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अब तक आपने हेमा की जुबानी इस कहानी में जाना था कि आज हेमा ने सुरेश का लंड जी भर का चूसा था और वो आज तृप्त हो गई थी।
अब आगे..
मैंने पूरे मन से.. शौक से.. प्यार से लंड चूसा, मुठ मारी और उस बहुत प्यारे लौड़े को मसला-दबाया.. खूब सहलाया।
मेरा अब मुँह चूसते-चूसते दर्द करने लगा, लेकिन अब तो चूस कर ही माल निकालना था.. सो चूसती रही।
कुछ देर में वह झड़ गया, कम से कम दो चम्मच के बराबर पतला वीर्य निकला जो मैंने अपने होंठों पर निकाला था। उसे फिर मुँह खोलकर अन्दर लिया। जो होंठों पर बिखरा था, उसे जीभ से चाटा फिर लंड मुँह में ले खूब चूसा ताकि लंड में बची आखिरी बूंद तक निकल आए।
अब मैंने लंड छोड़ दिया, वह लटक गया।
मैं खड़ी हो गई.. अपनी कुर्ती उठा दी, चूत उसके आगे उभार दी। उसने चूतड़-चूत और जांघें सहलाईं, नाभि, चूत के आस-पास.. और जांघों को चूमा।
दोनों हाथों की दो-दो उंगलियों से चूत के दोनों होंठ पकड़कर फैलाए, मुझे बहुत अच्छा लगा।
इस समय मैं चुदाई के लिए बहुत उत्तेजित नहीं थी, बस यह ऊपर का मजा ही चाह रही थी, मैं घूम कर फिर उसकी गोद में बैठ गई। मेरी नंगी गांड थी।
अब मेरे दोनों दूध उसके हाथ में थे। हम हल्के हल्के मजे की बातें कर रहे थे। करीब 5 मिनट यह हालत रही।
फिर मुझे अपनी गांड पर ऐसा लगा कि लंड में अब कुछ जान आ रही है। मैं उठी.. फिर उसे भी उठाया। लटका लंड पकड़ा और पहले अपनी नाभि पर फिर चूत पर लगाया.. उसे अच्छा लगा। लंड में भी कुछ और जान पड़ी। फिर मैं लेट गई।
मैंने एक सेक्सी एलबम में देखा था कि एक बंदे ने लंड को औरत की चूचियों के बीच रखा हुआ है.. औरत ने चूचियां लंड पर दबा रखी हैं।
मैंने उसे लंड बीच सीने पर रखने को कहा, तो उसने रख दिया। मैंने चूचियां लंड पर दबाईं। उसे मजा आया तो लंड में और करेंट बढ़ा।
अब मैंने उसे आगे बढ़ने को कहा तो उसने बढ़कर लंड को मेरे होंठों पर रख दिया.. मुझे मजा आया। मैंने यही चाहा था।
मैंने उसे कभी चूसा.. कभी होंठों पर तो कभी गालों पर फिराया। थोड़ी देर में लंड एकदम कड़क हो गया।
मैंने लंड सहलाते हुए कहा- लो जानू.. मैंने तो अपना काम कर दिया। अब तुमको जो करना हो.. करो। तुम तो इतने जानदार हो कि मेरे जैसी दो लौंडियों की रोज रात को बंपर चुदाई कर सकते हो।
अब कमान उसके हाथ में थी, वह पीछे सरका और चूत पर होंठ रख दिए, चूत के दोनों होंठ चूसे.. अन्दर तक खूब चूसा। अब मुझे लंड की प्यास लगी। मैं वह प्यारा कड़क लंड लेने को बेताब होने लगी लेकिन उसे वक्त लगाना था क्योंकि लंड तो कड़क हो गया, लेकिन अभी चूत मारने की प्यास पूरी उसकी जगी नहीं थी।
उसने फिर मुझे होंठ और गाल से लेकर चूचियों से गुजारते हुए फिर चूत को चूमा, फिर लंड पर थूक लगाने लगा, मुझसे बोला- गेट तुम खोलोगी और रास्ता भी तुम दिखाओगी।
मैंने आँख मार दी।
वह आगे बढ़ा तो टांगें पूरी फैलाकर मैंने अपने एक हाथ की दो उंगलियों से चूत फैलाई और दूसरे हाथ से लंड पकड़ कर छेद पर रखा। थोड़ी सी गांड उठाकर मैंने टोपे को छेद पर सैट किया और फिर उसे लंड घुसाने का इशारा कर दिया। उसने मेरे कंधे पकड़कर हल्का सा धक्का दिया तो करीब आधा लंड घुस गया।
मुझे कोई खास परेशानी नहीं हुई, मैं पूरी मस्ती में थी, सही-गलत का होश न था। मैंने पूछा- क्या एक ही धक्के में पूरा नहीं जा सकता? उसने कहा- कर दूँ ऐसा? मैंने पूछा- कोई परेशानी तो न होगी? वह बोला- क्यों होगी, आज कम से कम 300 झटके तो पूरे लिए ही हैं तुमने।
फिर उसने लंड निकाल लिया, उसने दोबारा उस पर थूक लगाया, चूत पर भी लगाया और मुझे चूत फैलाने के लिए कहा।
मैंने चूत फैलाकर छेद टोपा भिड़ा कर उसे लौड़ा पेलने के लिए आँख मार दी, उसने कंधे पकड़कर जोर के धक्के से लंड पेल दिया।एडजस्टमेंट में कुछ दिक्कत थी। चूत की स्थिति और लंड की दिशा एक-दूसरे के मामूली विपरीत थी।
लौड़ा तो पूरा अन्दर पिल गया मगर चूत की एक साइड कुछ रगड़ गई.. इससे तेज दर्द हुआ और मेरे मुँह जोर से ‘उई माँ..’ जैसा कुछ निकला.. लेकिन आवाज बाहर निकलने से पहले तेजी से मैंने हथेली से अपना मुँह बंद कर लिया।
उसे भी गड़बड़ का अहसास हो गया और उसने प्रश्नवाचक नजर से मुझे देखा।
मैंने उसे उसी स्थिति में रुके रहने को कहा। करीब आधे मिनट में मैं संभल गई, अब मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, उसे भी चैन पड़ा।
मैंने कहा- चूत रगड़ गई। उसने बोला- मुझे भी इसका अहसास हो गया था इसलिए लंड को वहीं जाम कर दिया।
मैंने फिर चोदने को कहा.. तो वह धीरे-धीरे चोदने लगा। थोड़ी देर में वह रगड़ की दर्द कम हो गई और मुझे चुदाई का मजा मिलने लगा।
अबकी बार मेरे को जल्दी झड़ ही जाना था.. क्योंकि वह दो बार झड़ चुका था और मैं एक ही बार तृप्त हुई थी। तो मैंने सोचा कि यह तो मेरे झड़ने के बाद भी सैकड़ों बार चूत में लंड पेलेगा तो क्यों न थोड़ी देर लंड से बाहर खेल लिया जाए।
मैंने उसे यह बात बताई, तो उसने खुशी से लंड मेरे हाथ में दे दिया, मैं उसे चूसने लगी। मेरी चूत का कुछ रस और उसका थूक का मिश्रण जो लंड पर था, वह चाटने में अच्छा लगा।
थोड़ी देर बाद मैंने फिर चोदने को कहा। उसने चोदना शुरू किया, करीब 50 धक्कों के बाद में बेकरार हो गई, इतनी बेकरार कि मैंने उससे कह दिया- तुम तेजी से चोदो.. उल्टा-सीधा फटाफट चोदकर मेरा पानी निकाल दो।
उसने स्पीड़ा बढ़ा दी। वो बड़ी शानदार चुदाई कर रहा था.. मगर मुझे बड़ी जल्दी हो रही थी। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
खैर.. एक वक्त वह आया जब मैं पानी-पानी हो गई, मेरी सारी अकड़ और उत्तेजना खत्म हो गई, मैं निढाल होकर बिस्तर में शिथिल हो गई। उसे तो पानी निकलते ही पता चल गया। वह रुकने लगा तो मैंने उसे पेले रहने के लिए आँख मार दी।
उसने करीब 50-60 धक्कों के बाद रुककर बोला- माल चूत में गिराऊँ कि मुँह में? मैंने मुँह में गिराने का संकेत दिया और मुँह खोल दिया।
उसी ने लंड पकड़कर मुँह में दिया। मेरे हाथ भी शिथिल से हो गए। उसने अपने हाथ से ही लंड पकड़ मुझसे कुछ देर चुसवाया। कुछ ही बूंद पानी निकला।
अब मैंने लंड पकड़ लिया और कुछ क्षण चूसा। फिर वह पीछे हट गया और मेरी चूत का रस चाटने लगा। उसने अन्दर-बाहर खूब चाटा-चूसा, फिर वह मेरी बगल में लेट गया।
हम करीब 5 मिनट बिना बोले लेटे रहे। फिर मैं उठी.. सलवार पहनी। मैंने उसे आँख मारी और ‘थैंक्स यू वैरी मच एंड गुडनाइट’ कह कर पिछले दरवाजे की ओर जाते हुए लाईट बंद कर दी।
इसके बाद मैं धीरे से किवाड़ खोलकर बाथरूम में जाकर मूतने लगी। पेशाब कुछ जलन के साथ निकला, मेरी चूत अच्छी तरह रगड़ गई थी, जिससे वहाँ पेशाब जलन कर रही थी। इसमें कोई शक नहीं था कि मेरी पूरी चूत पर उस लंड की रगड़ पड़ी थी।
मूतते हुए एक तरफ चूत में जलन हो रही थी, उधर मैं खुश थी कि आज कंपलीट चुदाई पहली बार हुई है। जबकि इससे पहले मुझे 5-6 लोगों ने कुल जमा करीब 60-70 बार चोदा था मगर कुछ न कुछ 19-20 की कमी रह ही जाती थी।
मैं सुरेश को बढ़िया चुदाई के लिए मन ही मन धन्यवाद दे रही थी। सोच रही थी फिर ऐसा मौका मिला तो सुरेश जानूं से फिर पूरा मजा लूंगी और दूँगी।
फिर मैं दबे पांव माँ के कमरे में घुसी, जीरो वाट का बल्ब जलाया। माँ वैसे ही करवट लिए पड़ी थीं.. जैसी मैं छोड़ गई थी जबकि मुझे गए हुए पूरे तीन घंटे बीत चुके थे।
रात का डेढ़ बज रहा था, मैं चुपके से लेट गई, मैंने भगवान का, माँ का, भाई-भाभी का मन ही मन धन्यवाद अर्पित किया कि इन लोगों ने मेरी सुरेश से चुदवाने की हसरत पूरी होने दी। किसी को पता नहीं चला, मैं रिलैक्स हो गई। थोड़ी देर में मुझे नींद आ गई। सुबह मेरी आँख खुद नहीं खुली, मुझे माँ ने जगाया।
मैं उठ कर चली.. तो पता चला कि रात में चूत में काफी कुछ हुआ है, वह अन्दर से कुछ सूज गई थी.. फूल गई थी, चलने में चूत में दिक्कत हो रही थी।
मैं अपने आप पर मन ही मन हँसी। मूत की धार पतली हो गई थी क्योंकि अन्दर रास्ता सूजन से तंग हो गया था। मूत कर मैंने ढेर सारा थूक एक उंगली पर लेकर अन्दर तक लगाया। उंगली ही अभी तो पूरा लंड लग रही थी।
फिर मैंने दो उंगलियों पर थूक लेकर दोनों को एक साथ जबरदस्ती घुसेड़ा। इस समय दर्द.. मस्ती.. कुछ खुजली सी और जाने क्या चूत में हो रहा था। एक पतले लंड से इस समय चुदवाने की इच्छा हो रही थी।
अगर सुरेश का लंड घुसता तो जबरदस्ती पेलना पड़ता और मेरी हालत शायद खराब हो जाती।
सुरेश के सुबह 9 बजे विदा होने तक सिर्फ एक बार उससे संक्षिप्त बात करने का मौका मिला तो मैंने कहा- चूत सूज कर डबलरोटी हो गई है, इस समय तो लंड घुसेगा भी नहीं तुम्हारा। लेकिन जान, कुछ दिन बाद किसी बहाने से फिर आना।
उसने कहा- मैं खुद ही किसी बहाने फिर आने की सोच रहा था, तुमने निमंत्रण देकर मेरे ऊपर और उपकार कर दिया।
मैंने उसके और उसने मेरे होंठ चूम लिए और आज आखिरी बार मैंने उससे चूचियां दबा लेने और निप्पल मसल लेने को कहा। उसने बड़े प्यार से चूचियों से मस्ती कर मुझे मस्त कर दिया।
उसके बाद दो दिन हालत खराब रही, एक लंड की जरूरत हो रही थी। सुरेश से चुदी बुर खुजला रही थी, क्योंकि उसने ढंग से पेलकर चूत अन्दर से छील डाली थी और वह मुझे परेशान कर रही थी।
तीसरे दिन संयोग से घास लेने गई तो मुझे पहले चोद चुके एक मुँह बोले ताऊ से चुदवाने का मौका मिल गया। चुदाई तो वह ढंग से कर नहीं पाते थे, लेकिन मुझे पेलकर मेरा और अपना पानी निकाल लेते थे। इतना ही संतोषजनक था।
तो उन्होंने दो घंटे के अंतराल में अपने पुराने, खुरदरे काले लौड़े से मुझे मक्का के खेत में दो बार पेल दिया। मुझे चैन आ गया।
उनके वीर्य से चूत को भी अतिरिक्त चिकनाई और ऊर्जा मिली।
उन्होंने मुझे कुछ भुटटे भी तोड़ कर दिए और मुस्कराकर बोले- रात को खुजली होए तो एक भुट्टा चूत में पेलना।
मैंने कभी भुट्टा चूत में पेला नहीं था, उन्होंने पेलने का तरीका भी बताया।
मैंने उस रात एक पतला, लंबा भुट्टा चूत में पेला, खूब घपाघप पेला लेकिन मेरे हाथ दर्द करने लगे थे और वह चूत में पूरी तरह ठीक से पिल भी नहीं रहा था, बड़ी मुश्किल से बड़ी देर में अपना पानी निकाल पाई।
मैं परेशान सी हो गई, चोदने वाले आदमी का या लंड का कोई विकल्प मुझे नहीं समझ में आया। शायद चूत भी कह रही थी कि लंड ही मेरी सही और पूरी खुराक है। भुटटा कच्चा था, चूत के पानी से नमकीन हो गया था, उसके दाने मैं चबाकर कर निगल गई।
तो सेक्सी पाठकगण, यह थी उस हेमा की पहली कंपलीट चुदाई की कहानी.. जो उसने मुझे विस्तार से बताई थी। हम दोनों होटल के कमरे में करीब 12 घंटे जागे और तीन-चार घंटे सोए थे। उससे उसके जीवन, आर्थिक, पारिवारिक और चुदाई से जुड़ी तमाम बातें हुईं। हेमा काफी हिम्मती, गंभीर, तहजीब और काम में क्वालिटी पसंद थी। वह जो कर रही थी.. उससे संतुष्ट थी। लेकिन कुछ स्थायित्व, सम्मानजनक, सुरक्षित आर्थिक स्रोत चाहती थी।
मैं उसकी मदद करने की सोच रहा था। घर लौट कर कई बार उससे फोन पर घंटों बातें कीं मगर फिर उसका नंबर लगना बंद हो गया। उसने भी फिर कभी फोन नहीं किया।
पता नहीं उसने नंबर बदल लिया या उसका क्या हुआ। उससे मैं काफी प्रभावित हुआ था, उसकी याद बहुत आती है।
पता नहीं कहाँ.. किस हाल में होगी, होगी भी या नहीं। जीवन का क्या भरोसा?
हेमा और कई अन्य की काफी बातें, यादें मेरे दिमाग में हैं, फिर कभी समय लगा तो आपके साथ शेयर करूँगा, किसी सेक्स मुझसे कुछ कहना हो तो जरूर कहिएगा, मैसेज या ईमेल से- [email protected]
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