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दोपहर का वक्त था, मैं अपने काम से एक जगह गया था। वापस लौटते वक़्त सोचा साले के घर होता चलूँ। जब उनके घर पहुँचा तो साले साब घर पर नहीं थे, घर में सिर्फ उनकी बीवी यानि मेरी सलहज थी।
मैंने साले को फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि वो व्यस्त हैं और घर से दूर हैं तो सीधा रात को ही घर लौट पायेंगे। मैंने सोचा आया हूँ तो थोड़ी देर बैठूँ फिर चला जाऊँगा।
साले की बीवी का नाम प्रीति है, निहायत ही खूबसूरत दिखती है वो! मैं गया तो वो चाय पानी में जुट गई, थोड़े ही समय में उसने चाय नाश्ता लगाया, हम दोनों ने चाय नाश्ता करते हुये यहाँ वहाँ की बातें की।
थोड़ी देर बाद वो किसी काम से अंदर चली गई। मैं बाहर हॉल में ही चाय पी रहा था कि तभी जोर से कुछ गिरने की आवाज हुई। मैं तुरंत उस आवाज की दिशा में भागा, देखा तो एक ऑयल पेंट का डिब्बा गिरा और प्रीति पूरी रंगीन हो गई थी।
मुझे देखकर वो रोने लगी। मैंने पूछा- कैसे गिरा ये? ‘ऊपर से कपड़ा निकाल रही थी लेकिन कपड़ा डिब्बे के नीचे फंसा था जिसकी वजह से पल्ट गया।’ उसने रोते हुये कहा।
‘स्टूल नहीं लिया था क्या?’ मैंने कहा। ‘नहीं, अब क्या करें? वो आयेंगे तो बहुत चिल्लायेंगे। ‘इसीलिये रो रही हो?’ ‘हाँ!’ ‘मैं समझा दूंगा उसको!’
‘नहीं, वे आपके सामने कुछ नहीं बोलेंगे पर बाद में डाटेंगे और मारेंगे भी!’ ‘अच्छा एक काम करो, उसके अभी आने में बहुत टाइम है, तब तक इसे साफ़ कर लो।’ ‘साफ़ हो जाएगा क्या?’ ‘हाँ, निकल जाएगा। मैं बाजार से टर्पेन्टाइन ऑयल लाता हूँ, उससे निकल जाता है।’
मैं पेंट की दूकान में गया, वहाँ से एक टर्पेन्टाइन तेल की बोतल और पुराने सूती कपड़े ले आया जो पेंटर इस्तेमाल करते हैं।
जब मैं वापस आया वो फर्श साफ़ कर रही थी। मैंने उसे कहा- तुम रहने दो, मैं साफ़ कर लूंगा, तुम्हारे बदन और कपड़ों का रंग फिर फर्श पर लग रहा है। ‘पर आप करोगे? यह ठीक नहीं।’ ‘यह मान सम्मान देखने का वक्त नहीं, तुम जाओ और जल्दी से खुद को साफ़ करके नहा लो।’
उसने वही किया जो मैंने कहा, वो उठकर बाथरूम में चली गई। मैंने फर्श साफ़ किया। उसे आवाज देकर बाथरूम से उसके रंग से भरे कपड़े लिये और गार्बेज बैग में फेंकने के लिये रख दिये ताके साले को रंग से भरे कपड़े ना दिखड़।
जब तक वो नहा ले, मैं टी वी देख लूँ, यह सोच कर मैं हॉल में टीवी देखने लगा। लगभग आधा घंटा बीता पर प्रीति बाथरूम से बाहर नहीं आई तो मैं उठकर बाथरूम के दरवाजे की तरफ गया- प्रीति क्या हुआ? इतना समय क्यों लग रहा है?
फिर उसने रोते हुये अंदर से ही कहा- नहीं निकल रहा है। ‘थोड़ा वक्त लगेगा, पूरे बदन को लगा है ना, पर निकलेगा जरूर!’ मैंने समझाया।
‘निकल रहा है पर कुछ जगहों पर मेरा हाथ ही नहीं पहुँच रहा!’ उसका रोना बढ़ा। तुम्हारी किसी पड़ोसन को बुलाऊँ हेल्प के लिये? ‘ना, उनको पता चल जायेगा।’ ‘किसी सहेली को?’ ‘कोई नजदीक नहीं है।’
‘काम वाली को बुलाऊँ?’ ‘नहीं, वो तो पूरी सोसायटी को बता देगी।’ ‘नर्स को? बिमारी का बहाना कर के?’ ‘नहीं, बेवजह का बवाल हो जायेगा।’
‘तब तो सिर्फ दो ही रास्ते बचते हैं, या तुम खुद करो, या मैं तुम्हारी मदद करूँ।’ वो खामोश हो गई।
प्रीति ! प्रीति ! हाँ, सुन रही हूँ। क्या करोगी?
मैंने खुद से तो ट्राई किया हाथ नहीं पहुंच रहा हैं। तो क्या मैं करूँ? ह्हहम! ‘ठीक है, दरवाजा खोलो।’
उसने दरवाजा खोला, मैं जो कॉटन के ढेर सारे छोटे कपड़े लाया था, उससे वो अपना तन ढकने का असफल प्रयास कर रही थी। उसकी सीनों का उभार उन पतले कपड़ों से और ज्यादा नजर आ रहा था। कमर से नीचे नंगी गोरी टांगे गजब ढा रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उसे इस रूप में कभी देख पाऊँगा, इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मेरा लंड एक झटके में तनकर खड़ा हो गया। वो खुद मुझसे बहुत शर्मा रही थी।
‘कहा हाथ नहीं पहुँच रहा?’ मैंने पूछा। ‘पीठ और कमर के कुछ हिस्से पर!’ उसने गर्दन झुकाते हुये कहा। ‘ठीक है, पल्टी हो जाओ।’ ‘पर कपड़े?’
‘ऐसा करो, नीचे बैठ जाओ और कपड़े से जितना हिस्सा ढक सकती हो ढक लो, मैं मुँह उधर घुमा लेता हूँ।’ कहकर मैंने मुँह घुमा लिया।
वो सीने पर और कमर पर एक कपड़ा पकड़कर बैठ गई। मैं नीचे बैठ गया तो पानी की वजह से मेरी पैंट गीली होनी लगी और साथ ही शर्ट की बाहें भी भीगने लगी।
‘आप कपड़े निकाल दीजिये ना, वैसे भी रंग आपके कपड़ों को भी लग जायेगा!’ उसने धीमे स्वर में कहा।
मैं उठा, जाकर अपने कपड़े निकालकर सिर्फ अंडरवीयर में वापस आया। उसने मेरी तरफ और मेरे अंडरवीयर के उभार की तरफ देखा, फिर आगे मुँह कर लिया।
मैं अब उसकी नंगी गोरी पीठ पर कपड़े में रखा हाथ घुमा रहा था, बीच बीच में कुरेदने के लिये कपड़ों की बजाय उंगलियाँ भी लगा देता। काफी मुलायम बदन था उसका।
मैं पीठ साफ़ करके कमर की तरफ गया तो देखा के ढेर सारा पेंट उसके कूल्हों में भी घुसा हुआ था- प्रीति, एक प्रॉब्लम है। ‘क्या?’ ‘तुम्हारे कूल्हों में भी पेंट लगा है।’ ‘ह्हहम !’
‘उसे निकालने के लिये या तो तुम्हें घोड़ी बनना पड़ेगा या नीचे लेटना पड़ेगा।’ ‘नीचे लेटती हूँ!’ कहकर वो उल्टी लेट गई। ‘अरे बहुत सारा लगा है, ठीक से बैठकर साफ़ करना पड़ेगा।’
‘तो बैठिये!’ वो अब थोड़ी खुल गई थो मेरे साथ। ‘अंडरवीयर गीला हो जायेगा।’ ‘निकाल दीजिये!’ एक हल्की सी हँसी के साथ उसने कहा।
अब शायद अच्छा लगने लगा था, शायद मुसीबत उसके लिये एड्वैन्चर बन गई थी।
मैंने बिना वक्त गंवाये अपनी अंडरवीयर निकाल दी। मेरे तने खड़े लंड को देखकर वो शर्माई।
मैं नीचे बैठ गया और उसके कूल्हे साफ करने लगा।
अपने कूल्हों पर मेरा हाथ पाकर वो उत्तेजित हो गई थी।
‘प्रीति ! वहाँ छेद पर भी है, करूँ?’ ‘ह्हहम!’
मैंने तुरंत थोड़ा तेल उँगली पर लिया और उसके गांड की छेद पर मला फिर हल्के हल्के उंगली फेरने लगा। उसे मजा आने लगा, मैंने उंगली थोड़ी अंदर कर दी। ‘अह अम्म…’ उसकी आवाज निकली।
‘क्या हुआ?’ मैंने पूछा। ‘कुछ नहीं…’, उसने शर्माहट में हँसते हुये कहा।
मैंने अच्छी तरह से उसके कूल्हों पर से और गांड पर से रंग निकाल दिया। ‘प्रीति, अब नहाना चाहिये।’ ‘ह्हहम!’ वो होश खो बैठी थी उत्तेजना में।
‘ह्हहम, साथ में नहाना है क्या?’ मैंने उसके उत्तेजना का फायदा लेकर मजाक में ही कहा। ‘आपको भी तो नहाना पड़ेगा?’ उसने कहा। ‘नहलाऊँ?’
अब ऐसी ऐसी जगह पर हाथ लगा लिये हो नहलाओगे तो कौन सी अजब बात हो जायेगी? उसने हँसते हुये रजामंदी दे दी थी।
‘ठीक है, लेटी रहो ऐसे ही!’ कहते हुये मैंने साबुन लिया और उसके बदन पर पानी दाल साबुन लगा दिया।
पूरे बदन पर पीछे से साबुन लगा कर मैं अब उस पर हाथ फेरने लगा।
पहले से ही मुलायम चिकना बदन साबुन की वजह से और ज्यादा चिकना हो गया, मैं अपने दोनों हाथों से उसकी पीठ, गर्दन, कमर और कूल्हों को सहला रहा था।
जब काफी देर मैंने उसकी पीछे की साइड सहलाई तब मैंने उसे सीधा लिटाकर चेहरे को साबुन लगाया। उसके गले से होते हुये उसकी गोल गोरी गोरी चूचियों को ढेर सारा साबुन लगाया और उन्हें मसलने लगा। वो मस्ती में सीत्कार करने लगी।
मैं बीच बीच में निप्पल को भी सहलाता। काफी देर चूचियों को मसल कर मैं पेट पर आया, उसकी नाभि को छूते ही उसके अंदर करंट दौड़ गया।
मैंने कमर से होते हुये पैरों को साबुन लगाया फिर ऊपर आकर जांघों को सहलाते हुये अपनी उंगली उसकी चूत में फेरने लगा। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी।
थोड़ी देर मजा लेने के बाद उसने कहा- लाईये मैं भी आपको साबुन लगा देती हूँ। आप उल्टे लेट जाईये जैसा मैं लेटी थी। मैं उल्टा लेट गया। वो मेरी पीठ पर पानी डालकर साबुन लगाने लगी। पीछे से पूरे बदन पर साबुन लगाने के बाद वो अपने मुलायम हाथ उस पर फेरने लगी।
‘सीधे हो जाओ!’ उसने कहा।
उसने चेहरा, गला, सीना, पेट, पैर सब पर साबुन लगा दिया फिर जाँघों की तरफ आई। जांघों को साबुन लगाकर सहलाते हुये उसने पहले वृषण फिर लंड पर हाथ लगाया।
वाह… क्या मजा आ रहा था उसके हाथों से साबुन लगवाते!
उसने लंड को मुट्ठी में पकड़ा और हिलाने लगी, साबुन की वजह से वो आसानी से उसके हाथ में फिसल रहा था। मुझसे और ज्यादा रहा ना गया तो मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया, वो तुरंत मुझ पर लेट गई।
मैंने उसके होठों को किस करना शुरू किया। अब वो कमर हिलाने लगी, मैंने तुरंत लंड को उसकी चूत में डाल दिया और ऊपर की तरफ कमर उचका के लंड को अंदर बाहर करने लगा। वो भी मज़े से मुझसे लिपटकर चुदवाने लगी। गीला साबुन लगा बदन एक दूसरे से घर्षण करने लगा वही चूत और लंड पर भी साबुन होने की वजह से वहाँ काफी चिकनाई हुई थी जिससे लंड सटासट अंदर बाहर होने लगा।
थोड़ी ही देर में हम दोनों ने झड़कर एक दूसरे को जोर से कस लिया। जब रिलैक्स हुये तब एक दूसरे पर पानी डाल साबुन उतार दिया।
फिर मैंने उसे और उसने मुझे तौलिये से पोंछा और फिर हमने बाहर आकर कपड़े पहन लिये।
कपड़े पहनकर मैंने फिर एक बार उसके हाथों की चाय पी। एक बार फिर उसे गले लगा कर चुम्बन किया और वहाँ से निकल आया।
कहानी के बारे में आपके जो भी अच्छे सुझाव हो आप मुझे मेल कर दीजिये। फालतू मेल में आपका और मेरा कीमती वक्त जाया मत कीजिये।
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