़े प्यार से उतारा। उसके पास टोयोटा इंनोवा कार है जिसकी सीट थोड़ी ऊँची होती है परन्तु उसकी बांह का सहारा लेकर मैं इतराती हुई बड़े आराम से उतरी।
वहां से लेकर प्लेटफार्म पर खड़ी हुई ट्रेन में अपनी बोगी तक राजे ने मेरी बांह थामे रखी जैसे इंग्लिश फिल्मों में जेंटलमैन लोग अपनी गर्ल फ्रेंड या पत्नी की बांह थामे दिखते हैं।
बोगी में अपने कूपे में पहुंचे कर राजे ने झट से मुझे बाँहों में जकड़ के बीस पचीस चुम्मे दागे। मुझे शर्म लग रही थी कि ट्रेन में कोई देख ले तो क्या सोचेगा मेरे बारे में जबकि ये चूतनिवास का बच्चा तो यूँ मेरे पीछे लगा हुआ था मानो मुझसे ना जाने कितने वर्षों के बाद मिलना हुआ हो। बहनचोद दो दिन पहले ही यह रीना के साथ मेरे घर आया था और तीन बार चोद के गया था।
इतने में ड्राइवर सामान लेकर आ पहुंचा और उसने हमारे बैग बर्थ के नीचे जमा दिए, फिर वो राजे को सलाम करके वापिस चला गया। ट्रेन चलने में बस दो तीन मिनट का टाइम बचा होगा। कूपे का दरवाज़ा बंद करके राजे ने मचल के मेरे चूचे इतने ज़ोर से निचोड़े कि मेरी चीख निकलते निकलते बची।
मैंने कहा- राजे राजे राजे… ये क्या हो रहा है… इतना बेसबरा हो रहा है जैसे महीनों से चूत न मिली हो… मादरचोद… थोड़ी तसल्ली रख ले बहनचोद… अभी टिकट चेकर आता होगा… उसको तो निकल जाने दे कमीने!
राजे ने जवाब में मेरे हाथों की हथेलियां चूमी। चूमी क्या, यह कहना चाहिए कि जीभ फिराई, बोला कुछ नहीं लेकिन मेरी बगल में बैठ कर कुछ कुछ करता ही रहा। इस इंसान को समझा सकना किसी के वश की बात नहीं है।
खैर सबसे पहले तो बोगी का अटेंडेंट आया और बेड रोल खोल के लगा के बारे में पूछा। राजे ने ऊपर वाली बर्थ पर बेड लगवा दिया और नीचे वाली के लिए मना कर दिया कि जब सोना होगा हम खुद लगा लेंगे। उसके पीछे पीछे वेटर आया, चाय कोल्ड ड्रिंक और नाश्ता लेकर… फोल्डिंग टेबल सेट करके वो सामान लगा कर चला गया।
चाय शुरू की ही थी कि टिकट चेकर भी आ गया और हमारे टिकट सही करके चला गया।
चाय नाश्ते के दौरान मैंने राजे से कुरेद कुरेद के उसकी सभी रानियों की सब हिस्ट्री पूछ डाली। वैसे तो वो मुझे पचास साठ बार चोद चुका था मगर खुल के तसल्ली से बातचीत कभी नहीं हो पाई थी। होती भी कैसे? मुझसे मिलते ही तो ये मादरचोद या तो चूचे या पैर या हाथ चूसने चाटने लगता है या फिर बाँहों में दबोच के चुम्मी के पीछे चुम्मी दागता रहता है। उसके पश्चात् चुदाई और सिर्फ चुदाई। तो बातचीत कब करें?
चुदाई से हट कर इस चोदूराम का ध्यान किसी और चीज़ में लगाना असंभव सरीखा है।
सब पूछताछ से मुझे पता चला कि बाली दीदी राजे के रानी साम्राज्य की सबसे बड़ी रानी हैं, उनको पटरानी भी कह सकते हैं। उनके बाद नम्बर आता है महारानी अंजलि का… वो असलियत में सब रानियों पर ही नहीं राजे के दिल पर भी राज करती है। सब रानियां भी अपनी प्राइवेट बातें अंजलि महारानी से शेयर करती हैं।
पटरानी जी बाली दीदी के पास तो कोई भी मामला तभी पहुँचता है जब सब रास्ते बंद हो जाएं। उसके बाद उनका आदेश मानो पत्थर पर लिखा हुआ ब्रह्माजी का वचन है, सबको बिना कोई चूं चपड़ किये मानना ही है। राजे खुद कभी भी रानियों के आपसी मामले में नहीं पड़ता। कोई मसला है तो या तो रानियां आपस में खुद सुलझा लें, नहीं तो महारानी से बातचीत करें। आखिर में सुप्रीम कोर्ट है ही बाली दीदी का दरबार।
वैसे राजे ने यह भी बताया कि आज तक कोई भी बात सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। महारानी अंजलि सब पेंच सुलझा देती हैं।
कुल मिला के मेरी समझ में आ गया कि राजे के साम्राज्य में यदि रहना है तो दोनों बॉस रानियां यानि कि पटरानी बाली दीदी और महारानी अंजलि के साथ हर हालात में निभा के रहना है। मैंने भी तुरंत फैसला कर लिया कि मैं दोनों को निष्ठा के साथ इतनी इज़्ज़त दूंगी कि जिस से ये सदा मुझसे संतुष्ट रहें। यदि वो राजे की बॉस हैं तो मेरी तो सुपर बॉस हो गयी ना!
वैसे सच कहूँ तो मैं इस व्यवस्था से बहुत खुश थी, कई बातें हम लड़कियां मर्दों से नहीं करना चाहतीं। तो मेरे पास तो सहारे के लिए दो दो सीनियर हों तो बहुत अच्छा ही है। मेरी बाली दी से तो नहीं मगर अंजलि महारानी से एक या दो बार बात हुई होगी। मुझे तो वो बहुत ही अच्छी लगी।
जितनी बातचीत मेरी रीना और रेखा से हुई है तो वो भी अंजलि महारानी से बहुत खुश रहती हैं और उसका सम्मान भी करती हैं।
राजे ने स्वर्गीय चंदा दीदी के बारे में खुल के बताया, अंजलि से पहले चन्दा दीदी ही महारानी थीं, रेखा के सिवा उनसे कोई भी मेरी जान पहचान वाली रानी नहीं मिली थी। उनकी बात करते हुए राजे की आँखों में आंसू आ गए। वो बेचारा इतना ज़्यादा प्यार करता था चन्दा दीदी से। मेरा ही दुर्भाग्य है कि मेरे राजे के जीवन में आने से पहले ही वो दिवंगत हो गई।
बाली दीदी से मिलने का सौभाग्य तो कल मुम्बई जाकर प्राप्त हो ही जाएगा। ये बातें इतने विस्तार से लिखने का एक विशेष कारण है, बहुत सी लड़कियां राजे की कहानियां पढ़ने के बाद उससे चुदी हैं और उसकी रानी बन चुकी हैं। उन सबको राजे के रानी साम्राज्य की ये सब बातें ज्ञात नहीं होतीं, तो उनसे गलती हो सकती है। कोई और भी लंडखोर चुदक्कड़ लड़की राजे की रानी बनना चाहे तो वो भी ये बातें ध्यान से पढ़े और भली भांति समझ ले!
यह कहानी मैं अपनी दोनों सुपर बॉस रानियों को समर्पित कर रही थी, परंतु बाली दीदी ने आदेश दिया इसलिए मैं इसे चूतनिवास राजे की बेगम साहिबा, मल्लिका-ए-आलिया एवं हम सब रानियों की महान महारानी अंजलि को आदरपूर्वक समर्पित करती हूँ। महारानी जी, यदि कोई यदि कोई त्रुटि रह जाए तो प्लीज अपनी इस मूर्खा बहन को क्षमा कर दीजियेगा। मेरा वादा है कि आपको मेरी ओर से कभी भी आपको सम्मान देने में कोई कमी नहीं मिलेगी। यदि मिले तो आपकी जूती और मेरा सिर!
चाय नाश्ता खत्म हो चुका था और वेटर आकर टेबल साफ करके चला गया। राजे ने उसको पचास रुपए की बख्शीश भी दी। जैसे ही वेटर गया, राजे ने कूपे का दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझे आलिंगन में बांध के बोला- मोना रानी, अब दो घंटे तक कोई नहीं आएगा… बहनचोद अब बस डिनर आएगा साढ़े सात या आठ बजे… चल अब ले मेरी एक लम्बी सी चुम्मी!
मैंने तुरंत ही उसका सिर पकड़ के मुंह नीचे करके उसके होंठ से अपने होंठ लगा दिए। कमीने ने झट से अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दी और मैं मस्त हो कर उसे चूसने लगी। अब वो जीभ से मेरे मुंह को चोद रहा था, अंदर बाहर अंदर बाहर जीभ लपलपा रही थी। आनन्द में मतवाली होकर मेरी चूत भी जाग चुकी थी और गरमा के, रसा के जताने लगी थी कि मैं भी हूँ मैदान में!
उसके हाथ मेरे मम्मों से खेलने लगे और मैंने उसके लंड को दबाना शुरू किया। पैंट के ऊपर से भी लौड़ा दबाने में बड़ा आनन्द आ रहा था। धीमे से मैंने पैंट की ज़िप खोल दी और लंड बाहर निकालने की चेष्टा करने लगी। राजे ने मेरी हाथ बढाकर मेरी मदद की और गप्प से खड़ा हुआ लंड उसके अंडरवियर से बाहर उछल आया।
मैंने उस मूसल से लौड़े को थाम लिया और धीरे धीरे दबाते हुए सहलाने लगी। लंड की सुपारी नंगी करके मैंने सुपारी को हौले से रगड़ा। राजे ने मस्ता के कूऊँऊँऊँऊँ.. की आवाज़ निकाली और दनादन लंड को तुनके मारे।
फिर मादरचोद ने इतने ज़ोर से मेरे मम्मे उमेठे कि यदि उसकी जीभ मेरे मुंह में फंसी हुई न होती तो मेरी चीख निकल उठती। साला हरामी कहीं का! मैंने भी हौले से उसके अंडे दबाये, तो मादरचोद ने और ज़ोर से मेरे चूचुक निचोड़ डाले।
चूत में मानो एक चिंगारी सी सुलग उठी, मेरा दिल हुआ कि इस हरामी मूसलचंद को प्यार करूँ, सहलाऊँ, चूमूँ, चाटूँ और दुलारूँ! इस मूसलचंद ने कितनी सारी चूतें प्रसन्न की हैं। अब तक अड़तीस को चोद चुका है ये चूतनिवास का लौड़ा।
मैंने राजे की छाती पर हाथ रखकर उसे पीछे को धकेला तो उसने जीभ मेरे मुंह से निकाल ली। पहले तो मैंने दो तीन गहरी गहरी साँसें लीं। मादरचोद ने इतने ज़ोर से मुझे दबोचा हुआ था कि सांस भी लेने में दिक्कत हो रही थी।
फिर मैं लपक के झुकी और बर्थ पर बैठ के मूसलचंद को मुंह में ले लिया, मेरे हाथ राजे के टट्टों को सहला रहे थे, इस चोदू लंड को मुंह में घुसा के बड़ा आनन्द मिल रहा था।
मैंने लंड के सुपारी पर जीभ फिराई तो राजे तो मज़े में मस्ताया ही, मैं भी चुदास से भर उठी। फिर मैंने लौड़े को जड़ से पकड़ के हौले हौले सुपारी को ढकने वाली चमड़ी आगे पीछे करनी शुरू की। लौड़ा तुनक तुनक के मेरे मुंह में ऊपर नीचे टक्कर मारने लगा।
राजे के मुंह से सीत्कार निकलने लगी, मैं मज़े से चूर होकर टोपे के छेद में जीभ से टुकुर टुकुर करने लगी, राजे ने मस्ती में डूब के किलकारी भरी और नितम्ब हिला हिला के लंड से मेरे मुंह को चोदने की चेष्टा करने लग पड़ा।
मैंने लंड को मुंह से निकाल के बड़े दुलार से निहारा। बहनचोद आंखें हरी हो गयई, फूल के कुप्पा हुआ गुलाबी सुपारा, तन्नाया हुआ लौड़ा जो मेरी लार में पूरी तरह भीग के सना हुआ था। क्या करूँ, बहनचोद जब लंड मुंह में लेती हूँ तो लार भी तो खूब निकलती है। फिर मैंने सुपारी पर जीभ फिराकर और फिर पूरे लौड़े पर नीचे से ऊपर तक जीभ फिरा के स्वाद लिया, एक एक करके दोनों अंडे मुंह में लेकर धीमे धीमे चूसे।
मज़े से पागल राजे अब मोटी मोटी गालियाँ बकने लगा था- हरामज़ादी रंडी… तेरी बहन को चोदूं कुतिया… तेरी माँ को सड़क पर नंगी नचाऊँ बहन की लोड़ी… मादरचोद, हराम की जनी वेश्या.. बाप का लंड चूसने वाली बद्ज़ात रंडी… इत्यादि!
साला.. मुझे पचासों बार चोद के कुत्ते का दिल नहीं भरा कि मेरी माँ और बहन को भी चोदेगा कमीना। चोद सके तो चोद ले बहन का लंड। आखिर उनकी चूतें भी तो चुदने के लिए ही हैं, न कि पेटीकोट के अंदर सजाने के लिए।
कभी जीभ से लंड चाट के तो कभी टोपा चूस के मैं मूसलचंद की चुसाई का मज़ा उठाने लगी। मुंह से लार टपकने लगी थी, सांसें उखड़ने लगी थीं और बदन में तपन महसूस होने लगी थी।
अचानक से मैंने मचल के पूरा का पूरा लंड मुंह में घुसा लिया, यहाँ तक कि सुपारा मेरे गले में जाकर टकराया। होंठों से लौड़े को दबाते हुए मैंने लंड को मुंह के भीतर पूरा लिए लिए चूसना शुरू कर दिया। राजे की गालियाँ बदस्तूर जारी थीं, उसने मेरे बाल जकड़ के कई धक्के भी मुंह में ठोके।
इधर मेरा हाल बिगड़ने लगा था, एक तो राजे की छेड़खानी से भरी हुई शरारतबाज़ी ने पहले ही मुझे काफी गर्म कर रखा था और ऊपर से लंड चूसने के आनन्द ने मेरी चूत में उत्तेजना की तीव्र तरंगें उछाल मारने लगीं। चूत अब व्याकुल हो चुकी थी और मूसलचंद को लीलने को तत्पर थी।
लंड के सूराख से थोड़ी थोड़ी देर में छलक के आती हुई एक एक बूँद जब मैं जीभ पर लेती तो ये तरंगें और भी अधिक तेज़ हो जातीं। लंड चूस चूस के मैं तो निहाल हो चली थी, समझ में नहीं आ रहा था कि चूसे जाऊँ या चूत की गर्मी शांत करूँ।
लंड तो एक ही था, इसलिए मुझे जल्दी से फैसला करना था कि मुंह और जीभ को चूसने चाटने का आनन्द दूँ या चूत को चुदने का। मुंह भी मेरा और चूत भी मेरी। क्या करूँ, क्या न करूँ?
परंतु बुर की लगातार भीषण रूप से बढ़ती हुई उत्तेजना ने यही निश्चय करवाया कि मुंह और जीभ तो काफी मज़ा लूट ही चुके हैं तो अब चूत की बारी है।
लौड़ा मुंह से बड़े बेमन से निकाल के मैंने हांफते हुए कहा- राजे, अब तो चूत को शांत करने का वक़्त आ गया है… ये हरामज़ादी चूत पागल करे दे रही है… चल बहन के लौड़े चुपचाप लेट जा… आज मैं तेरी चुदाई करती हूँ!
यह कह कर मैं उठ के खड़ी हो गई और राजे को खींच के बर्थ पर लिटा दिया। जल्दी जल्दी से मैंने उसकी पैंट खोली और अंडरवियर सहित घसीट के घुटनों तक ले आई। उसे पूरा नंगा करने का सबर मुझ में नहीं था, झट से मैं भी बर्थ पर चढ़ गई और अपनी जीन्स लूज़ करके पेंटी समेत उतार दी।
ये सब मैंने पलक झपकते ही कर डाला, चुदाई के लिए मैं भयंकर रूप से व्याकुल थी और एक एक पल मुझे पहाड़ समान लग रहा था। राजे का लंड किसी सूले की भांति तन्नाया खड़ा हुआ था। बिना एक भी क्षण गंवाए मैं राजे पर चढ़ गई और सुपारा चूत पर टिका के लौड़े पर बैठती चली गई जब तक कि लंड जड़ तक चूत में घुस नहीं गया।
पानी पानी हुई बुर में लौड़ा सरसराता हुआ आराम से घुसता चला गया। मैं इस तेज़ी से लंड पर बैठी थी कि सुपारा इतने ज़ोर से मेरी यूटेरस से ठुका कि जिसकी धमक मेरे कलेजे तक पहुंची ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
राजधानी एक्सप्रेस 120 की गति से भागे जा रही थी और मैं भी उसी सरीखी रफ़्तार से उछल उछल के धक्के पे धक्का टिका रही थी। चूत से लगातार बहते हुए रस से फिच्चच… फिच्चच… फिच्चच.. होती जैसे ही लौड़ा धम्म से भीतर घुसता।
मज़े के मारे मेरे मुंह से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकलने लगीं। आंखें मुंद गयीं, चेहरा पसीने से तर हो गया, सारा बदन तमतमा उठा और मैं अत्यंत तीव्रता से चरम सीमा की ओर बढ़ने लगी। तभी मादरचोद राजे ने मेरे चूचे एक एक हाथ में थाम लिए और उनको ऐसे दबाने लगा जैसे भोम्पू बजाया जाता है।
धक्के लगाने के लिए ज्यों ही मैं उछल के लंड को सुपारी तक बाहर करती, फिर धमाक से नीचे को आती और लौड़ा पिच्च से भीतर जाता, उसी पल राजे मम्मे खींच के मुझे आगे को सरका लेता जिसके कारण लंड का ज़ोरदार दबाब चूत में आगे की साइड में होता। कभी वो चुचूक से धकेल के मुझे पीछे को सरका देता तो लंड का दबाब चूत की पिछली वाली साइड में पड़ता। और इसके साथ साथ चूचों पर तो ज़ोर का खिंचाव पड़ता ही।
इस ज़बरदस्त चुदाई से मतवाली हुई मैं उत्तेजना के तूफान में ऊपर, ऊपर और ऊपर उड़ी चली जा रही थी मानो आकाश को छू लूंगी। मैं सरपट धक्के मारे जा रही थी। फिच्च फिच्च फिच्च फिच्च फिच्च फिच्च फिच्च फिच्च फिच्च… ट्रेन तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर दौड़े जा रही थी और मैं अपनी मंज़िल की ओर!
उधर राजे सख्ताई चूचियों को यूँ दाएं बाएं निचोड़ रहा था जैसे आज उनको मेरी छाती से उखाड़ के ही दम लेगा। उसके चूतड़ भी मचल मचल के मेरे धक्कों की ताल से ताल मिला रहे थे। अचानक से न जाने क्या हुआ कि मैंने चुदास की ऊष्मा से बदहवास होकर जो ताबड़तोड़ धकमपेल मचाई तो मुझे लगा कि मेरी उड़ान रुक गई और मैं नीचे गिरे जा रही हूँ… बहुत तेज़ी से मुझे गिरने का अहसास हो रहा था।
धक्के रुक गए थे और सांस धौकनी की भांति भैं भैं भैं भैं भैं की तरह चलने लगी थी। और तब मैं गिरते हुई थम सी गई और चूत से एक तेज़ बौछार जूस की छूट गई… बड़े ज़ोर से मैं झड़ी, न जाने कितनी बार… स्खलित होने की एक तरंग तेज़ी से आती और पीछे पीछे दूसरी, फिर तीसरी, फिर चौथी… फिर न जाने कौन सी?
चरम सीमा के उस पार मैं बड़ी ज़ोर से गिरी थी, बेसुध सी होकर पसीने में लथपथ, मैं राजे पर ढेर हो गई। उसका लौड़ा खड़ा हुआ मेरी चूत में फंस हुआ था जिससे बुर भरी भरी सी महसूस हो रही थी। वो मादरचोद अभी तक नहीं झड़ा था। यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
कुछ समय तक मैं इसी प्रकार राजे के ऊपर पड़ी रही और वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियां फिराता रहा। फुसफुसाते हुए बोले भी जा रहा था, प्यार से भरी हुई बातें- रानी तू बहुत मस्त चुदाई करती है… हाय मेरी जान, मैं तुझ पे कुर्बान जाऊँ… तू तो मेरी जान है मोना रानी… तूने मुझे दीवाना बना दिया है जानू… कितनी हसीन है तू कुतिया… तेरे जैसी चोदने वाली कोई और नहीं सकती रानी… मादरचोद रांड तुझे तो मैं नंगी करके सरे बाजार चोद दूंगा… कमीनी कहाँ से सीखा तूने इतना मज़ा देना… बहन की लोड़ी तू सच में लड़की नहीं स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा हैं… हाय मेरी जान… दिल करता है तुझे चौबीसों घंटे प्यार करता रहूँ… इत्यादि इत्यादि।
यह जानते हुए भी कि ये चूत निवास न जाने कितनी रानियों को यही शब्द बोल चुका होगा, मैं सुन सुन कर खुश हो रही थी। जी करता था कि सुने ही जाऊँ और चूत में घुसे हुए लौड़े के तुनके महसूस किये जाऊँ।
मैं भी मस्त हो के चूत को लपलपाने लगी ताकि जब राजे लंड तुनकाए तो चूत भी बन्द खुल बन्द खुल होकर कर लंड को मज़ा दे। थोड़ी देर के बाद मुझे ख्याल आया कि राजे को भी झाड़ना चाहिए। मैं इतनी खुदगर्ज़ हो गई थी जो खुद तो पूरी मस्ती लूट ली और उसे अधूरा छोड़ दिया। मैंने खुद से कहा कि अब मैं राजे का लंड चूस के मुंह में झाड़ूंगी, चूत ने तो मज़े भोग लिए इसलिए अब मुंह की बारी थी।
मैं धीरे से उठी और राजे की टांगों पर बैठ कर सिर झुककर लंड की चुम्मियां लीं। चूत के जूस से लंड खूब तर था, लंड चाटते हुए अपनी ही बुर का पूरा स्वाद भी मिल गया। चिकना चिकना हल्का सा नमकीन मेरी अपनी ही चूत का रस था। आनन्द आ गया बहनचोद!
राजे को चुदाई का जन्नत जैसा नज़ारा देने के इरादे से मैंने सुपारी नंगी करके उसको मुंह में ले लिया और होंठों से दबाते हुए जीभ फिर फिर के चूसने लगी। राजे ने एक किलकारी मारी और मेरे बाल मुट्ठी में भींच लिए।
मैंने राजे के चूतड़ दोनों हाथों से जकड़ लिए और उनको धक्के दे देकर अपना मुंह चुदवाने लगी। राजे से मैंने पहले ही बोल दिया था कि तू चुपचाप मज़े लेगा और खुद कुछ नहीं करेगा। अब तू और तेरा ये मूसलचंद मेरा है और जो मेरा जी चाहेगा मैं करूँगी। राजे इसी आदेश के मुताबिक कोई हरकत नहीं कर रहा था, सिर्फ मज़े में चूर होकर गालियाँ बक रहा था।
राजे के नितम्ब भींचे हुए मैं कभी तेज़ तेज़ धक्के ठोकती कि लौड़ा गले में ठुकता तो कभी मैं धीमे धीमे लौड़ा चाटती। चूत रस से सने हुए लंड को चाटने में बेहद आनन्द आ रहा था। राजे भी हरामी का पिल्ला खूब मज़े ले लेकर लंड को बार बार तुनके दे रहा था।
काफी देर तक मैं उसके लंड को चूसती रही, चाटती रही और बीच बीच में धक्के मारती हुई मुंह को चुदवाती रही। अब राजे का बदन सिहरने लगा था। लंड का सुपारा बहुत अधिक फूल गया था, मेरी समझ में आ गया था कि राजे अब चरम सीमा कि ओर अग्रसर है। मैंने उसके चूतड़ों में नाख़ून गड़ा दिए और दनादन उनको आगे पीछे करते हुए उसका लंड मुंह से चोदने लगी।
यकायक राजे का बदन बड़े ज़ोर से थरथराया, एक ऊँची चीत्कार उसके मुंह से निकली और उसने मेरे केश जकड़ के आठ दस ऐसे ज़बरदस्त धक्के मारे कि लगने लगा मानो आज तो बेटीचोद मेरा गला फाड़ के ही दम लेगा।
‘मोना रानी, मोना रानी, मोना रानी, मेरी जान मोना रानी…’ कहते हुए राजे ने आआआआह्ह भरी और उसका लंड एक ज्वालामुखी की भांति फटा, ढेर सारा वीर्य लंड ने मेरे मुंह में उगल दिया, गर्म गर्म चिपचिपा वीर्य बड़े बड़े लौंदों के रूप में झड़ा।
अहा अहा अहा… क्या स्वादिष्ट था लावा मेरा राजे का… अहा अहा अहा… साले ने मुंह ही भर दिया। झड़े जा रहा था लौड़ा तुनक तुनक के। मैं भी मलाई को अच्छे से मुंह में घुमा घुमा के पूरा आनन्द ले रही थी।
जब मसाला निकलना बन्द हो गया तो मैंने लंड की नसें दबा दबा के बची खुची 8-10 बूंदें भी निकाल डालीं। मेरे प्यारे दुलारे मूसलचंद की मलाई निगल के मानो जीवन ही सार्थक हो गया, चरम आनन्द से मन सराबोर हो उठा।
राजे एक लंबी दौड़ से थके हुए घोड़े की भांति बर्थ पे पड़ा हुआ हांफ रहा था। उसके प्रति बहुत अधिक प्यार से भर के मैंने लंड को भली भांति साफ़ किया और राजे के मुंह पर चुम्मियों के पीछे चुम्मियां दाग दीं।
राजे ने मुझे बाँहों में लिपटा लिया और फिर हम दोनों आलिंगन में बंधे बंधे सो गए। चलती ट्रेन में चूत की चुदाई की कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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