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अब तक आपने हेमा की जुबानी इस कहानी में जाना था कि सुरेश का लंड रात को देखने को मिला तो उसको मजा आ गया।
अब आगे..
मैं फिर लंड चूसते-चूसते अचानक पलटी और झट से नाड़ा खोल सलवार घुटनों तक सरका दी और गांड ऊपर करके पट लेटते हुए कहा- देखो मेरा चूतड़.. जहाँ तुमने चिकोटी काटी थी.. वहाँ दर्द हो रहा है।
उसने उठकर देखा और कहा- ओह.. सॉरी.. यहाँ तो नीला निशान पड़ गया। मैंने कहा- इसकी तकलीफ कैसे कम होगी? उसने कहा- इस जगह मैं लंड से वीर्य मल दूँगा। तुम्हारा दर्द दूर हो जाएगा।
उसने मेरी पीठ.. दोनों चूतड़ों और जांघों के चुंबन लिए।
ओ.. आह.. हा.. क्या उत्तेजना थी उस समय।
फिर उसने चिकोटी वाली जगह जीभ से चाटा। फिर एक मेरी एक जांघ और एक कंधा पकड़ उसने मुझे पलटा। फिर उसने मेरे होंठ चूसे.. एक-एक कर दोनों निप्पल चूसे, हल्के-हल्के मसले.. चूचियां सहलाईं और दबाईं.. हाय रे.. मैं तो सिसकारियां ही लेती रही।
मैंने उसकी कमर में अपने दोनों हाथ डाल रखे थे। फिर उसने पीछे हटकर तकिया उठाया और बोला- गांड ऊपर उठाओ। मैंने सलवार निकाल ही दी और टांगें फैलाकर गांड उठाई.. तो चूत ऊपर को उभर आई।
वह मुस्कराकर बोला- तेरी चूत तो मानो जैसे रस भरा पका अनार लगती है।
उसने तकिया गांड के नीचे रखा मगर मैंने गांड नीचे नहीं रखी.. उठाए ही रही। अब उसने दोनों जांघों को पकड़कर मुझे अपने हाथों में ले लिया और मेरी गरम चूत पर होंठ रख दिए।
ओह.. क्या बताऊं कि कितना आनन्द आया।
फिर गांड उसने तकिए पर रखी, पीछे खिसका, दोनों हाथों की एक-एक उंगली से चूत के होंठों को दाएं-बाएं फैलाया और अपने होंठ उसमें डाल दिए, खूब चूसा… मेरी चूत का दाना भी जीभ और दांतों के बीच लेकर रगड़ा, चूसा।
मैं इतनी देर में कई बार उसे चोदने के लिए कह चुकी थी, उसके लंड के लिए मेरी चूत तड़प रही थी।
अजीब स्थिति थी.. चूत के साथ जो हो रहा था, वह मैं कराना चाहती थी.. यह भी महा मजेदार था।
उधर लंड लेने की भी जल्दी हो रही थी। ऐसी मेरी हालत पहले कभी नहीं हुई। पहले ऐसी तसल्ली की चुदाई हुई ही नहीं थी। न कोई ढंग का चोदू मिला।
खैर.. मेरे बार-बार के कहने पर उसने लंड पे थूक लगाया.. उंगली से चूत के होंठों के बीच में और अन्दर तक लगाया। शाम की चुदाई के बाद अब तक मैं चार बार मूत चुकी थी और हर बार मूतते हुए उंगली से अन्दर तक अपनी चूत की चिकनाई और सुरेश का वीर्य भी धोती रही थी।
अब चूत खरखरी सी थी और थोड़ी बाहरी चिकनाई की जरूरत थी.. अन्यथा वह लौड़ा चूत में मुश्किल से अन्दर-बाहर होता और नाजुक चूत को बहुत छीलता।
इस बार तो मैंने फिर अपनी दो उंगलियों से चूत के दोनों होंठ दाएं-बाएं करके टांगें फैलाकर चूत को चौड़ा किया।
सुरेश को मेरा यह काम पसंद आया, उसने छेद पर लंड रख कर मेरी ओर देखा, मैंने आँख मार दी।
उसने एक हल्का धक्का दिया तो आधा लंड अन्दर चला गया। मुझे थोड़ी तकलीफ हुई मेरे मुँह से ‘इस्स..’ की आवाज निकली। उसने मेरी ओर देखा, मैं अनायास मुस्करा पड़ी और आँख मार दी।
उसने मेरी गांड पकड़कर थोड़ा मुझे ऊपर उठाया और जड़ तक पूरा लंड सरका दिया। मेरे मुँह से न जाने क्यों ‘आह्ह.. थैंक्स..’ निकाला।
वह मुस्कराया।
अब मेरी गांड के नीचे तकिया था और लंड आसानी से एडजस्ट हो गया, सीधा आ-जा रहा था। लेकिन चूत में रगड़ ज्यादा हो रही थी।
मैंने उसे रोका और अपनी समस्या बताई। उसने बताया- चिकनाई कम है।
उसने लंड को बाहर निकाला, चूत पर थूक निकाला और ठीक से उंगली से अन्दर तक लगाया, मुझे अपने लंड की ओर संकेत किया। मैं समझ गई.. मैं उठी और उसके टोपे को मुँह में ले लिया, उसे चूसा और ढेर सा थूक पूरे लंड पर लगा दिया। लेटी तो उसने थूक से गीली उंगलियों से चूत को फैलाया और बीच में बिना हाथ लगाए टोपा सटाने लगा.. मगर वह सही जगह पर नहीं लगा था। मैंने तेजी से अपना हाथ बढ़ा कर लंड पकड़कर छेद से सटा दिया।
उसने बोला- गुड.. थैंक्स..
मेरे कूल्हे पकड़कर उसने ‘गचाक’ से लंड पेल दिया। अब लंड बड़े आराम से अन्दर घुस गया था। दो-चार बार अन्दर-बाहर करने पर पता चल गया कि अब कोई परेशानी नहीं है.. तो मैंने कह दिया- अब तुम जल्दी काम कर डालो।
मैं तो कुछ ही देर में अब ऐसी हो गई थी कि अब झड़ी.. तब झड़ी।
उसने कंधे पकड़ कर बड़ी स्पीड में चोदना शुरू किया। दे पेलम-पेल, दे दना-दन।
मैं पूरी तरह उसके सहयोग में डटी रही। मेरे ख्याल से 40-50 धक्के लगे होंगे कि मेरा तो काम हो गया।
उसका काम अभी काफी बाकी था, मैंने उससे कहा- तुम अपना काम करते रहो।
अब मेरी रस भरी चूत मारने में उसे और मजा आया, उसने मुझे और दबाकर पेला।
कई मस्त धक्कों के बाद वह थोड़ा रुका और बोला- बस दो-चार धक्कों में माल निकल जाएगा.. क्या करूँ? मैंने कहा- मैं चूसूंगी।
उसने कसके दो-तीन धक्के और मारे और फिर लंड खींच कर तेजी से मेरे मुँह की ओर लाया।
मैं पहले ही मुँह खोल चुकी थी.. उसका लंड पकड़कर टोपा अपने मुँह में ले लिया। मैंने चूसा तो वीर्य की पिचकारी निकल पड़ी।
मेरे एक हाथ में लंड और दूसरे में उसके अंडे थे। वह घुटनों के बल बैठा था, उसके दोनों घुटने मेरे कंधों के पास गद्दे पर थे। उसने बिस्तर के पास के टेबल से चम्मच उठाकर मुझे दिया और कहा- दो बूंद माल इसमें रखना.. चिकोटी वाली जगह लगाना है।
मैंने अंडे छोड़े, चम्मच पकड़ा और लंड मुँह से बाहर निकाल कर एक पिचकारी चम्मच में निकलवाई।
फिर चम्मच उसे पकड़ाकर लौड़ा चूसने लगी। मैंने उसका केला खूब चूसा.. मुझे चूसने में मजा आ रहा था। बड़ी देर तक चूसा, मेरा तो लंड छोड़ने का मन नहीं था.. पर उसने रिक्वेस्ट करके लंड छुड़वा लिया।
अब हम दोनों सीधे हुए, उसे सीधा लिटाया। मैं करवट से उसकी जांघ पर अपनी एक जांघ रखकर लेट गई।
मैंने उससे पूछा- अगर तुम्हारी सगाई न हुई होती तो तुम मुझे इस चुदाई के बाद भगा ले जाने की सोचते? वह बोला- जरूर.. हालांकि तुम्हें पता है कि मेरी मंगेतर भी पटाखा है.. लेकिन मुझे विश्वास है कि वह तुम्हारे जैसा मजा कभी नहीं देगी। इस मजे की उम्मीद मैं तुमसे ही भविष्य में करूँगा।
मैंने भी वादा किया- मैं आज के मजे को नहीं भूल सकती। मुझे इससे भी ज्यादा मजे से कोई चोदेगा तो भी हमेशा तुम्हारा ध्यान रहेगा। मेरी जरूरत पड़े तो झिझकना मत.. कह देना। मौका देखकर देने की पूरी कोशिश करूँगी। वैसे ही मुझे कभी तुम्हारी जरूरत होगी तो तुम मेरा साथ देने का प्रयास करना।
उसने कहा- पूरी ईमानदारी से कोशिश करूँगा, वादा करता हूँ।
बहुत धीरे इस तरह की कई बातें हुईं। वह लगातार मेरी एक चूची दबाता और सहलाता रहा था।
कुछ देर बाद मैं बोली- अब चलूं.. काफी देर हो गई। यह कहकर मैं सीधी हुई तो उसने चूत पर हाथ रखके कहा- एक बार और दे दो।
मैंने उसके लंड को पकड़ा तो वह कुछ कड़क होने लगा था।
मैंने कहा- ठीक है लेकिन पहले मुझे तसल्ली से लंड चूसने दो.. अबकी बार रोकना मत।
उसने ‘हाँ’ कह दी.. तो मैं लंड चूसने लगी.. खूब चूसती रही। उसका लंड पूरी तरह कड़क हो गया, उसे अन्दर लेने की तीव्र इच्छा जाग उठी। मैं चूस रही थी, वह सिसकारियां ले रहा था, वो बेबस था.. मगर मुझे रोक नहीं रहा था।
मैं अब उसे परेशान नहीं करना चाहती थी और दूसरे मुझे अब लंड अन्दर लेने की खुद ही जल्दी होने लगी थी। यद्यपि मेरी चूत की इच्छा अभी लंड लेने की नहीं थी, पर दिल से उस लंड पर बहुत प्यार आ रहा था।
मैं फिर उसके बगल में लेटते हुए बोली- अब तुम अपना मोर्चा संभालो। उसने मुझे पलट दिया, चूत नीचे गांड ऊपर कर दी।
उसने चिकोटी वाली जगह गर्म जीभ से सहलाई। फिर वह टेबल से चम्मच उठाकर उस नीले निशान पर वीर्य डाला। फिर लौड़ा पकड़ कर टोपा वहाँ भिड़ाया और उससे वीर्य की मालिश करता रहा। वह चिकोटी का दर्द तो मैं अभी हुई चुदाई के दौरान भुला बैठी थी। गर्म टोपे जो मालिश हो रही थी, बड़ी भली लग रही थी। कुछ देर में रगड़-रगड़ कर वीर्य सुखा दिया। कुछ चूतड़ पर सूखा.. कुछ लंड पर।
फिर उसने मुझे पलटा.. मेरी चूत को चाटने लगा। हाल ही में चुदी हुई चूत रस से भरी थी। उसने चटखाने लेकर मेरी चूत चाटी और चूसी।
बड़ा मजा, बड़ा आनन्द आया।
उसने चूत से मुँह हटाया तो मैंने कहा कि एक बार दोनों निप्पल और मेरे होंठ और चूस दो।
वह वही करने लगा साथ में बोला- मैं लगता है अब जल्दी झड़ जाऊँगा, बस पका पड़ा हूँ। तुम्हारी क्या कंडीशन है? मैंने कहा- मुझे तो टाइम लगेगा, शायद डेढ़-दो सौ बार पेलना पड़ेगा।
उसने कहा- मेरा तो शायद 50-60 धक्कों में ही काम हो जाएगा।
मुझे एक विचार आया और मैं उसे हटाकर बेड से नीचे आ गई। उसे झटका सा लगा.. मगर मैं मुस्कराते हुए बोली- तुम पैर नीचे लटका कर कर बैठो। एक और काम करते हैं।
‘क्या…?’ कहते हुए वो पैर लटका कर बैठ गया।
मैंने उसके घुटनों के बीच बैठ टोपा मुँह में लिया। लंड को हल्के-हल्के मुठ मारती रही, टोपा चूसती रही। उसने मेरे बालों में उंगलियां घुमाईं।
फिर मैंने उसे कहा- हाथ बढ़ाकर चूचियां पकड़ लो। तो उसने दोनों चूचियों को दबाना, मसलना, निप्पल मसलना चालू किया।
मैंने उससे कहा- तुम यह मत सोचना कि अभी मैं लंड का पानी निकाल कर चली जाऊँगी। नहीं.. जो चुदाई तुम अभी मेरी करने वाले थे, वह करवा कर ही जाऊँगी। तुम चिंता मत करो.. मैं तुम्हें खुद गरम करूँगी.. यह लंड अपनी चूत में पिलवाने के लिए खुद खड़ा करूँगी। फिर तुम जैसे मन में आए वैसे चोद लेना।
मेरे चूसने पर वो सिसकारियां भर रहा था। मैं कभी टोपा मुँह से निकाल जीभ से चाटती.. तो कभी करीब आधा लंड मुँह में लेकर चूसती। उसे बहुत अच्छा लग ही रहा था.. मगर मैं भी अपनी बड़ी पुरानी हसरत, एक अच्छा लंड तसल्ली से चूसने की पूरी कर रही थी।
मैंने शायद जितना चाहा था.. उससे ज्यादा ही आज लंड चूसकर पूरी तरह तृप्त हो गई।
आगे इस कहानी के अंतिम भाग में आपको जानने को मिलेगा कि आगे क्या हुआ।
ईमेल भेजते रहिए.. इन्तजार रहता है। [email protected] कहानी जारी है।
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