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अब तक आपने पढ़ा.. बस में मिली वो अप्सरा मुझसे अपनी चूचियों को स्पर्श करवा रही थी। अब आगे..
अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था.. तो मैंने फ़ोन बंद कर दिया और अपने दोनों हाथ फोल्ड करके बैठ गया। बस की लाइट काफी देर पहले ही बुझ चुकी थी तो कुछ खास दिख भी नहीं रहा था। इसी का लाभ उठाते हुए अपनी छोटी वाली उंगली से उसकी चूची छुई.. तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।
धीरे-धीरे करके मैं अपने हैण्ड फोल्ड किए हुए ही उसकी चूची को दबाने लगा। मैंने अपनी हथेली से उसकी एक चूची को दबा दिया।
उसकी चूचियां बड़ी तो थीं.. पर इतनी ज्यादा मुलायम होंगी.. इसका अंदाजा मुझे नहीं था। हथेली से जोर देते ही वो पूरी तरह से दब गईं और उसने हल्की सी आवाज निकाली- आह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो? मैं- जो करना चाहिए। उसने कहा- तो आराम से दबाओ न.. दर्द हो रहा है। मैंने कहा- ओके..
अब झण्डी हरी थी और मैं धीरे-धीरे उसकी चूचियां दबाने लगा, अब वो भी पूरा साथ देने लगी। उसकी चूचियों को जी भर के दबाने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी जांघ पर रख दिया।
मैंने पूछा- आपका नाम क्या है? तो कहने लगी- ख़ुशी। मैंने उसके नाम की भी तारीफ की.. जिससे वो मुझ पर और ज्यादा मेहरबान हो गई। मैंने ख़ुशी की जांघ को सहलाना जारी रखा।
अब मेरा हाथ उसकी योनि की तरफ बढ़ रहा था.. जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया। मैंने अपना हाथ उसकी योनि पर रख दिया और साड़ी के ऊपर से ही उसकी योनि को सहलाने लगा।
अब ख़ुशी भी गर्म होने लगी थी, उसने अपनी दोनों टांगों को फैला कर मेरे हाथ को ज्यादा जगह दे दी.. जिससे मैं उसकी योनि को सही से सहला सकूं।
मैं उसकी योनि सहला रहा था और ख़ुशी बहुत धीमी आवाज में मादक सिसकारियां ले रही थी। मैं इसके आगे मैं बढ़ नहीं पा रहा था.. क्योंकि मुझे अन्दर हाथ डालने की जगह नहीं मिल रही थी। मैं ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था.. क्योंकि रात होने के बाद भी कोई देख सकता था।
अब ख़ुशी भी कहने लगी- और कुछ न करो.. नहीं तो किसी ने देख लिया तो आफत हो जाएगी। मैंने अपना हाथ उसकी योनि से हटा कर उसकी चूची पर रख दिया।
मैंने ख़ुशी से कहा- आप अपना पल्लू पीछे से डालिए और उसको आगे लाते हुए अपनी चूची को ढक लीजिए। तो उसने कहा- ऐसा करने से क्या होगा? मैंने कहा- करो तो यार..
उसने कर लिया, अब मुझे थोड़ी आजादी मिली, मैंने भी अपना हाथ उसके पेट के साइड से डालते हुए उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया और ख़ुशी की चूची को दबाने लगा।
अब वो मादक सिसकारियां लेने लगी, मैंने उसके ब्लाउज का हुक खोल दिया। वो कहने लगी- रहने दो यार कोई देख लेगा। मैंने उससे कहा- कोई नहीं देखेगा, बस आप चुप रहो।
अब ख़ुशी भी चुप होकर मजे लेने लगी मैंने एक-एक करके उसके सारे हुक खोल दिए। उसका ब्लाउज पूरा खुल चुका था और मैं उसकी चूचियों को दबाने में जुटा था। उसकी चूचियों की बात ही कुछ अलग थी.. उन्हें जितना भी दबाओ.. मन नहीं भर रहा था।
कुछ देर बाद ख़ुशी और गरम हो गई और उसने अपना बायां हाथ अपने पल्लू के अन्दर डाल कर मेरे हाथ को पकड़ लिया और अपनी चूची को कस-कस कर दबाने लगी और सिसकारियां लेते हुए अपना एक हाथ मेरे लौड़े पर रख दिया और उसे दबाने लगी। वो मुझसे कहने लगी- कुछ करो.. कैसे भी करके मुझे चोद दो। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैंने बोला- यहाँ कैसे करूँगा.. बस भरी हुई है। उसने कहा- कोई भी तरीका अपनाओ.. बस मुझे चोदो। मैंने कहा- रुको कुछ सोचता हूँ।
उसने कहा- मेरे पास एक आईडिया है.. जिससे हम दोनों का काम बन सकता है। मैंने कहा- बताओ।
अब ख़ुशी मुझे अपना आईडिया बताने लगी, उसने कहा- दिल्ली में तुम्हें कोई जरूरी काम है या ऐसे ही जा रहे हो? मैंने बोला- नहीं कुछ खास जरूरी काम तो नहीं है.. बस जाना है। ख़ुशी कहने लगी- अगर तुम वहाँ कल पहुँचो.. तो कोई परेशानी तो नहीं होगी। मैंने कहा- नहीं.. ऐसी कोई दिक्कत नहीं है।
तो कहने लगी- ठीक है तो हम लोग बस से अभी उतर जाते हैं। मैंने कहा- मैं कुछ समझा नहीं.. तो कहने लगी- पहले बस से उतरो तब समझाती हूँ। मैंने कुछ देर सोचा.. फिर कहा- ओके..
इतनी देर में मैं ये सोच रहा था की 2-3 घंटे की मुलाकात में क्या किसी पर भरोसा किया जा सकता है, वो भी रात के दो बजे।
मैंने सोचा चलो चलते हैं। वैसे भी मैं सफ़र करते-करते इतना जान गया हूँ कि मुसीबत में कैसे बचाव किया जाता है। मैंने उससे कहा- आपके साथ जो आदमी है.. उसका क्या? तो उसने कहा- वो मेरा चचेरा भाई है। मेरी शादी दिल्ली में हुई है तो मैं अपनी ससुराल जा रही हूँ.. इसका पेपर है। इसलिए ये मेरे साथ जा रहा है। मुझे घर छोड़ कर अपना पेपर देकर ये आ जाएगा।
मैंने कहा- वो तो ठीक है.. पर इसका करना क्या है? ख़ुशी कहने लगी- मैं इसको समझा दूंगी कि तुम मेरी सहेली के भाई हो और तुम्हें कुछ काम आ गया है जिस वजह से तुम्हें वापस जाना पड़ेगा और मेरी तबियत ख़राब हो रही है तो मैं अब सफ़र नहीं कर पाऊँगी। मैं भी घर वापस जाना चाह रही हूँ।
मैंने कहा- आप कहोगी और वो मान जाएगा? तो ख़ुशी कहने लगी- वो सब मुझ पर छोड़ दो..
मैंने भी ‘ओके’ कहा और उसने अपने भाई को आगे बुलाया और उससे मेरा परिचय अपनी सहेली के भाई के रूप में कराया। कुछ औपचारिकता से हम दोनों ने ‘हाय-हैलो’ किया।
अब उसने उसे बताया कि मेरी तबियत ख़राब हो रही है और मैं घर वापस जाना चाहती हूँ। वो कहने लगा- आप घर कैसे जा पाओगी.. कल मेरा दोपहर में पेपर है। अगर अभी वापस चलेंगे तो कल दोपहर में दिल्ली तक कैसे पहुँच पाएंगे?
तो ख़ुशी ने कहा- तुम परेशान न हो.. मैंने अंश से बात की है.. इन्हें फोन पर कुछ जरूरी काम के लिए बुलाया गया है.. इसलिए ये वापस जा रहा है। मैं इसी के साथ चली जाऊँगी।
ख़ुशी का भाई मुझे देखने लगा। मैं उस वक़्त दुनिया का सबसे शरीफ और जिम्मेदार व्यक्ति बन गया था.. और चुपचाप सुन रहा था। उसके भाई ने कहा- अरे दीदी कुछ देर में हम पहुँच जाएंगे.. वापस क्यों जाना चाहती हो? ख़ुशी बोली- मैं और बीमार पड़ जाऊँगी.. मुझे घर जाना ही है।
वो मुझे घूर रहा था.. जैसे मुझे खा जाएगा। ख़ुशी के समझाने पर बहुत कोशिशों के बाद वो मान गया और कुछ देर बाद कानपुर आ गया, हम दोनों वहाँ उतर गए।
ख़ुशी के भाई ने कहा- आप मुझे थोड़ी-थोड़ी देर में फ़ोन करती रहना और मैं घर पर भी फ़ोन करे दे रहा हूँ। आपको लेने कोई आ जाएगा।
अब हम लोग बस से उतर चुके थे।
मैंने ख़ुशी से पूछा- अब क्या करना है? तो वो बोली- ऑटो पकड़ो और बस स्टैंड चलो। मैंने कहा- जब बस ही पकड़नी ही थी तो हम उतरे क्यों। मुझे लगा था हम किसी होटल या और किसी जगह चलेंगे.. जहाँ हम दोनों साथ टाइम बिता सकें।
ख़ुशी ने कहा- टाइम ही तो नहीं है न.. सुबह से पहले मुझे घर भी पहुँचना है। भाई ने घर पर फ़ोन कर दिया होगा। मैंने बोला- तो उतरने का फायदा क्या हुआ? ख़ुशी बोली- जो करना है वो करेंगे बस.. जैसा कह रही हूँ.. वैसा करो।
फिर हमने ऑटो पकड़ी और बस स्टैंड आ गए। मैंने कहा- हम कहीं और भी चल सकते हैं। ख़ुशी बोली- तुम मेरी परेशानी नहीं समझ रहे हो.. मुझे सुबह तक घर पहुँचना ही है।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींचते हुए लखनऊ की बस में ले गई। मैंने सोचा फालतू का उतर गया.. इससे अच्छा दिल्ली ही चला गया होता।
ख़ुशी बोली- परेशान न हो अगर किस्मत ने साथ दिया तो सब कुछ हो जाएगा। हम दोनों बस पर चढ़ गए। बस में चढ़ने पर देखा कि बस में 2-4 लोग बैठे थे.. बाकी की बस खाली थी। ख़ुशी मुझसे बोली- हम लास्ट वाली सीट पर बैठते हैं।
मैंने भी ‘ओके’ बोला और चल दिया।
हम दोनों जाकर लास्ट वाली सीट पर बैठ गए।
अब ख़ुशी कहने लगी- देखो यहाँ पर कोई खास भीड़ नहीं है। मुझे पता था इस समय बस खाली मिलेगी.. तभी मैं यहाँ लाई थी। क्योंकि कानपुर से लखनऊ का सफ़र 3 घंटे का है.. इसलिए रात में कोई ज्यादा लोग सफ़र नहीं करते। यहाँ जो भी हम दोनों चाहते हैं.. मजे से कर भी लेंगे और सुबह तक हम घर भी पहुँच जाएंगे और मुझे घर पर किसी को जवाब भी नहीं पड़ेगा।
मैंने भी ‘ओके’ कहा और कुछ देर में बस चल पड़ी। कुछ मिनट बाद कंडक्टर आया और हमने 2 टिकट लखनऊ के लिए खरीद लिए।
कंडक्टर बोला- मैडम आगे बैठ जाईए.. सीट खाली हैं। खुशी ने कहा- मेरे पैरों में बहुत दर्द है मैं पैर सीधे करके बैठना चाहती हूँ। इसलिए यहाँ बैठी हूँ। ये सीट लम्बी है और मैं यहाँ आराम से बैठ जाऊँगी।
इतना सुनकर कंडक्टर ने टिकट दे दिया और चला गया। उसने आगे बैठे 3-4 लोगों को भी टिकट दिया और फिर बैठ गया।
रात काफी होने की वजह से और सीटें खाली होने की वजह से सब लेट गए थे और अब तक बस की लाइट भी बंद हो चुकी थी। मैं ख़ुशी का हाथ पकड़े-पकड़े सहला रहा था।
ख़ुशी ने कहा- अब जो करना है.. जल्दी करो। मुझे चुदाई का निमंत्रण मिल चुका था। मैंने फिर ख़ुशी से कहा- आप बहुत सुन्दर हो। ख़ुशी बोली- अच्छा मेरे शरीर का कौन सा भाग सबसे अच्छा है? मैंने बोला- किसी एक भाग की तारीफ नहीं की जा सकती.. आप पूरी काम देवी लगती हो।
उसके चेहरे पर गर्व से लबरेज मुस्कान आ गई.. जिससे उसके गाल और लाल हो गए।
अब मैं ख़ुशी के और नजदीक खिसक आया था। इतना पास.. कि उसकी सांस लेने का अहसास भी मुझे होने लगा था। इस समय वो दुनिया की सबसे हसीन लड़की लग रही थी। मैं उसके और करीब आता जा रहा था.. उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।
अब चुदाई की बेला आ गई थी।
पूरी चुदाई का एक-एक वाकिया लिखूंगा। [email protected] बस आप मेरे साथ www.antarvasnax.com से जुड़े रहिए। कहानी जारी है।
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