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दोस्तो, मेरी पिछली कहानी तो आपनी पढ़ी ही होगी.. जिसका नाम था सविता भाभी तालाब में चुद गई
सविता भाभी गाँव के तालाब में चुद गई
मैं अब आगे की कहानी सुना रहा हूँ, यह भी आपको जरूर पसंद आएगी।
मैं 21 साल का था.. तब शहर के एक कॉलेज में बीए द्वित्तीय वर्ष में पढ़ाई कर रहा था। मेरा गाँव शहर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर है। इसलिए मैं पढ़ने के लिए बस से जाता-आता था।
एक दिन मैं कॉलेज के दोस्तों के साथ मूवी देखने लिए गया था.. इस कारण मुझे शाम को ज्यादा देर हो गई, बस स्टॉप पर बस का इन्तजार कर रहा था परन्तु किन्हीं कारणों से बस नहीं आई।
मेरे गाँव जाने वाले बहुत सारे लोग थे.. कुछ पहचान के भी थे.. उसी में एक नई अपरिचित सी लड़की भी खड़ी थी। उसे देखकर ऐसा लगा कि वो मेरे ही गाँव के किसी की मेहमान थी।
क्या गजब थी.. उसे देखकर तो बार-बार देखने को दिल कर रहा था। एक बार तो हमारी नजरें भी टकराईं.. तो उसने एकदम नजरें झुका लीं।
काफी देर बाद मेरे गाँव तक जाने के लिए एक ऑटो मिला। जाने वाले बहुत लोग थे.. और ऑटो में जगह कम थी.. फिर भी सभी किसी तरह बैठ गए। किसी को बैठने के सीट पर जगह मिली.. किसी को नहीं मिली तो वो साइड के डंडे पर बैठ गया। वो लड़की मेरे पास बैठी थी और जगह कम होने की वजह से वो मुझसे बहुत ज्यादा चिपककर बैठ गई थी.. क्या करते जगह ही कम थी।
उसके साथ एक लड़का भी था.. शायद उसका भाई था। उसे जगह ऑटो के पीछे बैठने की जगह मिली थी। उसने आवाज देकर पूछा- दीदी जगह मिली क्या? लड़की ने ‘हाँ’ करके जवाब दिया।
हमारी ऑटो चल पड़ी.. रास्ता थोड़ा सा कच्चा था.. फिर भी लड़की के साथ था.. तो वो ऊबड़खाबड़ रास्ता भी सुकून दे रहा था क्योंकि लड़की के मम्मे मेरे कोहनियों से टकरा रहे थे.. तो मुझे मस्त एहसास हो रहा था।
उसके मम्मों की छुअन से मेरे दिमाग में कामक्रीड़ा चलने लगी। मेरा भेजा सोचने लगा.. वाह क्या-क्या सीन देख रहा था। वो लड़की बिल्कुल नंगी थी.. क्या उसके मम्मे थे.. बिल्कुल आम जैसे उठे हुए.. मम्मों पर निप्पल का तना हुआ रूप.. नाजुक मुलायम चूत.. के साथ केशरिया रंग की मुलायम झांटें। मेरा दिल तो उसकी चूत चाटने को कर रहा था।
तभी ‘चलो.. चलो..’ की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ी.. मैं एकदम सपने से बाहर आया।
वो लड़की अपने भाई को लेकर उतरी, उसे लेने के लिए एक दादाजी आए थे.. उन्हें मैं जानता था। वो मेरे पड़ोस में रहते थे.. उनकी बहू का नाम सविता था.. जिसे मैं कई बार तालाब और खेत में चोद चुका था। उनके साथ वो लड़की चली गई।
मेरे लिए ये और एक नई कली के रूप में मिली थी.. मुझे ऐसा लग रहा था। मैं सिर्फ और सिर्फ उसके बारे में ही सोचने लगा कि कैसे इसे अपने प्यारे लंड से चोदूँ। मैं दूसरे दिन कॉलेज नहीं गया, मैंने घर में कहा- आज मेरा जाने का मन नहीं है। पिताजी ने कहा- ठीक है.. ऐसा करो कि तुम आज खेत पर जाओ और जो मजदूर काम कर रहे हैं.. उनसे सारा काम आज ही करा लेना।
मैं क्या करता.. ‘हाँ’ करना पड़ा। मैं सुबह नाश्ता करके खेत की ओर चल पड़ा।
आज खेतों में कुछ काम बाकी था.. जो आज ही पूरा करना था। मजदूरों में ज्यादातर औरतें थीं.. और कुछ लड़कियाँ भी थीं। उसमें से मैंने कई को चोदा था पर जबसे उस ऑटो वाली लड़की को देखा.. तब से ये सारी फीकी सी लग रही थीं।
मैं सबको काम समझा कर खेत में छप्पर के बने हुए घर में आकर चारपाई पर लेट गया। उस लड़की को याद करते-करते कब मेरी आँख लग गई.. पता ही नहीं चला।
तभी मेरे गाल पर एक गर्म चुम्बन का अहसास हुआ.. मैंने सोचा कि सपना है। लेकिन क्या पता था सचमुच मेरी मेरी पड़ोस की सविता भाभी ने ही चुम्बन किया था।
मैंने आँखें खोलकर देखा तो सविता भाभी ने कहा- क्या राजू चुम्मा कैसा लगा? मैंने मुस्कुराते हुए कहा- बहुत जबरदस्त था.. तुम कब आ गईं भाभी?
‘अरे मेरे राजा.. मैं तभी आ गई थी.. जब तुम इधर आए थे.. मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आ गई। कल मेरी बहन अनीता आई है.. वही आज घर का काम देख रही है.. मैं गाय का दूध निकालने के बहाने आई हूँ। तुम्हारे भैया आज सुबह ही शहर गए थे.. तो सोचा आज चूत को ही तुमसे चुदवा लिया जाए।
इतना सुनते ही भाभी को मैंने वहीं चारपाई पर खींच कर लिटा लिया और उनका ब्लाउज खोल दिया। मैं उनके रसीले मम्मों को चूसने लगा। फिर मैंने भाभी की साड़ी को ऊपर कमर तक सरका दिया, भाभी ने अन्दर सिवाय लहंगा के कुछ नहीं पहना था, चूत पर भी घने बाल उगे थे।
मैं इन्तजार किए बिना भाभी के ऊपर चढ़ गया और लौड़े को चूत में घुसेड़ कर धक्के मारने लगा। चारपाई बहुत हिल रही थी.. तो मैंने भाभी को नीचे उतार कर झोपड़ी की दीवार के सहारे झुका दिया और पीछे से उनकी चूत में लण्ड पेल दिया। अब मैं उनकी चूत में हचक कर धक्के लगाने लगा।
‘आह.. ओह..’ भाभी के मुँह से मादक ध्वनि निकलने लगीं। उनकी सीत्कारें सुनकर मैंने चुदाई की रफ़्तार और तेज कर दी।
भाभी की गाण्ड एकदम गोरी थी.. उसे देखकर मुझे उनकी गाण्ड मारने का ख़याल आया.. तो मैंने अपने लण्ड को सविता भाभी की गाण्ड में थूक लगाकर चिकना किया और लौड़े को चूत से खींच कर एकदम से गाण्ड में घुसेड़ दिया।
भाभी भी बेचारी एकदम से इतनी जल्दी समझ नहीं पाईं कि मैंने क्या कर दिया।
मैंने लौड़े को उनकी गाण्ड में डालकर एक जोर का धक्का मार दिया.. तो दर्द के मारे भाभी जोर चिल्ला उठीं- कमीने.. मुझे मार डाला आज.. निकाल जल्दी साले..
वो सामने से हटकर मेरी ओर मुँह करके हुईं और मुझे जोर का धक्का दे दिया।
मैं गिरने ही वाला था कि संभल गया और अपना लंड हाथ से पकड़ कर लेट गया.. क्योंकि मेरे लंड में भी जलन होने लगी थी। भाभी का तो और बुरा हाल था.. उनकी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
मेरी ओर देखकर बोलीं- क्या जरूरत थी.. चूत में मजा नहीं आ रहा था क्या? मैंने कहा- मुझे पता नहीं था कि इतना दर्द होगा.. माफ़ करो भाभी आइन्दा ऐसा नहीं करूँगा।
भाभी की गाण्ड में दर्द हो रहा था.. तो मैंने कहा- भाभी आप लेट जाओ। भाभी- क्या लेट जाओ यार.. अभी फिर से अन्दर डालोगे क्या? मैं- नहीं भाभी.. अब पहले नारियल तेल लगाऊंगा.. तो आराम मिलेगा। भाभी- ठीक है.. लगा जल्दी बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने नारियल का तेल निकाल कर भाभी को लिटाकर उनकी साड़ी ऊपर करके उनकी गाण्ड के छेद में तेल लगाया।
फिर भाभी से कहा- भाभी मेरा लंड भी तेल मांग रहा है।
भाभी ने तेल लेकर मेरे लंड पर लगाया और हल्के हाथ से लौड़े की मालिश करते हुए मुठ मारने लगीं।
कुछ ही देर में मैं झड़ गया.. फिर भाभी साड़ी ठीक करके जाने लगीं.. मैंने भी कपड़े पहन लिए।
भाभी चलते समय लंगड़ाती हुई जा रही थीं.. मैं दूर तक जाने भी उन्हें तक देखता रहा और उनकी बहन को चोदने की कल्पना में खो गया।
अगली बार उनकी बहन की चुदाई के बारे में लिखूंगा कि क्या हुआ.. अपने विचार कहानी के नीचे ही लिखें!
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