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इस हिन्दी सेक्स कहानी के पिछले प्रकरण में अपने पढ़ा की कैसे एक जागरण में जाकर न चाहते हुए भी मेरे मन की और तन की अधूरी मुराद पूरी हो गयी थी, अब आगे..
आखिर वो मंगलवार के दिन का सूरज उग आया, जिसका मुझे पिछले कुछ दिनों से इंतज़ार था। पर इंतज़ार अभी पुरा ख़त्म नहीं हुआ था। असल इंतज़ार तो आज रात के जागरण का था। मैं एक मीठी मुस्कान के साथ उठी और एक उत्साह के साथ रोज़मर्रा के कामों में लग गयी।
दोपहर को मैं रात की तैयारी में लग गयी, मैंने चेहरे पर उबटन लगाया ताकि मेरा चेहरा ओर खिल जाए। फिर अपने पुरे शरीर का वैक्सीन किया ताकि सारे अनचाहे बाल निकल कर त्वचा चिकनी हो जाये।
आज तो समय भी जैसे धीरे धीरे बीत रहा था। जब किसी का बेसब्री से इंतज़ार होता हैं तो समय ऐसे ही परीक्षा लेता हैं।
शाम का खाना खा लेने के तुरंत बाद ही मैंने सजना सवरना शुरू कर दिया था। जैसे किसी जागरण में नहीं किसी शादी में शिरकत करनी हो।
अभी एक घंटा बाकी था जाने में और मैंने अंदर से अपनी पसंदीदा गुलाबी साड़ी निकाली, फिर पहले ही बनाये प्लान के मुताबिक अंदर से वो महंगे वाले डिज़ाइनर अंतवस्त्र निकाले जो मेरे पति कुछ ख़ास मौको पर उन्हें रिझाने के लिए पहनने को कहते थे।
मैं क्या, कोई भी स्त्री उन खूबसूरत अंतवस्त्रों में बहुत कामुक और हसीन लगती। अब मैंने साड़ी पहन ली। फिर से मैं अपना मेकअप करने लगी। मैं सारी तैयारी ऐसे कर रही थी जैसे जागरण नहीं सुहागरात हो। ओरो के लिए वो जागरण था पर मेरे लिए तो सुहागरात ही थी।
एक बार फिर से सासु जी की चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी, तैयार हो गयी क्या। इतनी तैयारियों में ध्यान ही नहीं रहा कि कब वो समय हो गया जिसका मुझे कब से इंतज़ार था।
वहां पहुंच कर मेरी नजरे लगातार मोहित को ढूंढ रही थी, जिसके लिए लिए मैंने आज सुबह से इतनी तैयारियां की थी। पर वो मुझे कही दिखाई नहीं दिया। तभी भाभियो ने अपने कक्ष में बुलाया। आज वहाँ इतनी भीड़ नहीं थी।
अब हम लोग आपस में बातें करने लगे। दोनों भाभियाँ कह रही थी कि आज उनके इस कमरे पर दूसरी औरतों का कब्जा होने वाला हैं। उनके कुछ ख़ास रिश्तेदार दूसरी औरतों से अलग उस छोटे कमरे में सोना चाहते थे।
तभी सामने से मोहित ने इठलाते हुए कमरे में प्रवेश किया। मैं ऐसे शरमाई जैसे नई नवेली दुल्हन का पति आ गया हो। उसने अपनी पत्नी को बताया कि उन्होंने जो काम सौपा था वो करके आया हैं। फ़िर वो वापिस बाहर अपने दूसरे कामों के लिए चला गया।
भाभी ने बताया कि वो लोग इस भीड़ में नहीं सोयेंगे बल्कि छत पर सायेंगे। उनका पति उसी इंतज़ाम की बात कर रहा था। मुझे एक गहरा धक्का लगा, अगर यह सब भी ऊपर सोयेंगे तो मेरे अरमानो का क्या होगा।
मुझे अपनी दिनभर की सारी तैयारियां व्यर्थ होती नज़र आयी। मुझे मोहित पर भी बहुत गुस्सा आया, वो ये कैसे कर सकता हैं। क्या इसमें सिर्फ मेरा ही फायदा था, उसका भी तो फायदा था।
उन्होंने मुझसे आग्रह किया की मैं भी इस भीड़ में ना रहु और उनके साथ ही ऊपर सो जाऊ। उन्हें कैसे बताती कि मेरा उनसे भी पहले ऊपर सोने का ही प्लान था।
काफी देर बातें करने के बाद, दूसरी औरतें उस कमरे में आने लगी, तो हम लोग बाहर निकल आये। अब सबके सोने का समय हो चुका था। पिछली बार की तरह इस बार भी सुबह 5 बजे का मुहर्त था।
मैं, दोनों भाभियाँ और उनकी एक सहेली के पीछे पीछे छत पे जाने के लिए सीढिया चढ़ने लगे। तभी मोहित आ गया और मेरे पीछे चलने लगा। इस दौरान उसने बड़ी बेशर्मी से मेरे कमर को छुआ और मेरे पुट्ठो पर हाथ फेरता रहा।
मुझे ख़ुशी तो हो रही थी साथ ही साथ गुसा भी आ रहा था कि उसने मेरे साथ ये धोखा क्यों किया। वो कुछ ओर इंतज़ाम कर सकता था हम दोनों के लिए।
अब हम छत पर पहुंच गए, मोहित ने दरवाज़े पर कुण्डी लगा ली ताकि कोई ओर ना आ सके। वहा तीन मच्छरदानियाँ लगी थी तीन गद्दों के साथ।
बढ़ी भाभी अपनी सहेली जो शायद उनकी बहन थी के साथ एक गद्दे को हथिया लिया। छोटी भाभी जो मोहित की पत्नी भी थी ने मुझे अपने साथ सोने का निमंत्रण दिया।
मोहित ने पीछे से आँख से इशारा करते हुए हुए मुझे ना करने को कहा। मैं अब उसकी बात क्यों मानु? मैं वही करुँगी जो मैं चाहती हूँ। मैं कहना चाहती थी मेरी इच्छा आपके साथ सोने की नहीं बल्कि आपके पति के साथ हैं।
फिलहाल मैंने मना कर दिया, और कहा कि आप अपने पति के साथ सो जाइये, मैं आखिरी गद्दे पे अकेले सो जाउंगी। वो भी शायद यही चाहती थी।
वो लोग अब आपस में कुछ मजाक मस्ती की बातें कर रहे थे। सारे मजाक मोहित की तरफ से ही आ रहे थे और बाकी लोग सिर्फ हंस रहे थे। मैं मन ही मन कुढ़ रही थी इसको तो जैसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा था।
मैं चुपचाप अपनी किस्मत को कोस रही थी। मैं आसमान को निहारते हुए सोच रही थी कि पुरे दिन भर जो तैयारियां की थी वो सब व्यर्थ हो गयी थी। इतने दिनों के इंतजार का यह फल मिला मुझे।
मैने देखा वो अब उन लोगो को कुछ बाँट रहा था। पता चला हाजमे की गोलियां थी। गोली देते हुए वो मजाक में कह रहा था। मुझे उसके मजाक अब सजा लग रहे थे।
सबको गोली देने के बाद उसने मेरी तरफ भी एक गोली बढ़ा दी। मुझे लगा हाजमे की गोली नहीं बेवकूफ बनाने की गोली दे रहा था। मैंने गोली मुंह में रखी और चूसने लगी। सोचने लगी क्या में फिर नीचे चली जाऊ, अब यहाँ रुकने का क्या फायदा। थोड़ी देर के बाद सारी बातें शांत हो गयी थी। मैं भी अब पलट कर सो गयी और मेरी आँख लग गयी।
अचानक मेरी आँखें खुली, कोई मेरे गद्दे पर था और मुझे पीछे से चिपक कर सोया था। उसके हाथ मेरे वक्षो के ऊपर थे। क्या यह वो ही था, पर ये कैसे हो सकता हैं? इतने लोगो, खासकर अपनी पत्नी के वहाँ होते हुए उसकी ये हिम्मत नहीं हो सकती थी।
मैंने थोड़ा पलटकर देखा वही था। मैं तुरंत उठ बैठी और एक निगाह दूसरे गद्दों पर डाली, सब लोग गहरी नींद में थे। ना चाहते हुये भी मैंने इशारों में उसे समझाया कि वहाँ और भी लोग हैं और उसे वापिस अपनी पत्नी के पास जाना चाहिए।
वो एक शरारती मुस्कान के साथ मुझे नज़रअंदाज़ कर रहा था। अब मुझे खतरा महसूस हुआ, अपनी जिद से वो पिछली बार की सारी पोल खोल देगा।
उसने मुझे फिर से लेटा दिया और धीमे से कहने लगा वो लोग अब इतनी जल्दी नहीं उठेंगे। उसने बताया कि बाकियो के ऊपर छत पर सोने का कार्यक्रम दिन में ही बन गया था इसलिए उसने हाजमे की जगह नींद की गोलिया दी थी फ्लेवर वाली। हम दोनों ने जो गोली गयी वो बिना दवाई की थी।
मैं उसके तेज दिमाग की कायल हो गयी। वो बोला बाकि लोग अगले 3-5 घंटे तक नहीं उठेंगे, क्या मेरे लिए इतना वक़्त काफी हैं। मैंने शरमाते हुए कहाँ आपकी इच्छा हो तो सुबह तक भी कर सकते हैं। इतना सुनते ही उसने मेरे वक्षो को फिर से भींच लिया।
अब मुझे कही न कही यकीन हो गया कि मेरी श्रृंगार की मेहनत फ़ालतू नहीं जाएगी। उसने मेरी साड़ी ऊपर से हटा दी, और एक हाथ से ब्लाउज के हुक खोलने लगा। फिर मेरा ब्लाउज निकाल कर रख दिया। अब वह मेरा डिज़ाइनर ब्रा पर हाथ फिराते हुए मजे ले रहा था।
शायद उसको यह बहुत पसंद आया था। आता भी क्यों नहीं, उसकी डिज़ाइन और रंग ही इतना कामुक था किसी को भी ललचाने के लिए। उसे वो इतना पसंद आया कि उसे खोलने की कोशिश भी नहीं की।
अब उसके हाथ नीचे की और गए और मेरी साड़ी को पेटीकोट से अलग कर दिया। अब तो जैसे उसे महारत हासिल हो गयी थी। अब बारी मेरे पेटीकोट की थी।
उसने नाड़ा खोल कर पेटीकोट निचे खिसकाते हुए पैरो से निकाल दिया। अब वो मेरे नीचे के डिज़ाइनर अंतवस्त्र को घूर रहा था। मेरा पैतरा काम कर रहा था। उसने शायद ऐसे अंतवस्त्र पहले कभी नहीं देखे थे। वह उनपर हाथ फिराने लगा।
मुझे लगा वो उन वस्त्रो को मेरे लेटने की वजह से सही ढंग से नहीं देख पा रहा होगा। मैं उठी और मूर्ति की तरह अलग अलग मुद्राये बनाती गयी और अपने बदन को उन अंतवस्त्रों के साथ नुमाइश करके उसको उत्तेजित करने लगी।
उसकी हंसी अब ओर चौड़ी हो गयी और जैसे लार टपकाने लगा। वह तुरंत मेरे समीप आया और घुटनो के बल बैठ गया। अब वो मेरे वेक्स किये हुए टांगो पर अपने हाथ फिराने लगा। मेरी चिकनी टांगो पर उसके हाथ फिसलते जा रहे थे। इन चिकने टांगो के स्पर्श से उसे मजा आने लगा।
मेरी नजर पास के गद्दों पर पड़ी, क्या नींद की दवाई बराबर असर करेगी, इनमे से कोई जाग गया और कुछ देख लिया तो मेरा क्या होगा। तभी उसके दोनों हाथ ऊपर आये और मेरे नीचे के डिज़ाइनर अंतवस्त्र को उतार कर अलग कर दिया। मेरे बिना बालों के नाजुक चिकने अंग को देख कर उसका प्यार उमड़ आया और उसे चूमने लगा।
मैंने भी तुरंत अपनी दोनों टांगो को एक दूसरे से दूर कर उसे थोड़ी ओर जगह दे दी। अब उसका चेहरा मेरे प्रवेश द्वार के नीचे था, उसने अपने होठों और जीभ से मेरे द्वार को चूमना और चाटना शुरू कर दिया।
मेरे शरीर में बिजली दौड़ पड़ी। मैंने अपना शरीर ओर ढीला छोड़ दिया। वह अपनी तीखी जबान से मेरे द्वार के भीतरी दीवारों को रगड़ने लगा। मेरी आहें निकलनी लगी।
कुछ देर इसी तरह वह मुझे आनंदित करता रहा और थोड़ी देर में ही मेरा पानी छूटने लगा। अब मैंने उसे अपने से दूर किया और उसके सामने बैठ गयी।
मैंने उसका टी-शर्ट निकाल दिया, पहली बार किसी पराये मर्द के कपडे खोले थे, शायद उससे बदला लिया मुझे दो बार निवस्त्र करने का। अब मैंने उसकी पैंट भी निकाल दी।
उसके अंतवस्त्र में मुझे उभरता हुआ लिंग दिखाई दिया। मैंने अब तक उसके दर्शन नहीं किये थे। मैंने बिना वक़्त गवाए उसके अंतवस्त्र निकाल दिए, उसका लिंग कुछ उछलते हुए बाहर आ गया, जैसे कब से बाहर आने को तड़प रहा था।
मैंने अपना सर आगे झुकाते हुए उसके लिंग को अपने मुँह में ले लिया। उसकी एक हलकी आह निकल पड़ी। अब मैं अपने होठो और जीभ को आगे पीछे करते हुए उसके लिंग पर रगड़ने लगी। वह सिसकिया मारते हुए आनंदित हुए जा रहा था।
कुछ मिनटों बाद मुझे अपने मुँह में उसके गर्म नमकीन पानी का टेस्ट आया। मुझे लगा वो पूरी तरह कठोर और तैयार हैं। मैंने उसका लिंग अपने मुँह से बाहर निकाला। उसके लिंग से मेरे छेद के बीच चिकने पानी की लारो के तार बन गए।
मैंने उसको धक्का देते हुए लेटा दिया और उस पर सवार हो गयी। मैंने एक बार फिर उसका लिंग हाथ में लिया और अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठाते हुए उसको अपने योनि के आस पास ऊपर नीचे की तरफ रगड़ने लगी।
उसका चिकना अंग फिसल फिसल कर अंदर जाने की कोशिश कर रहा था। मैंने ज्यादा न तड़पाते हुए इस बार अपने प्रवेश द्वार में घुसा दिया। हम दोनों की एक साथ आहें निकल पड़ी।
अब मैं ऊपर नीचे होते हुए उस क्रीड़ा का आनंद लेने लगी। हम दोनों की सांसें तेज चल रही थी और उस सन्नाटे को चीरती हुई हमारी धीमी आहें थी।
उसने अपने बदन को एक हाथ के सहारे ऊपर उठाया और दूसरे हाथ से मेरे ब्रा का हुक खोल उतार दिया और फिर लेट गया। मेरे वक्ष अब मेरे ऊपर नीचे होने के साथ ही नाचते हुए उछल रहे थे। वह उन दोनों को बड़े ध्यान से देख रहा था।
मैंने उसके हाथों को उठाया और अपने वक्षो को पकड़ने को कहाँ। उसने वैसा ही किया और उनको मसलने लगा। थोड़ी देर बाद मैं झुकी और अपना सीना उसके सीने पर रख दिया। मेरे वक्ष अब दब चुके थे।
वह मेरे कमर पर हाथ फेरने लगा। मेरी गति थोड़ी धीमी हुई तो वह भी नीचे से झटके मारने लगा, जिससे उसका लिंग और भी गहरायी से मेरे अँदर जाने लगा।
मैंने अब अपने पाँव लम्बे कर दिए थे। हमारी आहें और भी तेजी से बढ़ने लगी। बीच बीच मैं हम एक दूसरे को होठों पर चुम्बन देते जा रहे थे।
काफी देर करने के बाद मैं थक कर रुक गयी मगर वह नीचे लेटा हुए भी झटके मार रहा था। उसने मुझे अब अपने ऊपर से हटने को कहा, मैं बिना काम पुरे हुए हटना नहीं चाहती थी पर मुझे पता था वो मेरा काम पूरा करेगा।
उसने मुझे दोनों हाथ के पंजो और घुटनो के बल बैठने को कहा डॉगी स्टाइल में। मेरे डॉगी बनते ही वो घुटनो के बल मेरे पीछे आया और एक झटके में अपना लिंग मेरे अंदर उतार दिया। तेजी से अंदर बाहर झटके मारता हुआ वो आवाज़े निकाल रहा था। वो इतना अंदर घुस गया की मेरी भी सिसकिया निकलने लगी।
थोड़ी ही देर में हमको वही चिर परिचित पानी के छपकने की आवाज़े आने लगी। उसने अब अपनी एक टांग को फोल्ड करके पंजो के बल आ गया और दूसरी अभी भी घुटनो के बल थी।
इससे उसकी झटको की ताकत दुगुनी हो गयी थी जिससे मेरी योनी के अंदर की पहुंच और गहरी हो गयी। थोड़ी ही देर में मेरी योनी के अंदर घमासान शुरू हो चूका था। झील के पानी में जैसे तेजी से बार बार डंडा मारने पर जो आवाज़े आती हैं वैसी आवाज़े मेरे अंदर से आ रही थी।
अब मैं अपने चरम तक पहुंच रही थी, मैं उसका नाम बड़ी कामुकता से लिए जा रही थी, मैं यह भी भूल चुकी थी की उसकी पत्नी पास ही में सोई हुई थी।
मेरे उसका नाम लेने से उसका जोश ओर बढ़ गया था। झटके मारना जारी रखते हुए अपने एक हाथ से मेरा वक्ष दबोच लिया। मैं तो पूरा छूटने ही वाली थी की उसने फिर लिंग बाहर निकाल दिया। मुझे थोड़ा बुरा लगा।
उसने मुझे अब बिस्तर पर सीधा लेटाया और दोनों पाँव चौड़े कर दिए। वो मेरे ऊपर लेट गया। मैंने अपना हाथ नीचे किया और उसका लिंग पकड़ कर अपने अंदर कर दिया। उसकी मशीन एक बार फिर शुरू हो गयी। हम दोनों चरम प्राप्ति की तरफ तेजी से बढ़ रहे थे। मैंने अपनी दोनों टांगो को उठाते हुए उसकी कमर पर लपेट दिया।
वो मेरी अंदर की गहराइयों में डूबता हुआ कही खो गया था पर उसकी गति लगातार बढ़ती जा रही थी। यह संकेत था उसके चरम के नजदीक पहुंचने का। चरम प्राप्ति पर मेरे मुँह से कुछ ज्यादा ही जोर से निकल गया- ओ मोहित ! वो भी तेज आहें निकलते हुआ छूट गया, हम दोनों ने एक दूसरे को कस कर झकड़ लिया। हम दोनों ऐसे ही निश्चेत पड़े रहे।
अब मैंने उठने की कोशिश की तो उसने फिर मुझे झकड़ लिया। मुझे भी यह पसंद आया। अब हम दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे। अभी तीन घंटो में कुछ समय बाकी था। उसका लिंग अब नरम पड़ कर अपने आप मेरे प्रवेश द्वार से बाहर आ गया था।
अब मैं उठी और अपने बिखरे हुए कपडे सँभालने लगी। मैं अपने नीचे के अंतवस्त्र को पहने लगी, उसने तुरंत मुझसे छीन कर उसे एक तरफ रख दिया और मुझे पीठ के बल लेटा कर अपने मुँह से मेरे निप्पल को चूसने लगा। मुझे मजा आने लगा।
वह अपना एक हाथ बराबर मेरे शरीर पर घुमा रहा था। बारी बारी से अब वो मुझे होठों पर चुम रहा था कभी निप्पल पर। मैं भी उसकी पीठ और पुठ्ठो पर अपने हाथों का प्यारा स्पर्श कर फिरा रही थी। हम कुछ देर तक ऐसे ही एक दूसरे के शरीर का आनद लेते रहे।
अब काफी समय हो चूका था और हम नींद की दवाई के साथ और रिस्क नहीं लेना चाहते थे। मैंने खड़े होकर अपने दोनों अंतवस्त्र पहन लिए। वह कपडे पहन चूका था और मुझे फिर घूरने लगा। मैंने पूछा क्या करू, ऐसे ही रहु, उसने शरारत से सर हां में हिला लिया। थोड़ी ही देर में मैंने अपने सारे कपडे पहन लिए थे।
अब मैं फिर से पहले की भांति लेट गयी। वो अभी भी मेरे गद्दे पर ही था। मैंने उसे थोड़ा धक्का लगाते हुए उसके गद्दे की तरफ धकेला। उसने कहा काम निकल गया क्या? मेरी हंसी निकल गयी। मैंने उसका शर्ट गले से पकड़ा और अपनी और खिंच कर उसके होठों पर चुम्बन कर दिया।
हम कुछ सेकंड तक एक दूसरे के होठों का रस लेते रहे। अब मैं पूरी थक चुकी थी, मेरी उबासी निकली और वो मुझे छोड़ कर बाहर निकला और वापिस आकर अपनी पत्नी के साथ गद्दे पर सो गया।
कब आँख लगी पता ही नहीं चला, एक संतुष्टि की बहुत प्यारी नींद ली मैंने उस रात। सुबह पांच बजे कुछ आवाज़ के साथ मैं जागी। मोहित अपनी पत्नी को उठाने की कोशिश कर रहा था पर वो नींद की दवाई के असर से उठ ही नहीं रही थी।
उसने झकझोड़ते हुए उसको उठाया, फिर दोनों ने मिल कर बाकी के दोनों लोगो को भी उठाया। मैं भी तब उठ खड़ी हुई। अब हम सब नीचे पहुंचे जहां पूजा में सब अपने लिए कुछ मांग रहे थे। मुझे तो मेरा वर मिल चूका था जिसने मेरी सारी मांगे पूरी कर दी थी।
आप सभी पाठकों को मेरी यह हिन्दी सेक्स कहानी कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया आप निचे कमेंट सेक्शन में जरुर लिखिए।
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