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अब तक आपने पढ़ा..
मोहिनी बहुत जोर से चीखी- मादरचोद तेज तेज चोद ना..
गोपाल और श्याम ने और तेज धक्के मारने शुरू कर दिए.. धक्के तेज होने के कारण सरिता और रानी के मुँह से उन्माद की आवाज की जगह चीख निकलने लगी थीं। उन दोनों की चूचियाँ तेजी से हिल रही थीं और मोहिनी अपने दाँतों से अपने होंठों को काट रही थी।
बीच-बीच में वो दोनों आदमियों की गांड पर चपत लगाते हुए बोल रही थी- शाबास.. भोसड़ी के ऐसे ही चोदो.. थोड़ी देर तक ऐसे ही ड्रामा चलता रहा।
अब आगे..
फिर कुछ देर बाद गोपाल और श्याम का जिस्म अकड़ने लगा और उधर रानी और सरिता भी तेजी से अपनी गांड को उठा कर लंड को अपने अन्दर ले रही थीं।
फिर गोपाल पहले ढीला पड़ गया और रानी के ऊपर लेट गया.. रानी ने अपने दोनों पैरों की कैंची बना कर गोपाल को कस कर पकड़ लिया और दोनों की सांसें बहुत तेजी से चलने लगी थीं।
उसी के एक मिनट के बाद श्याम भी सरिता के ऊपर लेट गया और सरिता भी उसी तरह श्याम को पकड़ा हुआ था जैसा कि रानी ने गोपाल के साथ किया था। कुछ देर बाद दोनों अलग होकर खड़े हो गए।
रानी और सरिता की चूत से रस टपक रहा था। मोहिनी ने अपना हाथ अपनी ब्रा के अन्दर डाला और 500-500 रू. गोपाल और रानी को और 1000-1000 रू. श्याम और सरिता को दिए।
फिर वो रानी और सरिता से बोली- तुम दोनों जाकर देखो कि इसके (यानि मेरे) लंड से बूँद तो नहीं टपकी। दोनों मेरे पास आईं और अपने अँगूठे को मेरे सुपारे पर लगाकर बोलीं- नहीं मेम साहब, सूखा पड़ा है।
मटकते हुए मोहिनी मेरे पास आई और बोली- तुम तो जीत गए। उसने मुझे भी 1000 रू दिए और कहा- बताओ तुमको किसकी चूत और मुँह चाहिए?
‘पहले आप यह बताओ कि गोपाल और रानी को 500-500 रू और श्याम और सरिता को 1000-1000 रू क्यों? मैं तो ये समझ गया था कि जो पैसे उन्हें दिए गए थे वो उनका मेहनताना या ईनाम था। फिर भी एक को कम और एक को ज्यादा।’ यह मेरी समझ में नहीं आ रहा था।
इससे पहले मैं फिर पूछता तो श्याम ने बात साफ की- मेम साहब को इस तरह चुदाई देखना बहुत अच्छा लगता है और जब भी वो अकेली रहती हैं तो हम लोगों को इस तरह करने के बदले वो ईनाम देती हैं। ‘वो तो ठीक है लेकिन…’
मैं अपनी बात खत्म भी नहीं कर पाया था कि श्याम बोला- जो पहले झड़ जाता है.. उसे कम मिलता है.. और जो बाद में झड़ता है.. उसे ज्यादा मिलता है। कभी मैं जीतता हूँ.. तो कभी गोपाल जीतता है।
मोहिनी बोली- अब बताओ किसकी चूत और मुँह चाहिए? मैंने कहा- इन चारों को छुट्टी दे दो।
मोहिनी चिहुँकी- मतलब.. मेरी चूत और मुँह चाहिए। ‘जी.. इसका मतलब यही है और आपने कहा था कि जिसकी तुम्हें चूत और मुँह चाहिए.. उसकी तुम्हें मिलेगी।’
सभी मुझे घूर कर देख रहे थे। मैं जान रहा था कि थोड़ा ड्रामा होगा.. लेकिन मोहिनी मेरे नीचे आएगी।
कुछ देर सोचने के बाद मोहिनी गोपाल और श्याम की ओर घूमी और बोली- जाओ आज तुम चारों की छुट्टी.. लेकिन कल समय का ध्यान रखना।
तभी गोपाल बोला- मैम साब.. एक बात हमारी भी मान लो। मोहिनी बोली- बोल..
‘रानी और सरिता रोज आपको नंगी देखती हैं। आज ये सर भी आपको देखगें। हम लोग के सामने भी अपने पूरे जिस्म का जलवा दिखा दो?’ ‘तुम्हारी ये हिम्मत..!’ कहते हुए मोहिनी गोपाल की तरफ लपकी।
पर मैंने मोहिनी को पकड़ कर अपने से चिपका लिया और गोपाल से बोला- आज ये केवल मेरी है.. कल तुम दोनों भी दर्शन कर लेना।
इतना कहकर मैंने मोहिनी की पीठ सहलाते हुए उसकी स्टाईलिस ब्रा के हुक को खोल दिया।
उसकी पीठ पूरी नंगी हो चुकी थी। गोपाल और श्याम की आँखों में चमक थी।
फिर मेरे इशारे को समझते हुए वो सभी बाहर चले गए।
मैं मोहिनी को जकड़े हुए था और उसकी चड्डी में हाथ डाल कर उसकी गांड के उभारों को सहला रहा था.. बीच-बीच में मैं उसकी गांड के छेद में उंगली डालने का प्रयास कर रहा था। पर उसकी गांड टाईट होने की वजह से उंगली जा नहीं रही थी। मैंने फिर उसके गर्दन को चूमते हुए अपने हाथों को उसकी चूत की तरफ लाया।
अब मोहिनी ने मुझे भी कस कर जकड़ लिया। उसकी चूत तो चिकनी थी.. पर गीली हो चुकी थी। जैसे ही मैं अपनी उंगली को उसकी चूत के द्वार पर ले गया.. उसने अपनी जांघों को कस कर भींच लिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरा हाथ उसकी गीली चूत में फंस गया था। उसकी पैन्टी और चूत काफी गीली हो चुकी थी। लेकिन मैं उसकी गीली चूत में अपना हाथ फिराता रहा और उसकी चूत की मालिश उसी के पानी से करता रहा।
उधर मोहिनी भी मेरे लंड को पकड़ कर उसकी मुठ मार रही थी और अपने नाखून से मेरे सुपारे पर खरोंच कर रही थी.. मुझे मीठा-मीठा दर्द सा हो रहा था। काफी देर से अपने को बर्दाश्त कर रहा था.. लेकिन जैसे ही मोहिनी ने नाखून से लंड के सुपारे को खरोंचना शुरू किया कि मेरी और मेरे लंड की हिम्मत जवाब दे गई और मेरे लंड का फव्वारा छूट गया और मेरा लंड मुरझा गया।
मोहिनी का पूरा हाथ मेरे वीर्य से सन गया था। उसने भी वही किया अपने सने हुए हाथ को मेरे लंड पर पोंछने लगी और उसी से मालिश करने लगी।
मोहिनी की हथेली वीर्य से चिपचिपा गई थी, बोली- छोड़ो मुझे.. मैं हाथ धोकर आती हूँ।
मैंने मोहिनी को गोदी में उठाया और ले जाकर पलंग पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़कर बैठ गया। मैंने उसके दोनों हाथों को ऊपर करके उसकी चूचियों को अपने मुँह में ले लिया और उसका रस पान करने लगा।
फिर मोहिनी की दोनों कांख में ढेर सारा थूक उड़ेल कर उसकी कांख को जब मैंने चाटना शुरू किया.. तो उसके मुँह से सिसकारी निकलने लगी।
मैं कभी उसकी गर्दन का रसपान करता.. तो कभी उसके गालों का.. और बीच-बीच में उसके होंठों को भी चूमता और जबरदस्ती उसके मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ कर उसके मुँह के अन्दर घुमा देता। इसी के साथ मैं अपने जिस्म को आगे-पीछे करता.. ताकि मेरे लंड का घर्षण वो अपनी चूत में महसूस कर सके।
उसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थीं। थोड़ी देर ऐसा करते रहने से मोहिनी के जिस्म में भी हरकत होना शुरू हो गई थी। अब वो भी अपनी गांड उठा रही थी और मेरे लंड को अपनी चूत में लेने की कोशिश कर रही थी।
कुछ ही पलों में वो पूर्ण रूप से चूत चुदाने को तैयार हो गई थी। मैंने उसकी चूत में हाथ लगाया.. तो वो काफी गीली थी।
मैं उसके ऊपर से उठा और उसकी कमर के नीचे दो-तीन तकिया लगा दिए और उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसकी चूत को दो उंगली से थोड़ा सा फैलाया और दूसरे हाथ से लंड को पकड़ कर हल्की सी ताकत के साथ उसकी चूत में धक्का लगाया। जैसे ही सुपाड़ा उसकी चूत में घुसा ही था कि वो जोर से चीखी और मुझे अपनी पूरी ताकत के साथ धक्का देकर अलग करने की कोशिश करने लगी।
पर मैंने उसे कस कर दबा लिया। जब वो मुझे अपने से अलग नहीं कर पाई तो मेरे कंधे पर जोर से उसने अपने दाँत गड़ा दिए। मैं भी बिलबिला उठा था और उसी ताव में मैंने एक बार फिर लंड को बाहर निकाला और एक जोर का धक्का दिया।
अबकी बार लंड उसकी चूत में आधा से ज्यादा घुस चुका था। मेरे इस तरह करने से उसकी आँखें और मुँह खुला का खुला रह गया। थोड़ा अपने पर काबू करते हुए बोली- अहह.. मादरचोद.. लंड निकाल अपना.. यह कहते हुए वो अपने नाखून से मेरी पीठ को खरोंचने लगी।
दर्द तो मुझे भी बहुत हो रहा था.. पर उसकी इस हरकत से मेरे को भी बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए मैं भी अब मोहिनी पर कोई बहुत ज्यादा रहम के मूड में नहीं था।
मैंने एक बार फिर लंड को बाहर निकाल कर पूरी ताकत लगाते हुए उसकी चूत में पेल दिया। ‘गल्प्..’ के साथ उसकी एक तेज चीख निकल गई। मैं रहम दिखाने के मूड में नहीं था। मेरे लंड में कुछ लसलसा सा लगा हुआ था। अब मोहिनी गिड़गिड़ाने लगी- निकाल लो प्लीज.. नहीं तो मैं मर जाऊँगी।
मैंने अभी भी अपनी पकड़ ढीली नहीं छोड़ी थी.. लेकिन अब मैं उसके ऊपर लेट गया और उसके मम्मों से खेलने लगा। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे लेकिन धीरे-धीरे वो अपने दर्द को भुलाने लगी और मेरी पीठ को सहलाने लगी।
कुछ ही देर में मोहिनी के पूरे जिस्म में हरकत शुरू हो गई और अब वो उचक-उचक कर मेरे लंड को अपने अन्दर और लेना चाहती थी। मोहिनी अब पूर्ण रूप से खेलने को तैयार हो चुकी थी।
मैंने अपना लंड उसकी चूत से आधा निकाला और फिर एक तेज धक्का और लगाया। ‘उफ़्फ़..’ एक हल्की सी आवाज उसके मुँह से निकली.. लेकिन इस बार वो तैयार थी और मैं भी तैयार था अपनी स्पीड को बढ़ाने के लिए।
मेरी स्पीड अब बढ़ने लगी और जैसे-जैसे चूत के अन्दर लण्ड का घर्षण होता जाता तो ‘फच.. फच..’ की आवाज के साथ-साथ मोहिनी के मुँह से ‘आह..हो.. आह..’ की आवाज आने लगी और वो भी अपनी कमर उठा-उठा कर बराबर का गेम खेलने लगी।
कुछ ही देर में मेरी पिचकारी छूटी और उधर मोहिनी भी ढीली पड़ गई। दोनों की साँसें बहुत तेज-तेज चल रही थीं।
मेरा लंड ढीला पड़ चुका था और मैं अब मोहिनी के ऊपर से हटकर बगल में लेट गया। कुछ देर बाद मैं उठ कर बाथरूम में गया और अपने लंड को साफ किया और बाहर आकर देखा तो सफेद चादर खून से सनी हुई है। मैंने मोहिनी को उठने के लिए बोला.. पर वो अब उठने में असमर्थ थी।
वो वहीं लेटे-लेटे बोली- मुझे वाशरूम तक ले चलो.. पेशाब करना है।
मैंने उसे सपोर्ट देकर उठाया और वाशरूम तक वो मेरे कंधे का सहारा लेकर लंगड़ाते हुए गई। उसके बाद वो सीट पर बैठ कर मूतने लगी, मैं वहीं खड़ा रहा।
मूतते हुए वो मुझसे बोली- मेरी चूत के अन्दर बहुत जलन हो रही है।
मैंने मोहिनी को वहीं पर बैठे रहने के लिए कहा और रसोई में जाकर पानी को हल्के से गुनगुना किया और मोहिनी के कमरे में जाकर कॉटन और क्रीम ले आया। सब कुछ लेकर में वाशरूम में पहुँचा, गुनगुने पानी से अच्छे से उसकी चूत साफ की और क्रीम लगा दी। थोड़ी ही देर में उसको आराम मिलने लगा।
इतनी देर में मैं कमरे में पहुँच कर खून से सनी हुई उस चादर को हटाया और मोहिनी को लेकर वहीं बिस्तर पर लेटा दिया, उसके बगल में बैठ कर मैं उसके बालों को सहलाने लगा और जोर जबरदस्ती के लिए उससे ‘सॉरी’ बोला। उसने बड़े प्यार से मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- थोड़ी तुमने जबरदस्ती जरूर की.. लेकिन बड़ा मजा आया।
उसके बाद मोहिनी और मैं दोनों ही किसी न किसी बहाने रोज अपने जिस्म की प्यास बुझाते।
इस तरह अब मेरा जीवन चल पड़ा था, मुझे चूत और पैसे दोनों ही मिल रहे थे।
तो दोस्तो मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे नीचे दिए ई-मेल पर अपनी प्रतिक्रिया भेजें। आपका अपना शरद.. [email protected]
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