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लेखक : पीटर डी कोस्टा संपादक एवं प्रेषक : सिद्धार्थ वर्मा
अन्तर्वासना के अनेक पाठिकाओं एवं पाठकों आप सब को सिद्धार्थ वर्मा का नमस्कार। कुछ दिन पहले अन्तर्वासना के एक पाठक ‘पीटर डी-कोस्टा’ ने मुझसे सम्पर्क करके अपने जीवन के कुछ रहस्य साझा किये और मुझसे अनुरोध किया कि मैं उन रहस्यों को एक रचना के रूप में अन्तर्वासना के श्रोताओं के मनोरंजन के लिए प्रकाशित करवा दूँ।
पीटर के अनुरोध को स्वीकार करते हुए मैंने उसके द्वारा लिखे गए संदेशों में से उसके जीवन के रहस्यों को छांट कर और संपादित एवं क्रमबद्ध करके उसी के शब्दों में आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ:
अन्तर्वासना के प्रिय पाठकों तथा पाठिकाओं आप सब को पीटर डी-कोस्टा का नमस्कार। मैं अन्तर्वासना के लेखक श्री सिद्धार्थ वर्मा जी का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मेरे अनुरोध पर आप के सामने मेरे जीवन के कुछ रहस्यों को संपादित एवं क्रमबद्ध करके प्रस्तुत किया है।
कल रात करीब बारह बजे मैं और मार्था बुरी तरह थक कर अपने अस्त-व्यस्त बिस्तर पर लेटे हुए थे। मार्था को तो कुछ क्षण पहले ही नींद आई थी लेकिन मैं अभी भी उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था जब मुझे अपने बचपन की कुछ यादों ने घेर लिया। वे यादें लगभग पन्द्रह वर्ष पहले से शुरू होती हैं जब मैं अपने माता पिता तथा दादी के साथ गोवा के एक शहर सिओलिम में रहता था।
तभी एक दिन हमारे परिवार को एक ऐसा आघात लगा जिसे मैं आज तक भुला नहीं पाया हूँ और शायद पूरा जीवन नहीं भुला पाऊंगा। उस दिन मेरी माँ ‘नैन्सी’ बाज़ार से कुछ सामान लेने के लिए गई थी और लौट कर कभी वापिस नहीं आई क्योंकि एक सड़क दुर्घटना में उसे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा।
उस समय मेरी दादी ने ही मुझे माँ जैसा लाड़-प्यार दे कर मेरे जीवन में आई माँ की कमी के दुख से उबारा था। लेकिन शायद ऊपर वाले को यह भी मंज़ूर नहीं था इसलिए तीन साल बाद वृद्धावस्था में हुई बीमारी के कारण दादी को भी शरीर त्यागना पड़ा। इस सदमे से मैं भी कुछ दिनों के लिए बीमार पड़ गया था जिसके लिए पापा को अपना काम छोड़ कर मेरी देखभाल के लिए घर पर ही रहना पड़ा था।
दादी के गुज़र जाने के बाद मेरी देखभाल में एवं घर के रख रखाव में कई तरह की समस्याएं आने लगी जिन्होंने पापा को बहुत ही परेशान कर दिया और उन्हें काम में भी नुक्सान होने लगा था। उस समय इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए मेरे इकतालीस वर्ष के पापा ने अपने दोस्तों एवं सगे सम्बन्धियों की राय पर एक गरीब घर की इक्कीस वर्षीय लड़की ‘मार्था’ से शादी कर ली।
जब मार्था ने घर में प्रवेश किया तब उसके व्यवहार में मेरे प्रति न तो कोई ममता थी और न ही मुझे उसमे कोई नम्रता या अपनापन ही दिखाई दिया था। पापा की गैरहाजरी में तो वह मुझ पर हुक्म चलाती रहती थी और स्कूल से घर वापिस आने के बाद वह मुझे कुछ खाने पीने को देने के बजाय अपने बहुत से काम ही करवाती रहती थी।
एक दो बार जब मैं पढ़ाई कर रहा होता था तब मैंने उसके द्वारा बताये गए काम करने से मना कर देने पर उसने मुझे मारा भी। जब मैंने पापा से मार्था की शिकायत करी और बताया उसके आदेशों के कारण मेरी पढ़ाई में विघ्न पड़ता है तब उन्होंने मार्था को समझाने का आश्वासन दिया और मुझे धैर्य रखने के लिए कहा।
शायद उसी रात को पापा ने मार्था को भी समझाया होगा क्योंकि उस दिन के बाद से ही उसके व्यवहार में बदलाव आ गया और उसने मुझ पर हुक्म चलाने बंद कर दिये।
धीरे धीरे मार्था से मेरे रिश्ते सुधरने लगे और दोनों में कुछ कुछ दोस्ती भी होने लगी थी लेकिन मैंने उसे कभी माँ का दर्ज़ा नहीं दिया और हम दोनों एक दूसरे को नाम से ही पुकारते थे।
क्योंकि मार्था स्कूल एवं कॉलेज में अन्य लड़कियों को सिंगार एवं फैशन करते हुए देखा था लेकिन गरीबी के कारण खुद नहीं कर सकी थी इसलिए वह अपनी हसरतें शादी के बाद पूरा करने की चेष्टा करती थी। उसकी चेष्टा को पूरा करने में कोई मार्गदर्शक नहीं होने के कारण वह अनजाने में कई बार मेरे सामने ऐसी हरकत कर देती थी जिसे उसे सिर्फ अपने पति के सामने ही करनी चाहिए थी।
मुझे अबोध समझ कर वह अक्सर मेरी उपस्थिति की परवाह किये बिना ही अपने कपड़े बदल लिया करती थी तथा अपनी जाली वाली पारदशी ब्रा और पैंटी पहन कर घर में घूमती रहती थी। कई बार तो वह नहाने के बाद बाथरूम से सिर्फ पैंटी में ही बाहर आ जाती थी और टॉपलेस ही घर का काम करती रहती थी।
पापा को दिखाने के लिए वह कई बार मुझे माँ की तरह पूरा नंगा करके नहलाती तथा कपड़े पहना कर स्कूल के लिए तैयार भी करती थी। नहलाते समय जब वह मेरे शरीर पर साबुन लगाती तब विशेष रूप से वह मेरे लिंग को अच्छी तरह से मसलती और उसके ऊपर की त्वचा को हटा कर उसके अन्दर से भी साफ़ करती थी।
अबोध बालक होने के कारण नग्नता और यौन क्रियाओं के बारे में अनभिज्ञ होने के कारण मैं वह सब कुछ कौतूहलवश देखता ही रहता था। लेकिन जब मार्था मेरे लिंग को मसलती और उसकी ऊपर की त्वचा हटा कर उसकी सफाई करती तब मुझे बहुत अच्छा लगता था।
मेरी इच्छा तो होती थी कि मार्था मुझे रोज़ नहलाये और मेरे लिंग के साथ खेले क्योंकि उसमें होने वाली गुदगुदी से मुझे बहुत आनन्द मिलता था। लेकिन वह सिर्फ शनिवार और रविवार को ही ऐसा करती थी क्योंकि बाकी दिन वह मेरे लिए स्कूल में साथ ले जाने का खाना बनाती रहती थी।
पापा और मार्था की शादी के चार माह बाद जब मेरी गर्मी की छुट्टीयाँ हुई तब मैं पूरा दिन घर पर ही रहता था और दोपहर के समय मार्था मुझे अपने साथ ही सुला लेती थी। क्योंकि मुझे एवं मार्था को गर्मी बहुत लगती थी इसलिए दोपहर को सोते के समय वह मेरे और अपने सभी कपड़े उतार कर दोनों पूर्ण नग्न हो कर सोते थे।
मैं अधिकतर मार्था से चिपक कर सोता था और मेरा एक हाथ उसके एक स्तन पर तथा मेरा एक घुटना उसके जघनस्थल पर अवश्य रखा रहता था। मेरे ऐसे सोने पर उसने कभी भी कोई आपत्ति नहीं की थी क्योंकि ऐसे में उसके एक हाथ में मेरा लिंग आ जाता था जिसे वह सहलाती रहती थी।
हम दोनों को इस तरह साथ रहते एवं सोते हुए पांच वर्ष बीत गए और उस अवधि में मुझ में मार्था के प्रति कभी भी वासना की भावना उत्पन नहीं हुई।
लेकिन इन पांच वर्षों में धीरे धीरे मार्था के रहन-सहन तथा पहनावे में काफी अंतर आ गया था और अब वह अधिक नग्न भी नहीं रहती थी। ख़ास कर दोपहर को सोते समय मार्था नाइटी पहन कर ही सोती थी लेकिन मैं तब भी पूर्ण नग्न हो कर उसी तरह उसके साथ चिपक कर सोता था। मार्था द्वारा मेरे लिंग को निरंतर सहलाने एवं मसलने के कारण मेरा लिन्ग पांच इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा हो चुका था।
सिओलिम में पढ़ाई करने के बाद मेरे पापा ने मुझे आगे की पढ़ाई के लिए मापुसा के एक स्कूल में भेज दिया। हायर सेकेंडरी की दो वर्ष की पढ़ाई मापुसा में करने के बाद उन्होंने मुझे अगले चार वर्ष के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए मैंगलोर भेज दिया।
इन छह वर्षों में छुट्टियों में मैं घर तो आता था लेकिन मेरे रहन-सहन में बदलाव के कारण मैं दिन के समय घर पर कम और स्कूल के दोस्तों के साथ अधिक रहता था। साढ़े इक्कीस वर्ष की आयु में जब मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर के छह वर्ष बाद घर लौटा तब बत्तीस वर्षीय मार्था को देखा तो दंग रह गया।
वह अभी भी अत्यंत गोरे वर्ण की बहुत ही आकर्षक एवं कमसिन युवती ही लगती थी लेकिन उसके गदराये शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंगों में भराव आ गया था। मार्था का वक्ष का माप ‘चौंतीस ए’ से बढ़ कर ‘चौंतीस डी’ हो गया था और कूल्हों का नाप ‘चौंतीस’ से बढ़ कर ‘छत्तीस’ हो गया था लेकिन उसकी कमर का नाप पहले जैसा छब्बीस ही था। उसके गाल भर गए थे तथा चेहरे पर बहुत रौनक दिखाई देती थी और जब वह मुस्कुराती थी तब गालों के डिंपल कुछ अधिक गहरे दिखते थे।
वह हमेशा बिना बाजू वाला फ्रॉक पहने रहती थी जिसमे से उसकी सुन्दर सुडौल, लम्बी और मांसल बाजू, टाँगें एवं जांघे तथा गोल नितम्बों ने उसे बहुत ही आकर्षक बना दिया था। उसके फ्रॉक का गला बहुत खुला एवं नीचा होता था जिस के कारण उसके दोनों उरोजों के बीच की गहरी दरार दिखती थी और किसी भी पुरुष को उसकी ओर निरंतर देखते रहने को विवश कर देती थी।
क्योंकि पापा ने अपने काम को और अधिक बढ़ाने के लिए मैंगलोर में एक नई कार्यशाला बना रहे थे इसलिए मेरे घर पहुँचने के दुसरे दिन से ही उन्होंने मुझे भी अपने साथ काम में लगा लिया। लगभग एक माह के बाद जब मैंने सिओलिम में स्थित कार्यशाला का पूरा काम सम्भाल लिया तब पापा मैंगलोर में लगाई नई कार्यशाला के काम के लिए वहाँ चले गए।
अब मैं और मार्था ही सिओलिम वाले घर में रहते थे और वह सुबह उठ कर मेरे लिए चाय नाश्ता बनाती तथा दोपहर का खाना कार्यशाला में भेज देती।
अधिक काम होने के कारण मैं अक्सर रात को देर से घर आता था और आते ही खाना खा कर सो जाता था तथा सुबह जल्दी उठ कर काम पर चला जाता था। हाँ, सिर्फ रविवार का ही दिन होता था जिस दिन मैं सुबह देर तक सोता रहता था और मार्था ही मुझे उठाती थी तथा उस दिन ही उससे मेरी कोई बात होती थी।
एक माह ऐसे ही गुजर जाने के बाद एक रविवार को मार्था मुझे उठा रही थी तभी उसे बाहर तरकारी वाले की आवाज़ सुनाई दी। उसने मुझे कन्धों से पकड़ कर झिंझोड़ा और उठने के लिए कहते हुए तरकारी लेने के लिए तुरंत बाहर चली गई।
क्योंकि मैं जाग चुका था इसलिए बिस्तर से उठते ही बाथरूम में जा कर अभी शौच करना शुरू ही किया था कि मार्था बहुत तेज़ी बाथरूम में घुस आई और मुझे कमोड पर बैठे देख कर कहा– अच्छा तुम यहाँ बैठे हो? कोई बात नहीं तुम आराम से निवृत हो लो, तब तक मैं यहाँ नाली के पास ही निवृत हो लेती हूँ।
इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता उसने नाली के पास पहुँच कर अपनी फ्रॉक कमर तक ऊँची करी और अपनी पैंटी नीचे कर के नाली के पास बैठ गई। मैं शौच करना भूल कर मार्था की गोरी गोरी लम्बी टांगें, मांसल जांघें, गोल नितम्बों को और उसके मूत्र-छिद्र से शूह्ह्ह… शूह्ह्ह… की आवाज़ करती हुई मूत्र की धारा को ही देखता रह गया।
जब उसके मूत्र-छिद्र से मूत्र निकलना बंद हो गया लेकिन फिर भी मार्था वहाँ से नहीं उठी तब मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि उसकी योनि में से खून निकल रहा था। मैं समझ गया कि उसकी माहवारी आ गई है लेकिन अनभिज्ञ बनते हुए बोला– मार्था यह क्या! तुम्हारे मूत्र के साथ से खून भी निकल रहा है। क्या कोई तकलीफ है? क्या तुमने डॉक्टर को दिखाया है या उससे परामर्श किया है?
मेरे प्रश्नों के उत्तर में मार्था बोली– अरे नहीं पीटर, ऐसी कोई बात नहीं है। यह सब मासिक धर्म के कारण खून आ रहा है। इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है, क्योंकि पांच दिनों में यह ठीक हो जाएगा। उसकी बात सुन कर मैं चुप हो गया और शौच पूरा हो जाने के कारण मैंने अपने गुदा को धोकर उठ खड़ा हुआ।
क्योंकि मेरा ध्यान मार्था की टांगें, जांघें, नितम्बों और जघन-स्थल की ओर था इसलिए मेरे बिना पड़े कपड़ों को ऊपर किये ही खड़ा होते ही मेरा सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा तना हुआ लिंग मार्था के सन्मुख था। मेरे लिंग को देखते ही मार्था ने अचंभित होते हुए कहा– हे भगवान, पीटर तुम्हारा लिंग तो काफी बड़ा हो गया है। जब मैंने इसे आखरी बार देखा था तब तो यह साढ़े चार से पांच इंच का ही था। अब तुम पूरे जवान हो गए हो और लगता है कि मैंगलोर में तुमने जवानी की मस्ती का आनंद लेने के लिए इसकी बहुत मालिश करी होगी।
मार्था की बात सुन कर मुझे बोध हुआ कि मैं उसके सामने नग्न खड़ा था इसलिए शर्माते हुए अपने पजामे को ऊपर करते हुए वहाँ से अपने कमरे में चला गया।
कुछ देर के बाद मार्था मेरे कमरे में आई और मेरी आँखों में झांकते हुए देखा और कहा– पीटर, इसमें शर्माने की क्या बात थी? छह वर्ष पहले तो तुम पूर्ण नग्न हो कर मेरे साथ सोते थे और मैं तुम्हारे इसी लिंग को सहलाती और मसल दिया करती थी। मैंने उत्तर दिया– मार्था, तब मैं उम्र में छोटा था तथा मुझे इन अंगों के और यौन संबंधों के बारे में कुछ भी पता नहीं था। लेकिन अब मापुसा और मैंगलोर में रहने के बाद दोस्तों से कुछ पता चल गया है इसलिए शर्म आ गई थी।
मेरी बात सुनते ही मार्था ने पूछा– एक बात बताओ, अगर मैं अभी तुम्हें पूर्ण नग्न करके नहलाना चाहूँ तो क्या तुम नहाने के लिए तैयार हो? अगर मैं पूर्ण नग्न हो कर तुम्हे अपने पास सुलाना चाहूँ तो क्या तुम पूर्ण नग्न हो कर मेरे पास सोने के लिए तैयार हो? उसकी बात सुन कर मैं असमंजस में पड़ गया कि क्या कहूँ और बगले झाँकने लगा तब वह जोर से व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुई बोली– मुझे मालूम था कि तुम्हारे पास मेरे इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं होगा।
मार्था की व्यंगात्मक हंसी और कथन ने मेरे अहम को ललकारा और मैंने झट से कहा– ऐसी कोई बात नहीं है। जब मुझे तुम्हारे सामने पहले नग्न होने में कोई आपति नहीं थी तो अब क्यों होगी। अभी बाथरूम में भी तो तुम्हारे सामने मैं लगभग पूर्ण नग्न ही था। लेकिन एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा कि अगर उस हालत में अगर मुझसे तुम्हारे साथ कुछ अनैतिक हो गया तो मुझे दोष मत देना।
मेरा उत्तर सुन कर मार्था मुस्कराते हुए दरवाज़े तक गई और मुड़ कर बोली– ठीक है, जब ऐसा कुछ होगा तभी देखेंगे। अभी तो मेरे पास समय नहीं है, बहुत काम है करने को। मैं डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा रही हूँ तुम जल्दी से दांत साफ़ कर के वहां आ जाओ।
उस दिन के बाद पूरा सप्ताह हम दोनों के बीच में काम के अतिरिक्त और कोई बात नहीं हुई। लेकिन सप्ताह के अंत में शनिवार की रात को खाना खाने के बाद जब मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था तब मार्था मेरे पास बैठ कर बातें करने लगी।
उस समय उसने सिर्फ एक जाली वाली पारदर्शी फ्रॉक पहनी हुई थी जिसके नीचे ब्रा नहीं पहने होने के कारण उसमे से उसके स्तन और उनके ऊपर के चूचुक साफ़ दिखाई दे रही थी।
बातों ही बातों में मुझे पता ही नहीं चला कि मार्था कब मेरे बगल में लेट गई और इसका बोध तब हुआ जब उसने मेरी ओर करवट ली और उसका एक स्तन उसकी फ्रॉक के खुले गले से बाहर निकल कर मुझे छूने लगा।
मुझे उस स्तन को देख कर बचपन की तरह उसको पकड़ने की इच्छा होने लगी और इसका असर मेरे लिंग पर होने लगा जो अचेतना की अवस्था से अर्ध-चेतना की अवस्था में पहुँच चुका था। तभी मार्था ने मुझे अपने बाहुपाश में ले लिया तथा अपनी टांग उठा कर मेरी जाँघों पर रखते हुए अपने घुटने को मेरे लिंग के उपर रख कर उसे दबा दिया।
उस दबाव के विरोध में मेरे लिंग ने अपना सिर ऊँचा किया और मार्था के घुटने को ऊपर उठा दिया।
मेरे लिंग की यह हिमाकत देख कर मार्था ने बिना कोई समय गवाएं मेरे पजामे में अपना हाथ डाल कर मेरे लिंग को अन्डकोशों सहित बाहर निकाल कर उसे मसलने लगी, फिर अगले ही क्षण अपने हाथों से लिंग नापते हुए वह बोली- पीटर, तेरा लिंग पहले से तो बहुत बड़ा हो गया है। मेरे अनुमान से यह सात इंच लम्बा तो होगा?” मैंने उत्तर दिया- जो है वह तुम्हारे सामने ही है मैंने तो इसे कभी नापा नहीं है। तुम खुद ही इसे नाप कर इसकी सही लम्बाई पता कर सकती हो।
मेरी बात कोई उत्तर नहीं देते हुए मार्था उठ कर बैठ गई और ‘बहुत गर्मी है…’ कहते हुए पहले मेरे पजामे और टी-शर्ट को उतार कर नग्न किया और बाद में अपनी फ्रॉक और पैंटी को भी उतार कर पूर्ण नग्न हो गई। उसके नग्न हो कर बिस्तर पर लेटते ही मैंने मार्था की ओर करवट ली और उसके एक उठे हुए मुलायम, लेकिन सख्त स्तन को अपने एक हाथ में पकड़ कर मसलने लगा।
मार्था ने मेरी इस क्रिया का कोई विरोध नहीं किया और मेरे लिंग को अपने हाथ में ले कर अहिस्ता अहिस्ता हिलाने एवं मसलने लगी। मैंने यौन वासना से उत्तेजित हो कर अपने दूसरे हाथ को मार्था के जघन-स्थल के छोटे छोटे बालों में फेरता हुआ अपने बड़ी ऊँगली से उसकी योनि के भगान्कुर को ढूँढने लगा।
जैसे ही मेरी ऊँगली मार्था की योनि के भगान्कुर से टकराई, वैसे ही वह एक सिसकारी लेते हुए उछली और मुझे कस कर जकड़ते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैं भी मार्था को अपने से चिपटाते हुए उसके होंटों को चूसने लगा और साथ में उसके स्तन और भगान्कुर को मसलता रहा।
मार्था शायद मुझसे भी अधिक उत्तेजित थी इसलिए उसने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किये और मेरे मुख से अपने दूसरे स्तन को लगाते हुए मुझे उसे चूसने का संकेत किया। मैं तुरंत उस स्तन के चूचुक को मुख में लेकर कस के चूसने लगा और साथ में उसके दूसरे स्तन और भगान्कुर को मसलना ज़ारी रखा।
कुछ देर के बाद मार्था बहुत जोर जोर से सिसकारियाँ लेती रही और फिर उसके अकड़े हुए शरीर ने कुछ झटके लेकर एक लम्बी सिसकारी ली। तभी मुझे उसके भगान्कुर को सहलाने वाली ऊँगली पर कुछ गीलापन महसूस हुआ तो मैं समझ गया कि उसकी योनि ने पानी छोड़ दिया था।
उस समय मैंने बिना कोई क्षण गंवाए अपनी उस ऊँगली को उसकी योनि में डाल दिया और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा। मार्था की योनि पर मेरे हमले से उसकी उत्तेजना बहुत ही बढ़ गई थी जो उसकी ऊँची सिसकारियाँ बता रही थी। अपने को मुझसे अलग करते हुए उसने पलटी हो कर मेरे मुख पर अपनी योनि रख दी तथा मेरे लिंग को अपने मुख में लेकर चूसने लगी।
मैं भी अपने दोनों हाथों से मार्था के दोनों स्तनों को मसलते हुए बहुत ही तेज़ी से अपनी जीभ से उसकी योनि की दीवारों और भगान्कुर को सहलाने लगा। बीच बीच में मैं अपनी जीभ को उसकी योनि के अन्दर बाहर भी कर देता जिससे वह उचक पड़ती और उसके मुहं से ऊँची सिसकारी निकल जाती।
दस मिनट की इस पूर्व क्रिया में मार्था का शरीर एक बार फिर अकड़ गया और लम्बी सिसकारी लेते हुए उसने फिर अपनी योनि से पानी छोड़ा। उस समय मेरी उत्तेजना मेरे नियंत्रण से बाहर होने लगी इसलिए मैंने मार्था से अलग होकर उसे पीठ बल नीचे लिटा दिया और उसके टाँगें चौड़ी करके उनके बीच में बैठ गया।
मेरे तने हुए लिंग के ऊपर का लिंग-मुंड फूल गया था और उसका रंग एवं आकार एक तीन इंच व्यास की स्ट्रॉबेरी के समान था। मैंने तुरंत अपने लिंग को मार्था के भगान्कुर के ऊपर रगड़ा तो वह उत्तेजनावश चिल्ला उठी और अपने एक हाथ से मेरे लिंग को अपनी योनि के मुख पर लगा कर उचक कर उसे अन्दर डालने का प्रयास करने लगी।
तब उसके प्रयास को सफल बनाने के लिए मैंने भी एक जोर का धक्का लगा दिया जिससे मेरा आधे से ज्यादा लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया। बिना कोई देर किये मैंने जोर से एक और धक्का लगा दिए जिससे मेरा पूरा लिंग मार्था की योनि के अंदर समां कर उसके गर्भाशय की दिवार से जा टकराया।
मेरे लिंग का मार्था के गर्भाशय से टकराने से उसकी योनि में हुई आंतरिक हलचल के कारण वह बहुत ही जोर से उछली तथा बहुत ही ऊँचे स्वर में चीख मारी।
मार्था की चीख सुन कर मैं डर गया और रुक कर उसकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखने लगा तब उसने मुस्कराते हुए अपना सिर ऊँचा कर मेरे होंठों को चूमा ओर बोली- तुम रुक क्यों गए? आज तक जिस जगह पर सिर्फ पांच इंच लम्बा और एक इंच मोटा ढीला ढाला लिंग गया हो, वहाँ पर जब सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा मूसल जैसा सख्त लिंग घुसेगा तो चीख तो निकलनी ही थी।
मार्था की बात से मुझे आश्वासन हो गया कि उसे इस क्रिया में आनन्द मिलने लगा था इसलिए मैंने तुरंत मोर्चा सम्भाला और फुर्ती से अपने लिंग को उसकी योनि के अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर के बाद मार्था भी मेरे लगाये धक्कों की लय के अनुसार नीचे से उचकने लगी जिससे मेरा लिंग योनि की पूरी गहराई तक जा कर उसके गर्भाशय से टकराता।
जब मेरा लिंग उसके गर्भाशय की दिवार से टकराता तब उसकी योनि सिकुड़ कर मेरे लिंग को जकड़ती और इससे मेरे लिंग को जो रगड़ लगती उसका आनंद ही निराला था।
आहिस्ता से तेज़, फिर तेज़ से तीव्र, उसके बाद तीव्र से अति तीव्र तथा अंत में अति तीव्र से अत्यंत तीव्र गति से संसर्ग करते रहने को लगभग बीस मिनट ही हुए थे तभी मार्था का पूरा शरीर अकड़ गया। उसके स्तन एवं चुचुक बहुत ही सख्त होकर मेरे सीने में चुभने लगे और उसकी योनि के अन्दर हो रही बहुत तीव्र सिकुड़न मेरे लिंग को बहुत तेज़ रगड़ मारने लगी थी।
इस प्रक्रिया के कारण अकस्मात ही मेरा लिंग-मुंड फूल गया और उसने मार्था की योनि की अंदरूनी दीवारों को तीव्रता से रगड़ने लगा। हमारे गुप्तांगों पर लग रही तीव्र रगड़ के कारण दोनों एक साथ ही उत्तेजना की चरमसीमा पर पहुँच चुके थे, तभी मार्था और मैंने एक बहुत ही तेज़ एवं ऊँची सिसकारी एवं हुंकार मार कर अपने अपने रस का विसर्जन कर दिया।
दोनों की साँसें फूल गई और हम पसीने से लथपथ एक दूसरे से चिपके हुए निढाल होकर बिस्तर पर लेट गए। कुछ देर के बाद जब मैंने आँखें खोल कर मार्था की ओर देखा तो उसके चेहरे पर आनन्द एवं संतुष्टि की मुस्कान थी।
जब मैं अपने लिंग को उसकी योनि में से निकालना चाहा तब उसने अपनी आंखें खोल दी और मुझसे चिपक कर मुझे चूमने लगी तथा लिंग को बाहर निकालने से मना कर दिया।
मेरे पूछने पर कि मैं लिंग को उसकी योनि से बाहर क्यों नहीं निकालूं तो उसने नहीं बल्कि उसकी योनि ने बहुत जोर से सिकुड़ कर मेरे लिंग में से बचा-खुचा वीर्य-रस खींच कर उत्तर दे दिया।
उससे अलग होने का निर्णय छोड़ कर उसके ऊपर ही लेट गया और लगभग बीस मिनट के बाद जब मार्था की योनि ढीली पड़ी और मेरा लिंग बाहर निकल आया तब मैं उसके ऊपर से उठा।
फिर दोनों उठ कर बाथरूम में जा कर एक दूसरे के गुप्तांगों को साफ़ कर के वापिस बिस्तर पर आ कर लेट गए और बातें करने लगे।
तब बातों ही बातों में मार्था ने बताया कि शादी की पहली रात से लेकर कुछ दिन पहले तक पापा ने उससे संसर्ग किया था लेकिन कभी भी उसे संतुष्ट नहीं कर पाए थे। उसने आगे यह भी बताया कि पापा तो सिर्फ पांच मिनट तक ही संसर्ग कर पाते थे और उतनी अविधि में उसकी योनि कभी भी गीली नहीं हुई थी और वह हमेशा असंतुष्ट एवं प्यासी ही रह जाती थी।
मेरे साथ किये संसर्ग के बारे में पूछने पर उसने कहा कि मैंने पच्चीस मिनट की पूर्व क्रिया और इतनी ही भेदन क्रिया से उसकी कई वर्षों की प्यास बुझा दी थी।
फिर उसने मेरे लिंग को पकड़ कर हिलाते हुए कहा- पीटर, तुमने तो मेरी योनि का सारा पानी निकाल कर रख दिया है। मुझे नहीं पता कि मैंने कितनी बार योनि-रस का विसर्जन किया था। सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि पांच छह तक गिनने के बाद तो मैं आगे की गिनती ही भूल गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने उसे कहा- वह सब तो ठीक है लेकिन मेरे वीर्य-रस विसर्जन के बाद भी तुम्हारी योनि ने मेरे लिंग को क्यों जकड़े रखा? मार्था उचक कर बैठ गई और मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोली- इतना आनन्द एवं संतुष्टि देने वाली अनमोल तथा प्यारी वस्तु को तो मैं हर समय अपने अन्दर ही रखना चाहूंगी। कहीं यह बाहर निकल न जाए इसलिए मैंने उसे जकड़ लिया था।
इतना कह कर वह मेरी बगल में लेटने की बजाय वहीं बठे बैठे मेरे लिंग को चूमने लगी और फिर उसे अपने मुख में लेकर चूसने लगी। दो-तीन मिनट के अन्तरकाल में ही जब मेरा लिंग लोहे की रॉड की तरह तन गया तब मैं मार्था की टाँगें चौड़ी करके उसकी योनि पर अपना मुख रख कर उसे चूसने एवं चाटने लगा।
दस मिनट की इस संयुक्त पूर्व-क्रिया करने के बाद मार्था एकदम से उठी और मुझे सीधा करके मेरे ऊपर आ गई और मेरे लिंग को अपनी योनि के मुख पर रख कर उस पर बैठ गई।
जब आहिस्ता आहिस्ता मेरा पूरा लिंग उसकी योनि में चला गया तब वह उछल उछल कर उसे अपनी योनि अंदर बाहर करने लगी। पन्द्रह मिनट तक जब मार्था उछलते उछलते पसीने पसीने हो गई और उसकी साँसें फूलने लगी, तब वह मरे ऊपर से उठ कर बिस्तर पर घोड़ी बन गई और मुझे संसर्ग को आगे बढ़ाने के लिए कहा।
मैं तुरंत उठ कर उसके पीछे गया और अपने लिंग को उसकी योनि में डाल कर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा।
शायद मार्था बहुत उत्तेजित थी और उसे बहुत आनन्द भी आ रहा था इसलिए वह ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ लेते हुए मेरे हर धक्के पर अपने नितम्बों को पीछे की ओर धकेल रही थी।
हमें इस प्रकार धक्कम-पेल करते हुए अभी दस मिनट ही हुए थे कि तभी मार्था ने बहुत ही जोर से चीखते हुए सिसकारी ली, उसकी योनि में बहुत ही ज़बरदस्त सिकुड़न हुई और मेरा लिंग उसकी जकड़ में फंस कर आगे खिंचता गया।
उसी क्षण मेरा लिंग-मुंड फूल गया और उसमें से वीर्य-रस की पिचकारी छूटने जिससे मार्था की योनि भरने लगी। तभी मार्था अपनी योनि में जकड़े हुए मेरे लिंग को लेकर एक झटके से नीचे बिस्तर पर लेट गई और मैं खिंचता हुआ उसके ऊपर गिर पड़ा।
बुरी तरह थके होने के कारण हम दोनों काफी देर तक वैसे ही चुपचाप लेटे रहे और मैं मार्था की योनि को मेरे लिंग में से वीर्य-रस को खींचते हुए महसूस करता रहा।
कुछ देर के बाद हम दोनों उठे और बाथरूम में गए, तब हमने एक दूसरे के गुप्तांगो को चूस एवं चाट कर साफ़ किया और फिर बिस्तर पर जा कर एक दूसरे को चिपक कर सो गए।
उस दिन के बाद मार्था हर रात मेरे साथ सम्भोग करती है और बड़े गर्व से कहती है कि उसके पति मेरे पिता नहीं बल्कि मैं हूँ। कल रात भी वैसी ही भीषण संसर्ग की रात थी जिसमे हम दोनों बहुत थक गए थे जिससे मार्था को तो जल्दी नींद आ गई थी।
लेकिन उस रात जब पुरानी यादों ने मुझे सोने नहीं दिया तब मुझे अपने रहस्यों को आपके मनोरंजन के लिए कलमबंद करने के लिए श्री सिद्धार्थ वर्मा जी का विचार आया था।
मैं एक बार फिर अन्तर्वासना के लेखक श्री सिद्धार्थ वर्मा जी को मेरे रहस्यों पर आधारित रचना के सम्पादन और प्रकाशित करने में सहायता करने के लिए बहुत आभार और धन्यवाद व्यक्त करता हूँ और आप सब से विदा लेता हूँ। धन्यवाद और विदा।
अन्तर्वासना की पाठिकाओं तथा पाठकों मुझे आशा है कि आप सबको पीटर डीकोस्टा के जीवन के रहस्यों को ऊपर लिखी रचना में पढ़ कर बहुत मनोरंजन मिला होगा। अगर आप चाहें तो इस रचना पर अपने विचार मेरी मेल आई डी [email protected] पर भेज सकते हैं। आपका सिद्धार्थ वर्मा
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