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सभी दोस्तों को मेरा प्यार भरा नमस्कार! मेरा नाम लोकेश है, मैं जयपुर का रहने वाला हूँ.. मेरी लम्बाई 6 फुट और रंग गोरा है। मैं अर्न्तवासना का नियमित पाठक हूँ। अर्न्तवासना की कहानियाँ पढ़कर मुझे लगा कि मुझे भी अपनी कहानी बतानी चाहिए। यह मेरी पहली कहानी है और यह एकदम सच्ची कहानी है।
बात दो साल पहले की है जब मैं सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था लेकिन घर में छोटे बच्चे होने के कारण मेरी पढ़ाई ठीक से नहीं हो रही थी.. इसलिए मेरी मम्मी ने मुझे सलाह दी कि तू मामा के घर चला जा.. क्योंकि उनके घर में छोटे बच्चे नहीं है.. इसलिए पढ़ाई ठीक से हो जाएगी।
उनकी सलाह मानते हुए मैं अपने मामा के घर पहुँच गया। मामा-मामी मुझे देखकर काफी खुश हुए मामा ने घर का हालचाल पूछा और अकस्मात् आने का कारण भी।
मैंने सारी बात बताई.. तो मामा-मामी बोले- यह घर भी तो तुम्हारा ही है.. जब तक चाहो.. यहाँ रह सकते हो और कोई समस्या हो तो हमें बता देना।
उन्होंने मुझे एक कमरा दे दिया। काफी थका होने के कारण मैं सो गया और जब मेरी आँख खुली तो रात हो चुकी थी। मामी खाना बना चुकी थीं और मामा खाने की तैयारी में थे।
मैं आपको मेरे मामा के बारे में थोड़ा बता देता हूँ। मेरे मामा एक किसान हैं और वे एक छोटे से गांव में रहते हैं। मामा की शादी सात साल पहले हुई थी लेकिन उनके कोई बच्चा नहीं हुआ। दोनों ही काफी हॅसी-मज़ाक वाले स्वभाव के हैं। उनके अलावा उनके घर में और कोई नहीं है।
मामी कम पढ़ी लिखी और साधारण सी महिला हैं। वे देखने में कोई ज्यादा हूर की परी भी नहीं है.. लेकिन उनके नैन नक्श अच्छे हैं।
जैसे ही मैं उठ कर उनके पास जाकर बैठा.. तो मामी ने मेरे लिए भी खाना लगा दिया और हम तीनों खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद मामा जाने लगे.. तो मैंने पूछा- मामा रात को कहाँ जा रहे हो? तो मामा ने बताया- रात में खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। इसलिए मैं खेतों पर ही सोता हूँ। मैंने पूछा- क्या मामी भी? तो मामा ने जवाब दिया- नहीं.. वह घर पर ही रहती हैं।
मामा चले गए, मैं अपनी पढ़ाई करने लगा.. पढ़ाई करते हुए न जाने कब नींद आ गई.. मुझे पता ही नहीं चला। जब पानी गिरने और बर्तन खड़कने की आवाज आई.. मैंने कमरे की खिड़की से झांका.. तो मामी चौक में नहा रही थीं.. चूंकि मामा के घर में बाथरूम नहीं है.. इसलिए मामी चौक में ही नहाती हैं।
मामी को इस तरह नहाते देखकर तो मानो मेरे तन-मन में बिजली सी दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर बाद मुझे विचार आया कि यह सब गलत है.. वे मेरी मामी हैं.. मुझे ऐसे नहीं देखना चाहिए। मैंने धीरे से कमरे की खिड़की बंद की और लेट गया.. लेकिन मेरी आँखों में नींद नहीं थी, मुझे तो बस मामी का बदन ही दिखाई दे रहा था।
थोड़ी देर में मामी चाय लेकर मेरे कमरे में आ गईं.. मेरी तो मानो जान ही निकल गई। मेरी उनसे नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं हुई। मामी ने पूछा- कैसी हुई रात को पढ़ाई? मैंने कहा- ठीक..
मामी चली गईं.. थोड़ी देर में ही मामा आ गए और मैं फ्रेश होने चला गया। वापस आकर मैं अपनी पढ़ाई करने लगा लेकिन यारों किताबों में भी मामी का ही सीन नजर आ रहा था।
न जाने क्या हो गया था मुझे.. अगली सारी रात नींद नहीं आई और रात में तीन बार मुठ मारनी ही पड़ी.. तब जाकर नींद आई।
थोड़ी देर में आँखें खुलीं.. तो मैंने मोबाइल में समय देखा.. तो सुबह के पाँच बजे थे।
मैंने थोड़ी सी खिड़की खोली तो देखा मामी नहाने की तैयारी कर रही हैं। मामी ने पहले साड़ी हटाई.. फिर ब्लाउज खोला और अपने बोबों को मसल-मसल कर साफ करने लगीं।
मामी ने धीरे-धीरे अपना पेटीकोट ऊंचा किया और अपनी चूत को साफ करने लगीं। उस समय तो उनकी चूत नहीं दिखी.. क्योंकि उस पर झांटें बहुत उगी थीं।
मेरी हालत खराब होने लगी.. आखिर मुझे फिर से मुठ मारनी ही पड़ी.. तब जाकर थोड़ी शांति पड़ी।
मामी जैसे ही अपने बदन पर पानी डालतीं.. तो मानो मेरे तन-मन में आग लग जाती। लेकिन मैं कर भी क्या सकता था.. सिवाए मुठ मारने के..
इस तरह कई दिन बीत गए। मुठ्ठ मारते-मारते मेरी हालत खराब हो गई। लण्ड फिर भी बेशर्म ढीट की तरह जब चाहे फन मारने लगता.. मानो वो तो पूर्ण रूप से बगावत पर उतर आया हो.. ससुरा शांत होने का नाम ही नहीं लेता था।
एक दिन मामा को खाद-बीज लेने के लिए शहर जाना था.. तो वे मुझसे बोल गए- तुम मामी की थोड़ी मदद कर देना। मैं दो-तीन दिन में वापस आ जाऊँगा। यह कहकर मामा शहर चले गए।
थोड़ी देर बाद मामी बाड़े (जानवरों का घर) से आईं और मुझसे बोलीं- थोड़ी देर मेरे साथ चल सकते हो क्या? मैंने पूछा- कहाँ? तो मामी बोलीं- चलो भी अब.. बताती हूँ। मेरे जोर देने पर मामी ने बताया- भैंस रंभा रही है.. उसे हरी करवाना है।
ये बात मेरी समझ में नहीं आई कि भैंस कैसे हरी होगी.. तो मैंने मामी से कहा- मामी भैंस तो काली होती है.. वह हरी कैसे होगी और उसका क्या फायदा.. क्यों रंग का फालतू खर्च कर रही हो? तो मामी ने जवाब दिया- बुद्धू कहीं के.. हरी का मतलब नहीं जानते हो क्या? मैंने कहा- नहीं.. तो मामी हँसते हुए बोलीं- चलो खुद ही देख लेना..
मेरे लिए यह सब नया था.. तो मैं भी मामी के साथ हो लिया। बाड़े में मामी ने भैंस खोलकर मुझे रस्सी पकड़ा दी और बोलीं- चलो मेरे पीछे-पीछे। मैंने कहा- लेकिन कहाँ? तो मामी बोलीं- खेतों पर.. फिर मैंने पूछा- लेकिन मामी खेतों पर क्यों? भैंस को तो बाड़े में ही हरी कर देंगे।
मामी हँसने लगीं.. मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। तभी मामी बोलीं- चलो भी। मैंने फिर से प्रश्न किया.. तो मामी बोलीं- अब क्या तुम ही हरी करोगे भैंस को?
मुझे कुछ समझ नहीं आया.. लेकिन मामी चल पड़ीं.. तो मैं भी यही सोचता हुआ उनके पीछे चल दिया कि मामी शायद मजाक कर रही होंगी।
खेतों पर पहुँचते ही मामी ने कहा- देखो भैंस को जोर से पकड़कर रखना.. नहीं तो छुड़ाकर भाग जाएगी। तो मैंने मुँह से यूं ही निकल गया- माँ की चूत इस भैंस की।
मामी ने मेरी तरफ इस तरह से देखा मानो मैंने भैंस को नहीं.. मामी को गाली दी हो। लेकिन मुझे मेरी गलती का अहसास भी हुआ कि मुझे मामी के सामने ऐसे गाली नहीं देनी चाहिए। तभी मामी बोलीं- तुमको गाली देना भी आता है क्या? मैंने कहा- इसमें कौन सी नई बात है।
कुछ देर मामी इधर-उधर देखती रहीं.. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। मैंने मामी से कहा- मामी हमें तो भैंस को हरी करनी है.. तो जल्दी से हरी करो.. घर चलते हैं। तो मामी फिर से हँसने लगीं.. और तभी मामी मुझसे बोलीं- देखो वह पाड़ा है जहाँ भैंस को लेकर जाना है।
अब सारी कहानी मुझे समझ में आ गई। दोस्तो, उस समय मेरी हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं.. मैं शर्म के मारे लाल हो गया और मामी हँसे जा रही थीं, बोलीं- लालाजी, भैंस हरी करोगे क्या? यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था। चूंकि मैं मामी की लगभग हम उम्र का ही था.. इसलिए मामाजी मुझे नाम से नहीं पुकारती थीं।
हम जैसे ही पाड़े के पास पहुँचे तो भैंस मुझसे छुड़ाकर भागने लगी.. मैं और मामी उसको पकड़े रखने की पूरी कोशिश कर रहे थे। लेकिन वहाँ पर कीचड़ होने की वजह से मैं फिसल गया और भैंस मेरे हाथ से छूट गई।
मैं भैंस की तरफ जाने लगा तो मामी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोलीं- बस रहने भी दो। काम पूरा होने के बाद पकड़ लेंगे।
मैं और मामी भैंस को देखने लगे.. पाड़े ने पहले भैंस को पीछे से सूंघा और जगह जगह चाटा.. फिर पाड़े का धीरे-धीरे करंट बनने लगा और देखते ही देखते पाड़े का लण्ड बाहर निकलने लगा।
मैं बड़े आश्चर्य से देख रहा था.. क्योंकि मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था। थोड़ी ही देर में पाड़ा भैंस के ऊपर चढ़ गया।
तभी मेरी और मामी की नजरें मिलीं.. तो हम दोनों ही शरमा गए और दूसरी तरफ देखने लगे। पाड़े को देखते-देखते मैं मन ही मन सोच रहा था कि यह मादरचोद कितने नसीब वाला है.. इसे भैंस की भोसड़ी मिल रही है.. और मुझे मुठ मारनी पड़ती है। शायद मुझे उस पाड़े से जलन हो रही थी।
लेकिन तभी पाड़े ने अपनी स्पीड बढ़ा दी, मैं और मामी भी एक-दूसरे को देखने लगे। शरीर में एक अजीब ही सनसनाहट हो रही थी। उसे बताना मेरे लिए असम्भव है।
उस सनसनाहट से मुझे बड़ा मजा आ रहा था और मेरे लण्ड में अजीब कम्पन महसूस हो रही थी। मैं सिर्फ मामी को देख रहा था.. मामी भी मुझे देखकर हँस रही थीं।
अजीब सी कामोतेज्जना का आलम था.. मामी के लिए मन में सम्मान भी था और लण्ड की प्यास भी मुझे भड़का रही थी।
मेरे साथ अन्तर्वासना पर बने रहिए। अपने ईमेल जरूर भेजिएगा। कहानी जारी है। [email protected]
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