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मैं उस वक्त पढ़ता था, मेरी हाइट अच्छी हो गई थी और फुटबाल खेलने से शरीर मजबूत हो गया था। मैं हर काम दिल लगाकर करता.. पर लड़की देखते ही पैंट फूल जाती थी। इस तरफ से कितना भी ध्यान हटाता, लेकिन मेरा मन शांत नहीं होता था। जब भी मैं कहीं जा रहा होता.. और ऐसा हो जाता तो लंड को छिपाना मुश्किल हो जाता। हाल यह था कि कमीज को पैंट के बाहर निकाल लेता था ताकि आगे से ढका रहे।
बहुत आकर्षक लड़का होने के कारण क्लास की लड़कियां मुझसे बात करने की काफी कोशिश करती थीं, पर ऐसे वक्त में लड़के चिढ़ाने लगते थे.. इसलिए उन सभी से दूर ही रहता था। वैसे भी लड़कियों से बात करना मेरे बस का रोग नहीं है।
एक बार मम्मी ने एक मेड गीता आंटी को काम पर रखा। वह बहुत सुंदर नहीं थीं.. पर फिगर शानदार था। वो सांवली थीं और उनकी स्किन पर एक भी बाल नहीं था। वो लगभग तीस साल की होंगी।
मुझे सबसे ज्यादा मजा तब आता जब वह पोंछा लगाती थीं। दरअसल उस वक्त मम्मा आफिस में होतीं और पापा दुकान पर होते थे.. घर पर बस मैं ही होता था। हालांकि बाहर का दरवाजा खुला रहता, पर उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता था।
गीता आंटी सूट पहनती थीं और घर पर काम करते हुए चुन्नी उतार देती थीं। मैं जानबूझ कर ड्राइंग रूम में पढ़ने बैठ जाता और कनखियों से उनका सीना देखता रहता।
उन्होंने कभी न मेरी तरफ देखा और न कुछ खास कहा.. बस सीधी-सादी बातें करती जातीं और बात-बात पर हँसती रहती थीं। इधर हालत यह कि उत्तेजना में मुँह से बोल भी कांपते हुए निकलते थे।
कुछ दिन इसी तरह गुजरे कि पड़ोस में मेरे एक दोस्त ने हैरानी भरी बात बताई। उसने बताया कि गीता आंटी राशन लेने उन्हीं की दुकान पर आती हैं और वो बहुत गर्म माल हैं। वहाँ दुकान पर दोपहर में कोई नहीं होता.. वह बहाने से उनके शरीर में इधर उधर हाथ लगाता रहता है।
उससे यह सुनते ही मेरे मन में भी लड्डू फूटने लगे। उस दिन घर आकर मैंने प्लान बनाया और अंडरवियर के बिना ही निक्कर पहन लिया। निक्कर मुश्किल से जांघों तक आता था और खुला सा था।
मैं अपने पढ़ने की मेज पर पैर खुले कर बैठा और सामने आइना रखकर देखा तो निक्कर में साइड से मेरा डंडा दिखाई दे रहा था। मैंने निक्कर एडजेस्ट किया तो अन्दर का नजारा और साफ हो गया। एक्साइटमेंट में डंडा सख्त हो रहा था और साफ-साफ दिखाई दे रहा था। अब मैंने बड़ा आइना साइड की दीवार के साथ इस तरह रखा कि मेरे मुँह के सामने किताब हो.. तब भी सामने गीता आंटी मुझे दिखाई दें।
तभी दरवाजे की घंटी बजी.. गीता आंटी ही थीं। मैंने दरवाजा खोला.. मेरा सख्त डंडा ऊपर से ही साफ दिख रहा था। मैं घबरा रहा था कि गीता आंटी वापस तो नहीं चली जाएंगी। पर वह मेरे लंड के फूले उभार पर हल्की सी नजर मारकर अपने काम में लग गईं।
मैंने सूखे गले से पूछा- आंटी आज क्या बनाओगी? वह हँसकर बोलीं- जो बनवाओगे बना दूँगी भैया जी.. क्या खाओगे? मन किया कि कह दूँ कि आज चूत खानी है.. पर हकलाकर बोला- कुछ भी खा लूँगा। वह एक क्षण मुझे देखती रहीं.. फिर हँस पड़ीं।
‘आज बदले से लग रहे हो भैया जी।’ मेरी हिम्मत जवाब दे गई, मैं चुपचाप मेज के पास जा बैठा.. सामने एक किताब कर ली।
वह फिर काम में लग गईं।
तब तक मेरा मन कुछ कंट्राल में आ गया था। मैंने निक्कर एडजेस्ट किया.. बल्कि लाल-लाल टोपा लगभग बाहर ही निकाल लिया और आंखों के सामने किताब रख पढ़ने की एक्टिंग करने लगा।
कुछ देर बाद पौंछा लगाती हुई गीता आंटी मेज के सामने पहुँची.. मैं शीशे में से देखता रहा। पास आते ही उसकी नजर मेरी जांघों पर पड़ी और सकपकाकर उन्होंने ऊपर देखा। फिर मेरा मुँह किताब के पीछे पाकर पौंछा लगाते लगाते ही मेरी जांघों के बीच घूरती रहीं।
वह वहाँ काफी वक्त लगा रही थीं। यह देख मेरा हाल खराब था। फिर वह अपने काम में लग गईं। न मेरी कुछ करने की हिम्मत पड़ी, न उसने कुछ किया, बस रोज की तरह बातें नहीं बनाईं।
मैं मायूस तो हुआ.. पर अगले दिन कुछ और नाटक करने की सोची। मैंने अगले दिन दरवाजा खुला छोड़ दिया और गीता आंटी के आने के टाइम पर अपने कमरे मैं बिस्तर पर लेटकर लंड को सहलाने लगा। हालांकि मैं निक्कर के ऊपर से ही सहला रहा था.. पर साइड से तो वह नजर आ ही रहा था।
जैसा सोचा था वैसा ही हुआ, गीता आंटी आईं और मुझे मेरे कमरे में देख रुक गईं, किताब के नीचे से वह थोड़ी सी नजर आ रही थीं।
मैं सोच ही रहा था कि देखें वह क्या करती हैं.. कि अचानक उनका हाथ उनकी चूत पर गया और उसने एक-दो बार जोर से मसला। मैंने मौका गंवाना ठीक नहीं समझा और साइड से पूरा लौड़ा बाहर कर धीरे-धीरे रगड़ने लगा।
गीता आंटी मुड़ीं और दरवाजे की तरफ चल दीं। मेरी तो हालत खराब हो गई, मुझे लगा कि वो तो नाराज हो गई हैं। क्या करूं..
तभी चमत्कार हुआ, गीता आंटी ने बाहर का दरवाजा बंद किया और वापस आ गईं, वह रसोई में जाकर बर्तन साफ करने लगीं। मुझे लगा कि आज मौका है.. पर शुरू कैसे करूं!
मैं रसोई में गया तो गीता आंटी उसी तरह चुन्नी उतारकर बर्तन मांज रही थीं। मैंने उन्हें देख कर अनजान बनते हुए पूछा- आप कब आईं आंटी.. मुझे पता ही नहीं चला।
वह हँस कर बोलीं- आप ‘बिजी’ होंगे ना भैया जी.. मैं अभी आई बस। उसकी नजरें मेरे लौड़े पर बीच-बीच में दो-तीन बार ठहरी। मैं बेशर्मों की तरह खड़ा रहा।
वह असहज होने लगीं.. तो पूछा- कुछ दूँ भैयाजी.. अच्छा गाजर का जूस बना देती हूँ।
मैं उनके पास आकर खड़ा हो गया। मैं देख रहा था कि काम करते हुए उनके हाथ कांप रहे थे। सब उल्टा-पुल्टा हो रहा था। हाल मेरा भी बुरा था। वह गाजरें निकालने के लिए झुकीं.. तो मैंने मिक्सी निकाल दी। दिखाने को तो मैं उनकी मदद कर रहा था.. पर मैं तो मौका देख रहा था।
मैंने एक-एक करके गाजर इस तरह धोईं.. जैसे लंड की मुठ मार रहा हूँ। वह देखती रहीं और उनकी आंखें लाल होती रहीं। मैंने उन्हें गाजरें दीं.. तो हाथ छुवा दिया। मैंने पूछा- और कुछ मदद करूं? वह ऊपर वाली अलमारी खोलते हुए एक डिब्बा उठाने की कोशिश करते हुए बोलीं- वह चीनी का डिब्बा उतार दो.. मेरा हाथ नहीं जा रहा।
मुझे तो यही मौका चाहिए था। मैं उनके पीछे गया और हाथ बढ़ाकर डिब्बा उतारने लगा.. तो मेरा तन्नाया लंड उनके चूतड़ों में भिड़ गया। आहहहहह.. मेरे तो होश ही उड़ गए।
वह वैसी ही खड़ी रहीं। डिब्बा भारी था.. मैंने दूसरा हाथ भी बढ़ाया और अपना बोझ गीता आंटी पर डाल दिया। उनके गुदगुदे चूतड़ों में मेरा लंड दबा.. तो उनकी भी सिसकारी निकल गई।
मैंने डिब्बा वहीं रहने दिया और उसी पोज में लंड को गड़ाने लगा। गीता आंटी की आंखें बंद हो गई थीं। थोड़ी देर बाद वह अचानक वह पलट गईं। मेरा लंड अब उसकी जांघों में गड़ रहा था। मुझे जरा सा धक्का देकर वह जल्दी से नीचे बैठ गईं और मेरा निक्कर नीचे कर ‘गप’ से मेरे लंड का सुपाड़ा अपने मुँह में ले लिया।
आहहहहह.. आनन्द से मेरी आंखें बंद हो गईं। गीले, गर्म और मुलायम मुँह में मेरा लंड हौले-हौले सरक रहा था।
मैंने गीता आंटी का सिर पकड़ा और धक्के लगाने लगा। मुझे ऐंठते देख गीता आंटी जल्दी से उठीं और नाड़ा खोल सलवार नीचे कर दीं। उनकी चिकनी जांघें देखकर मैं होश में नहीं रहा। वह पलट गईं।
वाव.. क्या गोलाइयां थीं.. खूब मांसल, सांवली और गांड पर एक भी बाल नहीं। मैं देख ही रहा था कि वे किचन स्लैब के साथ झुक गईं और टांगें जरा सी चौड़ी कर दीं। उन्होंने कमर नीचे कर चूतड़ इस तरह उभारे कि चूत नजर आने लगी। मैं आगे आया और सुपारे को चूत की दरार में लगा दिया।
वे जरा सिसियाईं.. और कांपते हाथों से जल्दी-जल्दी मेरा लंड अपने छेद पर लगवा लिया और मुझे कमर से पकड़ कर खींचा। इस बार हम दोनों के मुँह से जोर से सिसकारी निकली। रास्ता मिलते ही मैंने जोर-जोर से रगड़कर धक्के लगाने शुरू कर दिए। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
वह मेरी रफ्तार के साथ आगे-पीछे हो रही थीं। मेरी रफ्तार बढ़ती गई। लंड जैसे भट्टी में तप रहा था। सारी रसोई में ‘फच्च-फच्च’ की आवाजें आ रही थीं। गीता आंटी ने अपना सिर अपनी बांहों पर टिका रखा था और उनका सारा शरीर अकड़ने लगा था।
मेरी आंखों के आगे भी चिनगारियां सी उड़ने लगीं और तभी जैसे मेरे शरीर का सारा लहू उबलकर मेरे लौड़े से निकलकर उनकी चूत में भरने लगा ‘आह उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओओओ.. आअ..’
मेरी आंखें के सामने से सब गायब हो गया। कुछ भी सुनाई और दिखाई देना बंद हो गया और मैं आनन्द में कांपता हुआ गीता आंटी को जोर से चांपकर उन पर लद गया।
ऐसा लग रहा था.. जैसे शरीर से जान ही निकल गई हो। आखिर उन्होंने मुझे पीछे किया। रसोई के तौलिए से अपनी चूत पौंछी और बिना आंखें उठाए बोलीं- अब अपने कमरे में जाओ भैयाजी.. आंटी आने वाली होंगी।
वह मेन गेट खोलने चली गईंम पसीने से तरबतर मैं बाथरूम में जा घुसा।
यह था मेरी जिंदगी का पहला सेक्स.. जिसे मैं कभी नहीं भूलता।
जिस तरह मुझे आपके पहली चूत चुदाई की कहानी पढ़ने में आनन्द आता है आशा है.. कि आपको भी इसमें वैसा ही आनन्द आया होगा। अपने विचार जरूर लिखिएगा। [email protected]
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