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मैंने अपना सुपारा दो तीन बार वत्सला की चूत से घिस कर उसकी चिकनाई से चिकना किया और छेद पर लगा कर धकेल दिया भीतर और आहिस्ता आहिस्ता चोदने लगा उसे… साथ ही उसके कूल्हों पर थपेड़े लगाते हुए उसे चोदने लगा। मेरे चांटों से उसके गोरे गुलाबी चूतड़ों पर लाल लाल निशान पड़ गए।
वो चुपचाप शांत लेटी हुई कुनमुना रही थी; शायद अब वो अपनी चूत चुदाई का मज़ा उठाने लगी थी। मैंने भी अपने धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी उसने भी अपनी गांड उठा उठा कर लण्ड को जवाब देना शुरू कर दिया। मैं समझ गया कि अब यह मस्ता गई है और इसे हचक के चोदना चाहिये। यही सोच कर मैंने अपना लण्ड उसकी चूत से बाहर निकाल लिया।
‘क्या हुआ अंकल जी…करो न?’ उसने अपनी गर्दन मोड़ कर मुझे देखा और बोली। ‘अब दर्द तो नहीं है न तेरी चूत में?’ ‘हो रहा अब भी .. लेकिन होने दो, आप तो आ जाओ फिर से!’ ‘ठीक है तो फिर अब तू घोड़ी बन जा… ऐसे में ठीक से नहीं जा रहा पूरा!’ मैंने उसे कहा।
तब वत्सला झट से उठ कर अपनें हाथों और घुटनों के बल खड़ी हो गई, मैंने सटाक से लण्ड को फिर से उसकी चूत में पेल दिया और नीचे हाथ डाल कर उसके सख्त मम्मे थाम लिए और उसकी चूत मारने लगा। वो भी अपनी गांड को पीछे धकेल धकेल के जवाब देने लगी इस बार लण्ड ठीक से सटासट हो रहा था उसकी चूत में… जैसे जैसे मैं स्पीड बढ़ाता, वत्सला भी ताल में ताल मिलाती हुई अपनी कमर को पीछे आगे करने लगी।
‘अंकल जी… you fucking me so nice… fuck me harder now!’ वो बोली और जल्दी जल्दी अपनी चूत को मेरे लण्ड पर मारने लगी। मैंने अब उसके सिर के बाल चोटी की तरह लपेट कर जोर से खींच लिए जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और अपने बायें हाथ में उसकी चोटी लपेट कर दायें हाथ से उसकी पीठ और कूल्हों पर चांटे मारता हुआ उसे बेरहमी से चोदने लगा।
वो भी अपनी गांड को ऊपर नीचे कभी आगे पीछे करती हुई अपनी चुदाई को एन्जॉय कर रही थी, वत्सला का असली रंग अब सामने आने लगा था… ‘हां अंकल जी… ऐसे ही.. चीर फाड़ डालो इसे… बहुत सताती है ये मुझे!’ वो दांत पीसती हुई बोली।
उसकी चूत अब बहुत गीली होकर फच फच आवाजें करने लगी थी और वो अपने मुंह से ‘हूँ हूँ’ की आवाज करते हुए पूरी दम से मेरा साथ निभाये जा रही थी। मैं समझ गया कि अब यह यौवना झड़ कर ही दम लेगी, इसलिये मैंने धक्के लगाना बंद कर दिया लेकिन वो अपनी ही धुन में आगे पीछे होती हुई मेरा लण्ड निगलती उगलती रही।
मैं मन्त्रमुग्ध सा उसके गोल मटोल कूल्हों की चाल देख रहा था, वो अपनी कमर चलाये चली जा रही थी; जैसे ही वो आगे को होती मेरा लण्ड बाहर निकल आता जैसे ही वो पीछे को आती तो गप्प से लण्ड को निगल जाती। मैं थोड़ा सा और पीछे को हो गया जिससे बार बार मेरा लण्ड उसकी चूत से बाहर निकल जाता तो उसने झुंझला कर अपना हाथ पीछे ला कर अपनी चूत के छेद पर सेट किया और फिर से कमर चलाने, चूतड़ मटकाने लगी।
इस बार वो पूरा खयाल रख रही थी कि लण्ड बाहर न निकलने पाये और वो परफेक्टली इस तरह आगे पीछे होने लगी कि लण्ड सुपारे की टिप तक बाहर निकले और फिर से वापिस घुस जाये।
मैं समझ रहा था कि अब वत्सला जल्दी ही झड़ जायेगी और मैं इस पारी को थोड़ा और लम्बा खींचना चाहता था इसलिये मैं उससे अलग हट गया और वहीं लेट गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
वत्सला ने मुझे गुस्से से देखा जैसे उसे मेरा अलग हटना पसन्द न आया हो, वो तुरंत मेरे ऊपर चढ़ गई और लण्ड को अपनी चूत के छेद पर फिट करके एक ही बार में पूरा घुसा ले गई और दनादन ऊपर नीचे होने लगी। मैंने भी उसके सख्त उरोज पकड़ लिए और उसके चूचकों को मसलने लगा।
अब उसने मिसमिसा कर अपनी चूत मेरी झांटो पर रगड़ना शुरू कर दिया और उत्तेजना से कामुक आवाजें मुंह से निकालने लगी, उसकी आँखों में अजब सी वासना की चमक थी और वो बार बार अपने नाख़ून मेरे सीने में गड़ा देती और फिर से मिसमिसा कर खुद को चोदने लग जाती।
अब पूरा कंट्रोल उसके हाथ में था और वो मेरे लण्ड को अपने हिसाब से ले रही थी। मैं तो बस इस स्थिति को एन्जॉय कर रहा था कि एक ताजा ताजा जवान हुई छोरी मेरे ऊपर चढ़ कर अपनी कामाग्नि को शान्त करने का जी तोड़ प्रयास कर रही थी और झड़ने के लिए बेचैन उसकी चूत मेरे लण्ड से लोहा लेते हुए कड़ा संघर्ष कर रही थी।
आरती पास ही बैठी ये सब कौतुहल से देख रही थी.. मैंने भी नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा और मुस्कुराया… वो भी मुस्कुराई… ‘बड़े पापा, मैंने कहा था न कि मेरी ननदरानी लण्ड की भूखी बिल्ली है, अब यह जब तक झड़ नहीं लेगी, तब तक दम नहीं लेने वाली!’ वो हंस कर बोली।
वत्सला अभी भी ताबड़ तोड़ झटके लगाए जा रही थी मेरे ऊपर चढ़ी हुई… लेकिन मैं अब उसके ऊपर चढ़ कर उसे अपने हिसाब से चोदना चाहता था तो मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और लिटा के उसकी टाँगें अपने कंधों पर रख लीं और उसके दोनों दूध कस के दबोच लिए और एक बार में ही लण्ड को उसकी चूत में भोंक दिया।
चूत गीली रसीली होने के कारण लण्ड बिना किसी बाधा के घुसा और उसकी बच्चेदानी से जा टकराया… ‘आह आः हां… ऐसे ही… I loved this shot… अंकल जी!’ वो बोली और अपनी कमर उचका कर मेरा स्वागत किया। मैं उसके मम्मे दबोचे हुए बार बार वैसे ही शॉट्स लगाने लगा, मेरे हर धक्के पर उसके मुंह से आनंदभरी किलकारी निकलती और वो प्रत्युत्तर देने के लिए अपनी कमर उठाती लेकिन उसकी टाँगें मेरे कंधों पर होने से उसका दांव ठीक से नहीं चल पा रहा था।
मैंने उसकी चिंता किये बगैर अपने हिसाब से उसे चोदने लगा, लण्ड को आड़ा तिरछा सीधा या नीचे की तरफ करके उसकी चूत को कुचलने लगा; ऐसा करने से उसका बदन ऐंठने लगा और वो मुझे अपने ऊपर खींचने लगी लेकिन मैं उसके ऊपर नहीं झुका और धक्के लगाता रहा।
‘और तेज तेज धक्के मारो मुझे… गाली दे के चोदो मुझे… जैसे मेरी मम्मी चुदवाती है पापा से!’ वो अपनी कमर उछालते हुए तड़प कर बोली। ‘तुम्हारी मम्मी को गाली सुनते हुए चुदवाना पसन्द है… कौन सी गाली देते हैं तुम्हारे पापा?’ मैंने धक्के लगाते हुए पूछा। ‘कोई सी भी गन्दी गाली… मम्मी को बहुत जोश चढ़ता है गाली से!’ वो बोली।
‘तो ये ले साली…कुतिया…तेरी माँ की चूत मारूं… खा मेरा लण्ड अपनी बुर में!’ मैं ताबड़तोड़ धक्के लगाते हुए बोला। ‘हां… फाड़ डाल मेरी हरामन चूत को बना दे इसका भोसड़ा.. अब तेरी रण्डी हूँ मैं आज से जब चाहे चोद लेना मुझे!’ वो मिसमिसा कर बोली।
‘तो ये ले हरामजादी तेरी माँ को भी चोदूँगा ऐसे ही… साली पहली चुदाई में ही छिनाल बन गई तू तो!’ मैंने अपना लण्ड बाहर खींचा और फिर से भौंक दिया उसकी बुर में! ‘हां… ऐसे ही. आह आः अः… fuck me uncle baby… u drilling me so nice; am loving ur shots baby… gimme more… yaaaa fuck me like a whore uncle… मुझे रण्डी की तरह बेरहमी से चोद डालो… फाड़ डालो इस चूत को आज… yaa… aaa… I will be ur keep from now on… all my life. good job uncle baby… am cumming now… भाभी… बहुत अच्छा लग रहा है अब तो… मेरा होने वाला है.. पकड़ लो मुझे जोर से… यायाआय्या.. उई मम्मी’ वत्सला ऐसे ही हिस्टीरिया के मरीज की तरह बोलती चली जा रही थी।
और फिर ‘अंकल जी हटो जल्दी से… अब मेरा पानी निकल रहा बड़े जोर से!’ वो बड़ी व्यग्रता से बोली। मैंने तुरंत अपना लण्ड उसकी चूत से बाहर निकाल लिया. मेरे लण्ड निकालते ही उसकी चूत से रस का सोता सा फूट पड़ा, उसकी छूट इतनी तेज हुई जैसे फव्वारा चल पड़ा हो या जैसे किसी पाइप लाइन से पानी उछल उछल के लीक होता है।
उसी क्षण मैंने उसकी चूत के होंठ अपने हाथों से खोल दिए और देखा की वो रस की फुहार चुदाई करने वाले छेद से ही निकल कर करीब तीन इंच ऊपर तक उछल रही थी. मैंने अपने लण्ड को उन फुहारों में नहला लिया. वाह… ऐसा आनन्द का नज़ारा मैंने पहले कभी नहीं किया था।
लगभग एक मिनट तक वत्सला यूं ही झड़ती रही और मैं उसकी छूट में अपना लण्ड भिगोता रहा। जैसे ही उसका झरना बहना बंद हुआ, मैंने लण्ड को वापिस उसकी बुर में पेल दिया और फुर्ती से उसे चोदने लगा क्योंकि अब मैं भी झड़ जाना चाहता था।
वत्सला भी जल्दी ही फिर से तैश में आ गई और मेरे धक्कों से ताल में ताल मिलाती हुई किसी अनुभवी चुदक्कड़ लड़की की तरह अपनी कमर उठा उठा कर मेरी आँखों में आँखें डाल कर अपनी चूत मुझे देने लगी; मैं भी पूरी तन्मयता और मनोयोग से उसकी लेता रहा।
जल्दी ही वो अपने पूरे शवाब पे आ गई और उसकी चूत मेरे लण्ड से भरपूर लोहा लेने लगी, कुछ देर उछलने के बाद फिर वो मुझसे आक्टोपस की तरह लिपट गई और अपने दांत मेरे कंधे में गड़ा दिए, मैं भी उसके साथ ही झड़ने लगा, मेरे लण्ड से वीर्य की पिचकारियाँ छूट छूट कर उसकी चूत में समाने लगीं, उसकी चूत की मांसपेशियाँ भी संकुचित हो हो कर मेरे लण्ड से रस की एक एक बूँद निचोड़ने लगीं।
मैं तो जैसे जीते जी जन्नत में जा पहुँचा और उसने अपने टाँगें मेरी कमर में लॉक कर दीं।
हम दोनों पसीने पसीने होकर हांफ रहे थे; जल्दी ही उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और उसकी चूत संकुचित हो गई जिससे मेरा लण्ड बाहर निकल गया और उसकी चूत से मेरा वीर्य बह निकला।
मुझे अब थकावट लगने लगी थी सो मैं आँखें बंद करके सीधा लेट गया, वत्सला भी मेरे बगल में मेरी तरफ करवट लेकर लेट गई और मुझे चूम लिया। ‘थैंक्स अंकल जी!’ वो मुझसे बोली और मेरा गाल एक बार फिर से चूम कर मेरे सीने पर सिर रख कर सोने की कोशिश करने लगी। आरती भी मेरे दूसरी तरफ मुझसे चिपक कर लेट गई। हम लोग कब नींद के आगोश में चले गए कुछ पता ही नहीं चला।
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