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अनिता चाची भी हुस्न की मलिका थीं.. उनकी कमर बिल्कुल पतली सी थी। उनके चूचे संतोष ताई के मुकाबले में बहुत छोटे थे, पर उनके बूब हमेशा खड़े हुए रहते थे। वो ज़्यादातर पैन्टी या लहंगा डाल कर ही नहाती थीं, वो कभी-कभी ही पूरी नंगी होकर नहाती थीं। एक दिन मुझे उन्हें पूरी नंगी देखने का अवसर प्राप्त हुआ।
दोस्तो, मैं यादवेन्द्र फिर से हाजिर हूँ। मैं 23 साल का लड़का हूँ और फिलहाल नई दिल्ली में रह रहा हूँ।
आपने मेरी पिछली कहानी में पढ़ा था कि मैं संतोष ताई के साथ-साथ उनकी सबसे छोटी देवरानी अनिता को भी नहाते हुए देखता था पर मुझे संतोष ताई में ज़्यादा दिलचस्पी थी क्योंकि मुझे जिस्म से भरी हुई औरतें अच्छी लगती हैं।
यह घटना आज से लगभग 3 साल पुरानी है। संतोष ताई अपने नए घर में शिफ्ट हो चुकी थीं.. तो मुझे अब अनिता चाची पर ही ध्यान देना था।
हमारी और उनकी फैमिली के झगड़े के कारण जन्मे हालत अब नॉर्मल हो रहे थे, पर अभी भी सब कुछ पहले जैसा ठीक नहीं हुआ था, सिर्फ़ कुछ मतलब की बातें ही होती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अनिता चाची से बात करने की शुरूआत कैसे करूँ।
मेरी दादी के घुटने में दर्द रहता है.. मुझे इसी दर्द के लिए एक औषधि की जरूरत थी जो कि एक पेड़ की छाल होती है। मुझे वो चाहिए थी और मुझे वो छाल लाने के लिए अनिता चाची के पति नरसिंह चाचा के साथ जाना था।
हम लोग औषधि लाने गए और इसी कारण हम लोगों ने बहुत सी बातें भी कीं। यहीं से मुझे अनिता चाची से बात करने का मौका मिला।
घर आने पर नरसिंह चाचा ने मुझे चाय के लिए बुलाया और मैं उनके घर चला गया। चाची चाय बनाकर लाईं और हमारे पास बैठ कर बातें करने लगीं। चाचा को खेत में पानी देने के लिए जाना था तो वे चले गए।
अब चाची और मैं बात करने लगे।
चाची- याद तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है? मैं- चाची अच्छी चल रही है। चाची- कितने दिन और बाकी है तेरे कोर्स के? मैं- अभी 2 साल और बाकी हैं चाची.. चाची- कितने दिनों की छुट्टियाँ हैं? मैं- चाची 2-3 दिन की और हैं.. संतोष ताई कैसी हैं?
चाची ने हँसते हुए कहा- वो ठीक हैं पर तू क्यों पूछ रहा है.. क्या तू फिर से अपनी बॉल ढूँढने का मन है क्या? मैं घबरा गया- नहीं चाची.. चाची- क्या हुआ.. याद आजकल भी तू शायद तेरी दूसरी बॉल ढूँढने में बिज़ी है क्या? मैं- मैं समझा नहीं चाची?
चाची- मुझे सब पता है। मैं- क्या पता है चाची? चाची- तेरे और तेरी संतोष ताई.. और जो तू छत से मुझको नहाते हुए देखता है वो भी.. पर मैं ये सब किसी को इसलिए नहीं बताती.. क्योंकि दोनों फैमिली के बीच फिर से झगड़ा हो जाएगा।
मैं- चाची मुझे माफ़ कर दीजिए.. ऐसा फिर से नहीं होगा.. चाची- नहीं कोई बात नहीं है.. मैं ये किसी को नहीं बोलूँगी, जवानी में ऐसा होता है.. पर कंट्रोल करना सीखो, वरना किसी दिन बुरे फंसोगे।
इसके बाद बड़ी हिम्मत करके मैंने बोल दिया- चाची, मुझे आप बहुत पसंद हो। चाची- मुझे पता है कि तेरी नियत खराब है.. पर मैं संतोष ताई नहीं हूँ। मैं वहाँ से चुपचाप उठ कर चल दिया।
जब से मुझे पता चला कि अनिता चाची सब कुछ जानती हैं, तब से मैं उन्हें चोदने के लिए और भी बेकरार होने लगा और सही मौके की तलाश में था।
अगले दिन मुझे मेरे हॉस्टल जाना था पर अनिता चाची को चोदे बिना नहीं। मैंने जानबूझ कर सुबह की ट्रेन मिस कर दी और स्टेशन से घर वापस लौट आया।
चाची नहीं जानती थी कि मैं घर पर हूँ, उनको लगा कि मैं जा चुका हूँ। यह उन्होंने मुझे बाद में बताई थी।
दोपहर के वक़्त मैं फिर से उनकी छत पर चला गया और वहाँ जाकर अनिता चाची को नहाते हुए देखने लगा। आज चाची नंगी नहा रही थीं। जब उन्होंने अपनी आँखों पर साबुन लगाया.. तो मैं सीढ़ियों से नीचे चला गया।
चूंकि सीढ़ियों के सामने बाथरूम का दरवाज़ा है.. सो मैं सीधा बाथरूम में उनके सामने जाकर बैठ गया। क्योंकि अगर मैं खड़ा रहता तो मेरा सर उनके आँगन से कोई भी देख सकता था। वो भी बैठ कर ही नहा रही थीं।
चाची ने मुझे देखकर टांगें सिकोड़ लीं और चूचों अपने हाथों से छुपा लिए। वो बोलीं- तू यहाँ क्या कर रहा है? मैंने कहा- चाची, आप जानती हो।
यह कहते हुए मैं उनकी जांघों को सहलाने लगा। उन्होंने अपने हाथ से मेरे हाथ को हटाना चाहा पर जैसे ही उन्होंने अपनी चूचियों से हाथ हटाया, मैंने दूसरे हाथ से उनकी एक चूची पकड़ ली, उनके चेहरे पर दर्द दिखने लगा।
वो बोलीं- हरामी.. इन्हें इतने जोर से नहीं दबाते.. छोड़.. मैंने बोला- चाची प्लीज़ आप मान जाओ.. आप जैसे बोलोगी मैं वैसे ही करूँगा।
चाची ने कहा- तू खुद भी मरेगा और मुझे भी मरवाएगा… अगर आँगन में कोई आ गया तो सब कबाड़ा हो जाएगा.. तू चला जा यहाँ से। मैंने फिर से रिक्वेस्ट की.. तो वो बोलीं- अभी यहाँ से जा.. बाद में देखूँगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरे को लगा कि मेरा काम बन गया, मैंने कहा- ओके.. अभी एक तो किस दे दो। बोलीं- तू जाता है या नहीं.. मैंने आगे होकर उनके होंठ चूम लिए।
इस छोटी सी किस के बाद मैं वहाँ से अपने घर चला आया। अब मुझे यह टेंशन हो रही थी कि अगर चाची ने मुझे आज चोदने नहीं दिया.. तो मेरे को कल पक्का हॉस्टल जाना पड़ेगा और पता नहीं ऐसा मौका फिर कब मिलेगा।
शाम को चाची जानवरों को चारा डाल रही थीं, मैं भी वहाँ पहुँच गया और चाची से चाचा के बारे में पूछने लगा। चाची ने बताया- तेरे चाचा अपनी बहन के यहाँ जा चुके हैं।
यह सुनते ही मैंने उनकी चूची दबा दी। उन्होंने कहा- तसल्ली रख.. यहाँ कोई देख लेगा.. तू यहाँ से चला क्यों नहीं जाता। मैं वहाँ से चला आया और रात होने का इंतजार करने लगा।
वो लोग रात को छत पर खुले में सोते थे और मैं भी कभी-कभी छत पर सो जाता था। उस दिन मैं दो बार अनिता चाची के नाम की मुठ मार चुका था।
रात को मैं छत पर ही सोया और मैंने देखा कि चाची भी अपने दोनों बच्चों के साथ छत पर लेटी थीं और उनका आठ साल का लड़का उनसे बात कर रहा था। मैं भी चारपाई पर लेट गया और आधा घन्टे बाद उनकी छत पर चला गया।
चाची दोनों बच्चों के साइड में बिस्तर लगा कर लेटी हुई थीं और उनकी आँखें खुली हुई थीं। मैंने जाते ही उनके ब्लाउज के ऊपर से उनकी चूची पकड़ ली और उनके मुँह पर जाकर उनके होंठों को चूम लिया। होंठ चूमते हुए उनके पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया।
मैं उनके होंठों से हट गया और उनके ब्लाउज के बटन खोलने लगा। उन्होंने अन्दर ब्रा नहीं पहनी हुई थी।
पूरे बटन खोलने के बाद मैं उनके गालों को चूमते हुए उनकी गर्दन को चूमने लगा।
उन्होंने पहली बार सिसकारी ली.. ये सब करते वक़्त मेरा लंड मेरे पाजामे में खड़ा हो गया।
क्योंकि मैं उनके ऊपर था इसलिए शुरूआत से ही लौड़ा उनकी चूत से रगड़ खा रहा था। पर अभी तक उनका लहंगा और पैन्टी उनके शरीर से अलग नहीं हुए थे।
उनकी गर्दन को चूमते हुए मैंने उनके कान के नीचे वाले हिस्से पर भी किस किया। अनिता चाची ‘सस्शह.. सस्शह..’ की आवाजें निकाल रही थीं।
मैं नीचे को आया और उनके चूचे चूसने लगा पर उनके ब्लाउज से मुझे दिक्कत हो रही थी, तो मैंने वो निकालने के लिए उन्हें उठने को कहा। उन्होंने मेरा सहयोग दिया और वो खड़ी हो गईं, उनका लहंगा नीचे गिर चुका और ब्लाउज मैंने उतार दिया।
अब वो सिर्फ़ पैन्टी में थीं और वो वापस लेट गईं।
मैंने उनके दोनों चूचे खूब चूसे, वो छोटे थे.. जल्द ही लाल हो गए थे। उनके निप्पल थोड़े लाल रंगत लिए हुए थे। मैं उनके पेट पर किस करते हुए नीचे आया और पैन्टी के ऊपर से ही उनकी चूत पर चूमने लगा।
चाची ने आवाज निकाली- सस्स्सह… हुउऊउउ.. उन्होंने कहा- याद अब मत तड़पा..
मैं रुक गया.. मैं उनके मुँह से सुनना चाहता था। तो मैंने उनसे पूछा- चाची क्या करूँ? चाची ने टाँगें ऊपर कर दीं, वो बोलीं- जो कर रहा है.. वो ही करता रह!
मैंने तुरंत उनकी पैन्टी उतार दी। पैन्टी अन्दर से कुछ गीली हो गई थी।
मैं उनकी टांगों के बीच में आ गया और उनकी चूत को चूसने लगा। उनकी चूत कुछ खारी और कसैली सी थी।
कुछ पल चूत चूसने के बाद मैंने उनकी चूत के दाने पर अपनी जीभ रख दी। इसी के साथ मैं उनकी चूत में उंगली भी कर रहा था। वो मस्त हो चुकी थीं.. उनकी आँखें बंद थीं।
थोड़ी देर बाद उनकी टाँगें अकड़ गईं और उनकी चूत भी सिकुड़ गई। मैंने उनके दाने को होंठों से दबा लिया और तेज़ी से उंगली की।
कुछ ही देर में चाची झड़ चुकी थीं और मेरे मुँह पर उनका पानी लगा हुआ था। मुझे उसका स्वाद अच्छा नहीं लगा.. तो मैंने उसे उनके ब्लाउज से पोंछ दिया।
अब मैं उठ गया और मैंने अपने कपड़े उतार दिए, मैं उनके साथ में लेट गया। मेरा लंड बहुत देर से खड़ा था और दर्द कर रहा था। चाची ने मेरा लंड अपने हाथ में ले लिया।
मैं चाची के चूचे चूसने लगा था। मैंने उन्हें लंड चूसने को बोला, तो चाची ने कहा- फिर कभी.. अभी तो बस पेल दे।
मैं देर ना करते हुए उनकी टांगों के बीच आया और लंड को उनकी चूत में डालने लगा, पर लंड चाची की चूत में नहीं गया.. वो फिसल गया।
मैंने दोबारा कोशिश की तो भी यही हुआ। चाची हँसने लगीं.. उन्होंने लण्ड के टोपे को पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रखा और अन्दर डालने का इशारा किया।
मैंने धक्का लगाया तो मेरे लण्ड का टोपा अन्दर चला गया। मैंने उनके चहरे की तरफ देखा तो उनकी आँखें बंद थीं और दर्द के भाव थे।
मैंने एक और धक्का लगाया तो मेरा लंड आधे से ज़्यादा अन्दर घुस चुका था। चाची ने धीरे से ‘उहह..’ की आवाज निकाली।
मैंने तीसरा धक्का लगाया और अपना पूरा का पूरा लंड उनकी चूत में घुसेड़ दिया और उनके ऊपर लेट गया।
मैंने उनकी चूचियां मसलते हुए उनसे दर्द के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया- तेरे चाचा का लण्ड तुझसे पतला है। अब मैंने धक्के लगाने स्टार्ट किए और कुछ ही मिनट में ही मैं झड़ गया। मुझे बड़ी शर्म आई।
चाची ने मेरी तरफ देखा और बोली- शुरूआत में ऐसा होता है। उस रात को मैंने उन्हें एक बार और चोदा और इस बार में पूरे जोर-शोर से उनको चोदता रहा.. उनका दो बार पानी निकालने के बाद उनकी चूत में ही झड़ गया।
इसके बाद मैंने अपने कपड़े पहने और मैं अपनी छत पर आ गया। रात के लगभग डेढ़ बज चुके थे। मुझे पूरी रात नींद नहीं आई और दूसरे दिन सुबह मैं वापस हॉस्टल चला आया।
दोस्तो, मैंने मेरी इस सच्ची कहानी में आपके मज़े के लिए कुछ बातें लिखी दी हैं क्योंकि बिना मसाले के सब्जी में मजा नहीं आता है। बाकी यह घटना एकदम सच्ची है।
आपको मेरी सेक्स कहानी कैसी लगी.. मुझे मेल करके ज़रूर बताइए।
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