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अन्तर्वासना पर हिन्दी सेक्स कहानी पढ़ने वाले सभी पाठकों को सोनाली का नमस्कार!
मेरी सेक्स कहानी के पिछले भाग मेरे भतीजे का यौवन और मेरी अन्तर्वासना-1 में आपने पढ़ा कि कैसे बहुत दिनों के बाद मैं आलोक से मिली और फिर हमने अपनी रात को रंगीन बनाया।
अब आगे-
अगले दिन सुबह उठकर हम दोनों फिर से घर के कामों में लग गए और आज शाम तक तो रवि रोहन और अन्नू भी आने वाले थे क्योंकि अगले दिन ही सगाई का फंक्शन था।
सुबह से आलोक और मेरे बीच किसी भी प्रकार की कोई बात नहीं हुई थी। दिन में हम घर के काम कर रहे थे, तब मेरी जेठानी मुझसे बोली- आज शाम को तू मेरे साथ बाजार चलना, मुझे कुछ खरीददारी करनी है। मैंने हाँ बोल दिया।
हम लोगों ने जल्दी से अपने घर के काम ख़त्म किये और बाजार जाने के लिए तैयार हो गए। मैंने नीले रंग का प्रिंटेड सूट पहना था जिसमें मेरी खूबसूरती अलग ही छा रही थी। स्वाति और आलोक भी हमारे ही साथ जाने वाले थे।
शाम को साढ़े चार या पांच बजे हम घर से बाजार के लिए निकल लिए। हम लोग कार में बैठ कर बाजार गये थे जिसे आलोक चला रहा था और मैं उसी के बगल वाली सीट पर बैठी थी।
हम लोग काफी घूमे और खरीददारी भी की। अभी स्वाति को भी कुछ ख़रीदना था पर ज्यादा घूमने की वजह से मैं थक गई थी।
मैंने जेठानी से कहा- भाभी, मैं थक गई, अब मुझसे नहीं चला जाएगा। तो जेठानी बोली- तुम आलोक के साथ यही कार में रुको, हम लोग थोड़ी देर से आते हैं। इतना कहकर वो स्वाति के साथ चली गई।
मैं और आलोक कार में बैठ गए, आलोक बोला- चलो थोड़ी देर के लिए ही सही… हमें हमारी चाची के अकेले में दीदार हुए, वरना आप तो बहुत व्यस्त हो गई हो।
मैं आलोक से बोली- तू तो पागल हो गया है, घर पर इतना टाइम ही नहीं मिला कि तेरे साथ बात हो पाए। आलोक बोला- अब तो टाइम मिल गया ना? इतना बोलते ही आलोक ने मेरा एक हाथ पकड़कर अपनी जीन्स की ज़िप के ऊपर रख दिया और मेरे हाथों से अपने लंड को दबाने, सहलाने लगा।
मैं आलोक से बोली- आलोक, पागल हो गए हो क्या? ऐसे कार में कोई ऐसी हरकत करता है क्या? किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा वो!
तो आलोक बोला- अच्छा तो यह बात है, फिर तो कहीं सेफ जगह ढूंढनी पड़ेगी। इतना कहकर आलोक ने कार स्टार्ट की और फिर पास ही में एक अंडरग्राउंड पार्किंग में ले जाकर कार को एक कम लाइट वाली जगह पर पार्क कर दिया।
मैंने आलोक से कहा- तू तो पूरी तैयारी के साथ आया है, इतना दिमाग कैसे चला लेता है। मुझे बोलते हुए ही आलोक ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया।
बस फिर क्या था आलोक ने अपने होंठ मेरे होठों से मिला दिए और फिर हम दोनों के बीच एक प्यारा सा चुम्बन हुआ। हमारे पास समय कम था तो आलोक ने देर ना करते हुए मुझसे कहा- चाची, आप पीछे की सीट पर चली जाओ।
मैं उठकर पीछे की सीट पर चली गई, आलोक भी उठ कर पीछे आ गया, उसने कार को लॉक कर दिया और खिड़कियों को विंडो कवर से ढक दिया। आलोक ने सीट पर बैठ कर मुझे सीट पर लेटा दिया।
आज मैं कार के अंदर चुदने वाली थी और यह मेरी जिंदगी की पहली कार चुदाई थी।
मैंने आलोक से कहा- आलोक, आज नहीं, फिर कभी! कार में मैंने कभी नहीं किया, मुझे डर लग रहा है, किसी ने देख लिया तो? आलोक बोला– मेरा भी तो पहली बार है चाची! हम पहली बार ट्राई करते हैं, काफ़ी चीज़ें ज़िन्दगी में पहली बार ही होती हैं।
मैं घबरा रही थी तो मुझे देखकर आलोक बोला– चाची हम केवल अपने नीचे के कपड़े ही उतारेंगे ताकि हम आराम से चुदाई कर सकें। अगर अचानक कोई आ गया तो ऊपर के कपड़े पहने होने की वजह से हम नंगे नहीं दिखेंगे।
मैंने आलोक की बात मान ली इसलिए ऊपर के कपड़े बदन पर पहन कर चुदवाने को राज़ी हो गई।
उसने अपने हाथों से ही मेरी सलवार के नाड़े को खोल दिया और उसे मेरे घुटनों तक नीचे कर दिया। फिर आलोक ने मेरी पैंटी जो मेरी चूत से बिल्कुल चिपकी हुई थी, उसको भी उतार कर मेरी जांघों तक सरका दिया।
मेरी चूत अभी तक गीली नहीं हुई थी तो आलोक ने मेरी चूत को चाटना शुरू कर दिया। आलोक अपनी जीभ से मेरी चूत को रगड़ रहा था, हालांकि मेरी चूत पर हल्के हल्के रेशमी बाल थे जो की उसे बहुत ही मादक लग रहे थे। आलोक बार बार मेरी चूत पर थूक कर उसे गीला कर रहा था।
अब आलोक उठा और फिर अपनी उंगलियों से मेरी चूत को सहलाने लगा। वो तेजी के साथ मेरी चूत को सहला रहा था, मैं काफी उत्तेजित हो रही थी पर मेरी सिसकारियाँ मेरे अंदर ही घुट रही थी क्योंकि मुझे आवाज़ नहीं करनी थी।
जब मेरी चूत से हल्का हल्का पानी बाहर आने लगा तो आलोक उठ गया, अब उसने अपनी जीन्स को उतार दिया और फिर अपनी चड्डी को भी अपने घुटनों तक कर लिया।
आलोक का लंड जो लगभग सात इंच लम्बा था बिल्कुल कड़क हो चुका था। आलोक के लंड का टोपा बाहर को निकल आया था।
मैं अभी भी बैक सीट पर लेटी हुई थी, आलोक ने मेरी टांगों के बीच आकर मेरी सलवार और पैंटी को उतार कर अलग कर दिया और खुद टांगों के बीच घुटनों के बल बैठ गया, उसने मेरे दोनो पैरों को अपनी कमर के दोनों तरफ रख लिया।
आलोक ने देर ना करते हुए अपने लंड पर ढेर सारा थूक लगाया और उसे अपने लंड पर मलने लगा, उसका लंड अब मेरी चुदाई के लिए बिलकुल तैयार था।
आलोक अपने लंड को मेरी चूत पर लाकर रगड़ने लगा और फिर मेरी चूत के छेद पर लाकर रख दिया और फिर हौले से पहले अपने लंड का सुपारा अन्दर घुसाया और फिर अगले धक्के में आलोक ने आधा लंड अन्दर मेरी चूत में पेल दिया।
मैं सिसकार उठी ‘ऊऊह्ह माँ… उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ तो आलोक ने कहा- दर्द हुआ क्या चाची? तो मैं बोली- हाँ जरा आराम से कर ना!
मैं हल्की आवाज़ों में सीत्कार कर रही थी। फिर आलोक ने एक और धक्का मारा और फिर उसका पूरा लंड मेरी चूत के अन्दर चला गया तो अब उसने मेरी चूत में धक्के देना शुरू कर दिए।
पहले तो आलोक धीरे धीरे धक्के दे रहा था पर फिर मौके की नजाकत और वक्त को देख़ते हुए आलोक ने जोर जोर से धक्के देना चालू कर दिए। मैं उसके हर धक्के पर सीत्कार कर रही थी और कमर उठा उठा कर आलोक का पूरा साथ दे रही थी।
कुछ देर बाद आलोक के धक्कों की गति कम हो गई क्योंकि देर तक एक ही पोजीशन की वजह से वो थक गया था और यह जगह भी तो ऐसी थी को यहाँ कोई और पोजीशन नहीं बन सकती थी।
तब आलोक बोला उठा और उसने मुझे घोड़ी बनने के लिए बोला, मैं भी बिना किसी सवाल के अपने घुटनों और हाथों के बल खड़ी होकर घोड़ी बन गई। फिर आलोक अपना लंड पीछे से मेरी चूत में डालने लगा और अगले तीन चार धक्कों में आलोक का पूरा लंड मेरी चूत में उतर गया। आलोक तेजी के साथ अपने लंड से मेरी चुदाई किये जा रहा था, उसके दोनो हाथ मेरी गदराई हुई गांड को सहला रहे थे। थोड़ी देर की चुदाई के बाद में अपने चरम पर आ गई, मैं ‘आहाहाहा… अहहाह… अहहाह… अहह… आलोक… मेरा होने वाला है… आलोक…’ बोलते हुए सिसकार उठी और फिर अपनी कमर को सीट पर झुकाते हुए जोर से झड़ने लगी।
आलोक अभी भी मैदान में था, वो अभी भी लगातार धक्कों से अपना लंड मेरी चूत के अंदर बाहर करके मुझे चोद रहा था। मैं अपने स्तनों के बल सीट पर झुकी हुई थी मेरी चूत से निकलता हुआ पानी मेरी कमर से बहता हुआ मेरे सूट को गीला करने लगा पर इस बात का मुझे कोई आभास नहीं था, मैं तो बस अपनी चूत चुदाई में मगन थी।
आलोक के धक्कों से मैं लगातार आगे पीछे हो रही थी। फिर एकाएक आलोक ने भी अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी, शायद वह भी अब झड़ने वाला था। कुछ ही पलों में आलोक ने मुझे जकड़ लिया और देखते ही देखते वो ‘आहहहह… सोना… चाची…’ बोलते हुए मेरी चूत के अंदर ही झड़ने लगा। मैं उससे छूटना चाहती थी पर वो मुझे एकदम कस कर पकड़े हुए था।
आलोक के लंड से लगातार वीर्य की बारिश से मेरी चूत अंदर तक गीली हो गई थी, मेरे भतीजे के गर्म वीर्य से मेरे शरीर मैं एक अलग ही सरसराहट हो रही थी।
झड़ने के बाद आलोक मुझसे ही लिपट गया और अब हम दोनों सीट पर लेट गए, उसका लंड मेरी चूत से बाहर आ गया था।
मैं आलोक से बोली- तूने अपना पानी अंदर क्यों छोड़ा? अगर कुछ हो गया तो? आलोक बोला- सॉरी चाची, मैं खुद को रोक ही नहीं पाया और कुछ नहीं होगा चाची, मैं आपको टेबलेट ला कर दे दूँगा। आप चिंता मत करो।
फिर हम लोग उठकर अपने कपड़े पहनने लगे।
आलोक का वीर्य मेरी चूत से बाहर आ रहा था जिसे मैंने अपनी पैंटी से साफ कर लिया और फिर उसे पहन लिया। हम दोनों ने कपड़े पहने और वापस मार्केट आ गए।
थोड़ी देर बाद भाभीजी और स्वाति भी आ गई और फिर हम सब घर की तरफ जाने लगे।
रास्ते में आलोक ने एक मेडिकल पर कार रोक ली और फिर वहाँ से कुछ लेकर आया। मैं समझ चुकी थी कि वो मेरे लिए एंटी प्रेगनेंसी टेबलेट लाया है।
रात के आठ बजे हम लोग घर पहुँच गये। घर पहुँच कर आलोक ने मुझे चुपके से वो दवाई दे दी।
घर के अंदर जाने पर मैंने देखा कि रवि रोहन और अन्नू सब लोग आ चुके हैं, मैं उन्हें देख कर बहुत खुश हो गई। मुझे देखते ही रोहन मेरे गले से आकर लग गया, मैंने भी उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया। रोहन मुझसे बोला- मम्मी, मैंने आपको बहुत मिस किया।
मैंने भी कहा- मम्मी ने तुझे बहुत याद किया।
फिर हम लोग रात को खाना खा कर सो गए। रात को रोहन आलोक के साथ और अन्नू स्वाति के रूम में जाकर सो गए। मैं रवि और भाभीजी हम लोग एक ही रूम में सोए थे। जेठ जी सगाई की तैयारियों के लिए घर से बाहर थे।
इससे आगे की कहानी अगले भाग में। तब तक के लिए धन्यवाद।
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