शीला का शील-5

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मैं यह नहीं कह सकती कि मैंने कभी लिंग देखा नहीं था, चाचा का देखा था, उतना बड़ा तो नहीं पर फिर भी बड़ा था… सात इंच तक तो ज़रूर था और वैसे ही मोटा भी।

मेरे हलक में जैसे कुछ फंस गया… एक मादकता से भरी सरसराहट नीचे दोनों टांगों के बीच होने लगी लेकिन उसी पल बचपन के संस्कार और समाज के नियम नाम के दो फ़रिश्ते वहाँ पहुंच गये। उन्होंने मुझे सोनू को पुकारने नहीं दिया, मेरे शब्द हलक में घुट गये, मेरे बाजुओं को पकड़ लिया और मुझे खिड़की-दरवाज़ा खटखटाने नहीं दिया। कुछ देर उनसे जूझते फिर बेबसी से मैं वापस हो गई।

मैं रंजना से यह कहकर कि मुझमें खुद आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं, कभी वह खुद से आगे बढ़ेगा तो देखा जाएगा… वहाँ से चली आई।

फिर दो दिन बाद ऐसा मौका आया जब दोपहर में रंजना ने उसे मुझे बुलाने भेजा। मैंने उसे यही कहा कि मैं आधे घंटे बाद आकृति के आ जाने के बाद आ पाऊँगी।

उस वक़्त मैं अकेली ही तो होती हूँ, एक बजे आकृति आती और दो बजे बबलू।

उसने चाय पीने की इच्छा की तो उसे बरामदे में बिठा कर मैं किचन में चली आई। मैं उस वक़्त सिंक में कुछ धो रही थी कि चुपके से वह मेरे पीछे आ खड़ा हुआ। मैंने एकदम पलट के देखा तो वह मुझसे ऐसे सट गया जैसे बस में सटा था।

मेरे हाथ रुक गये। ‘यहाँ कौन सी भीड़ है?’ मैंने थोड़े गुस्से से कहा। ‘अपना काम करती रहो दीदी।’ उसने मेरी कमर थामते हुए कहा।

उसके स्पर्श ने मुझे झटका दिया था, नैतिकता और नियमों वाले फ़रिश्ते फिर सामने आये पर मैं उन्हें दूर ही रहने को कहा और उस स्पर्श को महसूस करने लगी कि वह मुझे कैसा लग रहा था।

एक नर्म गुदगुदाहट का अहसास, रोएं खड़े हो गये थे… सीने के उभारों में एक कसक और दोनों जांघों के बीच छुपी हुई जगह में एक मखमली हलचल। एक मस्ती भरी सनसनाहट महसूस होने लगी थी।

दिमाग में रंजना की बातें गूंजने लगीं। क्या इस वक़्त के गुज़र जाने के बाद मैं फिर वापस ला सकती थी?

नहीं, तो क्यों मैं इसे ऐसे ही गुज़र जाने दूँ। मैंने सामने खड़े दोनों फरिश्तों को बाय कर दिया। और इत्मीनान से खड़ी होके अपना काम करने लगी।

यह और बात थी कि दिमाग इस चीज़ पर एकाग्र था कि क्या हो रहा था और जो हो रहा था उससे मुझे क्या महसूस हो रहा था। उसने दोनों हाथों से मेरे नितम्ब सहलाये थे… मेरी कमर को रगड़ते हुए अपने हाथ ऊपर खींचे थे और ऊपर अपनी दोनों मुट्ठियों में मेरे अवयव कस लिए थे।

मेरे पूरे शरीर में लज्जत भरी गर्महाहट और कंपकपाहट पैदा हो गई थी, दिमाग पर ऐसा नशा छाने लगा था जिसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता।

फिर उसने हाथ नीचे किये और मेरे कुर्ते के दामन को ऊपर उठा कर पकड़ लिया। नीचे मैंने लेगिंग पहनी हुई थी, उसने लेगिंग को एकदम से ऐसे नीचे किया कि मेरे कूल्हे अनावृत हो गये।

शर्म का एक तेज़ अहसास हुआ मुझे और मैंने अपने हाथ से उसे फिर ऊपर चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में भी मैंने अपनी दिशा नहीं बदली थी।

मैंने ऊपर चढ़ाया तो उसने फिर नीचे कर दिया… मैंने फिर चढ़ाया, उसने फिर नीचे कर दिया और कई बार की कोशिश ने मेरी शर्म को हरा दिया और हाथ वापस ऊपर सिंक की तरफ आ गया।

मैं पीछे मुड़ कर उस इंसान का सामना नहीं करना चाहती थी, जिसे हमेशा किसी और नज़र से देखती आई थी। बस सामने देखते मन की आँखों से उसे महसूस कर रही थी।

फिर उसने अपनी पैंट आगे से खोली थी शायद… क्योंकि अगले ही पल उसके लिंग की तेज़ गर्माहट मुझे अपने नितम्ब पर महसूस हुई थी। वह फिर मुझसे इस तरह सट गया कि बीच में उसका सख्त लिंग मुझे चुभन देने लगा।

कुछ देर की गर्माहट के बाद वह हट गया और फिर एक हाथ से कुर्ते का दामन थामे दूसरे हाथ से शायद अपना लिंग पकड़ के मेरे नितंबों की दरार में फिराने लगा।

‘रंजना दी ने मुझे बता दिया था कि आपको कोई ऐतराज़ नहीं, बस आगे मुझे बढ़ना होगा।’ उसने लिंग की छुअन नितम्ब की दरार में मौजूद छेद पर देते हुए कहा।

जानकार मुझे हैरानी नहीं हुई और मैंने कुछ रियेक्ट भी नहीं किया। बस पूरी एकाग्रता से उस स्पर्श को अनुभव करती रही जो मुझे सर से पांव तक रोमांचित कर रहा था। फिर उसने दामन छोड़ दोनों हाथों से दोनों कूल्हों को एकदूसरे के समानांतर खींचा… ऐसे दोनों के फट जाने से न सिर्फ उसे मेरा गुदाद्वार दिख गया होगा बल्कि योनि का निचला सिरा भी दिखा होगा।

उसने एक उंगली उस घडी गीली हो चुकी योनि में फिराई। मुझे करेंट सा लगा और मैंने चिहुंक कर हटने की कोशिश की पर उसने उसी पल ताक़त लगा कर मुझे रोक लिया और अपना लिंग नीचे झुकाते हुए पीछे से ऐसे घुसाया कि योनि को छूते हुए आगे आ गया।

इस स्थिति में मैं उसके लिंग को अपनी जांघों के बीच पा रही थी और मेरी योनि के खुले अधखुले लब उसके ऊपरी सिरे को रगड़ते हुए गीला कर रहे थे। वह इस तरह मेरी योनि के अंदरूनी भाग की गर्माहट महसूस कर सकता था और साथ ही मेरी जाँघों की कसावट भी!

इसके बाद वह फिर मेरी पीठ से सट गया। अपने हाथ उसने मेरे कुर्ते में पेट की तरफ से घुसा लिये थे और ऊपर चढ़ाते, मेरी ब्रा को ऊपर की तरफ धकेल कर, दोनों उभारों को बाहर निकाल लिया था और उन्हें मसलने लगा था।

अब जो महसूस हो रहा था वह यह कि जितना मज़ा आ रहा था उससे ज्यादा एक अजीब किस्म की बेचैनी हो रही थी। उसके हाथों से मेरे वक्षों का मसलना जितना मज़ा दे रहा था उससे ज्यादा निप्पल्स पर मिलने वाली रगड़ रोमांचित कर रही थी।

तभी बाहर किसी ने घंटी बजा दी, सारी कल्पनाएं झटके से छिन्न-भिन्न हो गईं और हम एकदम आसमान से ज़मीन पर आ गये। जल्दी से एकदूसरे से अलग होकर कपड़े दुरुस्त किये और उसे बरामदे में बैठने का इशारा करके मैं दरवाज़ा खोलने भागी।

उम्मीद के मुताबिक आकृति ही आई थी। सोनू तो घर का ही बंदा था इसलिये शक़ की कोई गुंजाईश नहीं थी।

उसे चाय पिलाई और आकृति से कह कर कि मैं रंजना के पास जा रही हूं… घर से चल दी। रंजना मेरा इंतज़ार ही कर रही थी।

उसे मैंने आज की बात बताई तो उसे ख़ुशी हुई कि मैंने एक बाधा तो पार की।

फिर उसने बताया कि उसने इसीलिये मुझे बुलाया था क्योंकि आज माँ-बाबा बाराबंकी गये हैं किसी काम से और शाम तक आएंगे। बच्चे भी चार बजे आने हैं… बीच में हमारे पास दो घंटे पूरी तरह अपने तरीके से गुज़ारने का मौका है और चाहे तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

मेरी ज़ुबान गुंग हो गई… मैं कह न पाई कि घर में जो आग सोनू ने लगाई थी वह अभी भी अधूरी है और बिना अंत तक पहुंचे मुझे चैन नहीं देगी।

पर वह सब समझती थी, मुझे बाद में पता चला कि उसे ऐसे हालात में इंसान पर क्या गुज़रती है इसका इल्म था… वह खुद मुझे ऊपर सोनू के पास ले के पहुंची थी।

‘सोनू, ध्यान से करना… जानवरों जैसा बर्ताव न करना और रानो… तू दिमाग से सबकुछ निकाल दे और दो घंटों के लिए खुद को हालात के भरोसे छोड़ दे। जो होता है होने दे। किसी मदद की ज़रूरत पड़ी तो मैं हूँ न।’ उसने मुझे भरोसा दिलाया था और कमरे से निकल गई थी।

सोनू ने लपक के दरवाज़ा बंद किया और एकदम से मुझ पर जैसे टूट ही पड़ा। अब तक वह मेरे लिए बच्चा ही था लेकिन अब मर्द महसूस हो रहा था, उसके पसीने की गंध मुझे उत्तेजित कर रही थी।

उसने मुझे बिस्तर पर गिरा लिया था और मेरे सीने को मसलते मेरे गालों पर अपने होंठ रगड़ रहा था। दिमाग में अभी भी कहीं न कहीं, गलत, अनैतिक जैसी क्षीण सी भावनाएं मौजूद थीं और साथ ही ये अहसास भी कि वह कितना छोटा था।

फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ सटा दिये। अजीब सा गीला-गीला लगा लेकिन जब उसने होंठों को चूसना शुरू किया तो जल्दी ही मुझे अहसास हो गया कि मैं खुद को उसका मज़ा लेने से रोक नहीं सकती थी।

पहली बार मैंने महसूस किया कि मैं अपने खोल से बाहर निकली हूँ… मैंने खुद से आगे बढ़ कर उस चीज़ को हासिल करने की कोशिश की है जो मुझे आनन्द प्रदान कर रही थी।

मैंने खुद से उसके होंठों को चूसना शुरू किया और मेरी तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलते ही उसमें और जोश आ गया। वह ऐसे मेरे होंठ चूसने खींचने लगा जैसे चबा ही डालेगा।

फिर जाने किस भावना के वशीभूत होकर मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुंह में पहुंचा दी और वह वैसी ही बेताबी और जोश से उसे भी चूसने लगा। फिर मैंने जीभ खींची तो पीछा करते उसने जीभ मेरे मुंह में घुसा दी जिसे मैं चूसने लगी।

उसके दोनों हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे, मेरे वक्ष का मर्दन कर रहे थे, कपड़े के ऊपर से ही मेरी योनि को रगड़ रहे थे और अब मेरे हाथ भी वर्जना को तोड़ कर उसकी पीठ पर फिरते उसे मसलने लगे थे।

दरअसल हम दोनों ही अनाड़ी थे, अनुभवहीन थे इसलिए दोनों के यौन-व्यवहार में उतावलापन था, बेताबी थी, जंगलीपन था, जल्दी ही सब सुख पा लेने की होड़ थी।

और इसीलिये दोनों ही एक दूसरे को मसले दे रहे थे, रगड़े दे रहे थे… वह कम नहीं था तो मैं भी पीछे नहीं थी। पहली बार तो मैंने लक्ष्मणरेखा लांघी थी… अब कुछ भी हो, मैं इन पलों को अच्छे से जी लेना चाहती थी। बिस्तर की हालात तहस-नहस हो गई थी।

फिर उसने मेरे कपड़े उतारने चालू किये, सबसे पहले कुर्ते को ऊपर खींचते उतार फेंका… शर्म ने मुझे कुछ देर तो बांधे रखा लेकिन जैसे ही उसने मेरी ब्रा को उतार कर अपने मुंह से मेरी चूचियों को रगड़ना-चुभलाना शुरू किया… उत्तेजना ने शर्म को फ़ना कर दिया।

मैंने भी उसकी टी-शर्ट नीचे से ऊपर की तरफ खींची और उसे उतार फेंका। फिर वह मेरे ऊपर लद गया… नग्न शरीर से नग्न शरीर का स्पर्श।

‘आह’ ! बता नहीं सकती कि इसमें क्या लज्जत है। ऐसा लगा जैसे खून में चिंगारियां उड़ने लगीं हों।

हम फिर ‘किस’ करने लगे और किस करते करते उसने मेरी सलवार का नाड़ा खींच कर खोल दिया और फिर एक झटके से उठ बैठा। उसने उंगलिया मेरी पैंटी के दोनों साइड ऐसे फंसाई कि नीचे खींचने पर सलवार समेत पैरों से निकलती चली गई।

अब मेरी बालों से ढकी योनि उसके सामने थी। उसने उत्तेजना भरी एक सांस खींचते हुए उसे मुट्ठी में दबोच लिया और झुक कर मेरे होंठ चूसने लगा। दूसरा हाथ उसने सपोर्ट के लिए मेरे सर के पीछे लगा लिया था।

जबकि योनि पर उसकी पकड़ ने मेरे अंदर की कामवासना और भड़का दी थी। मैंने हाथ से उसकी पैंट की बेल्ट पकड़ कर उसे खींचने की कोशिश की तो उसने खुद अपने योनि को पकड़ने वाले हाथ से बेल्ट खोल दी और सामने से अंडरवियर नीचे सरक दी।

उसका लिंग भी पूरी तरह तना हुआ था और लगभग खीरे जैसे उसके लिंग को मैंने हाथ से पकड़ लिया। कुछ नर्म कुछ सख्त अजीब सा अहसास हुआ।

वह पहला लिंग था जिसे मैंने थामा था। मैंने उसे ऊपर नीचे किया… ऐसा लगा जैसे वहाँ दो प्रकार की चमड़ी हो, एक अंदरूनी चमड़ी जो एक जगह स्थिर थी, दूसरी ऊपरी चमड़ी जो उस पर फिसल रही थी।

फिर उसने मुझे छोड़ा और अपनी पैंट उतार कर फेंक दी।

अब वह मेरे पैरों के बीच बैठ गया और मेरे दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर उन्हें इस तरह फैला लिया कि योनि खुल कर उसके सामने आ गई। मैं खुद से नहीं देख सकती थी, मैंने आँखें बंद कर ली और एक हाथ से मुट्ठी में चादर दबाते हुए दूसरे हाथ से स्वयं अपने वक्ष दबाने लगी।

जबकि सोनू ने उंगली से मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया था, वह वैसे ही गर्म भाप छोड़ रही थी। सोनू की उँगलियों की रगड़ ने उसे और तपा दिया, मेरे शरीर में लहरें पड़ने लगीं।

मैंने आँख खोल कर उसे ऐसे देखा जैसे कहने की कोशिश की हो कि अब घुसाओ।

उसने भी जैसे मेरी बात समझ ली हो और अपने लिंग पर थूक लगा के उसे मेरी योनि के छेद पर टिका दिया, फिर अपने हाथों की पकड़ मेरे मुड़े घुटनों पर बनाईं और एकदम से तेज़ धक्का लगा दिया।

चिकनाहट इतनी थी कि लिंग फिसल कर नीचे चला गया। उसने दोबारा और बेहतर ढंग से कोशिश की और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सर पर आसमान टूट पड़ा हो। एकदम जैसे कोई खंजर मेरे तन को चीरता अंदर घुसा हो और आधी दूरी पर फंस गया हो।

हलक से एक बिलबिलाती हुई चीख निकली थी और तड़प कर पैर सीधे करके उसे धकेलने की कोशिश की थी लेकिन सोनू ने घुटनों पर ऐसे सख्ती से हाथ जमाये थे कि सफल न हो सकी।

दिमाग में अँधेरा भर गया… सांय-सांय होने लगी। दर्द की तेज़ लहर के बीच मैंने महसूस किया कि सोनू ने फिर धक्का मारा था और मुझे ऐसा लगा कि उसका लिंग रुकेगा ही नहीं और मुझे अंदर तक फाड़ डालेगा। उसके गड़ने की, बच्चेदानी से टकराने की अनुभूति हुई।

‘ओऊं… आह… निकाsssss..लाल… लो….’ फंसी फंसी आवाज़ के साथ दर्द से छटपटाते मैं बस इतना कह पाई, जबकि सोनू ने वापस लिंग को योनि के मुंह तक खींचा था और फिर अगले धक्के में अंदर घुसा दिया था।

बर्दाश्त की इन्तहा हो गई। दर्द को सहन करने की कोशिश में मैंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी… इस हद तक कि दिमाग में अँधेरा भर गया और मैं संज्ञाशून्य हो गई।

मुझे अहसास था कि मैं उस वक़्त बेहोश ही हो गई थी और होश तब आया था जब बाहर दरवाज़ा पीटने के साथ रंजना की आवाज़ सुनी थी ‘दरवाज़ा खोल पगले… सोनू… सोनू… खोल…’

सोनू भी शायद किसी हद तक डर गया था मेरी हालत देख के, उसने खुद को ढकने का भी ख्याल नहीं किया और दरवाज़ा खोल दिया। रंजना लपक कर मेरे पास आई थी और मुझे संभालने लगी थी।

‘हाय राम… ज़रा भी तमीज नहीं… दोनों के दोनों अनाड़ी हो। कुछ सीखा ही नहीं अब तक!’ वह मेरे सर को सहलाती डांटने के अंदाज़ में बोली थी। सोनू पास ही खड़ा मूर्खों की तरह देख रहा था।

‘ऐसे करते हैं किसी कुंवारी लड़की के साथ?’ उसने सोनू को देख डपटते हुए कहा- एकदम जंगली की तरह घुसा दिया। अरे बंद कर ये बम्बू… मुझे दिखा रहा है… शर्म नहीं आती।’

उसके डपटने पर सोनू को अपने नंगेपन का ख्याल आया और उसने वही पड़ा मेरा दुपट्टा उठा कर कमर से लपेटते हुए रंजना को घूर कर पूछा- तुम्हें कैसे पता कैसे करते हैं?

‘मुझे सब पता है… समझे, जल्दी से थोड़ा पानी गुनगुना करके ला और अपने बम्बू को देख, उस पर खून लगा है, उसे भी साफ़ कर लेना। जा जल्दी।’

‘खून!’ मैंने भी सहमते हुए नीचे देखा, जहाँ अभी भी तेज़ पीड़ा की लहरें उठ रही थीं, वहीं जांघों के पास थोड़ा खून लगा था और थोड़ा नीचे चादर पर भी लग गया था।

‘कुछ नहीं, झिल्ली फटी है तेरी… कोई नहीं यार, कभी न कभी तो फटनी ही थी। थोड़ा ध्यान हटा दर्द की तरफ से, पहली बार में सबको झेलना पड़ता है। इसके पर ही सुख का समंदर है समझ।’

‘तुझे सेक्स के बारे में ये सब कैसे पता… कभी किया तो नहीं।’ ‘किया है मेरी जान, बस कभी बताया नहीं।’ ‘क्यों?’ मुझे सख्त हैरानी हुई कि हम दोनों के बीच कोई ऐसी भी बात थी जो उसने मुझसे छिपाई थी।

‘क्योंकि मैं अकेली नंगी थी और तूने कपड़े पहने हुए थे। समझ… अपना नंगापन छुपाने की ज़रूरत तब तक रहती है जब तक सामने वाले के कपड़े न उतर जायें, एक बार वह भी नंगा हुआ न तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’

‘कब किया? किसके साथ?’ मुझे अपनी हालत से ज्यादा दिलचस्पी उसका सच जानने में थी। ‘बाद में फुरसत से बताऊँगी, अभी इतना समझ कि पिछले साल जब गांव गई थी तो वहीँ मामा के जो लड़के हैं अवि भैया… उन्होंने ही मेरे साथ किया था। पहली बार ज़बरदस्ती, मेरी मर्ज़ी के खिलाफ, दूसरी बार मौके का फायदा उठा कर मुझे डरा कर और तीसरी बार मुझे खुद अच्छा लगा और चौथी बार मैंने खुद से कह कर कराया। यह ऐसा ही मज़ा है और मैं तो तरसी हुई थी और न आगे भविष्य में कोई उम्मीद दिख रही थी, जो मौका मिला उसे न भुनाती तो और क्या करती। वह शादी शुदा हैं, उनके बच्चे हैं… उन्होंने वचन लिया था कि जब तक उनसे हो सकेगा मेरी इस ज़रूरत को पूरा करते रहेंगे पर मैं कभी किसी को यह बात न बताऊं। अभी भी जब कभी वह आते हैं, हम में सेक्स होता है… पहले तुझे बताती तो अपनी मज़बूरी समझा न पाती पर अब तू खुद समझ सकती है तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’

तब तक सोनू पानी ले आया था, जिससे कपड़े को भिगा कर रंजना मेरी योनि को अच्छे से साफ़ करने लगी थी और सोनू सामने ही खड़ा देख रहा था। अपने नंगेपन और योनि को उन दोनों के बीच साफ़ कराने में मुझे खासी शर्म आ रही थी।

‘सोनू तुम बाहर जाओ, मैं अभी बुलाती हूं।’ मेरी बेचैनी और शर्म को समझते हुए रंजना ने सोनू से कहा और वह मुंह बनाता बाहर चला गया।

‘सुन, अवि भैया इस मामले में बेहद तजुर्बेकार थे और उन्होंने ऐसे किया था कि मुझे कोई खास तकलीफ नहीं हुई थी… तुझे बताऊं तो उस पगले को समझा पायेगी।’

‘नहीं… यह सब मेरे बस का नहीं, उसे ही समझाओ। मुझसे नहीं होगा।’

‘यार समझ मेरी जान, कुछ भी है, कितना भी खुलापन है हम दोनों के बीच मगर भाई है। कैसे मैं उससे समझाऊं कि क्या क्या करना है। कितनी बेशरम हो जाऊं।’

‘तो रहने दे आज… फिर कभी करेंगे, समझ लेगा किसी से कि कैसे करते हैं।’ मेरा दिमाग अजीब सा हो रहा था और मैं फैसला नहीं कर पा रही थी कि मैं रुकूँ, या चली जाऊं।

‘अच्छा चल तेरे लिए मैं बेशर्म ही हो जाती हूँ, जो हिम्मत तूने आज की है उसे पूरे तौर पर कर… जो शुरू हुआ है उसे अधूरा मत छोड़।’ वह पानी, कपड़ा समेटती उठ खड़ी हुई।

उसके जाने के बाद मैंने खुद को बिस्तर की चादर से ढक लिया और अगले तूफ़ान के आने की प्रतीक्षा करने लगी… योनि से सम्बंधित मांसपेशियां दर्द से ऐंठ रही थीं वह अलग।

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