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हेल्लो दोस्तों आपका अपना दीप पंजाबी आपकी सेवा में एक नई कहानी के साथ एक बार फेर हाजिर है। जो के मेल के द्वारा इस साईट के एक निम्न पाठक द्वारा भेजी गयी है। उसकी प्राइवेसी के लिए हिन्दी सेक्स स्टोरीज हिन्दी चुदाई कहानी में उसका और उस से सम्बंधित पात्रों के नाम बदले है। जबके पूरी कहानी वैसी की वैसी ही है।
सो आपका ज्यादा वक्त खराब न करते हुए सीधा आज की कहानी पे आते है। जिसमें आप पढेंगे के कैसे एक दोस्त ने अपने अन्य दोस्तों के साथ मिलकर अपने ही एक दोस्त की ही माँ को चोद डाला। सो आगे की कहानी इस घटना के चश्मदीद गवाह संजय सक्सेना की ज़ुबानी….
सबसे पहले तो देसी कहानी डॉट नेट के सभी चाहने वाले, संजय सक्सेना का प्यार भरा नमस्कार कबूल करे। दोस्तों मैं जयपुर का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 25 साल है और मैं बी. ऐ की पढ़ाई करता हूँ। मेरे परिवार में पापा, मम्मी और मैं कुल मिलाकर हम 3 मेंबर है। मेरे पापा की उम्र 50 साल है और उनका खुद का बिज़नेस है। वो ज्यादा समय अपने काम को ही देते है। मेरी ये कहानी मेरे दोस्त के दोस्तो और मेरी माँ के बारे में है। मैं पिछले 6 महीने से इस साईट की कहानियो को लगातार पढ़ता आ रहा हूँ। जिन्हें पढ़कर मुझे भी लगा के मुझे भी अपना तज़ुर्बा सभी पाठको के आगे शेयर करना चाहिए।
परन्तु हर बार मन मारकर रह जाता था। फेर एक दिन मन बनाकर पक्का निर्णय लिया के जो भी हो एक बार तो सभी पाठको के आगे अपनी कहानी पेश करके ही रहूंगा।
ये मेरी इस साईट पे पहली कहानी है। सो जो भी गलती लगे, नौसिखिया समझ कर माफ़ कर देना।
बात पिछले साल दिसम्बर महीने की है। जब मेरेे खास दोस्त अरुण की शादी थी। उसमे हम सबको बुलाया गया था। परन्तु अपने काम की वजह से पापा नही जा पाये। बस हम दोनों मैं और मम्मी, 2 लोग ही जा पाये। शादी का प्रोग्राम किशनगढ़, (जयपुर के आगे अजमेर जाते वक्त रास्ते में पड़ता है) के एक बड़े होटल में मनाया जा रहा था। वहीँ पर हमारे रुकने का इंतज़ाम किया हुआ था। वहां हम 4 दिन के लिये रुके।
आप देसी कहानी डॉट नेट पे हिंदी कामूक कहानी पढ़ रहे है।
माफ़ करना दोस्तों अपनी कहानी की नायिका यानि के मेरी मम्मी के बारे में तो मैं बताना भूल ही गया। उनका नाम सुनीता सक्सेना है। वो 12 तक पढ़ी हुई है। उनकी उम्र 45 के लगभग होगी। वो एक घरेलू महिला है। उनका शरीर भरा हुआ, न ज्यादा पतली, न ज्यादा मोटी, सामान्य से कद वाली ग्रहणी है। उनकी उम्र चाहे 45 के लगभग थी परन्तु आज भी कुंवारी लड़कियो की तरह अपने शरीर को फिट रखा था। कोई देखकर ये कह नही सकता के हम माँ बेटा होंगे, मुझे लगता है लोगो को देखने में मेरी बड़ी बहन या गर्ल फ्रेंड ही लगती होगी।
अब आगे कहानी में बढ़ते है..
उस शादी में अरुण के अन्य 2 दोस्त विकास, संजीव भी शामिल हुए थे। जो देखने में ही चालू किस्म के लफंगे लोफर लगते थे, उनके कानो में बालिया, गले में मोटी चांदी की चेन, बाजुओ में ब्रेसलेट, कन्धो तक लम्बे बाल, मॉडर्न कपड़े, जूते पहने हुए थे और मुंह से दारू और सिगरेट की बास आ रही थी। वो जब से माँ को मिले थे, बस उसके बदन को ही घूरे जा रहे थे। शायद माँ ने भी ये बात नोट करली थी। फेर भी पता नही क्यों वो कुछ बोल नही पा रही थी। शायद ये सोचकर के मेरी वजह से इनकी शादी का प्रोग्राम खराब न हो जाये।
संजीव — हलो आंटी कैसे हो आप ?
माँ — बहुत बढ़िया बेटा, माफ़ करना मैंने आपको पहचाना नही ?
संजीव — अरे! आप पहचानेगी भी कैसे, हम कोनसा पहले कभी मिले है। आज ही अरुण की शादी में शामिल हुए है।
माँ — ओह !! अच्छा मुझे लगा शायद मुझे जानते होंगे, या संजय के दोस्त या क्लासमेट होंगे।
संजीव — नही नही आंटी, और ये संजय कोन है ?
माँ — (मेरी तरफ इशारा करते हुए) — ये है मेरा बेटा संजय सकसेना।
संजीव — (मेरी तरफ हाथ बढ़ाकर) — हलो सेक्सेना साब, कैसे हो आप ?
मैं — बहुत बढ़िया भाई, आप सुनाओ, कहाँ से हो ?
संजीव — मैं जयपुर से हूँ और आप ?
मैं — वाओ, इटस अमेज़िंग, मैं भी जयपुर से हूँ।
मैं — आपका कोनसा एरिया है जयपुर में ?
उसने एक अजीब सी जगह का नाम बताया।
मैं — माफ़ करना भाई, मैंने ये नाम पहले कभी नही सुना।
वो — चलो कोई बात नही यार। एक ही जगह से आये और हम इतनी दूर आकर मिले है। यही बहुत बड़ी बात है।
वो हर बार बात करते करते मम्मी के बदन को भूखी निगाहों से घूरे ही जा रहा था।
मुझे ये देखकर अच्छा तो नही लग रहा था। परन्तु इतने लोगो की भीड़ में अपनी इज़्ज़त का ख्याल सोचकर चुप चाप उसकी चोरी पकड़ रहा था।
इधर माँ को भी पता नही क्या सूझ था। उस से दूर होने की बजाए उस से बाते किये ही जा रही थी। शायद उसको अच्छा लग रहा होगा।
इतने में सबका डांस करने का मूड बन गया।
संजीव ने विकास को आँख के इशारे से दो गिलासो में पेग बनाकर लाने को कहा।
कुछ ही पलों में ट्रे में दो कांच के गिलास लिए विकास हाज़िर खड़ा था। ट्रे में से एक गिलास उठाकर संजीव ने मेरी और पेश किया।
मैं — माफ़ करना भाई, मैं दारू नही पीता।
संजीव — अरे पगले कोनसी दुनिया से आया है तू ? तेरी उम्र के लड़के तो ड्रमो के ड्रम पीकर भी डकार नही लेते और तू कह रहा है के मैं दारू नही पीता। पीले पीले बड़ी मुश्किल से तो ख़ुशी का माहौल आया है, न जाने फेर कब तुमसे मुलाकात होगी।
माँ — (मेरी तरफदारी करते हुए) — संजीव, संजय सही बोल रहा है। वो दारू को हाथ तक नही लगाता।
(मैने कालज में दो बार बियर पी थी, लेकिन घर पे इस बात का पता नही था)
संजीव — अरे आंटी ये तो गलत बात है ना। एक ही शहर के हम इस ख़ुशी के महौल पे इकठे हुए है और मुझे यहां कम्पनी देने वाला कोई भी नही है। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
आप ऐसा करो के एक पेग आप ले लो। जिस से मुझे कम्पनी भी मिल जायेगी और आपका भी दिल डांस में लगा रहेगा।
माँ — देखो संजीव, दारू तो मैं भी नही पीती। हाँ यदि आपको कम्पनी ही चाहिए तो चलो मैं कोल्ड ड्रिंक ले लेती हूँ।
संजीव को माँ की बात जच गयी। उसने एक पेग वापिस करते हुए कहा,” जा विकास आंटी के लिए बढ़िया सा कोल्ड ड्रिंक लेकर आ।
कुछ ही पलो में विकास मेरे और माँ के लिए दो कोल्ड ड्रिंक गिलास लेकर हाज़िर हुआ।
हमने अपना गिलास उठाया और सिप सिप करने पीने लगे।
मेरे मन में भी आया के आज कोल्ड ड्रिंक का स्वाद कुछ बदला बदला सा क्यों है।
(पीने वाले एक पल में पहचान लेते है, जरूर इसमें कुछज गड़बड़ लगती है)
बातों बातो में मैंने उनसे आँख चुराकर कोल्ड ड्रिंक टेबल के निचे पड़े डस्टबीन में डाल दिया। इस तरह हमने एक एक गिलास खत्म कर दिया था। इतने में एक एक गिलास और आ गया। मैंने फेर डस्टबिन में गिरा दिया और माँ ने वो भी गटक किया।
दो गिलास खत्म होने पे संजीव बोला,” चलो आंटी डांस करते है। जिस से बाते भी हो जायेगी और डांस भी करते रहेंगे।
माँ उसका कहना मोड़ न सकी और वो दोनों एक दूसरे की कमर में हाथ डाले अन्य डांस करने वाले कपल्स के बीच शामिल हो गए।
थोड़ी देर तक ऐसे ही डांस चलता रहा। जब वो थक कर चूर हो गए तो आराम करने के लिए लेटने योग्य जगह ढूंढने लगे।
माँ — संजय बेटा, मैं बहुत थक गयी हूँ। मैं आराम करने अपने कमरे में जा रही हूँ। जल्द ही फ्री होकर तुम भी आ जाना। बहुत रात हो गयी है।
संजीव — चलो, आंटी आपको आपके कमरे तक पहुंचा देते है।
एक तो कोल्ड ड्रिंक में मिली बियर के नशे के कारण और दूसरा थके होने के कारण माँ से अच्छी तरह से चला भी नही जा रहा था ।
माँ — हाँ ये ठीक रहेगा, मेरा सिर पता नही क्यों चकरा सा रहा है। सर में भारीपण सा महसूस हो रहा है। मुझे मेरे कमरे तक पहूँचा दो संजीव। अब मैं सोना चाहती हूँ।
संजीव माँ की कमर में हाथ डालकर अपनी पर्सनल गर्ल फ्रेंड की तरह, उनको हमारे कमरे की तरफ लिए जा रहा था।
इतने में विकास आया और मुझे बोला, “चलो यार हम भी थोडा घूम फिर आये। जब से आये है यही बन्द कमरे में बैठे है।
मुझे उसकी चलाकी का पता नही था के वो मुझे चाल से मेरी माँ से दूर कर रहा है।
मुझे उसकी बात में दम लगा और हम होटल के बाहर सड़क पे आ गए । वहां हमने सिगरेट पी और गर्ल फ्रेंड के सम्बन्धी बाते की।
जब हमे आये हुए एक घण्टे के करीब हो गया तो मैंने कहा,” चल विकास यार बहुत देर हो गई हमे आये हुए। अब हमे वापिस जाना चाहिये, भूख भी बहुत लगी है, चलकर खाना खाते हैं और मेरी माँ मेरी राह देख रही होगी।
उसे भी मेरी बात ठीक लगी। उसने अपनी मोबाइल से पता नही किसे काल की और जवाब में ओके बोलकर फोन काट दिया।
थोड़ी देर बाद हम होटल में आये। हमने देखा लोगो की भीड़ बहुत कम हो गई थी। मतलब कुछ लोग अपने कमरो में तो कुछ अपने घरों में चले गए है। खाने की मेज़ पर बस 5-6 लोग ही बैठे खाना खा रहे थे।
मैंने वहां संजीव को भी देखा। जो ऐसे ही वहां बैठा शयद विकास का इंतज़ार कर रहा था।
मैंने खाना खाया और संजीव से माँ के बारे में पूछा,” क्यों भाई माँ ने खाना खाया या बस ऐसे ही सो गई।
संजीव — नही यार मैं खुद खाना आपके कमरे में पहूँचा कर अाया था। हमने साथ में वही खाना खाया।
खाना खाकर मैंने उनसे अलविदा लेनी चाही। परन्तू वो मुझे आज रात न सोने का बोल रहे थे। इस तरह मौज़ मस्ती करते जब मैंने मोबाइल पे समय देखने के लिए नज़र डाली तो सुबह के साढ़े 3 बज रहे थे। मैंने उनसे थक जाने ओर नींद आने का बोलकर अपने कमरे की तरफ चल दिया। मेरा कमरा अंदर से बन्द था। जब मैं 2-3 बार डोर बेल्ट बजाई तो माँ ने दरवाजा खोला।
वो बहुत घबराई हुई सी थी और उनके कपड़े भी बीती हुई रात वाले पहने हुए थे। जो के अस्त व्यस्त से थे। जैसे उनके साथ हाथापाई हुई हो।
मैं — क्या हुआ माँ, इतनी घबराई सी क्यों हो और आपने, अपना सूट भी नही बदला।
माँ — क.. क.. कुछ नही बेटा, बस कल रात से तू कमरे में आया नही था न इस लिए बुरे बुरे से ख्याल मन में आ रहे थे और रही बात कपड़े बदलने की तो थकावट की वजह से बदल नही पाई और ऐसे ही सो गई।
मुझे पता नही क्यों लग रहा था के माँ मुझसे कुछ छिपा रही है।
मैं एक साइड लेट गया और लेटते ही गहरी नीद आ गयी। जब सुबह उठकर बाथरूम गया तो क्या देखा, वहां यूज़ किया हुआ कंडोम पड़ा है। जिसे पीछे से गाँठ लगी हुई थी। पहले तो सोचने लगा के किसी का कंडोम हमारे बाथरूम में कैसे ?
फेर मुझे पूरी बात समझते देर न लगी के ये कंडोम संजीव का है। जो रात में माँ को कमरे मे छोड़ने आया था और उसके नशे की हालत का फायदा उठाकर माँ को चोद गया होगा।
उस वक्त मुझे संजीव पे बहूत गुस्सा आया लेकिन फेर दिमाग में ख्याल आया के ताली एक हाथ से तो बजती नही। इसके लिए दूसरा हाथ भी लगाना पड़ता है। उसी तरह से वो अकेला कुछ नही कर पता यदि माँ ने उसे कम्पनी न दी होगी। सो मैंने उसी वक़्त इन्हे रंगे हाथ पकड़ने की योजना बनाई।
उसी दिन मैं कमरे में ये कहकर लेटा रहा के मेरे पेट में दर्द है। मेरी बात सुनकर माँ ने विकास को बुलाया और कहा के इसे पास के डॉक्टर के पास लिजाकर दवाई दिला लाओ।
मुझे उनका अगला प्लान कुछ कुछ समझ आ रहा था के रात की तरह मुझे दूर करने की नई चाल चली जा रही है। ताजो ये कल रात की तरह रंगरलिया ना सके। सो मैं उनकी चाल समझकर खुद ही बोल पड़ा के माँ इसकी कोई जरूरत नही है मेरे पर्स में दो होलिया है पेट दर्द की , सो उन्हें लेकर कुछ पल आराम कर लेता हूं। दोपहर तक बिलकुल ठीक हो जायेगा।।
माँ के अरमानो पे तो जैसे पानी ही फिर गया हो।
माँ — नही बेटा, डॉक्टर की सिफारिश के बिना कोई गोली न खाना, अन्यथा लाभ की जगह नुकसान ही होगा।
तुम ऐसा करो यदि विकास के साथ नही जाना चाहते तो अकेले चले जाओ। मैंने माँ से पैसे लिए और इनको दिखने ले लिए होटल के बाहर चला गया। मुझे दूर जाता देख माँ की तो जैसे मनो कामना पूरी हो गई हो। मैंने जब वापिस देखा तो माँ अंदर चली। उसी वक्त मैं भाग कर वापिस आया और माँ की नज़र से बचकर स्टोर रूम में जाकर छिप गया। वो कमरा हमारे कमरे के पीछे था। जिसकी खिड़की से सब कुछ साफ साफ दिखाई और सुनाई पड़ता था। माँ ने अपने मोबाइल से मुझे फोन किया के कब तक वापिस आ रहे हो। तो मैंने 2 घण्टे तक आने का कहकर फोन काट दिया।
उसके बाद माँ ने संजीव को कॉल किया।
माँ — हलो संजीव आ जो, मैदान साफ़ है संजय तो दवाई लेने डॉक्टर के पास गया है। वहां उसे 2 घण्टे लग जायेंगे। तब तक हमारा काम हो चूका होगा।
मुझे यकीन नही हो रहा था के मेरी माँ का एक रूप ये भी है। मैने सोचा चलो आज इनको रंगे हाथ ही पकड़ता हूँ। यही सोचकर मैं खिड़की के पास बैठकर उनके आने का इंतज़ार करने लगा। खिड़की का शीशा काला होने की वजह से बाहर से अंदर की कोई भी प्रकिर्या बाहर नही दिखती थी। जबके अंदर से बाहर का नज़ारा बखूबी दिखता था।
करीब 20 मिनट बाद संजीव अपने 2 साथियो परवीन और रवि समेत हमारे कमरे में आया ।
माँ — ये क्या बदतमीज़ी है ? तुम्हे अकेले को आने को कहा था। तुम इन्हें भी साथ लेकर आ गए कौन है यह लोग, यहां क्यों आये हैं ?
सजीव — आंटी ये मेरे दोस्त है। परवीन और रवि, इन्होंने हमारी पिछली रात की वीडियो रिकॉर्डिंग करली है और मुझे ब्लैकमेल कर रहे है के आंटी को बोल के हमारे साथ भी सेक्स करे वरना हम ये वीडियो सोशल साइट्स पे वाइरल कर देंगे। मैंने इन्हें बहुत समझाया, बहुत मिन्नते की लेकिन मान ही नही रहे। अब आप हो बताओ इनका क्या करू ?
जिस जोश से माँ को काम चढ़ा था। उसी जोश से एक पल में ही उत्तर भी गया। उसे काटो तो खून नही। एक दम सुन्न सी हो गई। उसे सूझ नही रहा था के वो करे भी तो क्या।
माँ — पहले प्रूफ दिखाओ के आपके पास वो विडियो है।
उनमे से एक लड़के परवीन ने अपने मोबाइल में से वही वीडियो चला दी। जिसे देखकर माँ के होश उड़ गए। क्योंके वो नशे की हालत में बड़ा भद्दा बोल थी। जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती थी, परवीन ने मोबाईल की आवाज़ बढ़ा दी, ओ संजीव फक मी, इतना मज़ा तो संजय के पापा भी नही दे पाते जितना आज तुम दे रहे हो। आई लव् यू संजीव काश मैं तुम्हारी बीवी होती। हम रोज़ाना ऐसे मज़े लेते।
माँ की आवाज़ को मैं बखूबी पहचानता था सो शक की कोई गुंजाईश ही नही बची थी के उनकी अवाज़ नकली है। माँ को खुद पे यकीन नही आ रहा था के रात को कोका कोला पीकर इतना कुछ किया मैंने। अब कुछ कुछ समझ में आ रहा था क संजीव ने कोका कोला में भी दारू मिलाकर हम दोनो माँ बेटे को पिलाई थी। शयद इसी वजह से संजय को पेट दर्द हो रहा होगा।
माँ पूरा वीडियो देखने के बाद बोली,” अब क्या चाहते हो आप लोग ?
परवीन — आप आंटी इतनी भोली दिखती तो नही हो। जितना बन कर दिखा रही है। आप भी अच्छी तरह से जानते हो हम क्या चाहते है ?
माँ — नही आपकी ये मांग नही पूरी कर सकती। मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ।
रवि – (थोडा गुस्से में )– हट साली, नखरे दिखा रही है। कल रात जब संजीव के लण्ड ऊपर बैठकर उठक बैठक कर रही थी। तब तुम्हारा पत्नी धर्म कहाँ गया था।
माँ — वो बस नशे की हालात में हो गया। नशे की वजह से मैं बहक गयी थी। जबके अब मैं नार्मल हूँ। मुझे ये नही पता था क संजीव ने ड्रिंक मे कुछ मिलाया है।
परवीन — वो हम नही जानते हमे तो बस एक बात ही आती है के आपकी चूत मारनी है बस। आपको मरवानी है तो बतादो, नही मरवानी तो भी बतादो।
संजीव — (माँ को थोडा दूर लिजाकर)
मान जाओ न आंटी हम दोनों की इज़्ज़त का सवाल है। बस आज की ही तो बात है। इसके बाद ये हमे कभी तंग नही करेंगे।
जरा सोचो यही बात आपके बेटे या पति को पता चल गई तो तुम्हारा क्या हश्र होगा। सोचा भी है कभी। अपने सोसाईटी में भी रहना है या नही। पूरा परिवार बिखर जायेगा आपका ऊपर से बदनामी अलग होगी। आपका बेटा और पति कही मुंह दिखाने लाइक नही रहेंगे।
मेरा क्या है दो दिन बाते करंगे फेर चुप हो जायेंगे । अपना सोचो बदनामी के डर से कही आपके घर वाले सुसाइड न कर ले। फेर न आप मायके और न सुसराल में रह पाओगे। नर्क से भी बदतर हो जायेगी आपकी ज़िन्दगी।
माँ — कोई और मांग, मांग लो, पूरी कर दूंगी, धन दौलत, सोना जो भो कहो। लेकिन ये नही कर सकती।
परवीन — नही हमे कुछ नही चाहिए बस आपको चोदना चाहते है। मान जाओ आंटी, आखरी बार बोल रहे है। इसके बाद कोई मौका नही मिलेगा आपको अपनी गलती सुधारने का।
अब माँ रो रही थी और गिड़गिड़ा के उनसे क्षमा की भीख मांग रही थी।
माँ — नॉर्मल स्थिति में तो मुझसे ये नही हो पाएग। हाँ यदि आपकी यही मर्ज़ी है तो एक बीयर की बोतल ले आओ बढ़िया वाली।
माँ की बात सुनकर तीनो खुश हो गए और एक दूसरे के हाथ पे हाथ पे हाथ मारकर अपनी जीत का जश्न मनाने लगे।
संजीव — जा परवीन हाल में जाकर एक बढ़िया सी बोतल और तीन गिलास ले आ।।
परवीन भाग कर गया और कुछ ही मिनट में बढ़िया कवालटी की सीलबन्द बियर और 3 गिलास ले आया।
संजीव — अभय, ओ घोचु पाटनर् हम 4 है और तू गिलास 3 लेकर आया।
माँ — आप तीनो एक एक गिलास ले लो, मुझे बोतल दे दो।
उन्होंने ऐसे ही किया। आधी से ज्यादा बोतल माँ के लिए छोड़ दी।
जिसे माँ आँखे बन्द करके दो चार सांसो में ही गटक गयी।
बोतल नीचे गिरते ही माँ बैड पे चली गयी और बोली,” आजाओ आप सब बैड पे, देखती हूँ तुम्हारे लण्डों में कितना दम है।
परवीन ने भाग कर दरवाजा अंदर से लॉक किया और सब अपने अपने कपड़े उतारकर माँ के इर्द गिर्द बैठ गए।
संजीव — असली मज़ा तो अब आएगा ।
माँ न चाहते हुए भी उनकी तरह बेशर्म हुए जा रही थी शयद इस लिए के नॉर्मल स्थिति में उनसे ये काम नही हो पायेगा।
अब सबपे पे धीरे धीरे बियर का नशा चढ़ रहा था। वो तीनो माँ के कपड़े एक एक करके उतार रहे थे।
कुछ ही मिन्टो में उन्होंने मेरी माँ के सारे कपड़े उतार दिए। माँ का बदन सफेद दूध जैसा था। बड़े बड़े मम्मे, बड़ी गांड, कलीनशेव चूत आह क्या नज़र था।
संजीव ने माँ को गोद में लिटाकर उनसे लिप किस किया, जबकि परवीन माँ के मम्मे चूसने लगा, इधर रवि माँ की शेव की हुई चूत में ऊँगली करके उनके भगनासे को जीभ से चाटे जा रहा था। मैंने कभी सपने में भी सोचा नही था के मेरी माँ ऐसा भी कर सकती है। वो एक पेशेवर वेश्या की तरह उस पल का मज़ा ले रही थी। थोड़ी देर बाद परवीन ने माँ को उठाकर उसके मुंह में अपना काला मोटा 8 इंची लण्ड घुसेड़ दिया। जिसे माँ पहले तो न न करती रही लेकिन जैसे ही चूत चटवाने में मज़ा आने लगा तो वो भी मुंह आगे पीछे करके लण्ड को चूसने लगी। इस बीच में कई बार परवीन माँ की नाक को बन्द करके उनकी साँस रोक कर उन्हें तड़पाने लगता था। जिससे माँ को उसपे गुस्सा तो बहुत आता लेकिन मज़बुरी को समझकर चुप हो जाती।
थोड़ी देर बाद परवीन बैड पे लेट गया और माँ को उसने अपने उपर आने को बोला, माँ ने उसका मोटा लण्ड देखा और कहा, इतना बड़ा नही ले पाऊँगी। परन्तू उसने माँ की एक न सुनी और बाजु पकड़ कर अपने लण्ड ऊपर बिठाने की ज़बरदस्ती करने लगा। अब माँ के पास कोई दूसरा चारा भी नही था। उसे मन मारकर परवीन के मोटे लण्ड पे पीछे की और मुंह करके बैठ गई। परवीन ने अपने लण्ड को ढेर सारा थूक लगाया और माँ की चूत को उसपे सेट करके, माँ को कमर से पकड़कर निचे की और दबाव डालने लगा। जिस से उसका मोटा सुपाड़ा माँ की चूत के मुंह में घुस गया। माँ के मुंह से उसके दर्द का अंदाज़ा लगाया जा सकता था, अब वो निचे लेटा ही अपनी कमर ऊपर निचे हिलाने लगा।
करीब 10 मिनट तक कमर हिलाने के बाद वो थक गया। उसने माँ को निचे आने का बोला, अब माँ परवीन के निचे और परवीन माँ के उपर लेटकर माँ को चोद रहा था। कुछ ही पलों में माँ झड़ गयी और परवीन ने अपनी कमर की स्पीड बढ़ा दी। अगले 10 मिनट तक वो भी माँ की चूत में रस्खलित होकर उनके ऊपर लेटा रहा। इसके बाद संजीव ने माँ का मुंह खली देखकर अपना लण्ड माँ के मुंह में पेल दिया। जिसे माँ मज़बूरी में चुस्ती रही। इसके बाद रवि अब माँ के मम्मे चूस रहा था। इस तरह सबने बारी बारी माँ को लण्ड चुसवाया और उनकी चूत और मम्मो को चाटा।
करीब 20 मिनट तक संजीव भी माँ को चोदने के बाद माँ की चूत में ही रस्खलित हो गया। इसके बाद रवि आया उसने बड़ी बेरहमी से मेरी माँ को चोदा। बाद में वो माँ की गांड मारने की सिफारिश करने लगा।
माँ — नही रवि, आप सबने चूत लेने का बोला था सो मैंने दे दी। गांड की बात नही हुई थी। अब आप अपनी बात से न मुकरो।
संजीव — हाँ रवि यार छोड़ न अब चूत की बात हुई सो इसने दे दी। अब डील खत्म क्यों खामखा गांड पे बात आगे बढ़ा रहे हो।
परवीन — ये साला सुधरेगा नही, आंटी इसे एक बार गांड भी दे दो। वरना आपको यहीं से हिलने भी नही देगा।
माँ का चेहरा रुआंसा हो गया था क्योंके एक तो वो पिछले 2 घण्टो से लगातार चुद रही थी। दूसरा वो साला गांड मारने की मांग कर रहा था।
रवि — आंटी आप बहुत बढ़िया चुदवाते हो। भाग्यशाली हैं आपका पति जिसको आप जैसी पत्नी मिली। हम लोगो के पास तो आप एक दिन के लिए ही हो। सो आज हमे खुश करदो। हम कसम खाते है आइन्दा कभी भी आपके सामने नही आएंगेे।
माँ को तो बस उनसे छुटकारा चाहिए था।
माँ — मैंने कभी अपने पति से भी गांड नही मरवाई, फेर तुम तो अजनबी हो तुम्हे कैसे हाँ करदू।
संजीव — आंटी छोडो न इस बात को आज ही की तो बात है। मैं और परवीन आपकी गांड नही मरेंगे। आप बस इस चोदुमल को गांड दे दो। बात यही खत्म हो जायेगी।
माँ को उसकी बात ठीक लगी के यदि इतना करवा लिया है तो ये कोई बड़ी बात नही है। हाथी निकल गया है सिर्फ पूंछ निकलनी बाकी है वाली बात साबित हो रही है।
माँ न चाहते हुये भी रवि के आगे बैड पे घोड़ी बन गयी। माँ बहुत दुखी हुई थी।
रवि — डोंट वृ आंटी, जितना दर्द चूत में हुआ आपको उतना ही यहाँ होगा ।
माँ का डर कम करने के लिए संजीव आकर माँ के मम्मे चूसने लगा। जिस से माँ काम वेग में दुबारा डूबने लगी।
उधर पीछे से रवि माँ की गांड में धीरे धीरे ऊँगली करने लगा। पहले तो माँ को ऊँगली लेने में ठोस दर्द महसूस हुआ फेर जैसे जैसे उंगली आगे पीछे हिलती गई, माँ को मज़ा आने लगा। रवि ने अपने लण्ड पे ढेर सारा थूक लगाया और माँ की गांड पे लण्ड सेट करके धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। जिसमेे उसको कामयाबी न मिली । उसने माँ को बैड पे दुबारा लेटने का आदेश दिया। माँ मरती क्या न करती वाली स्थिति में थी।
रवि ने माँ को बैड पे लिटाया और उनकी टाँगे उठाकर खोलकर अपने कन्धों पे रखली।
अब अपने लण्ड पे ढेर सारा थूक लगाकर जोर का झटका माँ की गांड पे मारा। माँ की गांड का तंग मुंह होने की वजह से लण्ड गांड में घुस नही पाया बस जोर का झटका लगा तो माँ की ज़ोर से चीख निकल गयी। संजीव ने माँ के मुंह पे हाथ रखा और रवि को धीरे धीरे चोदने को कहा।
इस बार कड़ी मेहनत के बाद लण्ड का सुपाड़ा, माँ की गांड में घुस गया ।
माँ की तो जैसे साँस ही अटक गयी हो। उन्हें इतना दर्द हुआ के चीख कर बेहोश हो गयी।
माँ को बेहोश देखकर उन तीनो के पैरो के निचे से जमीन निकल गयी । रवि में जल्दी से लण्ड माँ की गांड से वापिस निकालकर देखा तो माँ की गांड से खून भी सिम रहा था। जिसका साफ मतलब था के रवि के मोटे लण्ड की वजह से माँ की गांड फट गयी थी। संजीव और परवीन उसे डांटने लगे, साले ये तूने क्या कर खामखा बना बनाया काम बिगाड़ लिया। उन तीनो ने अपने अपने कपड़े पहने और माँ को भी बेहोशी की हालात में पहनाये। संजीव दरवाजा खोलकर जल्दी से पानी का गिलास लेकर आया। पानी को चुली में लेकर माँ के चेहरे पे पानी के छींटे मारे। जिस से माँ को थोडा होश आया। रवि ने माँ को गोद में लेकर पानी पिलाया और अपने किये की माफ़ी मांगी।
माँ ने उसके आगे हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाने लगी, मुझपे रहम करो प्लीज़ अब और दर्द नही बर्दाश्त कर सकती। प्लीज़ मुझे छोड़ दो।
संजीव ने सबकी तरफ से माँ से माफ़ी मांगी और माँ के सामने वो वीडियो डिलीट कर दिया।
इतना कुछ हो जाने पे माँ ने उन सबसे विनती की इस राज़ को राज़ ही रखना और आइन्दा मेरे सामने कभी मत आना। वरना आप को देखकर मुझे ये दिन याद आ जायेगा। ये दिन मेरी ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन है।
उन सबने इस राज़ को राज़ रहने का भरोसा दिया और माँ को बाइक से डॉक्टर के पास दवाई दिलाने ले लिए ले गए। जब तक माँ वापिस कमरे में आई तब तक मैं स्टोर रूम से निकल कर अपने कमरे में आ गया था।
मुझे खुद से पहले आया देख माँ को हैरानी हुई। वो लँगड़ा के चल रही थी।
मैंने उन्हें बिलकुल भी शक नही होने दिया के मुझे उनका राज़ पता है।
मैंने माँ से पूछा,” क्या हुआ माँ लँगड़ा के कयूँ चल रही हो ?
माँ — वो बेटा बस रात को डास करते वक्त पेर में मोच आ गयी थी।
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मैं मन ही मन हंसा के ये क्यों नही कहती के गांड पे रवि का लण्ड बजा है । किसे बुध्धू बना रही हो।
इस तरह हम 5वे दिन शादी दे वापिस घर आ गए। वो दिन मेरी ज़िन्दगी का एक यादगार दिन बन गया।
सो दोस्तों ये थी एक और कामुक कहानी। उम्मीद है आपको पसन्द आई होगी। आपकी जो भी इस कहानी को लेकर राय है मुझे “[email protected]” पे भेज सकते हो। आपके कीमती सुझाव हमे आगे आने वाली कहानियो को और बेहतर बनाने में मददगार साबित होंगे। जल्द ही एक नई सेक्स गाथा लेकर फिर हाज़िर होऊँगा। तब तक के लिए अपने दीप पंजाबी को दो इज़ाज़त।
नमस्कार
खास नोट : — कई दोस्त मेल में हिन्दी सेक्स स्टोरीज हिन्दी चुदाई कहानी वाले पात्र का पता, मोबाईल नम्बर, उनसे मुलाकात का तरीका पूछते है। उनके लिए यही कहूँगा के भाई, उनकी भी अपनी पर्सनल लाइफ है। सो उनमें हम हस्तक्षेप न ही करे तो अच्छा है। कहानी को कहानी ही रहने दो दोस्तो। उन्हें अपनी असल ज़िन्दगी में अपनाने की भूल भी न करे। यही आपके लिये बढ़िया रहेगा, आप बस कहानी का मज़ा लो।
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