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एक अजीब सी अनुभूति उसे और हुई… जैसे उसकी योनि में खुजली सी हो रही हो और जिसे मिटाने के लिये उसे अपनी योनि को ऊपर नीचे करके उसे घर्षण देना होगा।
घर्षण के लिये उसे थोड़ा आगे सोनू के सीने की तरफ झुकना पड़ा और सहारे के लिये सोनू के सीने पर हाथ टिकाने पड़े और यूँ उसके भारी वक्ष बेसहारा हो कर झूलने लगे।
तब उसे घर्षण के लिये अपने शरीर को आगे पीछे करने में आसानी हुई जिससे योनि में पैदा होती वह कसक मिटने लगी। दीवारें कसावट लिये थीं इसलिए रगड़न भी भरपूर मिल रही थी।
यूँ जनाने आघातों पर उसके बेसहारा लटकते वक्ष आगे पीछे झूल रहे थे जिन्हें सोनू अपने हाथों में लेकर मसलने दबाने लगा था।
कुछ देर में उसे इस पोजेशन में असुविधा होने लगी तो वह सीधी हो कर बैठ गई… लिंग वैसे ही उसकी योनि में समाया हुआ था। उसने सोनू को बाहों से पकड़ कर ऊपर खींचा, जिससे सोनू उठ कर बैठ गया।
अब उनकी पोजीशन ऐसी थी कि सोनू दोनों पैर सीधे फैलाये बैठा हुआ था और शीला उसके लिंग को अपनी योनि में दबाये उसकी गोद में बैठी हुई थी।
वह सोनू के कंधों पर पकड़ बनाते ऊपर नीचे होने लगी जिससे घर्षण की निरंतरता फिर चालू हो गई।
वह जल्दी ही चरम पर पहुंचने लगी… जबकि सोनू अपने पर पूरा नियंत्रण रखे हुए था। अंतिम चरण में वह सोनू के मुंह पर अपने वक्ष मसलती ऊपर नीचे होने लगी थी।
और सोनू भी उन्हें मुंह से चूमता, काटता, दबाता अपने हाथों से उसकी पीठ, नितम्ब दबाने सहलाने और मसलने लगा था।
उस घड़ी जैसे दोनों एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद में लग गये थे… और अंतिम सीढ़ी पर पहुंचते ही शीला के अंतर से एक झरना फूट पड़ा। ज़ोर-ज़ोर से सिसकरते हुए वह सोनू के शरीर को अपने शरीर से रगड़ते भींचने लगी, योनि की मांसपेशियां फैलने सिकुड़ने लगीं और कंपकंपाहट के साथ वह स्खलित होने लगी।
जब उसकी मांसपेशियों में आया तनाव ख़त्म हुआ तो वह सोनू से बुरी तरह चिपटी हुई ढीली पड़ गई।
सोनू भी अब अनुभवी खिलाड़ी था, इस अवस्था को समझता था इसलिये उसने अपने शरीर को शिथिल कर लिया था और अपने हाथ की क्रियाएँ थाम ली थीं।
करीब तीन मिनट तक वे शिथिल से उसी अवस्था में बैठे रहे लेकिन सोनू का गर्म, कड़कता लिंग अभी भी उसकी योनि की दीवारों को यह अहसास करा रहा था कि खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ।
धीरे धीरे सोनू ने फिर उसकी नितंबों को मुट्ठी में भींचते मसलना शुरू किया और शीला ने चेहरा ऊपर उठाया तो उसके होंठ थाम लिए और उन्हें भी चूसने लगा।
उसके होंठों के आसपास शीला की योनि का रस लगा था जिसका स्वाद शीला ने उसके होंठों के मर्दन के साथ ही अनुभव किया लेकिन इससे उसके मन में कोई घिन जैसी अनुभूति न पैदा हुई।
वह चुम्बन में सहयोग करने लगी और एक प्रगाढ़ चुम्बन ने उसकी रगों में वही रोमांच फिर पैदा कर दिया। वह सोनू की पीठ सहलाने लगी और सोनू थोड़ा तिरछा हो कर एक हाथ से उसके वक्ष मसलने लगा और दूसरे हाथ से उसके नितंबों की दरार को ऐसे रगड़ने, खोदने लगा कि उसकी उंगलियों की छुअन जब शीला के गुदाद्वार पर होती तो उसे बेचैन कर जाती।
फिर वह उसी छेद को उंगली से इस तरह खोदने लगा कि उंगली से घुसाने के लिए दबाव तो डालता मगर घुसाता नहीं। एक अलग क़िस्म का रोमांच उसके नसों में चिटकन पैदा करने लगा।
इस चूषण और रगड़न से जब वह इस स्थिति में पहुंच गई कि खुद उसकी कमर में एक लयबद्ध थिरकन पैदा हो गई तो सोनू ने उसे अपनी गोद से हटा दिया।
वह फिर बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा हो गया और शीला को खींच कर किनारे कर लिया, अपनी तरफ शीला की पीठ करके, उसके कंधे पर दबाव बनाते, उसे इतना नीचे झुकाया कि वह बिस्तर से लग गई।
वह पहले भी यही करना चाहता था मगर शीला ने सहयोग नहीं किया था लेकिन अब वह उसके हाथ के इशारे पर नाच रही थी।
अब सूरते हाल ये थी कि वह बिस्तर के एकदम किनारे पर अपने घुटने टिकाये इस तरह झुकी हुई थी कि उसके नितम्ब हवा में ऊपर उठे थे मगर सीना, चेहरा बिस्तर से लगा था।
सोनू ने थोड़ा नीचे झुक कर उसकी बहती, चूती योनि को चाटना शुरू किया। उसके मुंह से मदमस्त सी कराहें फूटने लगीं।
थोड़ी देर में ही वह फिर उत्कर्ष की बुलंदियों पर उड़ने लगी और तब सोनू ने खड़े होकर अपना लिंग उसके थोड़े खुल चुके छेद पर टिका कर दबाया और अंदर उतार दिया।
इस रुख में दीवारों की कसावट और ज्यादा महसूस हुई। और उसके लिंग की अंतिम चोट शीला को अपनी बच्चेदानी पर महसूस हुई।
वह उसके नितंबों को थपथपाते, भींचते लिंग को अंदर बाहर करने लगा। शीला यौनानन्द के समंदर में गोते लगाने लगी। दिमाग से सिवा इस आनन्द के और सबकुछ निकल गया।
आघातों की गति क्रमशः बढ़ती गई और एक नौबत यह भी आई की उसके धक्कों ने तूफानी गति पकड़ ली और कमरे में ज़ोरों की ‘थप-थप’ गूंजने लगी।
हर चोट पर शीला के मुंह से भिंची-भिंची आह-आह निकल रही थी जो धीरे-धीरे तेज़ होती जा रही थी।
फिर जब सोनू का इस आसन से दिल भर गया तो वह उसे लिये इस तरह बिस्तर पर आ गया कि लिंग बाहर न निकला और वैसे ही शीला के पैर सीधे हो गये। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
अब वह उसकी पीठ की तरफ से उसे भोग रहा था। उसकी एक टांग सोनू ने अपनी जांघ के ऊपर उठा दी थी, उसके शरीर को तिरछा कर लिया था जिससे योनिभेदन के साथ ही वह एक हाथ से उसके वक्ष मसल रहा था। मसल क्या रहा था बल्कि पूरी ताक़त से भींच रहा था, नोच रहा था और साथ ही थोड़ा चेहरा आगे कर के, अपने दूसरे हाथ से उसका चेहरा घुमा कर होंठ भी बीच-बीच में चूस रहा था।
और इन्हीं आघातों में दोनों चरम पर पहुंच गये। ज़ोर की आवाज़ों के साथ दोनों ही अकड़ गये… जिस सुख में शीला अकड़ गई, उसकी योनि ने सोनू के लिंग को भींच लिया और इसी संकुचन में सोनू भी फट पड़ा।
उसके लिंग ने सख्त और संकुचित होती दीवारों से अपना प्रतिरोध जताते हुए फूल कर ढेर सा वीर्य उगल दिया जिसकी गर्माहट शीला को एकदम अपने गर्भाशय में महसूस हुई। पूरी तरह स्खलित हो कर वह अलग हो गये और हांफने लगे।
करीब दो मिनट बाद रानो ने सोनू को टहोका- चलो, अब जाओ, वरना चाचा जी खबर ले लेंगे।
थका थका सोनू अनमने भाव से उठ खड़ा हुआ और कपड़े पहनने लगा, जबकि शीला वैसे ही खामोश पड़ी रही। कपड़े पहन कर वह बाहर निकल गया… साथ ही रानो भी।
सोनू को रुखसत कर के रानो वापस आई तो उसने कमरे की बत्ती जला दी।
तेज़ रोशनी ने शीला को चौंका दिया और वह उठ कर बैठ गई, उसने जल्दी से अपनी नाइटी दुरुस्त की और उठ खड़ी हुई।
जाने क्यों उसे इस घड़ी रानो ने निगाहें मिलाने में शर्म आ रही थी। वह उठ कर बाहर बाथरूम की तरफ चली गई।
जब तक वापस आई, बिस्तर की चादर चेंज कर के रानो बिस्तर की हालात सुधार चुकी थी और उसके लेटते ही उसने लाइट बंद कर दी और खुद भी आ लेटी।
‘ह्म्म्म… तो कैसा लगा?’ थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद उसने शीला को छेड़ा। शीला जैसे इस सवाल से बचना चाहती थी।
थोड़ी देर चुप रही और बोली भी तो यह कि वह उन क्षणों में कैसी बेशर्म हो गई थी, सारी लोक लाज किनारे रख दी थी।
‘यह अच्छी बात थी कि तुमने जल्द ही इस बात को समझ लिया कि सम्भोग के इन पलों में खुद को समेटे रखना अपने आप से अन्याय करने जैसा है। ऐसे हालात में यही बेशर्मी इस सुख को दोगुना कर देती है। पर मेरा सवाल अभी भी है दी… कैसा लगा?’
‘हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा है, नीचे भी और ऊपर भी।’
‘हाँ वह रहेगी शुरुआत में, कल दर्द और सूजन की मैं दवा ला दूंगी, दो दिन में नार्मल हो जायेगा। आगे से दर्द ख़त्म हो जायेगा। पर यह कहो कि मज़ा आया या नहीं?’
‘बहुत…’ सिर्फ तीन अक्षर बोलने में उसे बड़ी मेहनत लगी और बोल कर शर्म ऐसी आई कि उसने चेहरा ही घुमा लिया। ‘आत्मा पर चढ़ा बोझ उतर गया?’ ‘उतर गया या और भारी हो गया?’
‘यह तो देखने वाले के नज़रिये पर डिपेंड करता है कि वह आधा खाली गिलास देख रहा है या आधा भरा हुआ। दोनों ही नज़रिये अपनी जगह ठीक हैं पर ये आप पे डिपेंड है कि आप क्या देख रहे हैं।’
‘इतना आसान नहीं बचपन के संस्कारों से लड़ना और जीतना।’
‘हम जैसी अभिशप्त औरतों के लिये तो दुनिया में सांस लेना भी आसान नहीं दीदी। बस दिमाग में भरे हुए इस कचरे को निकाल फेंको कि हम कोई सामाजिक मर्यादा या वर्जना तोड़ रहे हैं। ये छोटे-छोटे शब्द जिनका वज़न पहाड़ों से भी ज्यादा है, उन लोगों के लिये हैं जिनके पास विकल्प हैं। हम तो वे विकल्पहीन औरतें हैं जिनके पास चुनने के लिये कुछ है ही नहीं।’
‘सुन… अगर गर्भ रह गया तो?’
‘गर्भ ओव्युलेशन पीरियड के दौरान सम्भोग करने से होता है और जहाँ तक मुझे पता है कि तुम्हारी माहवारी आये बीस दिन से ज्यादा हो चुके हैं इसलिये इसकी कोई सम्भावना नहीं।’
‘आज की बात नहीं… वैसे? जैसे तू करती है जब तब?’
‘मैं शुरू में गर्भनिरोधक गोलियाँ खाती थी लेकिन बाद में छोड़ दिया। ओव्यूलेशन पीरियड के दौरान हम अगर करते हैं तो कंडोम इस्तेमाल कर लेते हैं और जब रिस्क नही रहती तो ऐसे ही करते हैं।’
‘मगर…’
‘तुम चिंता न करो… मैं देख लूंगी। कुछ नहीं होगा। अब छोड़ो इन बातों को और जो पल अभी गुज़रे उन्हें याद करते सो जाओ। गुड नाइट!’ कह कर वह तो चुप हो गई।
मगर शीला को बहुत देर तक फिर भी नींद नहीं आई। उसे अभी भी लग रहा था जैसे सोनू उसके जिस्म का मर्दन कर रहा हो, वक्ष वैसे ही कसक रहे हों, योनि वैसे ही मसक रही हो। जैसे तैसे करके बड़ी मुश्किल से वह सो सकी।
अगले दिन सुबह ही रानो से सोनू से दवा मंगा दी थी ताकि उसे किसी किस्म की परेशानी न हो और वह घर के काम निपटा के अपने काम पे निकल गई थी।
शाम को वापसी में सीधे अपने घर न जाकर रंजना के घर चली आई थी। चाचा जी तो अभी आये नहीं थे और चाची भी पड़ोस में गई हुई थीं।
अकेली रंजना ही थी और उसे रंजना से लिपट कर जी भर के रोने का मौका मिल गया था। रंजना उसके हालात से अनजान तो नहीं थी, सब समझती थी… खुद भी उससे अलग नहीं थी।
वह उसे संभालने की कोशिश करती रही… मगर शीला तब ही चुप हुई जब उसके मन में भरा सारा गुबार निकल गया।
जितनी परिपक्वता से रंजना ने रानो को समझाया था उसी परिपक्वता से उसने शीला से छोटे होने के बावजूद उसे भी समझाया और शीला को उससे बात करके बड़ी तसल्ली मिली।
उनकी बातें तब ही ख़त्म हुईं जब चाची आ गईं और फिर वह अपने घर आ गई।
बचे खुचे घर के सारे काम निपटा के दस बजे जब दोनों बहनें बिस्तर पे लेटी तो दिमाग में वही सिलसिला फिर चल निकला। रानो की दी हुई दावा का असर हुआ था और उसे दर्द से राहत रही थी।
अब दिन भर के काम और थकन के बाद जब पीठ बिस्तर से लगी थी और तन को थोड़ा आराम मिला था तो ख्याली रौ फिर सहवास की कल्पनाओं की तरफ मुड़ चली थी।
कल अनअपेक्षित था लेकिन आज जैसे खुद वह उस सोनू का इंतज़ार कर रही थी जिससे उसका लगाव अब एक अलग शक्ल अख्तियार कर चुका था।
ग्यारह दस पर आज वह आया और फिर कल की ही तरह रानो उनके लिए नगण्य हो गई और दोनों ने एक भरपूर ढंग से सहवास किया जिसमे शीला दो बार स्खलित हुई और सोनू एक बार।
हालांकि शीला के लिए यह अनुभव नया था और वह इसे ज्यादा से ज्यादा पा लेना चाहती थी लेकिन रानो के लिये यह भी ज़रूरी था कि वह सोनू का इस वजह से भी ख्याल रखे कि उसे रानो को भी भोगना होता था।
इसलिये एक बार में ही उसे चलता कर दिया और दोनों सुकून से सो गई। रानो का तो नही कहा जा सकता मगर शीला तो वाकई सुकून से ही सोई थी।
प्रथम सम्भोग के हिसाब से देखें तो तीसरा दिन तो रोज़ जैसा व्यस्तताओं से भरा गुज़रा और रात भी शांति से ही गुज़री क्योंकि आज सोनू को चाचा जी ने अपने साथ किसी काम से लगा लिया था तो उसके आने की सम्भावना ख़त्म हो गई थी।
और चौथी रात चाचा ने पुकार लगा दी।
दोनों बहनें साथ ही चाचा के कमरे में पहुंची थीं जहां चाचा अपना स्थूलकाय लिंग पाजामे से बाहर निकाले दरवाज़े की तरफ देख रहा था। उन दोनों को देख उसके चेहरे पर चमक आ गई थी।
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