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मेरे मोहल्ले में एक मोटर ट्रैक्टर सुधारने की वर्कशॉप थी जिसे पठान चाचा चलाते थे। उनका एक बेटा था जो दुकान में उनकी मदद करता था, उसका नाम था इसहाक वह लगभग बीस बाइस साल का होगा, लम्बा तगड़ा, घुंघराले बाल, सांवला!
मैं तब बारहवीं में पढ़ता था यही कोई अठरह साल का रहा होऊँगा। उससे मेरी दोस्ती हो गई।
एक दिन बरसात का मौसम था बोला- चल बाग में जामुन खाने चलते हैं। मैं उसके साथ एक बाग में जामुन खाने चला गया।
तभी बरसात होने लगी तो हम दोनों एक छतरी (समाधि पर बनाया एक गोल बरांडा) में छुप गए। तभी मुझे जोर से लेट्रिन लगी। कपड़े न भीगें इस डर से मैंने सारे कपड़े उतार दिए और भीगते हुए बारिश में चला गया।
जब लौट कर आया तो इसहाक मुझे बड़े ध्यान से देखने लगा, वह बोला- बैठ जा! मैंने कहा- मैं लेट्रिन साफ नहीं कर पाया, अभी नहीं बैठ पाऊँगा।
उसने कहा- ठहर, मैं पत्ते से साफ करे देता हूँ… जरा झुक आगे को! और मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए सहलाने लगा।
मैं झुक गया। उसने पहले तो वास्तव में मेरी गांड साफ की, फिर मुझे कुछ गुदगुदा सा लगा। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
जब तक मैं समझता, तब तक उसने अपना थूक लगा कर अपना लंड मेरी गांड में पेल दिया। मैं आ आह कर के रह गया।
मैंने कहा- इसहाक भाई, यह क्या कर रहे हो? तो इसहाक ने कहा- बस थोड़ा सबर कर! मेरे अच्छे दोस्त, थोड़ी ढीली कर ले… सुपारा चला गया है!
और मेरे दोनों चूतड़ अपने हाथों से मसलने लगा। मैं कमर झुकाए खड़ा था।
उसने मेरी गरदन में एक हाथ डाला और मेरा मुँह चूम लिया। वह मेरे ऊपर झुका था, एक जोरदार धक्के से पूरा लंड मेरी गांड के अंदर कर दिया। मैंने दर्द के कारण गांड सिकोड़ ली, उसका पूरा अंदर था। वह बार बार मेरे कान के पास फुसफुसा रहा था- सिकोड़ मत… लगेगी! ढीली कर… पूरा चला गया, बस थोड़ा रह गया है मेरे दोस्त!
उसने मेरी कमर कस के पकड़ ली और दे दनादन दे दनादन धक्के पर धक्का… मेरी गांड फाड़ कर रख दी।
फिर मुझे दीवाल के सहारे सीधा खड़ा कर दिया और पीछे से चिपट गया, लगा ही रहा!
मेरी गांड… लग रहा था जैसे आज तो फट ही जाएगी। न जाने कब तक लगा रहा… उधर बरसात रुक गई, इधर मेरी गांड पर उसकी ठोकरें रुकी।
तब हम दोनों तालाब पर गए, मैंने गांड धोई।
तभी न जाने क्या हुआ, मेरा खड़ा लंड उसने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा, बोला- यार तूने बड़ा मजा दिया, बोल मेरी गांड मारेगा? और अपनी पैंट खोल कर वहीं औंधा हो गया।
तब मैंने उसकी गांड मारी।
उसके बाद हम कई बार उसके साथ गए और मेरी गांड ने उस गांड फाड़ू लंड के धक्के कई बार झेले।
पर दोस्तो, आप में से जिन्होंने भी अपनी गांड पर लंड के धक्के झेले हैं, जानते हैं कि माशूक लौंडा जिन्हें कुदरत ने गोरी चिकनी गुलाबी गांड उपहार में दी है, लौंडेबाजों के लम्बे मोटे कड़कड़ाते लंडों के धक्के झेलना ही पड़ते हैं, चिकनी गांड को भी बिना मराए चैन नहीं पड़ता। एक बार मैं इसहाक भाई के साथ गांड मरा कर लौट रहा था, गांड लंड के मजा लेने से चिनमिना रही थी। जाड़े का मौसम था, जनवरी का माह रहा होगा, रात के यही कोई आठ बजे होंगे, हम बस स्टेंड के पास से गुजरे।
बस स्टेंड के मैदान में एक व्यक्ति खड़ा दिखा, पास से देखने पर इसहाक भाई ने उसे पहचाना। वह राजा था… कानपुर इंजीनियर कॉलेज का छात्र था।
पहले वो मेरे ही स्कूल का छात्र था, भयंकर लौंडेबाज और गांडू! उसने कई मास्टरों और लौंडों से गांड मराई थी।
इसहाक भाई ने भी उसकी गांड कई बार मारी थी। उस देख हम रुक गए, वह मुझसे लगभग दो वर्ष बड़ा होगा। मेरी गांड और मेरे कई दोस्तों की गांड को निपटा चुका था, अभी अभी बस से उतरा था, अकेला खड़ा था।
हमें देख बैग हमारी साईकिल पर रख दिया, हम सब पैदल चलने लगे। बीच में पार्क पड़ता था, राजा इसहाक भाई से पार्क में बोला- भैया को लगा के आ रहे हो? इसहाक भाई मुस्कराए।
राजा बोला- मैं तो बहुत दिनों से प्यासा हूँ।
सड़क सुनसान थी, राजा बोला- – इसहाक! साइकिल रोको, खड़े रहो, रुको थोड़ी देर!
और मुझे पकड़ कर सड़क से थोड़ा दूर बाउन्ड्री पर ले गया, दीवाल की तरफ मेरा मुँह करवा कर उसने दीवाल से टिका दिया और मेरी पैंट खोल दी।
अंधेरे में ही अपने लंड पर थूक लगा कर मेरी गांड पर टिका दिया, बोला- डाल रहा हूँ, ढीली कर।
मेरी तो वैसे ही ढीली थी, जल्दी ही दूसरा लंड मेरी गांड मे पिल गया। वह वाकयी प्यासा था, धक्के पर धक्के देने लगा।
मैं भी मस्त हो गया। वह भी बहुत मस्ती से लंड पेल रहा था।
एक बार उसका लंड बाहर निकल गया, उसे मेरी गांड अंधेरे में ढूंढने में दिक्कत आई, बाहर ही जांघों के बीच पेलता रहा। तब मैंने बताया- बाहर है।
फिर उसने गांड में डाला, वह जल्दी ही झड़ गया।
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