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नमस्कार मित्रो, मैं मल्लिका राय… भूले तो नहीं न? वही… जिसने कनाडा में मस्ती की थी।
बात तब की है जब मुझे कनाडा से आये हुए कुछ माह बीत चुके थे और पतिदेव ही दिल से चूत और और गांड को ठोक रहे थे, मैं भी सन्तुष्ट थी।
मेरी एक बचपन की सहेली कविता (बदला नाम) है, अक्सर मेरी उससे फोन पर बात होती रहती है, मैं उसके बारे में सबसे घर में बातें करती रहती थी। वो मेरी ही उम्र की है, उस समय शादी को 3 वर्ष हो चुके थे और एक 5 माह का बेटा भी है। उसका पति एक सरकारी कार्यालय में था और अब एक अधिकारी है। कविता के पति का तबादला मेरे शहर में ही हो गया था।
एक शाम पतिदेव और मैं शाम को ऑफिस से घर पहुंचे तब मैंने देखा कि कविता मेरे घर आई हुई थी, मुझे इस बारे में बिल्कुल पता नहीं था कि वो मेरे घर पर आई है। मेरे घर वाले उससे पहली बार मिले थे, मेरे घर वालों ने उसे रात का खाना हमारे घर ही खाने के लिए कहा, थोड़ी देर बाद मना करने के बाद वह मान गई।
रात को खाना खाने के बाद हम अकेले में बैठकर बातें करने लगे और वो मेरी सेक्स लाइफ के बारे में पूछने लगी। मैंने भी हंसकर कहा- बहुत अच्छी चल रही है।
मैंने भी उसकी सेक्स लाइफ के बारे पूछा तो उसने भी यही बताया कि बहुत अच्छी चल रही है। हमने बहुत सारी बातें शेयर की।
कुछ देर ऐसे ही बातें करने के बाद उसने जाने के लिए बोला, तो मैंने मेरे पति को बुलाकर उसे घर तक छोड़ने के लिए कहा और हम दोनों उसे उसके घर तक छोड़ आये।
उसने अपने घर हमें चाय के लिए बोला तो हमने मना कर दिया।
कुछ दिन ऐसे ही सब कुछ चलता रहा, कभी बाजार में मिलना हो जाता था।
वो मुझे कई दिनों से उसके घर बुला रही थी, मेरा मन बहुत हो रहा था पर काम इतना रहता था कि समय नहीं मिल पाता था, और थक भी बहुत जाती थी।
एक दिन मैंने पतिदेव को मनाया पर नहीं माने पर थोड़ी जिद करने पर उन्होंने मुझे ही जाने के लिए कहा।
मैं उसके घर पर पहुँच गई। मैंने घण्टी बजा कर दरवाजा खटखटाया, उसने मुझे अंदर बुलाया और कुछ देर बैठने के लिए कहा। वो नहाकर ही आई थी और ब्लाउज पेटीकोट में थी और पेटीकोट भी उसने नाभि के नीचे बाँधा हुआ था।
मैंने उसके पति के बारे में पूछा तो कहा कि वो शाम तक आएँगे, बाहर गए हुए हैं ऑफिस के काम से।
कुछ देर से मुझे कुछ अजीब सी आवाज आ रही थी, मैंने नजर दौड़ाई पर कुछ दिखा नहीं, बाद में मैंने कविता से ही पूछा की मुझे कुछ आवाज आ रही है, पर समझ नहीं आ रहा कि यह आवाज किसकी है।
तो वो मुस्कुराई और टीवी की तरफ इशारा किया, उसे देखकर तो मेरे होश उड़ गए, उसमें ब्लू फ़िल्म चल रही थी। मैंने उसकी तरफ देखा तो हँस रही थी। फिर वो उसके बच्चे को दूध पिलाने लगी और टीवी से ध्यान हटाकर हम बातें करने लगीं।
जब उसका बच्चा सो गया तब वो खाना बनाने किचन में गई, मैं भी उसकी मदद कर रही थी। उसके बाद हमने खाना खाया और फिर बैठकर बातें करने लगी।
अचानक ही उसने ब्लू फ़िल्म फिर से लगा दी। मैं धीरे धीरे गर्म होने लगी और मेरा हाथ भी चूत पर पहुँच गया था और मैं साड़ी के ऊपर से ही चूत को मसलने लगी और साड़ी में ही मेरा स्खलन हो गया।
मैंने जब कविता की तरफ देखा तो वो भी गर्म हो चुकी थी, उसे भी इस हालत में देखकर मेरे मन में लेस्बियन सेक्स की इच्छा होने लगी, पर मैं चाहती थी कि शुरुआत वो करे!
मन में एक सवाल यह भी था कि वो क्या सोचेगी मेरे बारे में? क्या वो ये सब करेगी? क्या उसके मन में भी लेस्बियन सेक्स का ख्याल आता होगा? और भी बहुत कुछ!
अचानक ही उसने मेरे एक मम्मे को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसकी चूत मसलने लगी। मेरे पूरे बदन में एक करन्ट सा दौड़ गया, मैंने कहा- क्या कर रही है छोड़ मेरे स्तन को! उसने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया तो मैंने ही उसे अलग किया हालांकि मैं ये सब नहीं चाहती कि वो मेरे स्तनों से हाथ हटाये पर हाथ हटाना भी जरूरी था। लेकिन वो उसकी मस्ती में ही मगन रही जब तक झड़ नहीं गई।
कुछ देर बाद जब वो सामान्य हो गई तब मैंने पूछा- तूने मेरे मम्मों पर हाथ जानबूझ कर रखा या मदहोशी में ध्यान नहीं था? कविता- क्या करूँ यार, मदहोशी में कुछ ध्यान नहीं रहा।
मैं- इतनी मदहोशी कि तुझे औरत और मर्द का भी ध्यान भी नहीं रहा? कविता- नहीं यार, ऐसी बात नहीं है। मैं- तो फिर कैसी बात है!
इतना सुनकर वो मेरी ओर हवस भरी नजर से देखने लगी। अब इसके आगे मैं बताना जरूरी नहीं समझती बस इतना समझ लीजिए कि गर्म लोहे पर हथौड़ा लग गया। हालांकि उसके मन थोड़ा डर जरूर था और मेरे मन में भी।
फिर हम एक दूसरे को चुम्बन करने लगी। मुझे इसमें बहुत मजा आ रहा था, उसके नर्म होंठ जो मेरे नर्म होंठों को काट रहे थे।
मैं पहले मेलीना के साथ कनाडा में यह सब कर चुकी थी तो मुझे थोड़ा लेस्बियन अनुभव था, पर एक डर भी था। यह सारी बात भूलकर मैं उसे किस करती रही, चुम्बन करते हुए उसने ब्लाउज, पेटीकोट, पेंटी, ब्रा सब एक झटके में निकाल दिया और मैंने भी!
थोड़ी ही देर बाद वो मेरे मम्मे चूसने लगी, कुछ देर बाद मैं उससे अलग हुई और बिस्तर पर बैठ गई और उसे भी मेरी गोदी में बैठा लिया जैसे मेरे पतिदेव मुझे बैठाते हैं, और दोबारा चूमा चाटी करने लगे।
अब बारी मेरी थी मम्मे चूसने की, जरा सा दबाने पर ही उसके मम्मों से दूध की धार लग गई।
जब उसका दूध मेरे मुँह में गया तो एक अजीब सा नशा छाने लगा था, अब मुझे समझ में आ रहा था कि मेरे पतिदेव क्यों मुझे हर कभी उनकी गोदी में बैठाकर घण्टों तक मेरे मम्मे चूसा करते है!
15-20 तक ऐसे ही उसके मम्मे चूसती रही और निप्पल भी काटती रही। वो बस ‘सीईईई ईईईए और अह्ह्ह्ह् ह्ह्ह…’ की आवाज निकाल रही थी।
इसके बाद हम दोनों फिर से चुम्बन करने लगे।
मैंने उसे धक्का देकर बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी चूत चाटने लगी, वो बस सिसकारियाँ ले रही थी। मैं 10 मिनट तक उसकी ऐसे चूत चाटती रही, जब उसका वीर्य निकलने को आया तो मैंने उसकी चूत में उंगली डाल कर अंदर बाहर करने लगी और कुछ ही देर में उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया।
कुछ देर बाद बिस्तर पर अब वो मेरी चूत चाट रही थी, मेरी भी ऐसी ही सिसकारियाँ निकल रही थी। अचानक ही मुझे कुछ देर बाद 69 पोजीशन का ध्यान आया तो दोनों उस आसन में आ गए। दस मिनट तक ऐसे ही सब चलता रहा, कुछ बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए।
तब वो बोली- तेरी चूत की फांकें तो बहुत खुली हैं, लगता है जीजा जी तेरा कुछ ज्यादा ही ध्यान रखते हैं? मैंने भी कहा- तेरा भी तो रखते हैं! और फिर हम दोनों सहेलियाँ हंस दी।
थोड़ी देर बाद कविता रबर का एक नकली लण्ड लेकर आई। जब मैंने इसके बारे पूछा तो कहा कि उसके पति ने दिया है।
फिर हम बारी बारी एक दूसरे की चूत में डाल कर हाथ से ही चोदने लगे। कुछ देर बाद कविता ने लण्ड को कमर बाँधा और मेरी दोनों टांगों को उसके कंधे पर रखकर एक जोरदार धक्का लगाया और आधा लण्ड मेरी चूत में डाल दिया, और फिर दूसरा झटका भी ऐसे ही लगाकर पूरा मेरी चूत में डाल दिया। मेरी चीख निकल गई और दर्द भी होने लगा।
धीरे धीरे मेरा दर्द कम होता गया और मजा भी आने लगा लगभग। दस मिनट में मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, मैं ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी रही और कविता मेरे दोनों मम्मों को चूस रही थी पर वो नकली लण्ड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था।
कुछ देर बाद मैंने ही लण्ड को उसकी कमर से निकाला और मेरी कमर पर बाँध लिया और उसे कुतिया बनाया। मैंने एक उंगली उसकी गांड में डाली।
मैं कुछ बोलती, उससे पहले ही उसने कहा- अगर चाहे तो तू मेरी गांड में डाल सकती है, पति ने तो गांड चोद कर ही सुहागरात मनाई थी।
पर मैंने चूत में ही डाला और चोदने लगी, मुझे इसका अनुभव नहीं था तो कविता ने खुद ही लण्ड उसकी चूत में डाल लिया और धक्के लगाने के लिए कहा, मैं धक्के लगाने लगी।
सच में मुझे इसमें बहुत ही आनन्द आ रहा था और मैं उसके चूतड़ पर चपत भी लगा रही थी और कविता भी ‘अह्ह्ह… ह्ह्ह्हह्ह… अह्ह… ह्ह्ह्हह्ह…’ की आवाज निकाल कर मजे ले रही थी।
ऐसे ही कुछ देर चोदने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गई और कविता मेरे ऊपर बैठ नकली लण्ड चूत में डालकर खुद को चोद रही थी और ‘अह्ह्ह ह्ह्ह अह्ह्ह ह्ह्ह्हह्ह उन्ननम्नन…’ की सिसकारियाँ भर रही थी।
जब वो झड़ने पर आई तो अचानक उसने गति तेज कर दी और कुछ ही देर में उसने पानी निकाल दिया और ऐसे ही बैठी रही, उसका रस चूत से बहकर मेरे ऊपर आ रहा था।
थोड़ी देर बाद हम दोनों एक दूसरी के लबों को चुम्बन कर रही थी और एक दूसरी की पीठ भी सहला रही थी।
पर कविता ने अचानक मुझे 69 की पोज़ में मम्मे चूसने के लिए कहा तो मैंने वैसे ही किया। मेरी एक चूची उसके मुँह में और उसकी एक मेरे मुँह में थी, पर उसके मम्मों से दूध निकल रहा था जो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था और बहुत मजा भी आ रहा था।
थोड़ी देर बाद अचानक ही कविता मेरीचूची के निप्पल को उसके दाँतों से काटने लगी तो मैंने भी उसका निप्पल को काटना शुरू कर दिया। अब हम दोनों के निप्पल एक दूसरे के दांतों से हल्के हल्के कट रहे थे, दोनों को ही आनन्द आ रहा था।
बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे के मम्मों से खेलते रहे, फिर हम दोनों ने कपड़े पहने और मैं ऑफिस न जाकर घर पर ही गई।
यह मेरा पहला व्यक्तिगत लेस्बियन था, 4 साल तक वो मेरे शहर रही और 4 साल तक मैं हर महीने उससे 4-5 में बार कभी कभी उससे ज्यादा बार भी लेस्बियन सेक्स किया।
फिर उसके पति का प्रमोशन हो गया, पर उसके बाद वो जब भी मिली, किसी भी तरह समय निकाल कर मजे करती।
पर अब उसके साथ वो मजा नहीं आता… हाँ, कभी कभी उसे किस जरूर करती हूँ और उसके मम्मे चूसती हूँ।
एक बार मेरे पतिदेव ने जरूर हमें रंगे हाथ पकड़ लिया होता! छुट्टी का दिन था, सब घूमने गए हुए थे, कविता को भी मैंने घर पर बुला लिया था। जब मैं सिर्फ़ तौलिये में थी और उसे किस करने ही वाली थी कि मेरे पति आये पर उनका ध्यान हमारी ओर नहीं था।
हमारी तो जान में जान आई, मैंने उन्हें बाहर जाने के लिए कहा पर वो नहीं गए, तो मैंने उन्हें कविता के सामने ही उनके गाल पर चुम्मा देकर जाने की विनती की पर फिर भी नहीं गए।
अचानक मेरे दिमाग में शरारत सूझी क्योंकि मैं तो हूँ ही बेशर्म… मैंने तौलिया निकालकर एक तरफ फेंक दिया और पूरी नंगी हो गई! और अपने दोनों हाथ कविता भी मुँह पर रखकर आश्चर्य से मेरी तरफ देख रही थी और पतिदेव भी!
वो मुझे डांटने लगे, पर कब तक डांटते? उन्हें ही बाहर जाना पड़ा।
जब वो बाहर गए तो हम दोनों खूब हंसी, मैं पूरे समय तक नंगी ही रही, और कविता के साथ बात करती रही। पतिदेव ने जब कहा कि सब लोग आ गए हैं तब मैं कपड़े पहन कर बाहर निकली।
जब भी मुझे पतिदेव को ऐसे चिड़ाना होता है तो मैं कविता को बुला लेती और नंगी हो जाती!
और आज भी ऐसा ही करती हूँ, कोई न कोई बहाना बना ही लेती हूँ। ठीक ऐसा कविता भी उसके पति के साथ कई बार चुकी है। जब भी मैं इस बात की याद पतिदेव को दिलाती हूँ वो शर्म के मारे आँखें बन्द कर इधर उधर देखने लगते हैं और मैं हंसने लगती हूँ।
तो यह थी मेरी लेस्बियन रासलीला! कैसी लगी आपको जरूर बताएँ। उम्मीद है अच्छे कमेंट ही करेंगे। [email protected]
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