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मैं अपनी प्यारी चूत को अपने हाथों से मसकते हुए ‘आहसीईई..’ कह कर उठी और बाथरूम चली गई। मैं फ्रेश होकर आई तो मैं अपनी पैन्टी खोजने लगी.. लेकिन मेरी पैन्टी कहीं दिख ही नहीं रही थी। आखिर मेरी पैन्टी गई कहाँ.. यहीं तो पति ने निकाल कर फेंकी थी। काफी खोजने पर भी नहीं मिली.. तो मैं फिर यूँ ही चाय बनाने चली गई। यह सोच कर कि शायद पति मुझे सताने के लिए साथ ले गए हों..
मैं जेठ जी के और अपने लिए चाय बना कर जेठ जी को देने उनके कमरे में गई। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि जेठ जी कमरे में सोए हुए थे, उनको सोया हुआ देख कर मैंने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाई पर मेरी पेंटी यहाँ भी नहीं दिखी। मैंने टेबल पर ट्रे रख कर जेठ जी को आवाज दी।
मेरी आवाज सुनकर जेठ जी चौंकते हुए उठ बैठे। मैंने कहा- आप बहुत सो रहे हैं। ‘नहीं यार, बस थोड़ी नीद आ गई और सो तो तुम भी रही थी!’ ‘आप फ्रेश होकर आइए और चाय पी लीजिए, नहीं तो चाय ठंडी हो जाएगी।’
जेठ जी जैसे ही बाथरूम गए, मैं पेंटी खोजने लगी, मुझे ज्यादा शक जेठ पर ही था, पर पेंटी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। तभी मेरी निगाह बेड के नीचे गई… और यह क्या… मेरी पेंटी तो यहाँ है! और मैंने लपक कर जैसे ही पेंटी उठाई, मेरी उंगली में कुछ गीला सा लगा। यह क्या पूरी पेंटी जेठ जी के वीर्य से सनी हुई थी और एक मादक गंध उसमें से निकल रही थी। मैंने ना चाहते हुए पेंटी को मुँह के पास ले जा कर जीभ से चाट ली और मेरा इतना करना कि मेरे जिस्म में एक रोमांच और जेठ जी के लण्ड से निकलते वीर्य की कल्पना घूमने लगी।
तभी मुझे बाथरूम से जेठ के निकलने की आहट हुई और मैं घबराकर पेंटी वहीं फेंक कर साँसों को नियंत्रित करने लगी। और जैसे जी जेठ जी बाहर आए, मैं जेठ जी को चाय देकर तुरन्त वहाँ से भाग आई। अब मेरे दिमाग में वही सब नजारा चलने लगा, मेरी पेंटी जेठ के रूम में मिलना यह साबित कर रहा था कि जेठ जी मेरे रूम में आए थे और मेरी खुली चूत का दर्शन करके मेरी पेंटी को जानबूझ कर यहाँ से लेकर गए, और फिर वासना के नशे में लण्ड को मुठ मार कर वीर्य मेरी पेंटी में गिराकर लण्ड को राहत दिलाई।
मैं यही सोच रही थी कि तभी दरवाजे पर आहट हुई, मैंने देखा तो जेठ जी खड़े थे। मुझे देख कर बोले- क्या सोच रही हो? मैं हड़बड़ा कर बोली- कुछ नहीं, आप कब आए? और चाय पी ली? ‘मैंने तो चाय पी ली, पर तुमने शायद चाय नहीं पी क्योंकि तुम चाय को मेरे रूम में ही छोड़ कर चली आई। तुम किस ख्याल में खोई हो? क्या बात है?’
मैं कैसे कहती कि मेरी पेंटी आप के रूम में कैसे पहुँची और आपने मुझे पूरी नंगी देख लिया है, मैं बोली- जी, वो मैं भूल गई थी, मेरे सर में थोड़ा दर्द था तो मैं दवा लेने चली आई।
मैं जेठ जी को ऐसा बोल कर उनके रूम में कप लेने गई और जेठ भी मेरे पीछे ही अपने रूम में आए। और मैं जैसे ही कप लेकर घूमी, मेरे जेठ अपने हाथ में मेरी पेंटी घुमा रहे थे- नेहा, तुम्हारा यह सामान मेरे पास है, शायद इसी की तलाश में हो? ‘न न् न् ने नहीं प्प्प्प्प् पर… यह आप के पास कैसे आई?’ हकलाते हुए मैं बोली।
तभी जेठ जी मेरे पास आकर मेरी बांह पकड़ कर बोले- मेरी जान, तुम जब अपनी चूत खोल कर सोई हुई थी, तब मैं तुम्हारे कमरे में गया था और तुम्हें उस हाल में देखकर मेरा मन तुम्हारी चूत चोदने का किया पर मैं मन मारकर तुम्हारी चूत छोड़ कर तुम्हारी पेंटी को ही लेकर अपना काम किया और मन की तसल्ली कर ली।
‘आप यह क्या कह रहे हैं? आपको शर्म नहीं आई? आप मेरे जेठ हैं!’ मैं कुछ और कह पाती तभी जेठ जी ने मेरी बाजू पकड़ कर मुझे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और बोले- मुझे क्यूँ तड़पा रही हो नेहा प्लीज? मैं बहुत प्यार करता हूँ तुमसे!’ कहते हुए मेरी लबों को चूमने लगे।
मैं किसी तरह अलग हुई- यह आप मेरे साथ क्या कर रहे हैं? मैं आपके छोटे भाई की पत्नी हूँ! मैं जान बूझ कर त्रिया चरित्र फैला रही थी, जबकि मेरा मन खुद चुदने का कर रहा था, मेरी चूत सुबह से पानी पानी हो रही थी और जब से मैंने अपनी पेंटी जेठ जी के रूम में देखी थी, मेरी चूत की कुलबुलाहट बढ़ गई थी। पर मैं इतने आसानी से जेठ जी के हाथ नहीं आना चाह रही थी, और मैं वहाँ से पलट कर भागने लगी पर आज शायद मेरी चूत जेठ के लण्ड से बच नहीं पाएगी।
मुझे जेठ जी ने अपनी बाजुओं में दबोच लिया। ‘आहह्ह्ह… मुझे छोड़ो!’ पर आज जैसे कसम खा कर आए थे जेठ जी अपने भाई के पत्नी के बुर में लण्ड डालने की! मैं छटपटाती रही पर मेरी एक नहीं चली और जेठ ने मुझे ले जा कर बेड पर पटक दिया, और मेरे ऊपर छा गए।
‘आहह्ह्ह छोड़ो ना… आप मुझे बरबाद ना करो!’ पर मेरी एक ना सुनी और सिर्फ इतना कहा- नेहा, मेरी पत्नी के गुजरने के बाद मैं चूत के लिए तरस रहा हूँ, मेरे ऊपर कृपा करो, मैं कोई जबरदस्ती नहीं करूँगा, पर आज तुम अपनी चूत मुझे देकर मेरे तड़पते लण्ड को कुछ राहत दो प्लीज!
उनका इतना कहना था कि मैं झूठा प्रतिरोध जो कर रही थी, बंद कर दिया लेकिन मैं शर्म के कारण जेठ का साथ नहीं दे पा रही थी, बस जिस्म को ढीला छोड़ दिया। मेरे ऐसा करने से जेठ जी को लगा कि मैंने उनको अपनी चूत चोदने की अनुमति दे दी है। वो बोले- मैं तुमको अच्छा नहीं लगता? मैं बोली- ऐसी कोई बात नहीं है, आप मुझे अच्छे लगते हो लेकिन मैंने कभी आपके बारे में ऐसा कुछ सोचा नहीं है, और ऊपर से मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ, हमारा आपका रिश्ता जेठ-बहू का है।
वो बोले- तुम मेरे छोटे की बीवी हो तो मुझे तुमसे प्यार करने का हक नहीं है? ऐसा कहते हुए जेठ ने मुझे बाहों में भर कर मेरे होंठों का रसपान करने लगे और बोले- मैं तुमसे प्यार करता हूँ, इसलिए मुझे तुम्हारी चूत चोदने का पूरा हक है। इसमें कुछ बुरा नहीं है, बस जान, आज मुझे अपनी चूत दे दो।
यह सुन कर मैंने भी जेठ जी को अपने बाँहों में भीच लिया। मेरे ऐसा करते जेठ जी ने खुश होकर एक हाथ से मेरी चूत दबा दी। ‘आहह्ह्ह सिई… और मैंने जेठ जी की बाहों में कसमसाते हुए अपनी पकड़ ढीली छोड़ दी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
जेठ जी ने अपना चेहरा ऊपर करके मेरे होठों को चूम लिया और हमारी साँसें आपस में टकराने लगी, मेरे अंदर एक अजीब सा नशा होने लगा था, मैं अपनी आँखें बन्द करके अपने होंठ खोल कर जेठ से चुदने के लिए उतावली होकर अपने होठों का अमृतपान कराने लगी। नीचे मेरी बुर के होठ खुल बंद होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, लग रहा था मानो कह रहे हो ‘जेठ जी, आओ और चूम लो मुझे!’
तभी जेठ जी अपने कपड़े निकालकर नंगे हो गए और मेरे भी कपड़े निकालने लगे। जैसे ही मेरे नीचे के भाग को नंगा किया, मेरी मस्त बिना पेंटी के चिकनी बुर देखकर जेठ जी मेरी चूत पर मुँह रख कर चाटने लगे और बोले- नेहा, क्या मस्त चूत है तेरी, सालों के बाद चूत के दर्शन हुए! और मेरी बुर को खींच-खींच कर चूसने लगे।
और मैं जेठ का साथ और एहसास करके सिसकारने लगी, आहह्ह्ह सिईईई आहह्ह्ह करती रही और जेठ जी मेरे चूतड़ों को भींच कर मेरी चूत पी कर मेरी बुर की प्यास बढ़ाने लगे। कुछ देर बाद जेठ जी मेरी बुर को चाटना छोड़कर ऊपर की तरफ मेरी नाभि पेट और छाती को चूमते हुए मेरे गले को चूमने लगे। इधर नीचे उनका लण्ड मेरी बुर को छू रहा था और मैं सेक्स की खुमारी में अपनी चूत उठाकर लण्ड पर रगड़ते हुए बोलने लगी ‘आहह्ह्ह सिईईई… अब मत तड़पाओ… डाल दो मेरी बुर में अपना लण्ड और बना लो मुझे अपनी बीवी… आहह्ह्ह जान पेलो मुझे!
फिर जेठ ने अपना थूक निकाल कर अपने लंड के सुपारे पर लगाया और अपने लण्ड के फ़ूले सुपारे को मेरी चूत पर लगा कर मेरे ऊपर लेट गए और मैं भी अपने पैर खोल कर ऊपर उठा कर जेठ जी के लण्ड को लेने के लिए दांत भींच कर धक्के का इंतजार करने लगी। तभी जेठ जी ने एक जोर का धक्का मार कर लण्ड का सुपारा अंदर कर दिया। ‘आहह्ह्ह सीसी… आहह्ह्ह उफ मारो मेरी चूत… पूरा लंड मेरी चूत में डाल दो…’
और जेठ ने शॉट पर शॉट लगा कर पूरा लण्ड मेरी चूत में डाल मेरी चूत चोदने लगे और मैं जेठ जी के हर शॉट पर चूत उठाकर लण्ड लेते हुए चिल्लाने लगी- चोद और जोर जोर से चोद… आज छोड़ना नहीं मेरी चूत को… अहह्ह्ह सी… सी सी आहह्ह्ह… मेरी जान, तेरे लंड ने मेरी चूत को पसंद किया है, चोऊऊ… चोद इसको आज, इसकी गर्मी अपनी लंड से निकल दो, फाड़ दे मेरी चूत को हाह्हआआ!
और जेठ भी लण्ड पेलते हुए ‘ले मेरी जान… खा मेरा लण्ड, तू रानी है मेरी, आहह्ह्ह ले मेरी जान चूत में लण्ड… आहह्ह्ह’ और पलट कर मुझे ऊपर कर लिया और मैं जेठ जी के लण्ड पर उछल उछल कर चुदने लगी।
मैं झरने के करीब पहुँच कर उनसे चिपक कर झड़ने लगी- आहह्ह्ह सीसी सीईईईई आहह्ह्ह… मैं गई आहह्ह्ह… सीसी! मैं झड़ कर चिपक गई। तभी जेठ मुझे नीचे लेकर शॉट लगाकर लण्ड पेलते हुए वीर्य मेरी चूत में गिराने लगे- आहह्ह्ह नेहा, मैं भी गया! आहह्ह्ह सीसीई कहते हुए हम दोनों चिपक कर आराम करने लगे! कहानी जारी है। जिन दोस्तों ने मेरी पेंटी खोज ली होगी, उनका ईनाम मेरे पास है!! [email protected]
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