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मेरा नाम रोहित है, मैं पंजाब का रहने वाला हूँ, अभी मैं 22 साल का हूँ। मेरी हाइट 5’9″ है.. दिखने में एकदम गोरा-चिट्टा हूँ।
मेरे घर में मेरे मम्मी-पापा के अलावा सिर्फ मैं ही रहता हूँ, मैं उनकी इकलौती संतान हूँ.. स्वाभाव से मैं बहुत ही शर्मीला हूँ।
अब आपको मिलाता हूँ मेरी कहानी की नायिका से… उनका नाम रूचि है.. पर मैं हमेशा उन्हें दीदी कह कर बुलाता हूँ।
करीब 2 साल पहले ही उनकी फैमिली हमारे मोहल्ले में शिफ्ट हुई थी।
दीदी दिखने में बहुत ही गोरी हैं, उनकी हाइट करीब 5’3″ होगी। उनका साइज़ तो मुझे नहीं पता.. पर इतना कह सकता हूँ कि उनके एक मम्मे को एक हाथ में कैद कर पाना बहुत ही मुश्किल था। उनके मम्मे उनकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते थे।
ऊपर से दीदी का वो काला चश्मा लगाना उनको फिल्म की हीरोइन से कम नहीं दिखने देता था।
दीदी पर काफी लड़के मरते थे.. पर दीदी किसी को भी लाइन नहीं देती थीं। उनका आना-जाना भी मोहल्ले के सिर्फ एक या दो घरों में ही था।
दीदी को ज्यादा घूमना-फिरना पसंद नहीं था.. इसलिए वो हमेशा घर पर ही रहना पसंद करती थीं।
उनके बोलने में तो एक बड़ी ही सहजता थी, वो हमेशा ‘आप’ और ‘बेटे’ कह कर ही सबसे बात करती थीं। दीदी की हमारे मोहल्ले में काफी रेस्पेक्ट थी।
बात तब की है.. जब मैं बारहवीं क्लास में पढ़ता था, मेरी उम्र 18 साल की थी और दीदी की उम्र कुछ 25-26 की रही होगी। दीदी की सगाई हो चुकी थी और बस अगले 5-6 महीनों में उनकी शादी होनी तय थी।
एक दिन उनकी और मेरी फैमिली को एक शादी अटेंड करने जाना था। मेरे ऊपर पढ़ाई का ज़ोर था, इसलिए मैं तो नहीं जाने वाला था। उन दिनों मैं कॉलेज से दो बजे फ्री होता था और उसके बाद ट्यूशन जाता था.. इसलिए मैं घर पर शाम 6 बजे के बाद ही आ पाता था।
उस दिन मौसम का मिजाज कुछ खराब था.. इसलिए क्लास की लड़कियों ने ट्यूशन कैंसिल करवा दी और मैं निराश होकर घर आ गया। मुझे पता था कि मेरे घर वाले 6 बजे से पहले नहीं आने वाले हैं.. पर अब मैं करता भी क्या। इसलिए घर आ कर गेट के सामने बैठ गया।
थोड़ी-थोड़ी बारिश शुरू होने लगी थी। शायद 3 बज चुके थे और मैं पागल सा बैठा, अपनी बुक्स की फ़िक्र कर रहा था कि कहीं ये ना भीग जाएं।
इतने में मुझे किसी ने आवाज़ दी- आप यहाँ बाहर क्या कर रहे हैं.. चलिए अन्दर आ जाएं हमारे घर में।
यह आवाज़ रूचि दी की थी।
मैंने उनकी तरफ देखा.. उन्होंने सफ़ेद स्कर्ट और पिंक टॉप पहना हुआ था। हमेशा की तरह काला चश्मा, बाल खुले हुए और हाथों में कंघी पकड़ी हुई थी.. शायद वे अपने बाल बना रही थीं।
दीदी- बाहर क्यों बैठे हुए हो.. मुझे नहीं बता सकते थे क्या.. चलो अब अन्दर आओ।
मैं उनके कहने मुताबिक उठा और सिर झुका कर उनके घर के अन्दर आ गया।
दीदी- बेटा क्या हुआ.. आप आज जल्दी आ गए कॉलेज से? मैंने उनको सारी बात बताई..
दीदी- आप फ़िक्र न करो.. आपको ठण्ड लग गई होगी.. मैं आपके लिए थोड़ा दूध गर्म करके ला देती हूँ।
दीदी रसोई में गईं और दूध गर्म करने लगीं। इतने में वे अपने बाल बाँधने लगीं।
मेरा ध्यान उन पर ही था, उन्होंने बहुत ढीला सा टॉप पहना हुआ था। जब उन्होंने बाल पकड़ने के लिए हाथ ऊपर उठाए तो उनके मम्मों के साथ उनका टॉप एकदम से चिपक गया।
उनकी चूचियों के निप्पल का एहसास बाहर से ही हो रहा था। यूं तो मैंने कभी दीदी पर बुरी नजर नहीं डाली.. पर था तो मैं लड़का ही। इसलिए मेरा सारा ध्यान दीदी के निप्पलों पर ही था।
अब दीदी बाल बाँध चुकी थीं। उन्होंने अपने हाथ नीचे किए। अब उनके टॉप किसी कारण से उनके मम्मों के ऊपर कुछ फिट सा हो चुका था और उनके मम्मे अपना पूरा आकार दिखा रहे थे। शायद उनका इस बात की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं था.. लेकिन ये दृश्य मुझमें एक नशा पैदा कर चुका था।
अब मैं दीदी की गोरी-गोरी टांगों की तरफ देखने लगा, उनकी स्कर्ट घुटनों के ऊपर थी। मैं उनको लेफ्ट साइड से देख रहा था और उनकी जाँघों और गांड का साइज़ नापने लगा।
इतने में दीदी मेरे लिए दूध ले कर आईं। मैंने एकदम से नजरों को हटाया और आपने आपको सम्भाला। मैं अपने आपको कोसने लगा कि मैं ये सब दीदी के बारे में कैसे सोच सकता हूँ।
दीदी ने मुझे दूध दिया और मेरे सामने बैठ गईं। मैं थोड़ा शर्मीले स्वाभाव का था इसलिए मेरी नजरें तो नीचे ही रहीं।
दीदी मेरे सामने वाले सोफे पर अपनी दोनों टाँगें क्रॉस करके बैठी हुई थीं। मेरा ध्यान तो बार-बार दीदी की टांगों की तरफ ही जा रहा था और जितना अन्दर हो सकता था.. मैंने उतने अन्दर तक देखने की कोशिश कर रहा था।
दीदी मुझसे यहाँ-वहाँ की बातें करने लगीं, पर मेरा दूध खत्म ही नहीं हो रहा था।
दीदी- बेटा आप इतने ही धीरे दूध पीते हो? मैं- नहीं दीदी, वो दूध थोड़ा गर्म था इसलिए.. दीदी- तो मुझे पहले क्यों नहीं बताया?
उन्होंने थोड़ा सा गुस्सा दिखाया, फिर उन्होंने मुझसे गिलास लेकर एक बड़े बर्तन में दूध डाल दिया और उसे ठंडा करने लगीं।
मेरा ध्यान फिर उनके मम्मों की तरफ गया.. पर अब उनके मम्मे उनके टॉप की बदसलूकी की सज़ा से आज़ाद हो चुके थे। अब जो सीन मैं पहले देख चुका था.. उससे तो मैं पक्का था कि दीदी ने आज ब्रा नहीं पहनी थी और पहनती भी क्यों? सारी फैमिली के लोग तो मैरिज में गए थे।
दीदी अब वापिस कमरे में आ गईं- ये लो.. अब मैंने आपके लिए दूध ठंडा कर दिया है। अब अच्छे बच्चे की तरह जल्दी सारा दूध पी जाओ।
उनका कहना मैं कैसे टाल देता.. सो एक ही झटके में सारा दूध पी गया.. मेरी दूध पीने की स्पीड देख कर वो भी हँसने लगीं।
दीदी- लगता हैं आपको दूध बहुत पसंद हैं। मैंने उनके मम्मों की तरफ देखते हुए कहा- हाँ जी दीदी।
दीदी ने मेरी आँखों को देखते हुए कहा- ठीक है.. अब जब तुम जब भी हमारे घर आओगे तो तुम्हें दूध ही पिलाऊँगी।
इतना कह कर दीदी मेरे साथ बैठ गईं। उनकी एक टांग मेरी टांग की टच कर रही थी। जब उनकी वो जांघ मेरी जांघ से टच कर रही थी.. मैं तो पूरी मस्ती में डूबता जा रहा था।
शायद दीदी को इस बात का कोई ख्याल नहीं था। दीदी को पता था कि मैं बहुत शर्माता हूँ इसलिए वो मजाक-मजाक में मेरे और करीब आ कर बैठ गईं।
दीदी- कहीं भाग मत जाना.. ये कह कर वे ज़ोर से हँस दीं। मैं चुप रहा।
दीदी- आपको लड़कियों से इतनी प्रॉब्लम क्यों है? मैं- प्रॉब्लम तो कोई नहीं है.. बस ऐसे ही।
दीदी- तो महाराज के इतने करीब कोई लड़की आ कर बैठी नहीं होगी। मैं- आप ही पहले हो.. जो मेरे इतने करीब आ गई हो।
दीदी मेरी क्लास लेने लगीं- बेटा आपका शादी के बाद क्या होगा.. अगर अपनी बीवी से भी इतनी दूर रहे.. तो वो तो भाग जाएगी। मैं चुप रहा।
इतने में दीदी ने मुझे एक हाथ से लिपटा लिया। वो मेरे राईट साइड में बैठी थीं.. और उनकी बाईं बाँह अब मेरे गले के से घूमती हुई मेरे कंधे पर थी।
दीदी- ये बताओ.. मेरे बेटे ने कोई लड़की भी पटाई है जा नहीं?
मेरा सिर नीचे झुका हुआ था और मैंने ‘ना’ में सिर हिला दिया।
दीदी मेरे इतने करीब आ चुकी थीं कि उनका एक चूचा मेरी कोहनी से टच कर रहा था।
एक तो पहली बार किसी लड़की के इतने करीब और ऊपर से बिना ब्रा वाला मुम्मा। मेरा तो अन्दर लण्ड का टेंट बनना शुरू हो गया।
दीदी- क्यों नहीं पटाई.. आपको लड़कियों में इंटरेस्ट तो है ना? इतना कहते ही वो खिलखिला उठीं।
मैं- नहीं अभी कोई मिली नहीं। दीदी- अगर वो आपके सामने भी आ जाए.. तब भी आपसे कुछ नहीं होगा। मैं- क्यों नहीं होगा.. मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ।
दीदी ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगीं- क्या-क्या कर सकते हो आप? मैं- मैं कुछ भी कर सकता हूँ.. जिससे वो हमेशा खुश रहे।
दीदी- तो आपको क्या पता है कि लड़कियों को खुश करने के लिए क्या करना चाहिए? मैं- नहीं, पर मैं टाइम आने पर आपकी हेल्प ले लूँगा। दीदी- हाँ ले लेना.. जितनी चाहे ले लेना, मैं मना नहीं करूँगी।
अब उनकी हँसी और भी तेज होती जा रही थी।
बच्चा तो मैं भी नहीं था.. मुझे भी ये बात समझ में आ रही थी कि वो किधर की बात कर रही हैं। पर उनका ये रूप आज मैं पहली बार देख रहा था या शायद मिला ही पहली बार उनसे अकेले में था।
अब मैं थोड़ा सा शराफत का ढोंग करने वाला था.. इसलिए मैंने उनकी उस बांह को अपने गले से उतार दिया।
मैं- दीदी मुझे ये ठीक नहीं लग रहा। दीदी- मेरा बेटा मुझसे भी शर्माता है।
इतना कहते ही उनकी दूसरी बाजू भी मेरी गले से लिपट गई। दीदी- तुझसे प्यार करने दिल करता है।
उनका चेहरा मेरे चहरे के बिल्कुल सामने था, मेरा जी तो चाहता था कि एक बार उन्हें चूम लूँ.. पर मन में आया कि हो सकता है.. दीदी मजाक कर रही हों और अगर मैं आगे बढ़ा तो वो गुस्सा हों.. इसलिए मैं कुछ न कर सका।
मैं- दीदी मैं टीवी देखने जा रहा हूँ।
इतने में मैं उठा पर मेरे खड़े लण्ड पर दीदी की नज़र पड़ गई.. जो पैन्ट में टेंट बना खड़ा था। दीदी ने थोड़ा सा गुस्सा दिखाया- मैं आपके थोड़ा सा करीब क्या आई, आपने ये हरकत कर दी बेटे।
मेरी फट कर हाथ में आ गई थी।
कहानी के अगले हिस्से में आपको बताऊँगा कि क्या हुआ।
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