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प्रिय साथियो.. आपको एक स्टोरी सुना रहा हूँ.. आनन्द लीजिए। मेरे इम्तिहान खत्म हो गए थे.. उन्हीं दिनों हमारे एक गांव के रिश्तेदार हमारे घर हमारे परिवार से मिलने आए हुए थे। मैंने पहले कभी भी गांव नहीं देखा था.. इसलिए वो जब वापल जाने लगे तो मैं भी उनके साथ उनके गांव चला गया।
गाँव में शहरी भीड़ भाड़ से दूर काफी शांति थी। वहाँ दूर-दूर तक लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर आखों को ठंडक मिल रही थी। उनका घर भी उन्हीं खेतों में था.. छोटा सा.. पर सुंदर.. घर में अधिक कुछ सामान नहीं था.. बस एक चारपाई थी.. एक दीवार में बनी अलमारी थी। नहाने-धोने आदि के लिए एक कमर से भी कम ऊँची मोरी थी।
जहाँ पर उनका घर था.. वहाँ अगल-बगल में कोई घर नहीं था। जो था.. वो काफी दूर था। मुझे अपने उन रिश्तेदारों को कुछ तो बुलाना चाहिए.. ऐसा करके मैं उनको चाचा-चाची बोलता था। दोनों ही अपने खेतों में बडी मेहनत करते थे। सुबह चार-पांच बजे उठना.. घर-आँगन की सफाई करना.. दूध दुहना.. खाना बनाना.. फिर दिन भर खेतों में काम करना.. यही उनकी दिनचर्या थी।
जब मैं गया था.. उसके दो दिन बाद ही चाचा जी.. किसान के लिए रखी गई एक ट्रेनिंग कैम्प को अटेंड करने अपने कुछ गांव वालों के साथ पास के शहर चले गए। उधर से रोज आने-जाने की सुविधा नहीं थी.. इसलिए चाचा ट्रेनिंग खत्म होने तक घर वापस नहीं आ सकते थे।
घर पर सिर्फ मैं और चाची थे। हम दिन भर खेत में काम करते रहे, रात में खा-पीकर बिस्तर पर लेटे-लेटे इधर-उधर की बातें करने लगे। मैं ऊपर चारपाई पर सोया था.. चाची नीचे जमीन पर लेटी थीं। जब हम बातें कर रहे थे.. मुझे चाची की गोलाईयों का कुछ हिस्सा ऊपर से दिख रहा था। मैं उन पर से अपनी नजरें हटाने की कोशिश करता.. पर लाख कोशिशों के बावजूद मैं फिर वहीं देखने लगता।
मेरी इस बेचैनी को शायद चाची जान गई थीं.. पर कुछ बोल नहीं पाई थीं.. वे बोलती भी कैसे? मैं कुछ कर नहीं रहा था.. बस देख रहा था। हमने काफी देर बातें की और फिर सो गए।
सुबह जब मैं गहरी नींद में था.. अचानक मुँह पर ठंडा पानी गिरने से जाग गया। हुआ यूँ कि चाची मोरी में बैठकर नहा रही थीं। मैं अपना सर मोरी की तरफ रख कर चारपाई पर लेटा हुआ था। चाची जब नहाने के लिए अपने बदन पर पानी ले रही होंगी.. तब उसमें से कुछ बूँदें मेरे चेहरे पर गिरी होंगी।
मैंने आँख खोलकर नहाती हुई चाची को देखा.. तो वो खुद को हाथ से ढकने की कोशिश करने लगीं। ‘हाय दैय्या.. आज तुम इतने जल्दी कैसे उठ गए?’ ‘मेरे मुँह पर पानी गिरा.. इसलिए नींद खुल गई..’ मैंने जवाब दिया। ‘नहाते वक्त छलका होगा.. खामखाँ मेरी वजह से तेरी नींद टूट गई।’ कहते हुए वो अपने बदन को ढक रही थीं। ‘आप ठीक से नहा लीजिए.. मैं बाहर जाता हूँ।’ ये कहते हुए मैं बिस्तर से उठने लगा।
‘ना.. बाहर मत जाओ.. मैं अकेली रह जाऊँगी.. तुम्हारे चाचा भी नहीं हैं.. कोई अन्दर घुस आएगा.. तो क्या करूँगी? उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा। ‘यहाँ कौन आएगा?’ ‘कोई आया तो..? मत जाओ ना..’
‘मत जाओ ना..’ यह बात उन्होंने कुछ इस अंदाज में कही.. जैसे प्रेमिका प्रेमी को दूर जाने से रोक रही हो। मैं उनके उस नशीले अंदाज का कायल हो कर वहीं रुक गया। ‘मेरा एक काम करोगे?’ उन्होंने पूछा। ‘क्या?’ ‘अब जब रुक ही गए हो और मुझे तुम्हारे सामने ही नहाना पड़ रहा है.. तो तुम अगर मेरी पीठ रगड़ दो.. तो अच्छा होगा.. रगड़ोगे?’
मैं उठा और मोरी मैं पड़ा पत्थर उठाकर उनकी पीठ पर रगड़ने लगा। अब तक मैं उनसें नजरें चुरा रहा था.. पर पीठ रगड़ते वक्त मैंने उनकी तरफ देखा.. तो मेरा लंड तनकर खड़ा हो गया। मैं एक हाथ में पत्थर और दूसरे हाथ में साबुन का झाग लिए दोनों हाथों से उनकी पीठ रगड़ रहा था, कभी कन्धों पर.. कभी पीठ पर.. कभी कमर पर तो कभी कमर के नीचे जमीन पर टिकी गांड के ऊपरी हिस्से पर.. मेरे हाथ लगातार घूम रहे थे। मेरा हाथ घुमाना शायद चाची को बहुत अच्छा लग रहा था।
कुछ ही पलों बाद चाची ने जो अपने हाथ.. अपना आगे का बदन ढकने के लिए बांधे हुए थे.. उन्हें खोल दिया था। अब वो जोश में आकर अपने बदन पर पानी डाल रही थीं। उनके इस जोश की वजह से मेरे कपड़े बुरी तरह से भीग गए। जब उनको इस बात का अहसास हुआ.. तो उन्होंने मुझे कपड़े निकालने को कहा।
मैंने अंडरवियर छोडकर अपने सारे कपड़े उतार दिए। ‘तुम ऐसा क्यों नहीं करते..’ ‘क्या?’ मैंने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए पूछा। ‘तुम भी अभी नहा लो.. मैं तुम्हारी पीठ रगड़ देती हूँ.. जैसे तुमने मेरी ‘रगड़ी’ है।’ यह कहते हुए वो पलटकर पीछे हट गईं।
जैसे ही पलटीं.. मेरी नजर उनकी चूचियों पर टिक गई। ‘काफी जवान हो गए हो..’ अंडरवियर से उभरे मेरे लंड को देखती हुई वो बोलीं। मैं हँसकर मोरी में उनकी तरफ पीठ कर के बैठ गया।
चाची ने मेरे बदन पर पानी डाला और फिर साबुन लगा कर मेरी पीठ पर अपने हाथ फेरने लगी। मैं अंडरवियर पहने हुए था.. इसलिए वो मेरे कमर के नीचे नहीं जा पा रही थीं। ‘इसे भी उतार देते ना..’ चाची ने कहा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने बैठे-बैठे ही अपनी अंडरवियर उतार दी.. पर मैं अभी भी आगे मुँह करके ही बैठा था। ‘आगे सीने पर भी लगा दूँ क्या साबुन..?’ चाची ने पूछा। मैं समझ गया.. चाची मेरा तना हुआ लंड देखना चाहती हैं।
मैं पीछे मुड़ गया.. चाची लंड को देख मुस्कराईं। ‘पहले कभी नहाए हो क्या किसी के साथ?’ ‘नहीं.. और आप?’ ‘तुम्हारे चाचा के साथ..’ ‘अब चाचा की याद सता रही होगी?’ ‘सता रही है.. तुम उस याद को भुलाने में मदद करो।’ ‘क्या मदद करूँ?’ ‘जैसा मैं बोलूँ.. वैसा करते जाओ।’
यह कहते हुई चाची मेरे सीने पर साबुन मलने लगीं। सीने के बाद मुँह पर.. जाँघों पर.. पैरों पर.. ‘चाची.. इधर के कुछ हिस्से पर साबुन नहीं लगा है..’ मैंने लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा। ‘तू खुद लगा..’ ‘अब जब सारे बदन को आपने ही साबुन लगाया है.. तो एकाध जगह क्यों छोड़ दी?’ ‘कुछ काम इन्सान को खुद अपने हाथों से करने चाहिए।’ ‘कुछ काम इन्सान को सिर्फ दूसरों के हाथों से करवाने चाहिए।’
मेरी बात सुनकर चाची खिलखिलाकर हँस पड़ीं, उन्होंने हँसते-हँसते ही मेरे लंड पर अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया। मैंने भी अपने हाथों पर साबुन मलकर उनकी चूचियों पर फेरना शुरू कर दिया था। ‘तुम्हारे हाथों में जादू है..’ ‘आप तो ऊपर से नीचे तक जादू हो..’ यह कहते हुए मैं उनकी गोदी में जा बैठा।
हम दोनों कुछ देर एक-दूसरे को देखते रहे.. फिर अहिस्ते से बालों और गालों पर हाथ फेरते हुए चूमाचाटी करने लगे। चाची बेतहाशा मुझे चूमे जा रही थीं.. वो ऐसे टूट पड़ी थीं मेरे ऊपर.. कि सालों की प्यासी हों। मैं अपने दोनों हाथों से उनके बड़े-बड़े स्तनों को मसले जा रहा था। चाची अपने एक हाथ से मेरा लंड सहला रही थी.. दूसरे हाथ से मुझे अपने ऊपर खींच रही थीं।
काफी देर की चुम्मा-चाटी और बदन की छेड़छाड़ के बाद चाची ने मेरे पैर फैलाकर मुझे नीचे बिठाया, फिर खुद मेरे लंड के ऊपर आ बैठीं। अपनी उंगलियों से अपनी चूत खोलकर चाची ने मेरे लंड को उसके अन्दर दबाना शुरू किया। जैसे ही लंड पूरा चूत में घुस गया.. उस पर सवार होकर चाची जोर जोर से लण्ड की सवारी करने लगीं।
मैं भी नीचे से अपनी कमर हिलाकर उनका साथ देने लगा। ‘आहह.. आह.. ऊहह.. ऊह..’ की आवाजें गूँजने लगीं।
हर शॉट के साथ हम लोग एक-दूसरे को कस रहे थे। यह सिलसिला तब तक चला.. जब तक हम झड़ नहीं गए। एक-दूसरे के आगोश में हम मोरी में ही झड़ चुके थे। कुछ वक्त बाद हम दोनों नहाकर मोरी से बाहर निकले, तौलिया से एक-दूसरे को पोंछा।
जब चाची कपड़े पहनने लगीं.. तो मैं फिर जाकर उनसे चिपक गया। ‘क्यों.. दिल नहीं भरा?’ उन्होंने पूछा। ‘अह..’ कहते हुए मैंने उनके कपड़े दूर किए, उनको किस करते हुए चारपाई पर गिरा दिया और खुद उनके ऊपर चढ़ गया। हम फिर एक-दूसरे के बदन से खेलने लगे। यूँ ही चूत चुदाई का खेल खेलते-खेलते हम लोगों ने एक और बार चुदाई की।
इस तरह चाचा की ट्रेनिंग के साथ मेरी भी ट्रेनिंग चल पड़ी.. जब तक गाँव में रहा चाची को पेलता रहा।
यदि कहानी को लेकर आपके पास कोई अच्छे सुझाव हों.. तो मुझे मेल करें। [email protected]
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