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रेखा भाभी को चोद कर उनकी चूत वीर्य से लबालब भर दी थी मैंने। भाभी के मुखड़े पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे, भाभी मुझसे चूत चुदवा कर बहुत प्रसन्न थी। उस दिन हमने चार बार चुदाई की और शाम को सन्दीप रेखा भाभी को लेकर अपने गाँव चला गया।
उसके बाद मैंने ही डॉक्टर को बोल कर संदीप और रेखा भाभी को हर तीन दिन बाद बुलाने को कहा। इलाज के चक्कर में संदीप भला कैसे मना करता।
फिर तो हर तीसरे दिन रेखा भाभी आती और सारा दिन में मुझ से कम से कम चार पांच बार चुदती और मेरा वीर्य अपनी चूत में लेकर चली जाती।
करीब दो महीने यह सिलसिला चला और फिर रेखा भाभी गर्भवती हो गई। जिस दिन यह खबर आई कि भाभी पेट से है उस दिन संदीप बहुत खुश था और उस दिन उसने एक शानदार पार्टी दी थी।
भाभी के प्रेग्नेंट होने के बाद प्रीति ने भी मुझ से बातचीत शुरू कर दी थी। वैसे तो मैंने भाभी को मना किया था पर फिर भी भाभी ने प्रीति को बता दिया कि उसके पेट में मेरा बच्चा है। पहले तो प्रीति बहुत नाराज हुई थी पर फिर जब रेखा भाभी ने संदीप की मेडिकल रिपोर्ट प्रीति को दिखाई तो उसकी नाराजगी ख़त्म हुई।
यहाँ मैं आपको प्रीति के बारे में भी बता दूँ। प्रीति इक्कीस साल की जवान और खूबसूरत लड़की है। रिश्ता पक्का हो चुका था और कुछ ही महीनों बाद उसकी शादी थी। भरा भरा बदन, मस्त संतरों के आकार की चूचियाँ, पतली कमर, और खूबसूरती को चार चाँद लगाती मस्त गांड।
प्रीति मुझे राज भैया कहकर बुलाती थी, मेरे खास दोस्त की बहन थी तो मैं भी उसको बहन ही समझता था। एक दो बार तो रक्षाबंधन पर उसने मुझे राखी भी बाँधी थी।
आप सोच रहे होंगे की कैसा इंसान है जिस लड़की की बहन बता रहा है उसके बदन की तारीफ़ तो ऐसे कर रहा है जैसे गर्लफ्रेंड हो। जी नहीं, ये वो पल थे जब इस कहानी ने नया मोड़ ले लिया था।
मेरा अब मामा के गाँव में आना जाना कुछ ज्यादा ही हो गया था। लगभग हर हफ्ते मैं मामा के गाँव पहुँच जाता, रेखा भी मेरा बेसब्री से इंतज़ार करती। ऐसा नहीं था कि मैं वहाँ रेखा भाभी की चुदाई के लिए जाता था पर जब से रेखा भाभी मुझ से चुद कर गर्भवती हुई थी, मेरा लगाव रेखा भाभी से कुछ ज्यादा हो गया था। मैं जब भी गाँव जाता तो काफी काफी देर तक मैं संदीप के घर जाकर रेखा भाभी से बातें करता रहता।
अब तो प्रीति भी सब जानती थी तो वो भी कुछ नहीं कहती थी। मेरे इस तरह ज्यादा जाने से प्रीति भी मेरे नजदीक आने लगी थी, वो अक्सर मौका देख कर मेरे पास आकर बैठ जाती और बातें करती रहती।
उसकी बातों से मैं कभी समझ ही नहीं पाया था कि उसके मन में क्या चल रहा है। फिर वो समय भी आया जब प्रीति मेरे इतना नजदीक आ गई कि हम दोनों ही अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए।
जैसा मैंने आपको पहले बताया कि प्रीति की शादी तय हो चुकी थी और जल्दी ही वो ससुराल जाने वाली थी। ज्यूँ ज्यूँ शादी का समय नजदीक आ रहा था प्रीति का मन सेक्स की तरफ बढ़ने लगा था। वो अक्सर रेखा भाभी से सेक्स के बारे में पूछा करती थी। भाभी भी उसको समझाया करती थी कि शादी के बाद क्या क्या होगा, सुहागरात को क्या होगा, कैसे उसका पति उसे नंगी करके अपने लंड से चोद कर उसकी चुदाई करेगा।
प्रीति का पसंदीदा टॉपिक ज्यादातर चुदाई ही होता था कि जब चुदाई होगी तो क्या होगा, दर्द होगा या मज़ा आएगा? इतनी छोटी सी चूत में लंड कैसे जाएगा… वगैरा वगैरा।
प्रीति से बातें करके रेखा भाभी भी गर्म हो जाती थी और फिर अक्सर मुझे ही उसकी गर्मी शांत करनी पड़ती थी। जब रेखा भाभी गर्म हो जाती थी तो यकीनन प्रीति की चूत में भी पानी उतर आता था।
रेखा भाभी मुझे बता चुकी थी कि प्रीति जब गर्म हो जाती है तो उंगली से रगड़ कर पानी निकाल लेती है।
उस दिन शनिवार का दिन था, मैं शाम को संदीप के साथ ही गाँव आ गया, जब घर पहुंचे तो पता लगा कि संदीप के माँ-पिता जी संदीप के मामा के घर गए है।
संदीप के कहने पर मैंने खाना भी संदीप के घर ही खाया। संदीप ने मुझे अपने घर पर ही सोने के लिए कहा तो मैंने मना कर दिया। मामा के घर गया तो पता लगा कि सोनू भी अपनी ससुराल गया हुआ है तो मैं अपने आप को कोसने लगा कि इससे अच्छा तो संदीप के पास ही सो जाता, अब अकेले बोर होना पड़ेगा।
मामी ने ऊपर वाले कमरे में मेरा बिस्तर लगा दिया था। अभी मैं बिस्तर पर लेटा ही था कि प्रीति मुझे बुलाने आ गई कि संदीप भैया बुला रहे हैं।
मुझे लगा कि कोई काम होगा तो मैं चप्पल पहन कर उसके साथ चल दिया। जब संदीप के घर पहुंचा तो देखा कि संदीप और रेखा भाभी तो अपने कमरे में है और कमरा अन्दर से बंद है। मैं कुछ समझ नहीं पाया, मैंने प्रीति से इस बारे में पूछा तो उसने कुछ नहीं कहा और एकदम से मुझसे लिपट गई।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि प्रीति क्या चाहती है। मैं दोस्त की बहन के साथ ये सब करना नहीं चाहता था पर एक कुंवारी जवान लड़की जब खुद ही अपनी जवानी मेरे नाम करने को बेताब थी तो भला मैं कैसे ना कर सकता था। मैं तो हूँ ही चूत का रसिया!
मैंने दिखावे के लिए प्रीति को अपने से अलग करने की कोशिश की तो उसकी आँखों में एक विनती थी जैसे कह रही हो कि आज मुझे प्यासी मत छोड़ो। ‘प्रीति… यह क्या कर रही हो तुम… यह ठीक नहीं है।’
‘राज… प्लीज कुछ मत कहो… तुम अच्छी तरह जानते हो मैं तुम्हें कितना प्यार करने लगी हूँ… अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती… कुछ दिन बाद मेरी शादी हो जायेगी… मैं चाहती हूँ कि मैं उससे पहले अपने प्यार को पा लूँ… राज… मुझे अपनी बना लो राज… मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ!’
प्रीति मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर के ऊपर वाले कमरे में ले जाने लगी, मैंने दिखावे के लिए प्रीति को रोकने की कोशिश की पर प्रीति मुझे लगभग खींचते हुए ले गई।
अभी हम दोनों छत पर पहुँचे ही थे कि एकदम से बारिश शुरू हो गई। जैसे ही बारिश की बूँदें प्रीति के बदन पर पड़ी, वो एक बार फिर मुझ से लिपट गई।
प्रीति के मकान की छत तीन तरफ से बंद थी। एक तो तीन तरफ से बंद छत, दूसरा बारिश की फव्वारे उस पर गजब रात का समय। प्यार करने के लिए एकदम उपयुक्त माहौल था।
जैसे ही प्रीति मुझे से लिपटी, मैंने भी बिना देर किये उसका चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और उसके नाजुक गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए। होंठों से होंठ मिलते ही प्रीति और जोर से लिपट गई और चुम्बन में साथ देने लगी।
तभी बारिश तेज हो गई, मैंने प्रीति को अन्दर कमरे में चलने के लिए कहा पर उसने मना कर दिया।
हम दोनों भीग चुके थे… बारिश की ठंडी बौछारों तले दो गर्म जवान जिस्म… सच कहूँ तो पानी में आग लग रही थी।
मैंने प्रीति के होंठों का रसपान करते करते एक हाथ से उसकी मस्त कड़क नारंगी के आकार की चूची को अपनी हथेली में दबा लिया और मसलने लगा। प्रीति की चूचियाँ वासना के कारण एक दम तन कर कड़क हो गई थी। प्रीति का सूट उसके बदन से भीग कर चिपक गया था, उसने नीचे ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो शर्ट में से उसके तने हुए चूचुक स्पष्ट नजर आ रहे थे।
मैं भी अब बहकने लगा था, मैंने बिना देर किये प्रीति का कमीज निकाल दिया तो अब मेरी आँखों के सामने प्रीति का भीगा हुआ नंगा बदन था। प्रीति की चूचियाँ गजब लग रही थी, मैंने प्रीति की एक चूची को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। बारिश की बूंदों से भीगी चूची को चूसने में एक अलग ही मज़ा आ रहा था।
प्रीति सिसकारियाँ भर रही थी।
चूची चूसते चूसते मैंने प्रीति की सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार को नीचे खिसका दिया। मैंने एक हाथ प्रीति की नंगी चूत पर फेरा तो उसने शर्मा कर अपनी जांघें भींच ली।
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प्रीति की चूत एकदम से क्लीन शेव थी, बाल का नामो-निशान भी नहीं था, शायद आज शाम को ही उसने अपनी चूत साफ़ की थी।
हम दोनों बारिश में भीगते हुए एक दूसरे में समा जाना चाहते थे। प्रीति का नंगा बदन मेरी बाहों में कैद था और प्रीति के हाथ मेरे बदन के कपड़े कम करने में व्यस्त थे।
कुछ ही देर में मैं भी प्रीति की तरह ही जन्मजात नंगा प्रीति के सामने खड़ा था और मेरे तन कर खड़े लंड पर प्रीति के कोमल हाथ एक खुशनुमा अहसास करवा रहे थे। मैं प्रीति की चूचियों को मसल और चूस रहा था और प्रीति सिसकारियाँ भरते हुए मेरे लंड को सहला रही थी।
वहीं छत पर एक लकड़ी का तख़्त पड़ा हुआ था। मैंने प्रीति को गोद में उठा कर उस तख़्त पर लेटा दिया। छत पर एकदम से सब तरफ़ अँधेरा था। बीच बीच में बिजली चमक कर आसपास का अहसास करवा रही थी।
प्रीति को तख़्त पर लेटाने के बाद मैं उसकी टांगों को चूमने और चाटने लगा। मैं चाटते चाटते ऊपर की तरफ बढ़ रहा था और फिर वो समय भी आ गया जब मेरी जीभ प्रीति की कुंवारी नमकीन पानी छोड़ती चूत से टकराई।
अपनी चूत पर मेरी जीभ के एहसास से ही प्रीति सिहर उठी थी, एक जोरदार झुरझरी मैंने प्रीति के बदन में महसूस की थी- राज… मुझे अपना बना लो… बदन में जो आग लगी हुई है उसको बुझा दो मेरे राजा जी… प्रीति बड़बड़ा रही थी।
मैं सब कुछ भूल कर कुंवारी चूत का रसपान करने में व्यस्त था। प्रीति की चिकनी चूत की चाटने और उसका रसपान करने में जो मज़ा आ रहा था उसके सामने दुनिया का हर मज़ा फीका है। मैं अपनी उँगलियों से उसकी छोटी सी कुंवारी चूत को खोल कर जीभ को अन्दर तक डाल डाल कर चाट रहा था, प्रीति भी मस्ती के मारे सिसकारियाँ भरते हुए अपने सर को इधर उधर पटक रही थी और अपने हाथों से मेरे सर को अपनी चूत पर दबा रही थी।
कुछ ही देर बाद प्रीति का बदन अकड़ने लगा और फिर उसकी चूत ने मेरे मुँह पर अमृत की बौछार कर दी। मैं चूत का रसिया सारा रस चाट गया।
प्रीति के झड़ने के बाद मैं उठा और मैंने अपना लंड प्रीति के होंठों से लगा दिया। पहले पहल तो प्रीति ने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया पर जब मैंने उसको चूसने के लिए कहा तो वो बिना कुछ बोले जीभ से मेरे लंड के सुपारे को चाटने लगी।
प्रीति का यह पहला अवसर था लंड चूसने का तो वो सही से समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें। मैंने उसको मुँह खोल कर लंड को अपने मुँह में अन्दर लेने को कहा तो वो सुपारे को अपने होंठ में दबा कर चूसने और चाटने लगी।
लंड पर प्रीति के कोमल होंठों का अहसास ही मुझे मस्ती के सागर में डुबोने के लिए काफी था।
बारिश अभी भी अपनी पूरी रौनक पर थी और तेज बारिश में ही हम दोनों जवान जिस्म एक दूसरे में समा जाने को बेताब थे। प्रीति को लंड चुसवाते हुए मैंने एक ऊँगली प्रीति की चूत में घुमानी शुरू कर दी जिस से प्रीति फिर से मस्त हो उठी।
मेरा लंड भी अपनी पूरी औकात में आ चुका था और अब वो भी एक कुंवारी चूत पर चढ़ाई करने को मचल रहा था और बार बार ठुमके लगा रहा था।
मैंने लंड प्रीति के होंठों से अलग किया और उसकी टांगों के बीच आकर लंड का सुपारा प्रीति की चूत पर रगड़ने लगा। प्रीति तो लंड को चूत में लेने के लिए मरी जा रही थी, वो अपनी गोरी गांड उठा उठा कर लंड का स्वागत कर रही थी।
मैंने चूत पर लंड का दबाव बनाया तो मेरे लंड का लाल टमाटर जैसा सुपारा प्रीति की नाजुक चूत के मुँह को खोल कर अन्दर घुसने की कोशिश करने लगा। नाजुक कुंवारी चूत के लिए मेरा लंड बहुत मोटा था जिस कारण प्रीति के चेहरे पर दर्द भरी लकीरें दिखाई देने लगी थी।
मैंने प्रीति से तेल या वेसलीन के बारे में पूछा तो वो उठी और अन्दर कमरे में से सरसों का तेल उठा लाई। मैंने अपने लंड और प्रीति की चूत पर ढेर सारा तेल लगाया और फिर से सुपारा प्रीति की चूत के मुहाने पर सटा दिया।
‘राज… अब कितना तड़पाओगे… बना लो मुझे अपनी रानी मेरे राजा… रौंद डालो मुझे… मेरी जवानी अब तुम्हारी है…’ प्रीति ना जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी।
मैंने लंड चूत पर अच्छे से सेट किया और एक जोरदार धक्का लगा कर सुपारा प्रीति की चूत में फिट कर दिया। सुपारा अन्दर जाते ही प्रीति दर्द के मारे बिलबिला उठी। मैंने उसके मुँह पर हाथ रख कर उसकी चीख निकलने से रोका।
वो मुझे अपने ऊपर से धकेल कर दूर करने की कोशिश करने लगी पर मैं कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नहीं। मैंने प्रीति पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी और बिना देर किये एक और जोरदार धक्का लगा कर करीब दो-तीन इंच लंड प्रीति की चूत में सरका दिया।
‘आह्ह्ह्ह राज… बाहर निकालो… उईईईई माँ… मेरी फट गई…’ प्रीति चीख पड़ी थी।
मैंने प्रीति के होंठों पर होंठ रख कर उसकी आवाज बंद की। किला फ़तेह होने को था तो मैंने भी देर नहीं की और लगातार दो जोरदार धक्को के साथ लंड को प्रीति की चूत में अन्दर तक उतार दिया।
लंड प्रीति की चूत का शील भंग करते हुए जड़ तक चूत के अन्दर समा गया। प्रीति दर्द के मारे लगभग बेहोश होने को थी। वो तो बारिश की बूंदें बदन पर पड़ कर दर्द के अहसास को कम कर रही थी।
मैं लंड को पूरा अन्दर डालने के बाद रुक गया और प्रीति की चूचियों को मुँह में भर कर चूसने लगा।
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद मैंने थोड़ी हलचल शुरू की और लंड को थोड़ा थोड़ा अन्दर बाहर करने लगा। प्रीति अभी भी दर्द से कराह रही थी।
लगभग पांच मिनट के बाद प्रीति ने मेरे धक्कों के साथ अपनी गांड उठानी शुरू की तो मैं समझ गया कि अब असली चुदाई का मज़ा लेने का वक़्त आ गया है और मैंने अपने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी।
अब दर्द भरी आहें मस्ती भरी सिसकारियों में बदल गई थी और प्रीति मेरे हर धक्के का जवाब अपनी गांड उठा कर देने लगी थी- आह्ह्ह्ह… चोदो मेरे राजा… चोदो अपनी रानी को… उम्म्म… बहुत मज़ा आ रहा है मेरे राजा जी… चोदो… और जोर से चोदो… फाड़ डालो… कब से तुम्हारी होना चाहती थी… आज मौका मिला है तो बना लो मुझे अपनी रानी…आह्ह्ह… चोद डालो मेरे राजा जी…
मैं मस्त हुआ टाइट कुंवारी चूत को अपने लंड से फाड़ने में लगा था। सच में जन्नत का मज़ा आ रहा था प्रीति की चुदाई में। एकदम कोरी अनछुई कुंवारी चूत… लंड दुगने जोश में था और सटासट चूत में अन्दर बाहर हो रहा था।
कुछ देर ऐसे ही चुदाई करने के बाद मैंने अपने पसंदीदा आसन मतलब प्रीति को घोड़ी बना कर पीछे से लंड प्रीति की चूत में उतार दिया। एक बार प्रीति कराही पर अगले ही पल वो अपनी गांड आगे पीछे करके चुदाई का आनन्द लेने लगी।
बारिश अभी भी हो रही थी और बारिश में ही जबरदस्त चुदाई हो रही थी प्रीति की। बारिश में चुदाई का यह मेरा भी पहला मौका था। लिख कर बताना बहुत मुश्किल है कि कितना मज़ा आ रहा था। दिल कर रहा था सारी रात ऐसे ही बरसात होती रहे और मैं प्रीति को चोदता रहूँ।
लकड़ी के सख्त तख़्त पर प्रीति के घुटने दुखने लगे थे तो मैंने फिर से उसको तख़्त पर लेटाया और उसकी टांगों को अपने कंधे पर रख कर एक बार फिर लंड जड़ तक उसकी चूत में उतार दिया और चुदाई एक्सप्रेस की स्पीड बढ़ा दी।
प्रीति अब तक दो बार अपनी चूत का रस मेरे लंड पर न्यौछावर कर चुकी थी और अब तीसरी बार उसका बदन अकड़ने लगा था जो बता रहा था कि प्रीति अब एक बार फिर से झड़ने वाली है।
मेरा लंड भी अब प्रीति की चूत में वीर्य वर्षा करने को तैयार था, मैंने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी उधर प्रीति भी जोर जोर से गांड उछाल उछाल कर लंड लेने लगी थी।
हम दोनों ही झड़ कर शांत होना चाहते थे। तूफ़ान आने वाला था और हम दोनों को ही ज्यादा देर इंतज़ार नहीं करना पड़ा, आखिर हम दोनों एक साथ झड़ने लगे। प्रीति की चूत से निकलता रस मेरे अंडकोष को भिगो रहा था और मेरा वीर्य प्रीति की चूत की गहराई में भरता जा रहा था।
झड़ने के बाद मैं वहीं प्रीति के ऊपर ही लेट गया। बारिश की रिमझिम बूंदें अभी भी बदन पर पड़ रही थी। बेहद संतुष्टि का एहसास हो रहा था। प्रीति ने मुझे अपनी बाहों और टांगों में जकड़ रखा था और मैं भी उसकी चूचियों में मुँह को दबाये अपनी साँसों को नियंत्रित कर रहा था।
कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद प्रीति ने अपनी जकड़ ढीली की तो मैं उठा, मैंने प्रीति को भी उठाया और अपने होंठ उसके होंठों की तरफ किये तो उसने शर्मा कर अपने चेहरे को अपने हाथों से ढक लिया।
उसकी इस अदा ने फिर से दिल में हलचल मचा दी, मैंने उसके हाथों को उसके चेहरे से हटाया और अपने होंठ प्रीति की होंठों से मिला दिए।
प्रीति का नंगा बदन अब मेरी नंगी बाहों में झूल रहा था।
‘राज… आज तुमने मुझे जो प्यार दिया है… वो मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊँगी… मुझे पता था कि तुम्हारी और मेरी शादी किसी भी कीमत पर नहीं हो सकती पर जानते हो मैंने जब से होश संभाला है तब से सिर्फ तुमसे ही प्यार किया है… जब तुम्हें रेखा भाभी के साथ देखा था तो मेरा बहुत खून जला था कि मेरे प्यार पर मुझ से पहले मेरी सगी भाभी ने डाका डाल दिया… पर अब जब मैं सच जानती हूँ तो मुझे उसका कोई अफ़सोस नहीं है।’
मुझ से कोई जवाब देते नहीं बन रहा था… आखिर क्या जवाब देता।
‘आज जो मैंने अपनी जवानी, अपना कौमार्य, अपनी अनमोल पूँजी तुम्हारे नाम की है, वो इस बात का नजराना है कि तुमने मेरे प्यार के साथ साथ मेरे परिवार की इज्जत को भी बचा लिया… मुझे बुआ बनाने के लिए ढेर सारा धन्यवाद… यह प्रीति कल भी तुम्हारी थी, आज भी तुम्हारी है और शादी के बाद भी तुम्हारी ही रहेगी।’
‘प्रीति… छोड़ो इन बातों को… इतना सुहाना मौसम है… सिर्फ प्यार की बातें करो…’
मेरा इतना कहते ही प्रीति ने एक बार फिर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और फिर सुबह पाँच बजे तक मैंने तीन बार और प्रीति की चुदाई की।
सुबह जब आँख खुली तो रेखा भाभी मुझे हिला हिला कर उठा रही थी। रेखा भाभी को देखते ही मैं हड़बड़ा गया।
‘तुम यहाँ कैसे?’ भाभी के इस सवाल का क्या जवाब देता।
मैंने घूम कर देखा तो प्रीति अभी भी नंगी ही मेरे बगल में सो रही थी।
मेरे बाद भाभी ने उसको उठाया, भाभी को देखते ही प्रीति भी हड़बड़ा कर अपने कपड़े ढूंढने लगी। भाभी उसकी हड़बड़ाहट देख हँस पड़ी, भाभी को हंसती देख प्रीति बेड से उठ कर जल्दी से बाथरूम में घुस गई।
बाद में मुझे पता चला कि रेखा भाभी सब जानती थी। प्रीति ने भाभी को बता दिया था कि वो दिल ही दिल मुझे प्यार करती है और जब से उसने रेखा भाभी को मुझसे चुदते देखा है वो भी मुझसे चुदने को बेचैन है। प्रीति को चुदाई की आग में तड़पते देख भाभी ने ही प्रीति को आज मुझसे चुदने की सलाह दी थी।
उस दिन से प्रीति की शादी तक मैंने रेखा भाभी की मदद से प्रीति को बहुत बार चोदा और प्रीति की शादी के बाद भी प्रीति जब भी मायके आती, रेखा भाभी मुझे फ़ोन करके बुला लेती और खुद ही मौका बना कर प्रीति को मुझ से चुदवाती।
आज रेखा भाभी मेरे दो बच्चो की माँ बन चुकी है और वो अब खुश है।
प्रीति भी एक बेटे को जन्म दे चुकी है पर उसके बारे में कहना मुश्किल है कि वो मेरा है या उसके पति का… पर जिन्दगी ने रेखा और प्रीति नाम के दो हसीन तोहफे मेरे नाम किये जिसके लिए जिन्दगी का शुक्रिया।
कहानी कैसी लगी, जरूर बताना! आपके सुझाव और कमेंट्स का इंतज़ार रहेगा। आपका अपना राजकार्तिक शर्मा [email protected]
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