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दोस्तो, मेरा नाम प्रेम है और मैं नागपुर का रहने वाला हूँ। मैं अभी 25 साल का हूँ। मुझे घूमना-फिरना बहुत अच्छा लगता है.. मैं पुणे से अपनी पढ़ाई कर रहा हूँ।
मैं अन्तर्वासना का बहुत बड़ा फैन हूँ। मैंने इस पर प्रकाशित हुई हर कहानी पढ़ी है। इसलिए आज मेरा भी मन किया कि मैं भी अपनी कोई कहानी लिख भेजूँ..
ये मेरे साथ हुई एक सच्ची घटना है.. जिसे मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ..
जैसा कि मैंने बताया.. मैं पुणे से पढ़ाई कर रहा हूँ.. जिसके लिए मुझे हर रविवार को क्लासेस अटेण्ड करने जाना पड़ता है। वैसे मैंने कुछ महीने पुणे में भी गुज़ारे.. पर मुझे पुणे कुछ रास नहीं आया.. इसलिए मैं वापस नागपुर आ गया। अब मैं यहाँ जॉब करता हूँ और शनिवार-रविवार को ट्रेन से पूना तक सफ़र करता हूँ।
बात कुछ यूँ हुई कि पिछले महीने पुणे से वापस आते वक़्त मुझे आरएसी सीट मिली। मैंने देखा कि मेरे साथ मेरी सीट पर एक 70 साल के दादाजी हैं। मैं थोड़ा परेशान हुआ कि अब कैसे होगा..
क्योंकि वो बहुत ज़्यादा बुजुर्ग इंसान थे और मैं उन्हें परेशान नहीं करना चाहता था.. इसलिए मैं उन्हें आराम करने का बोल कर पीछे वाली सीट पर जा बैठा। ट्रेन चालू हुई.. मगर अभी तक उस सीट पर कोई नहीं आया था.. इसलिए मैं वहीं आराम से बैठ कर सफ़र करने लगा। पूना से ट्रेन निकलने के बाद सीधी दौन्द में रुकती है। मैंने वहाँ उतर कर लिस्ट चैक की.. तो पाया कि जहाँ मैं बैठा हूँ.. वहाँ दो लड़कियाँ 21 व 22 साल की.. पूना से ही बैठने वाली थीं।
मैंने सोचा कि अब पूना तो पीछे छुट गया है.. और दौन्द में भी वो लोग नहीं आए। अब मैं अपनी जगह पक्की मानकर उसी जगह बैठकर सफ़र कर रहा था। ट्रेन छूटने के थोड़ी देर बाद दो लड़कियाँ वहाँ आई और सीट देखने लगीं.. तो मैंने ही उनसे पूछ लिया- क्या आपका सीट न. 55 है?
तो उन्होंने ‘हाँ’ कहा।
मैं उस सीट से उठा और उस के आगे वाली सीट पर जो खाली थी.. जाकर बैठ गया। वो दोनों अपनी सीट पर बैठ कर बातें करने लगीं कि ऊपर की बर्थ पर कौन सोएगा। फिर उनमें से एक ऊपर जाकर सो गई।
मैं चुपचाप बैठा अपनी सीट की तरफ देख रहा था.. तभी वो सीट खोलने के लिए उठी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी। पता नहीं क्यों इस पर मैं भी मुस्कुरा दिया। अब मेरी नज़र बार-बार उसकी तरफ जा रही थी।
वो लड़की बहुत खूबसूरत तो नहीं थी.. पर सांवला रंग.. तीखे नयन नक्श और मुस्कुराहट ऐसी की सब कुछ भुला दे। वो भी मुझे ही देख रही थी और मुस्कुरा रही थी। ट्रेन जब अगले स्टेशन पर पहुँची.. तो बाकी भी यात्री आ गए और ट्रेन पूरी फुल हो गई।
अब मैं अपनी ही सीट पर गया.. जहाँ दादाजी पहले ही लेटे हुए थे, मैं वहाँ जाकर बैठ गया। ट्रेन अपने पूरी रफ़्तार में दौड़ रही थी और सब यात्री धीरे-धीरे खा-पीकर अपने केबिन की लाइट बंद करके सोने लगे। मैंने सोचा कि टीटी आएगा तो उससे कोई और सीट माँग लूँगा.. पर टीटी आने का नाम ही नहीं ले रहा था। इसलिए मैं खुद अपना सामान उन दादाजी के हवाले करके टीटी को ढूँढने निकल गया। देखा कि टीटी बोगी नम्बर 3 में है और उस बोगी की लाइट पूरी गुल है.. इसलिए टीटी उस बोगी को अगले जंक्शन यानि भुसावल तक छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। मुझे वापस अपनी जगह आना पड़ा। मुझे नींद तो बहुत आ रही थी.. पर कहाँ सोऊँ.. यह बड़ा सवाल था इसलिए मैं बोगी में ही इधर से उधर घूम रहा था.. मेरी नज़र उस लड़की पर ही जा रही थी.. शायद उसे नींद नहीं आ रही थी.. वो बस लेटी हुई थी और मोबाइल में कुछ कर रही थी।
आख़िरकार थक कर मैंने अपने बैग से पेपर निकाला और अपने ही कूपे में नीचे पेपर डाल कर लेट गया। ठंड ज़्यादा होने की वजह से मैं सो नहीं पा रहा था। थोड़ी देर में भुसावल स्टेशन आ गया। वहाँ उस बोगी की लाइट को सुधारा गया.. तो मैंने सोचा कि अब टीटी आएगा.. पर वो नहीं आया। शायद मेरा नसीब ही खराब था। अब मैंने वापस वैसे ही लेटे हुए आगे बढ़ने की ठानी.. पर ठंड की वजह से मैं सो नहीं पा रहा था।
मैंने आँखें बंद कर लीं।
थोड़ी देर बाद उस लड़की ने मुझे आवाज़ दी, मैंने सोचा कि किसी और को बुलाया होगा, दूसरी बार उसने मुझे थपथपा कर जगाया। मैंने पूछा- क्या हुआ कोई परेशानी है? तो वो बोली- आप मेरी सीट पर आ जाइए.. वैसे भी मुझे नींद नहीं आ रही है। मैं उसकी सीट पर चला गया। मैंने उससे कहा- मुझे तो बहुत नींद आ रही है। तो उसने कहा- आप लेट जाइए.. इस पर मैंने कहा- आप भी लेट जाइए।
हम दोनों एक-दूसरे के मुँह की तरफ पैर करके लेट गए।
ट्रेन के हिलने की वजह से हम एक-दूसरे को टच हो रहे थे। पहले तो मेरे दिमाग़ में ऐसा कोई ख़याल नहीं था.. पर उसके स्पर्श से मैं गरम हो गया और मेरा लण्ड जो अब तक सोया था.. पूरी तरह अपने जोश में आ गया। मेरा दिमाग़ अब और कुछ सोचने लगा..
अब मैंने करवट ली.. जिससे मेरा लण्ड अब उसके जिस्म को छूने लगा.. शायद यह बात अब उसके भी ध्यान में आने लगी। वो बस प्यारी सी मुस्कान दे रही थी.. तो मैंने आगे बढ़ने की सोची और अब मैंने अपना हाथ उसकी टांगों पर रख दिया। इस पर वो कुछ नहीं बोली.. शायद उसको भी अच्छा लग रहा था।
फिर धीरे-धीरे मैं उसकी टांगों पर अपने हाथ घुमाने लगा.. पर वो अब भी कुछ नहीं बोली। अब वो भी शायद वो गर्म हो गई थी.. इसलिए उसका हाथ भी मेरी जाँघों पर घूम रहा था।
हमने शाल ओढ़ रखी थी। वैसे भी बोगी के सारे लोग ठंड की वजह से सो चुके थे.. तो हमें देखने वाला कोई नहीं था। मैंने उसे साइड बदलने का इशारा किया। अब हम दोनों एक ही दिशा में मुँह करके लेट गए।
मैं धीरे-धीरे उसको सहला रहा था और वो भी मुझे सहलाने लगी। हम दोनों ने अपना सिर शाल से ढक लिया और एक-दूसरे को चूमने लगे। उसके होंठ क्या मस्त थे.. लग रहा था कि बस अब उसको खा ही जाऊँ।
हमारा बाहर ध्यान ही नहीं था कि कोई अगर उठ गया और हमें देख लिया तो क्या सोचेगा। हम बस अपने आप में मस्त हो गए थे। हम बहुत देर तक एक-दूसरे को चूमते रहे.. तभी गाड़ी की स्पीड कम हो गई.. तो हमें लगा कि कोई स्टेशन आने वाला है और हम दोनों अलग होकर बैठ गए।
गाड़ी थोड़ी देर स्टेशन पर रुकी और निकल पड़ी।
हमारी बोगी में कोई नहीं आया.. ना कोई उतरा.. इसलिए सब बिल्कुल शांत था। अब हम फिर से शुरू हो गए, मैं अपने हाथों से उसके मम्मों को ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था। क्या मस्त आम थे.. उसके इतने सॉफ्ट.. कि मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उसे दर्द तो बहुत हुआ होगा.. पर वो चिल्ला नहीं सकती थी। वो बस सिसकारियाँ ही ले रही थी.. क्योंकि अगर आवाज़ होती तो किसी न किसी के जागने का डर था। अब मैं अपना हाथ उसकी चूत पर उसकी पैन्ट की ऊपर से ही घुमा रहा था उसके नितंबों को सहला रहा था।
उसका हाथ भी अब मेरे लण्ड पर आ गया। मैंने उसके कान में धीरे से कहा- तुम अपनी पैन्ट खोल लो। उसने मना कर दिया.. पर थोड़े मनाने के बाद वो मान गई, आख़िर आग तो उधर भी लगी थी।
अब मैं उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा। उसकी वो जगह काफ़ी चिपचिपी हो गई थी। मैं उसकी चूत के अन्दर उंगली करने लगा। मेरा भी लण्ड अन्दर बहुत सख़्त हो गया था.. इसलिए मैंने उसे आज़ाद कर दिया। अब वो भी मेरे लण्ड को पकड़ कर हिला रही थी और मैं उसकी चूत में उंगली कर रहा था।
हम दोनों एक-दूसरे को मज़ा दे रहे थे। मैंने उससे आगे बढ़ने की इजाज़त माँगी.. पर उसने मना कर दिया। मैंने उसकी चूत में अपना लण्ड डालने की कोशिश की.. पर वो नाराज़ हो गई। ट्रेन में बोगी के अन्दर सब करना थोड़ा मुश्किल होता है और रिस्क भी होती है.. इसलिए हम बस एक-दूसरे को हाथों से ही सुख दे रहे थे।
तभी उसने कहा- अब मैं झड़ने वाली हूँ।
मैंने भी ज़ोर-ज़ोर से उंगली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। वो झड़ गई.. थोड़ी देर बाद मैं भी झड़ गया। मैंने रुमाल से उसकी चूत और अपने लण्ड को साफ किया।
ऐसा मौका दुबारा कहाँ मिलने वाला था। इसलिए उस रात हमने ऐसे ही मज़े लिए। इतना सब हुआ.. पर मैंने उस वक़्त उसका नाम तक नहीं पूछा था।
ट्रेन जब अकोला पहुँची.. हम थोड़ा ठीक से बैठ गए और बातें करने लगे।
तब उसने बताया कि उसका नाम सपना है और वो नागपुर की ही रहने वाली है.. वो और उसके और साथी पूना किसी काम से आए थे। बाकी सबकी सीट साथ में थी.. बस हम दोनों की ही सीट अलग थी.. इसलिए वो इस बोगी में थोड़ा लेट आए और अब वापसी में उन्हें वर्धा उतरना है।
मैंने उसका मोबाइल नंबर माँगा तो उसने मना कर दिया.. पर मेरा मोबाइल नंबर ले लिया। पर आज तक उसने मुझे कॉल नहीं किया.. शायद उसे कोई और मिल गया हो। दोस्तो, आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी.. मुझे ज़रूर बताइएगा। [email protected]
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