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अन्तर्वासना पर हिन्दी सेक्स स्टोरीज पढ़ने वालों और पढ़ने वालियों को चूतनिवास के लौड़े के 31 तुनकों की सलामी!
अभी दो दिन पहले मुझे अपने व्यापार में बहुत अच्छा लाभ हुआ तो मैंने मस्त होकर मन में अपनी आराध्य देवी का ध्यान किया। शीघ्र ही देवी मन में प्रकट हो गईं और पूछा क्यों याद किया? मैं अच्छी भली अपनी सखी से गप्पें लगा रही थी कि तूने बीच में बाधा डाल दी।.
मैं बोला- देवी, क्यों हंसी ठट्ठा कर रही हो… देवी के सभी रूप आप ही तो हो, क्या अपने आप से ही गप्पें लगा रही थीं?
देवी ने खीझ कर अपना बायां पैर मेरे माथे पर रख कर ज़ोर से दबाया- अरे मूर्ख मानव… यह सच है परन्तु हमें हर रूप को साकार रखना पड़ता है ताकि जिसके प्रति जिसकी श्रद्धा हो, वह इंसान उसका ध्यान कर सके। तेरे में बड़ी बुरी आदत है कि तू बीच में टोकता अवश्य है… मूर्खशिरोमणि, यदि तू मेरा भक्त न होता तो तेरी धृष्टता पर क्रुद्ध होकर न जाने कितनी बार तुझे श्राप दे चुकी होती किन्तु तेरी भक्ति को देखते हुए मेरा दिल पसीज जाता है और तू श्राप से बाल बाल बच निकलता है!
मैंने कहा- देवी, क्षमा चाहता हूँ! चलिए बताइए क्या गप्पें मार रही थीं आप अपने आप से? देवी ने फिर से चिढ़ कर भृकुटि तान कर कहा- तू मानेगा नहीं? आज श्राप लेकर ही मानेगा ऐसा प्रतीत होने लगा है।
मैंने देवी के चरणों पर सिर रख दिया और कहा- देवी फिर से क्षमा कर दो इस बुद्धिहीन मानव को… अब बता भी दो कि क्या गप्पें मारीं आपने आपने आप से नहीं, बल्कि अपने दूसरे रूप धन की देवी से?
देवी ने भृकुटि सीधी करते हुए कहा- तो सुन महामूर्ख मानव… असल में धन देवी जी बहुत तनाव में थीं.. तनाव का कारण यह है कि एक सौ तीस करोड़ भारत वासी उनसे हर समय कुछ न कुछ मांगते रहते हैं… चौबीसों घंटे हर दिन वो उनको धन दौलत मांगते रहते हैं जिससे वे बहुत अधिक परेशान हैं… धरती वासी और विशेषकर भारत वासी इतने अधिक मूर्ख हैं कि उनको यह देख कर भी बुद्धि नहीं आई कि मैंने बेहिसाब धन अरबों, अमरीकनों, जापानियों और यूरोपियन लोगों में बाँट दिया तो मैंने ऐसा क्यों किया। वे लोग मुझे ज़रा भी तंग नहीं करते बस चुपचाप अपने काम में लगे रहते हैं। जबकि भारत वासी हर दिन, हर रात मांगते रहते हैं। किन्तु असलियत में काम के न काज के, दुश्मन अनाज के! उन्होंने तो कल अधिक गुस्से में आकर यमराज को भी तलब करके उनको आदेश दिया था कि ये भारतवासी मुझे बहुत अधिक स्मरण करते हैं, इनको उठा लो और पटक दो घोर नर्क में! इन्हें मालूम तो लगे कि यदि मैं भी उनको उतना ही स्मरण करने लगूं जितना वो मुझे करते हैं तो क्या होगा।
इन नालायकों ने मुझे भी अपने नीचतम कोटि के चमचागिरी पसंद अफसरों और नेताओं जैसा समझ रखा है, जैसे कि मुझे भी हर पल अपनी खुशामद अच्छी लगती है. इससे अधिक मेरा अपमान क्या हो सकता है कि मुझे भारत के सबसे घटिया लोगों के बराबर माना जाए. उस पर ये गर्दभबुद्धि लोग ये समझें कि मैं इनका लेश मात्र भी भला करूँगी तो क्या किया जा सकता है. जायेंगे सब के सब कमबख्त नर्क में!
मैं इस भाषण पर मंत्रमुग्ध सा होकर बोला- तो फिर यमराज ने क्या किया?
देवी ने बीच में टोकने पर कुछ कहा तो नहीं मगर थोड़ी देर घूर के देखा और बोलीं- यमराज ने कहा कि आपका आदेश मेरे सिर आँखों पर देवी, किन्तु मैं इतने बेतहाशा जनसमूह को नर्क में भी कैसे जगह दूंगा। ये धरती पर भी तो नर्क में ही हैं, इनको पड़े रहने दीजिये वहीं पर… नर्क में डालकर भी इनको इस से ज़्यादा दुःख नहीं मिलने वाला। तब जाकर महालक्ष्मी का क्रोध कुछ शांत हुआ और उन्होंने यमराज का मशवरा स्वीकार करते हुए उनको भेज दिया। अब तू समय नष्ट न कर बुद्धूचंद… जल्दी से बोल मुझे क्यों डिस्टर्ब किया था? क्या मांगना है तुझे?
मैंने सम्मान से सिर झुका के निवेदन किया- हे देवी, आज मुझे बहुत मुनाफा हुआ है तो मैं यह जानना चाहता था कि उस ख़ुशी में किसे तोहफा दूँ और क्या तोहफा दूँ? बस इसी लिए आपको कष्ट दिया था, मुझे मांगना कुछ नहीं है!
इस पर देवी ने हंसकर कहा- अरे इसमें क्या है… दे दे अपने किसी प्रियजन को कोई भी ऐसा तोहफा जो उसको पसंद हो और तेरे मुनाफे के हिसाब से कीमती भी हो… कंजूसी मत करियो।
मैंने कहा- देवी मेरा कोई प्रियजन नहीं है, सिर्फ प्रियजनियाँ हैं।
देवी ने फिर झल्ला के इस बार दाएं पैर से मेरे माथे को दबाया और बोलीं- हर बात में बाल की खाल खींचना कौन से शास्त्र में लिखा है… जब मैंने प्रियजन कहा तो इसका मतलब स्त्री और पुरुष दोनों से था… अब मैं जा रही हूँ तूने बहुत समय बिगाड़ दिया इस ज़रा सी बात पर!
इसके पहले कि मैं कुछ और गप्प लगा पाता, वे मेरे मन से अंतर्ध्यान हो गईं।
खैर मैं यह सोचता रहा कि देवी की सचमुच मुझ पर बड़ी कृपा है, लोग तो देवी के चरणों में माथा टेकने के लिए लालायित रहते हैं जबकि मुझे तो स्वयं ही उन्होंने माथे पर चरण, एक नहीं दोनों चरण, रखकर गुस्सा आते हुए भी क्षमा कर दिया था।
जाते जाते देवी एक सबक़ सिखा गईं जो इसके पहले किसी ने नहीं सिखाया था, देवी देवताओं या भगवान को अधिक याद करने से वो खीज जाते हैं और उनको मक्खन लगा के उनका तिरस्कार करने वालों का कोई भला कभी नहीं करते!
यदि वास्तव में कुछ अच्छा करवाना हो तो भाई अपने काम से काम रखो और भगवान को अपना काम सुकून से करने दो!
वास्तव में हम भारतवासी ईश्वर का स्तर अपने देश के अत्यन्त कमीने अफसर और नेतागण के बराबर गिरा के अपमान ही तो करते हैं।
खैर मैं तो सुरक्षित था क्योंकि मैं देवी को याद तो रोज़ कई बार करता हूँ मगर कुछ मांगने के लिए नहीं बल्कि यूँही कोई सवाल पूछने के लिए या थोड़ी गपशप के लिए… अधिकतर समय तो देवी जी मुझे घास नहीं डालती थीं परंतु किसी किसी दिन उनका हृदय पसीज जाता था तो वो मेरे अंतर में प्रकट हो जाया करती थीं।
देवी का यह आदेश पाकर कि तोहफे में कंजूसी न करूँ, मैंने तुरंत जूसी रानी को फोन लगाया- जूसी रानी जूसी रानी जूसी रानी! ‘कुछ मुंह से फूटेगा भी या मेरा नाम ही बोलता रहेगा?’ ‘तेरा नाम तो जीवन भर ले सकता हूँ कमीनी…ले फिर से सुन जूसी रानी जूसी रानी जूसी रानी’
‘ओह हो राजे… तू दुखी करने में चैंपियन है कुत्ते… अब कह भी दे न?’ ‘बात यह है जूसी रानी कि आज मुझे बहुत मस्त फायदा हुआ है इसलिए मैं तुझे कोई बढ़िया सा तेरी पसंद का तोहफा देना चाहता हूँ… पहले अपन एम्बिएंस मॉल में जाकर तेरा तोहफा लेंगे और फिर कवाब फैक्ट्री में जाकर कवाब और रेड वाइन का मज़ा लूटेंगे… बस शाम को 5 बजे तैयार मिलियो!’
‘अच्छा राजे जी, आज सूरज किधर से निकल पड़ा…तेरी नीयत गड़बड़ दिखती है कुछ कुछ?’ ‘बहनचोद ऐसे कह रही है जैसे मैंने कभी तुझे कोई गिफ्ट दी ही न हो… माँ की लोड़ी रंडी… कोई नीयत वीयत ख़राब नहीं है रानी… तू यूँ ही शक करती है!’
‘हरामी कुत्ते… जैसे तू घर वापिस आकर कुछ करेगा ही नहीं… मैं जानती नहीं क्या इस मादरचोद राजे को!’
‘भोसड़ी वाली कुतिया… मैं कुछ नहीं करूँगा… हाँ तू ही अपने गिफ्ट और डिनर से खुश होकर कोई इनाम देना चाहे तो मैं ना नहीं करूँगा!’ ‘ओह हो… यह अच्छा तरीका है इनाम मांगने का… यह बता अगर मैं तुझे इनाम दूंगी तो तेरी है ज़ुर्रत ना करने की?’ जूसी रानी ने इतराते हुए कहा। मैं बोला- अरे जूसी रानी, मेरी क्या मजाल जो मैं तेरे इनाम को ना करूँ!
‘तो बहनचोद फालतू के डायलाग क्यों मार रहा था कि मैं अगर कोई इनाम दूंगी तो तू ना नहीं करेगा… तू देख तो सही एक बार ना करके… कैसी गांड फाड़ती हूँ तेरी मैं!’
मैंने हथियार डालते हुए कहा- अच्छा मेरी मल्लिका… मैं तो तेरे ऊपर सौ परसेंट निछावर हूँ ही… तू तैयार हो जाना टाइम पर!
शाम पांच बजे मैं घर पहुँच गया।
जूसी रानी तैयार क्या थी, कमबख्त बिजलियाँ बरसा रही थी, काली साड़ी जिस पर पल्लू पर बैंगनी रंग का बड़ा सुन्दर सा प्रिंट था, काला और बैंगनी चेक वाला ब्लाउज जिसका गला आगे और पीछे दोनों तरफ से बहुत नीचा था, पैरों में बहुत ही हाई हील की सैंडल! गले में मोतियों का हार, कलाई में सबसे कीमती वाली डिज़ाइनर घड़ी, अभी लिपस्टिक लगनी बाकी थी!
और जो महिलाएं कहीं भी जाने से पहले घचर पचर करती हैं वो बाकी थी!
बहनचोद गज़ब ढा रही थी जूसी रानी… मैंने झुक के पहले तो उसके पैरों को चूम लिया और फिर जैसे ही मैंने उसको बाँहों में भरना चाहा तो वो चालाकी से सरक के बच गई और बोली- राजे, अगर तू अच्छा बच्चा बन के रहेगा तो मैं मस्त इनाम दूंगी। अब कुछ गड़बड़ नहीं करनी है… मेरी साड़ी ख़राब हो जाएगी।
मैं बोला- अच्छा मेरी अम्मा… मैं बहुत ही अच्छा बच्चा बन के रहूँगा… लेकिन एक चुम्मी तो बनती है रानी… तेरी साड़ी नहीं बिगड़ेगी। इतना कह के मैंने रानी को अपनी तरफ खींच लिया और उसका हसीं चेहरा हाथों में लेकर उसके मुंह से मुंह लगा कर उसके मस्त होंठ चूसने लगा।
थोड़ी देर के बाद रानी ने मेरी छाती पर हाथ रख के मुझे पीछे धकेला और बोली- राजे अब बस और नहीं… मुझे सब मालूम है… तुझे ना रोका गया तो हो चुकी आज की शॉपिंग या डिनर… चल तू दूसरे कमरे में जा… मैं आती हूँ पांच मिनट में… बस दौड़ जा चुपचाप से!
अच्छे बच्चों की तरह मैं जूसी रानी का हुक्म मानते हुए ड्राइंग रूम में जाकर उसका इंतज़ार करने लगा। थोड़ी देर बाद जूसी रानी अपनी घचर पचर निपटा के आ गई। यार बहुत ही हसीन और सेक्सी लग रही थी, उसे मालूम था वो बहुत सेक्सी लग रही है, तो चल भी रही थी इतरा इतरा के जैसे रैंप मॉडल चलती हैं।
हम लोग पहले एम्बिएंस मॉल गए, वहाँ रानी की पसंद से डा मिलानो कंपनी का एक चमड़े का बैग और हाई डिजाईन कंपनी की प्लेटफार्म हील वाली सैंडल दिलाई। उसके बाद जशन के शोरूम से एक डिज़ाइनर साड़ी ली, फिर रानी ने एक सेट ब्रा और पैंटी का लिया किसी फ्रेंच ब्रांड का!
कुल मिलाकर एक लाख के मुनाफे के सामने करीब पैंतीस हज़ार का तोहफा हो गया। मैंने कोई हील हुज्जत नहीं की, देवी का आदेश था ना कि बिल्कुल भी कंजूसी ना करूँ।
तब तक शाम के आठ बज चुके थे। हम होटल रैडिसन चले गए डिनर के लिए!
मैंने होटल के सबसे मशहूर रेस्टोरेंट कवाब फैक्ट्री में टेबल बुक करवा रखी थी, जूसी रानी की बाज़ू थामे मैं कवाब फैक्ट्री में दाखिल हुआ।
इस टाइम बहुत कम लोग थे, कैप्टेन हमें टेबल तक ले गया और भाग कर एक वेटर ने जूसी रानी के बैठने के लिए कुर्सी पीछे खिसकाई, मैं चूतिए की तरह अपनी कुर्सी खुद ही पीछे करके बैठ गया। जूसी रानी के सौंदर्य के सामने तो वैसे भी मैं चपरासी जैसा ही लग रहा था।
बिजली की तेज़ी से शेफ हाज़िर हुआ और मैडम को मेनू समझाने लगा! भला वाइन वेटर क्यों पीछे रहता, वो भी अपना वाइन मेनू लेकर आ धमका और मैडम को वाइन लिस्ट में से बताने लगा कि कौन सी वाइन आज के खाने के मेनू के हिसाब से मैडम के लिए उपयुक्त रहेगी।
मैडम भी इस सब की आदी थीं, जब भी हम किसी हाई क्लास रेस्टोरेंट जाते थे तो यही नज़ारा हर बार दोहराया जाता था।
खैर अल्ला अल्ला खैर सल्ला… आखिर हमने वाइन वेटर की सलाह दी हुई रेड वाइन का आर्डर कर दिया और मेरे लिए नॉन वेज कवाब और रानी के लिए वेज कवाब का आर्डर कर दिया।
जूसी रानी का वेज होना मुझे हर बार हैरान करता है। मादरचोद पिछले पचीस सालों में जूसी रानी ने मेरे लौड़े का लावा कम से कम दस हज़ार बार पिया होगा. फिर भी वेज? देखा जाए तो कोई भी चूत वेज तो हो ही नहीं सकती. लन्ड की मलाई क्या वेज होती है?
रैडिसन की कबाब फैक्ट्री में सिस्टम ये है कि उनके दो फिक्स मेनू होते हैं, एक वेज और दूसरा नॉन वेज. दोनों ही मेनू में पहले एक के बाद एक छह अलग अलग कवाब दिए जाते हैं और जो कवाब दुबारा लेने की इच्छा हो तो रिपीट किया जा सकता है।
इसके बाद मेन कोर्स में वेज में दो दालें, दो सब्ज़ियां और एक पनीर आइटम और नॉन वेज में दो दालें, दो रसेदार चिकेन या मीट या फिश के साथ रोटी, परांठा, बिरयानी इत्यादि! आखिर में चार पाँच तरह के मिष्ठान्न… उसके बाद चाय या कॉफी!
इतने में वाइन वेटर वाइन बोतल खोल के ले आया और टेस्ट गिलास में थोड़ी सी डालकर मेरे से चेक करवाई कि वाइन सही है। वाइन एकदम बढ़िया थी तो उसने दो ग्लासों में वाइन डाल दी और एंजॉय योर ड्रिंक कह के चला गया!
हमने गिलास आपस में छुआ के चियर्स किया लेकिन मैंने जूसी रानी को कहा कि सिप हम बाहर पूलसाइड में जाकर लेंगे, वहां बहुत मज़ा रहेगा।
जूसी रानी पहले कई बार पूलसाइड में जा चुकी थी और जानती थी कि वहां क्या होने वाला है, मुस्करा कर बोली- राजे कमीने, मुझे मालूम था तू वहीं चलने की करेगा, मैं तेरी एक एक नस पहचानती हूँ बहनचोद!
यह कह के रानी ने ज़ोर से मेरी टांग पर अपनी सैंडल फिराई। उसकी आँखों में जो चमक थी उसने मुझे बता दिया कि जूसी रानी अब मूड में आ गई है और उसकी कामोत्तेजना परवान चढ़ने लगी है।
मैंने वेटर को बुला कर कहा कि हम लोग पूलसाइड में पहली ड्रिंक लेंगे। वेटर ने कहा- ज़रूर सर, आप लोग चलिए, मैं आपकी वाइन वहीं लेकर आता हूँ। मैं बोला- बोतल मत लाना, हम केवल पहला गिलास ही पूलसाइड में लेंगे!
हम एक नए प्रेमी जोड़े की भांति हाथों में हाथ डाले पूल साइड की ओर चल दिए।
कवाब फैक्ट्री के बाहर निकलते ही बाईं तरफ पूल साइड का शीशे का दरवाज़ा है। इस पन्द्रह बीस क़दम चलने में ही जूसी रानी ने मेरी बांह कई बार नोच ली, अब वो पूरी तरह से कामोत्तेजना के वश में थी, हर पल उसकी उत्तेजना बढ़े भी जा रही थी।
पूल साइड में कोई नहीं था, हम एक टेबल पर जम गए। पीछे से वेटर हमारे वाइन के ग्लास टेबल तो रख के चला गया।
मैंने जूसी रानी को एक गिलास दिया और कहा- शुरू हो जा रानी अपने स्पेशल वाइन पीने वाले स्टाइल में… इसीलिए तो रेस्टोरेंट से उठ कर यहाँ आए हैं!
जूसी रानी ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा- क्या मुझे पता नहीं कि यहाँ क्यों आए हैं… पहले भी तो कई बार हो चुका है जो आज होने वाला है… मैं सब जानती हूँ कि तेरे शरारती दिमाग में क्या चल रहा है।
जूसी रानी ने एक घूँट वाइन का लिया, उसको अच्छे से अपने मुंह में घुमाने लगी। तब तक मैं खड़ा हो चुका था और उसको भी उठाकर खड़ा कर दिया था।
मैने जूसी रानी का सिर भींच के उसके मुंह से मुंह लगा दिया, रानी ने तुरंत ही अपने मुंह की वाइन मेरे मुंह में डाल दी और ज़ोर से मेरे अकड़े लौड़े को पैंट के ऊपर से दबाया।
मतवाला होकर मैं उससे लिपट गया और कस के उसे बाहों में भींच लिया। उसने अपने गुलाबी होंठ खोल दिये, मैंने अपना मुंह नीचे कर लिया ताकि उसका मुंह ऊपर आ जाये और तब उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में दे दी।
इसी प्रकार वाइन का घूंट लिए रानी के होंठ चूसते हुए मैं वाइन अपने मुंह में लेने लगा। मस्ता के रानी ने एक टांग मेरी टांगों पर लपेट दी। मैं हुमक हुमक के उसकी पतली छोटी सी जीभ चूसता रहा और उसके मुंह से निकलने वाला सारा वाइन मिला हुआ रस मज़े ले ले कर पीता रहा।
जब वाइन का पहला गिलास ख़त्म हो गया तो जूसी रानी ने कहा- राजे तू खाना पैक करवा ले… अब घर चलते हैं… यहाँ खाने का मूड नहीं है। मैंने उसकी आँखों में झांक के देखा, वाइन और चुदास के नशे में उसकी आँखों में गुलाबी डोरे तैरने लगे थे, उसके होंठ थरथरा रहे थे, रानी अब सिर्फ तगड़ी चुदाई की इच्छुक थी।
मैंने कहा- ठीक है रानी, अपन पहले बची हुई वाइन पी लेते हैं तब तक खाना पैक हो जाएगा, फिर घर चलते हैं।
जूसी रानी बोली- सुन कमीने… तुझे अभी इसी वक़्त अमृत पिलाने का मन हो रहा है… लेकिन यहाँ कैसे पिलाऊंगी बहनचोद? मैंने तपाक से कहा- रानी अभी कोई जुगाड़ करता हूँ… अमृत अभी यहीं इसी वक़्त पियूँगा!
मैंने इधर उधर निगाह दौड़ाई, पूल साइड में कोई नहीं था, काफी बड़ी जगह थी, एक कोने में स्विमिंग पूल था और बाकि जगह पर कई सुन्दर सुन्दर छोटे वृक्ष लगे हुए थे और करीब बीस पच्चीस टेबल चार चार कुर्सियों के साथ काफी दूर दूर पर लगी हुई थीं।
यह पूल साइड काफी प्राइवेसी वाली जगह थी। पूल के पीछे की तरफ एक झरना था जिसमें से खूब तेज़ तेज़ कल कल करता हुआ पानी चल रहा था।
झरने के नज़दीक जाने के लिए दोनों तरफ चार चार सीढ़ियां बनी हुई थीं। सीढ़ियां पेड़ों के पीछे थीं और वहां बहुत कम रोशनी थी, कोई लाइट नहीं थी सिर्फ दूर लगी हुई लाइटों की रोशनी छटक के आ रही थी।
कुछ लाइटें झरना में पानी गिरने वाली दीवार पर लगी थीं जिनसे मद्धम सा प्रकाश आ रहा था जो सिर्फ झरने में गिरते हुए जल को दर्शाने के लिए काफी था।
हम पूल साइड पर पहले कई बार चूमा चाटी तो कर चुके थे मगर रानी का स्वर्ण अमृत वहां पीने का मौका नहीं पड़ा था।
मैंने ख़ुशी में एक हुंकार भरके रानी से कहा- हो गया काम! जूसी रानी की बांह थाम के मैं झरने की साइड वाली सीढ़ियों की तरफ चल दिया।
सीढ़ियों पर रानी से कहा कि तीसरे वाले स्टेप पर उकड़ूं बैठ जाए और साड़ी ऊपर कर ले!
रानी ने पहले तो अपनी पैंटी उतारी और फिर चढ़ के तीसरे स्टेप पर साड़ी उठा कर बैठ गई, पैंटी मेरे हाथ में देकर बोली- मादरचोद पहले इसको अच्छे से सूंघ. रस में तर होकर एकदम भीग गई है।
मैंने देखा तो वाकई में पैंटी एकदम गीली थी। रानी की चूत से बेतहाशा रस बहने लगा था, और इसलिए रानी घर चलने की इच्छुक थी।
मैंने पैंटी को नाक से लगा के खूब सूँघा और उसको निचोड़ के रस मुंह में लेने की कोशिश भी की लेकिन रानी ने मेरे बाल पकड़ के कहा- बहन के लौड़े अब अमृत पी हरामज़ादे!
मैं नीचे वाले स्टेप्स पर अधलेटा सा हो गया और हुमक के अपना मुंह रानी की चूत से लगा दिया. चूत बहनचोद बिल्कुल रस से तर हुई पड़ी थी, रानी की बारीक बारीक झांटें भी अच्छे से भीगी हुई थीं।
रानी ने मेरा सर पकड़ के मुंह को कस के चूत से थोड़ा सा रगड़ा और फिर सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र करता हुआ जूसी रानी का मदहोश कर देने वाला स्वर्ण अमृत मेरे मुंह में आने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं मुंह खोल के पिये जा रहा था और ठरक से बेहाल हुए जा रहा था यह स्वर्ण रस नहीं था, यह तो स्वर्ण अमृत था। मैं तो इसे सारा दिन पीने को खुशी खुशी मान जाता!
सुर्र सुर्र सुर्र करके अमृत की मेरे ऊपर बौछार होती गई और मैं मस्ती में मतवाला होता गया।
आखिर कुछ देर के बाद धार समाप्त हो गई तो रानी ने अपनी चूत मेरे मुंह से रगड़ के साफ कर ली। जैसे ही उसने चूत मेरे मुंह पर लगाई और रगड़ा, मैंने अपनी जीभ बुर में डाल दी! बुर रस से तरबतर हुई पड़ी थी, ढेर सारा रस मेरी जीभ पर आ गया और मेरी प्यास कुछ शांत हुई।
यह सब काम पूरा होने के बाद जूसी रानी बाथरूम को चल दी क्योंकि उसको पैंटी चेंज करनी थी। वो हमेशा एक पैंटी अपने बैग में रखती है, वो जानती है मेरी छेड़खानियों से उसको काम वासना ज़ोरों से चढ़ती है और बुर से ढेर सारा रस निकलने लगता है।
मैं बाथरूम के बाहर उसकी वेट करने लगा। बाथरूम में कच्छी चेंज करके बाल, साड़ी इत्यादि सही करके जब जूसी रानी आई तो हम वापिस कवाब फैक्ट्री में चले गए और अपनी टेबल पर बैठ गए।
जैसा रानी का आदेश था, वैसे ही वेटर को बुला के थोड़ा सा वेज और थोड़ा सा नॉन वेज खाना पैक करने का आर्डर दे दिया। तब तक हम वाइन सीधे तरीके से अपने अपने गिलास से धीरे धीरे सिप करते रहे।
जब तक हमने वाइन ख़त्म की, तब तक पैक हुआ डिनर भी वेटर ने लाकर दे दिया। वाइन के हल्के और चुदास के तीव्र नशे में हम वापिस घर चल दिए।
कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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