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आपने हमारी पिछली कहानी में हम दोनों परिवार के बीच हुई घमासान चुदाई का पूरा आनन्द लिया, हमें हज़ारों पत्र आये, हमने पूरी कोशिश की कि हम सभी पत्रों का जवाब दे पायें फिर भी शायद कुछ ऐसे पाठक रह ही गए होंगे जिनके जबाव हम न दे सके हों।
वैसे तो इस कहानी का पिछली कहानी से कोई सम्बन्ध नहीं है पर फिर भी हमें और हमारे व्यवहार को जानने के लिए पिछली कहानी सहायक हो सकती है।
मैंने दिल्ली छोड़ दिया था, अब हम अपने आप को मुम्बई में स्थापित करने की कोशिश में लगे हुए थे। दिल्ली से मुम्बई आने की इस पूरी प्रक्रिया में हुआ कुछ यूँ कि मधु और मुझे कुछ दिनों के लिए एक दूसरे से दूर रहना पड़ा, मधु कुछ दिन के लिए अपने ससुराल मतलब मेरे घर और कुछ दिन के लिए मायके यानि अपने घर पर रह लेती थी।
उसका मन तो दोनों में से एक भी जगह नहीं लग रहा था पर मुझे शुरू में कम्पनी ने एक फ्लैट दिया था जिसमें लड़के शेयरिंग करके रहते थे। मैं लगातार मकान ढूंढ रहा था पर मुम्बई में फ्लैट मिलना इतना आसान कहाँ था। घर ढूंढते हुए मुझे 3 महीने हो गए थे और अब तक मेरे मन माफिक घर मुझे नहीं मिल पाया था।
इसी बीच एक शाम जब में ऑफिस से लौटा तो मधु का कॉल आया, मधु बोली- जान मुझे अपने पास बुला लो या फिर वापस दिल्ली ही आ जाओ, अब तुमसे दूर नहीं रहा जाता। मैंने उसे झूठा ढांढस बंधाते हुए कहा- तुम चिंता मत करो, मैं जल्दी ही कोई फ्लैट किराए पर लेता हूँ।
उस रात हमने फ़ोन पर अच्छा वाला फ़ोन सेक्स भी किया और तय हुआ कि में अगले हफ्ते ही उससे मिलने जाऊँगा।
मैंने जो घर देखे थे अगली सुबह ही उनमें से एक फाइनल करने की सोची और कॉल लगाने को जैसे ही फ़ोन उठाया तभी शैलेश का फ़ोन बज उठा। यह हमारे ऑफिस में ही हमारे साथ काम करता था। उसने बताया कि उसकी मौसी परसों दुबई जा रही है, उनका फ्लैट खाली हो गया है, तुझे देखना है तो आ जा! मैंने पूछा- भाई फ़्लैट कहाँ है और क्या किराया है?
फ्लैट मेरे ऑफिस के ही पास था और किराया भी वाजिब सा लग रहा था। शैलेश ने मुझे अपार्टमेंट का नाम और फ्लैट नंबर बताया, मैंने ऑफिस में बोला कि मैं लेट आऊँगा और मन में दुविधा के साथ चला गया।
गॉर्ड की मदद से जैसे ही फ्लैट पर पहुँचा तो शैलेश की मौसी ने दरवाज़ा खोला। मैंने उन्हें देखते ही नमस्ते की और घर के अंदर आया।
वो घर दिखा रही थी और मैं उन्हें देख रहा था, वो कोई सिंधी आंटी के जैसी मोटी और तगड़ी थी। उनकी आँखें एकदम बड़ी बड़ी और तीखी नाक थी। आंटी के मम्मे ज़रूरत से ज्यादा मोटे पर लटके हुए थे। आंटी की गांड उनके शरीर से बहुत बड़ी पर एकदम झकास लग रही थी।
घर देखने के बाद उन्होंने खुद ही कह दिया- इसका मैं कोई डिपाजिट नहीं लूँगी क्योंकि शैलेश पर पूरा विश्वास है और तुम उसी के साथ काम करते हो। हमें तो वैसे भी अपने मकान के केयर टेकर की ज्यादा ज़रूरत है, न कि किराएदार की।
इससे अच्छी डील तो मिल ही नहीं सकती थी। मैंने तुरंत कहा- मैं अपना सामान आज ही शिफ्ट कर लूंगा अगर आपको कोई कष्ट न हो तो? आंटी बोली- राहुल तुम चाहो तो आज शिफ्ट हो जाओ मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, पर मेरी फ्लाइट परसों शाम की है।
मैंने सोचा जब तक ये यहाँ हैं, तब तक घर में क्या कमी पेशी है वो भी दिख जाएँगी जिससे सही करी जा सके और दिखाई जा सके। बाद में मच मच नहीं चाहिए अपुन को।
मैंने बाहर निकल कर पहले शैलेश को थैंक्स कहा, फिर मधु को बताया कि घर मिल गया है और वो सामान पैक कर ले, मैं वीकेंड में उसे लेने आ रहा हूँ।
फिर अपने कमरे से सामान उठाया सबसे विदा ली। ज्यादातर लोग तो ऑफिस या काम से जा चुके थे तो मैसेज करके ही विदाई लेनी थी। और अपने सामान के साथ अपने नए घर में आ गया।
सामान रखकर में ख़ुशी ख़ुशी ऑफिस गया और शाम को 8 बजे लौटा। जब शाम को घर आ रहा था तो खाने पीने का सामान, कुछ अंडे, ब्रेड पाव, चिप्स और एक हाफ व्हिस्की लेकर घर आ गया। मैं व्हिस्की थोड़ा छुपा कर लाया था।
दरवाज़े पर आंटी ने ही स्वागत किया। आंटी अब नाइटी में थी जिसके अंदर से उनके अंग वस्त्रों को देख पाना ज्यादा मुश्किल नहीं था।
मैंने आकर सारा सामान किचन में रख और व्हिस्की और एक गिलास लाकर चुपके से अपने एक कमरे में ले जाकर रख दी जहाँ सुबह मैंने अपना ज्यादातर सामान रखा था।
इस फ्लैट में 2 कमरे थे, एक जिसमें अटैच लेट बाथ था और एक कमरे के बिल्कुल सामने ही था पर अटैच नहीं बोल सकते। मैंने आज सोचा हुआ था कि आज अपनी आजादी को खुल कर मनाऊँगा। पहले नहा कर एक दो पेग मारूँगा, फिर कुछ खा कर मधु से फ़ोन पर सेक्स टॉक करके मुट्ठ मारूंगा।
मैं नहाने चला गया और तौलिये में ही आकर अपने कमरे में बैठ गया। दरवाज़ा मैंने बंद तो किया था पर लॉक नहीं किया था। इस कमरे में एक सिंगल बेड के साथ एक स्टडी टेबल और एक चेयर भी थी। चेयर भी कोई ऐसी वैसे चेयर नहीं, काफी बड़ी और सीईओ की चेयर की तरह गद्देदार थी।
मैं इन चार महीनों में काफी बदल गया था, मुझे अकेले रहना पसंद आने लगा था, उसी का नतीजा था कि मैंने आने के बाद अब तक आंटी से कोई बात ही नहीं की थी।
अपना पेग बनाकर टेबल पर रखा और मोबाइल पर ऍफ़बी ऊपर नीचे कर रहा था। तभी दरवाज़े पर बड़ी धीमी सी दस्तक हुई, आंटी बोली- राहुल सो गए क्या? मैं तुरंत बोला- नहीं आंटी, बस यूँ ही बैठा हूँ।
आंटी ने डोर का नोब घुमाया और दरवाज़ा खोल दिया। मैंने कहा- अरे आंटी, सॉरी वो मैं ज़रा मोबाइल में घुस गया था, भूल ही गया कि आप भी हो घर में!
आंटी बोली- कोई बात नहीं, मैं सिर्फ यह पूछ रही थी कि तुम कुछ खाओगे, मैं अपने लिए कुछ बना रही हूँ, फिर देखा तुम भी कुछ सामान लाये हो।
मैंने कहा- हाँ आंटी, भूख तो लगी है, अभी थोड़ी देर में कुछ खाता हूँ।
आंटी थोड़ा और कमरे में दाखिल होते हुए बोली- अरे तो जो खाना है बता दो, मैं बना ही रही हूँ, तुम्हारे लिए भी बना दूंगी। मैंने कहा- मैं तो कुछ मैग्गी ब्रेड जैसा खाने वाला था। पर आप जो भी बना रही हैं, मैं भी वही खा लूंगा। आंटी बोली- फिर तीखा सा तवा पुलाव बना लेती हूँ।
मैं नहीं चाहता था कि किसी भी तरह की कोई बेवकूफी हो जिससे मेरे हाथ आया यह घर चला जाए, इसलिए मैंने पेग भी थोड़ा छुपा कर रखा हुआ था।
आंटी जैसे ही कमरे से बाहर गई, मैंने तुरंत कपड़े पहने और उनकी मदद करने के विचार से किचन में चला गया। मैंने बर्तन वगैरह साफ़ करने में और सब्जी काटने और सलाद काटने में उनकी मदद की, इतनी देर में उन्होंने पुलाव छोंक दिया था।
हम लोगों के बीच नार्मल घर वगैरह और मौसम से ताल्लुक वाली बातें होती रही।
आंटी बोली- जब तक पुलाव बनता है, मैं जल्दी से शावर लेकर आती हूँ। आंटी ने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया। तब तक मैंने जल्दी से दो पेग गटक लिए और कुछ नमकीन प्लेट में निकाल लिया था।
मैं बालकनी में खड़ा सिगरेट पीकर अंदर आया ही था तब तक आंटी भी आ गई थी। आंटी को मोटा कहना गलत ही है वैसे तो क्योंकि उनका शरीर थोड़ा भारी ज़रूर था पर मोटा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि अब आंटी मेरे सामने एक छोटे से वन पीस में खड़ी थी जिसकी बाजू तो थी ही नहीं और लम्बाई घुटनो से आधी ही आ रही थी।
पर पता नहीं क्यूँ शायद उनके कपड़े पहनने का तरीका इतना सलीकेदार था कि उसमें से कहीं से भी कुछ वासना जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी।
आंटी- तुम सिगरेट पीते हो? मैं थोड़ा डर गया, मैंने कहा- मैं बस छोड़ने की ही कोशिश कर रहा हूँ। आंटी- ये नमकीन प्लेट में, क्या तुम शराब भी पीते हो? मेरी गांड फट गई- नहीं वो तो मैं ऐसे ही खा रहा था, थोड़ी भूख लग रही थी तो।
आंटी- देखो, इस घर में ऐसा नहीं चलेगा। मैं- हाँ आंटी! बिल्कुल। आंटी- हाँ हाँ क्या लगा रखा है? बोलो तुम शराब पी रहे थे न?
मैं थोड़ा नजर चुरा कर डरते हुए- हाँ आंटी ! पर मेरा विश्वास करें, मैं आइन्दा इस घर में शराब की बूँद तक नहीं आने दूंगा। प्लीज आंटी इस बार माफ़ कर दीजिये। आंटी थोड़ा मुस्कुरा कर- अरे हलकट कितना डरता है रे तू? मैं थोड़ा नार्मल होते हुए- अरे आंटी आपने तो डरा ही दिया था।
आंटी- ये आंटी आंटी क्या लगा रखा है मेरा नाम रेणुका है। मुझे तुम रेनू भी बोल सकते हो। और दूसरी बात यह है कि अकेले अकेले पियोगे तो गुस्सा ही होना पड़ेगा न। अब मैं इतनी बड़ी भी नहीं हूँ जो तू मुझे आंटी आंटी बोले जा रहा है।
मैं- ठीक है रेनू, आपके, सॉरी सॉरी, तुम्हारे लिए सिर्फ एक ही पेग बन पाएगा। आंटी- अरे उसकी भी चिंता मत कर एक बोतल मेरे पास भी रखी है।
मैंने आंटी के लिए भी एक पेग बनाया और नमकीन और निकाल कर प्लेट भर दी, और साथ ही सिगरेट भी ऑफर की। आंटी ने सिगरेट पकड़ी और अपने कमरे में चली गई। वहाँ से आते समय उन्होंने किसी महंगे लाइटर से अपनी सिगरेट जलाई और बोली- जाओ सिगरेट, शराब और नमकीन ड्राइंग रूम में ले आओ। और खुद जाकर सोफे पर धंस गई।
मैंने सब सामान उठाकर ड्राइंग रूम में रखा, फिर पेग पर पेग खींचते चले गए। इस बीच दिल्ली और मुम्बई की लाइफ पर ही बातें होती रही। वो कह रही थी की मुम्बई की लाइफ ज्यादा अच्छी है और मैं उन्हें बता रहा था कि दिल्ली मुम्बई से ज्यादा बेहतर है।
इन सभी बातों के बीच मुझे रेनू की दो तीन बार पेंटी दिख गई थी और उसके मम्मे की भी झलक मिल जाती थी कभी कभी। हमने पांच सात पेग मार के खाना खाया और अपने अपने कमरे में सोने चले गए।
मैंने मधु को कॉल किया और उसके साथ बातें करते हुए अपने सारे कपड़े उतार दिए और नंगा होकर मुट्ठ मारते हुए मधु के साथ बातें करने लगा। इससे पहले भी हमें एक दो बार ऐसी बातें की थी पर तब में कोने में छुप कर धीमे धीमे बातें करता था और खुद काल खत्म होने के बाद बाथरूम में जाकर मुठ मरता था।
पर आज की बात अलग थी क्योंकि आज हम दोनों साथ साथ चुदाई का आनन्द ले रहे थे। जब मैं मधु से कह ही रहा था कि ‘ये ले अब मेरा लंड गया तेरी चूत में…’ तभी आवाज़ आई जैसी कुछ गिरा हो। फिर आवाज़ आई रआहूलल…!!
मेरे दिमाग में भी यही सवाल आया था। आप भी सोचो किसकी आवाज़ होगी? क्या हुआ होगा?
तब तक हम आते हैं आगे का भाग लेकर।
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आपके ईमेल के इंतज़ार में मधु और राहुल
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