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आखिर में हमारी शादी हमारे माता पिता की सम्मति से धूमधाम से हो गयी। शादी के पहले तीन चार सालों में हमने खूब सेक्स किया। खूब मजे किये। अनिल का ज्यादा सेक्सी होना मुझे बहोत अच्छा लग रहा था। उस के साथ साथ मैं भी सेक्स का पूरा आनंद ले रही थी।
मुझे उन दिनों समझ में आया की सेक्स कितना आनंद दायक हो सकता है। आज भी उन दिनों की यादें मेंरे पुरे बदन में जैसे एक अजीब सी सिहरन पैदा कर देती है। जब हमारी बेटी गुन्नू हुई तब से हमारे सेक्स जीवन में थोड़ा परिवर्तन आना शुरू हो गया। मेरी बेटी जैसे मेरी पूरी जिम्मेदारी बन गयी।
मेरी बेटी पैदा होने के बाद जैसे हमारे जीवन का केंद्र बिंदु बन गयी थी। जो ध्यान और प्यार मैं दिन रात मेरे पति अनिल पर न्योछावर करती थी वह अब अनायास ही मैं मेरी बेटी पर करना पड़ रहा था। पुरे दिन उसकी पेशाब, टट्टी, खाना खिलाना, स्तन पान, उसकी शर्दी, खांसी, उसको सुलाना, उठाना, उसको साफ़ करना उसके साथ खेलना इत्यादि में मुझे मेरे पति के लिए समय निकालना बड़ा मुश्किल सा लग रहा था..
अनिल भी हमारी बेटी के पीछे पागल था। उसको थोड़ी सी भी असुविधा होने पर वह बड़ा विचलित हो जाता था। मैं बेटी के लालन पालन के बाद शाम को थक कर ढेर हो जाती थी। मुझे पति को प्यार करना, मैथुन इत्यादि के बारेमें सोचनेका भी समय कहाँ था? चूँकि अनिल अपने काम में और जॉब में व्यस्त रहते थे, मेरी बेटी मेरी पूरी जिम्मेदारी बन चुकी थी।
मुझे मेरा जॉब छोडना पड़ा था। बेटी की परवरिश में मेरा सब कुछ छूट गया। मैं अनिल को उतना समय नहीं दे पाती थी जितना उसको देना चाहिए था। पर में क्या करती? बच्चे बड़े अतृप्त होते हैं। वह हमेशा कुछ न कुछ मांगते रहते हैं। और माँ को उसकी मांग को पूरा करना पड़ता है। पर इस चक्कर में हम पति पत्नी एक दूसरे से दूर होने लगे।
अनिल मुझ से बहोत सहयोग करने की कोशिश कर रहा था। पर उसकी जॉब, टूर और व्यस्तता के कारण वह ज्यादा कुछ कर नहीं पाता था। उसे जब चोदने का मन करता था तब मैं काम से थकी हारी होती थी और उसका साथ न दे पाती थी। फिर भी मैं उसकी मज़बूरी समझ कर कई बार मन न करते हुए भी अपनी टाँगे फैला कर उसे चोदने की जरुरत को पूरी करने की कोशिश करती थी। अनिल इस पर बड़ा दुखी हो जाता था। पर मैं भी मजबूर थी। यहां एक तथ्य को समझना पड़ेगा।
स्त्रियों का शरीर पुरुषों से अलग होने के कारण उनकी मानसिकता भी पुरुषों से अलग होना स्वाभाविक है। स्त्रियां साधारणतः अन्तर्मुख होती हैं। अर्थात वह अपनों के विषय में ज्यादा सोचती हैं। भगवान ने स्त्रियों को एक विशेष जिम्मेदारी देने के लिए प्रोग्राम किया है। वह है सविशेष ममत्व और संवेदनशीलता। ममत्व का अर्थ है जो अपने हैं उनकी इतनी लगन से परवरिश करनी की वह व्यक्ति पनप सके। संवेदनशीलता का दुसरा नाम है सहन शीलता। संवेदन शीलता का अर्थ है अपनों के प्रति नरमी और धैर्य रखना। अपने चारों और के वातावरण में नमी अथवा प्रेम उत्पन्न करना। कई बार इतनी कुर्बानी देने के बाद स्त्री फिर उस पात्र पर अपना अधिकार भी जताने लगाती है। जहां तक ममत्व का सवाल है स्त्रियां पुरुषों से कहीं आगे हैं।
मैं इतना दावे के साथ कह सकती हूँ की स्त्रियां पुरुषों से स्वभावगत ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। परंतु शायद पुरुष स्त्रियोंकी विशेषता इस लिए समझ नहीं पाते क्योंकि भगवान ने पुरुषों की प्रोग्रामिंग अलग तरीके से की है। पुरुषों का व्यक्तित्व साधारणतः बहिर्मुख होता है। वह बाहरी विश्व के साथ सविशेष रूप से जुड़ना चाहते हैं। वह अपनों की सविशेष रक्षा कैसे हो उसमें ज्यादा रूचि रखते हैं।
मैं यह मानती हूँ की यह एक सामान्य विश्लेषण है। हर अवस्था में यह लागू नहीं होता। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
यह उस समय की बात है जब हमारी बेटी गुन्नू करीब चार सालकी हो चुकी थी। अब वह अपने आप काफी कुछ कर लगी थी और मुझे उसके पीछे पहले की तरह भागना नहीं पड़ता था। पर मैं अनुभव कर रही थी, की बीते तीन सालों के कड़वे अनुभव और अलगता के कारण अनिल का मन मुझसे कुछ ऊब सा गया था। हम साथ में सोते तो थे, पर तब पहले की तरह अनिल का मुझे अपनी बाहों में लेकर सोने का जो पहले वाला जोश था वह जैसे ख़त्म हो गया था। अनिल की मानसिक अवस्था को समझते हुए भी मुझे अनिल का यह व्यवहार आहत करता था।
रात को वह मुझ से दुरी रखने लगा और मुड़कर सो जाता था। वह मुझसे सेक्स के लिए उतना उत्साहित नहीं हो रहा था। हमारी सेक्स की मात्रा एकदम घट गयी थी। वैसे मुझे भी तब अनिल के साथ सेक्स करने में वह आनंद नहीं आ रहा था। क्योंकि हम पति पत्नी थे, एक साथ सोते थे और क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं था इस लिए कभी कभी चोदना हमारे लिए जैसे एक आवश्यक मज़बूरी बन गयी थी।
हम उसी मानसिक हालात में थे जब अनिल की पोस्टिंग जयपुर में हुयी और हमारी मुलाकात राज और नीना से हुई। जैसे ही मेरे पति अनिल ने उसके ही साथीदार राज की सुन्दर कमसिन पत्नी नीना को देखा तो मैंने महसूस किया की अनिल उसपर जैसे लट्टू हो गया था। मैं देख रही थी की उसकी आँखें नीना की छाती और उसके कूल्हे के उतार चढ़ाव पर से हटने का नाम नहीं ले रही थी।
उनकी नीना के बदन पर गड़ी हुई आँखें और उस समय के उनके चेहरे के लोलुप भाव देखकर मुझे यकीन था की हो न हो मेरा पति अनिल, राज की पत्नी नीना को अपनी आंखोसे नंगी करके के उसके पुरे बदन को मसलने के, उसके साथ सोने के और उसे बड़े चाव से चोदने के सपने निहार रहा था। मुझे कुछ पल के लिए मेरे पति के प्रति घृणा का भाव होने लगा। पर फिर मुझे उस पर दया आ गयी। जब हमने पहली बार शादी का करार किया था तब उसने मुझे स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह एक असुधार्य (जो कभी सुधर नहीं सकता ऐसा) कामुक पुरुष था। सेक्स उसकी रग रग में था। ऐसे व्यक्ति से मैं कैसे उम्मीद रखूं की जब मैं उससे सेक्स करने में ज्यादा रूचि न रखूं तो वह इधर उधर तांकझांक नहीं करेगा?
पिछले कुछ महींनों से (या यूँ कहिये की करीब तीन साल से) ऐसा लग रहा था की जैसे मेरे पति अनिल के जीवन में कोई रस रहा ही नहीं था। वह कुछ उखड़ा उखड़ा सा लग रहा था। पर जैसे ही पहली बार उसने नीना को देखा और उस पार्टी में जब उसने नीना के साथ कमर से कमर और जांघ से जांघ रगड़ कर डांस किया तबसे जैसे उसको नया जीवन मिल गया। मैं हैरानगी से मेरे पति के उस परिवर्तन को देखती ही रह गयी।
मुझे इस बात से डर भी लग रहा था की कहीं अनिल उस पागल पन में नीना के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत न कर बैठे। उस दावत के बाद घरमें रात को पागलपन में एकाध बार जैसे उसको मुझ पर अचानक ही एकदम ज्यादा प्यार आ गया और वह मुझे नंगी करके मेरे ऊपर चढ़कर मुझे बड़े प्यारसे जोरोंसे चोदने लगा। उसका मुझे चोदने में अचानक इतना रस बढ़गया यह देख कर मैं हैरान हो गयी। पर फिर मैंने अपने आप को एक नसीहत दी की शायद वह मुझे नीना समझ कर ही चोदता होगा, क्योंकि मुझे ऐसा वहम हुआ की एकाध बार मुझे चोदते हुए उन्मादमें उसके मुंहसे “ओह… नीना…” निकल गया था। पर में उस समय आधी नींद में थी और मुझे इस बातका पक्का यकीन नहीं था। मैं यह अनुभव कर रही थी की शायद मेरे पति का ध्यान मुझ पर कम और उस औरत पर ज्यादा होने लगा था।
मेरे लिए यह कोई आश्चर्य की या ज्यादा चिंता की बात नहीं थी। इससे पहले कई बार, मेरा ठर्कु पति कई सुन्दर लड़कियों पर डोरे डाल चूका था और ज्यादातर उसे मुंह की खानी पड़ी थी। एकाध बार जरूर कोई औरत उसे थोड़ी लिफ्ट दे देती थी, पर मेरा बेचारा पति आखिर में उस औरत से भी निराश होकर मेरे ही पास आकर मेरी सेवा में लग जाता था।
शादी के समय मेरी माँ ने मुझे एक सिख दी थी, वह मुझे बराबर याद थी। माँ ने कहा था, “बेटी, यह मर्द जात बन्दर की तरह होती है। कोई सुन्दर बंदरिया देख कर उसको पटाने के लिए वह नाचने गाने लगता है। पर ध्यान रहे, इससे तू घबड़ाना या परेशान मत होना। वह बंदरिया जब तुम्हारे बन्दर (मतलब तुम्हारा पति) को लात मारेगी तो आखिर में वह भागता हुआ, रोता हुआ तुम्हारे पास ही आएगा। बस तू उसका इतना ध्यान रखते रहना की कोई ऐसी बंदरिया उसे न मिल जाय जो उसको उल्लू बनाकर सब लूट ले। शायद मेरी माँ ने मुझे वह सिख अपने अनुभव के आधार पर कही थी।
माँ ने एक बात और भी कही थी की, “हो सकता है की कोई बार तुझे गुस्सा या दुःख भी आए और तेरा अपने पति को कुछ कहने अथवा उसको सबक सिखाने का मन करे। उस समय लड़ाई झगड़ा करने के बजाय, तू बिना कुछ बोले, अपने पति को उसीकी जबान में जवाब देना।” उस समय मैं इसका अर्थ ठीक से नहीं समझ पायी थी की कैसे बिना कुछ बोले मैं अपने पति को उसीकी जबान में जवाब दे सकुंगी?
जब मैंने मेरे पति अनिल को राज की सुन्दर बीबी नीना के साथ कमर रगड़ते हुए डांस करते देखा तो मेरे बदन में एक आग सी लग गयी। नीना सुन्दर जरूर थी। पर मैं भी तो कोई कम सुन्दर नहीं थी। मुझे तब मेरी माँ की सिख समझ में आयी। उसी पार्टी में जब डांस करने के लिए राज ने मेरा हाथ माँगा तो मैं समझ गयी की माँ ने भी तो यही कहा था। मैं भी राज की कमर से कमर रगड़कर डांस करने लगी। मैं मेरे पति को दिखाना चाहती थी की अगर वह किसी पर डोरे डाल सकता है तो मुझ पर भी फ़िदा होने वाले कई हैं।
बेचारा राज! उसका क्या दोष? उसका लन्ड तो उसकी पतलून मैं से बाहर निकल ने को जैसे कूद रहा था। कई बार उसका कड़ा लन्ड मेरी जाँघों से और योनि से टकराया। जब मेरे पति अनिल ने यह देखा तो वह थोड़ा खिसिया सा गया। उसको भी समझ में आ गया की मैं भी कोई कम नहीं हूँ। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
पर शायद मेरी रणनीति थोड़ी फीकी रही। उस नीना को देख कर मेरा बन्दर (सॉरी, मेरा पति) अनिल तो जैसे उस पर लटटू होता दिखाई दे रहा था। मैंने पार्टी में देखा तो उसकी नजर बारबार नीना के बड़े मम्मों पर ही केंद्रित लग रही थी। अरे भई! मेरे मम्मे बेर जैसे छोटे थोड़े ही थे? उस समय पार्टी में सारे मर्द मेरे मम्मों को ही तो ताक रहे थे। बल्कि एक औरत ने तो मजाक से कोहनी मार कर मुझे कह भी दिया की आखिरसारे मर्द मेरे मम्मों को ही क्यों ताक रहे थे? अरे जिस औरत पर मेरा पति डोरेड़ाल रहा था , उसी औरत का पति मेरे मम्मों को ऐसे ताक रहा था जैसे वह उन्हें खा ही जाएगा।
खैर जब मैं उस पार्टी में नीना से मिली तो मुझे बहुत अच्छा भी लगा और मैं थोड़ी निश्चिन्त भी हुई। मुझे नीना एक अच्छी और समझदार औरत लगी।
सामान्यतः रात को जब मैं थकने का बहाना कर के सोने लगती और जब अनिल कुछ दिनों से सेक्स न पाने के कारण मुझे सेक्स करने केलिए तैयार करने लगता था, तो वह अपने तरीके से सेक्सी बातें करते हुए मुझे ललचाता, उकसाता या फिर मेरी चूत में उंगली डाल कर मुझे गरम करने की कोशिश करता रहता था।
पर उस औरत नीना से मिलने के बाद से मैंने देखा की वह बिस्तरे में जैसे मैं हूँ ही नहीं ऐसे पड़ा रहता था और कुछ सोचता रहता था। एक बार तो रात को मैंने उसे अपने ही लन्ड को मूठ मारते हुए (masturbate करते हुए) भी देखा। मुझे बड़ा दुःख हुआ। मैं साथ में ही सो रही थी और मेरा पति मूठ मार रहा था यह बात मुझे ठीक नहीं लग रही थी। पर मैं क्या करती? मुझे भी अनिल से सेक्स करने में वह आनंद नहीं आ रहा था और उनसे सेक्स करने का मन नहीं हो रहा था। ।
खैर मैं मेरे पति को अच्छी तरह से जानती थी । वह कब क्या सोचते हैं वह मैं उनके चेहरे के भाव से ही पहचान लेती थी। मैं समझ गयी थी की अनिल नीना पर डोरे डालने की कोशिश कर रहे थे। पर मुझे पता था की नीना ऐसे आसानी से फंसने वाली नहीं थी। और फिर नीना का पति भी नीना पर डोरे डालने नहीं देगा। अगर कभी कुछ ऐसा वैसा हुआ तो मेरे पास भी ब्रह्मास्त्र था। नीना का पति राज तो मेरा दीवाना था ही। उसको तो मैं अपनीउँगलियों पर नचा सकती थी। उसको फाँसने में मुझे ज्यादा कुछ करना नहीं पड़ेगा। मेरे पति की नीना को फांसने की नादान हरकतों पर मुझे मन ही मन हँसी आ रही थी। मैंने मेरे पति की हरकतों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
उस कार्यक्रम के बाद हम दोनॉ जोड़ोँ का एक दूसरे के घर आने जाने का एक हफ्ते में एक बार तो होता ही था। कभी कभी हम दो बार या कभी कभी तो तीन बार भी मिल लिया करते थे। मैंने महसूस किया की मेरा पति अनिल नीना की और आकर्षित तो था, पर नीना से डरता था। अनिल ने एक बार मुझे जाने अनजाने में कह दिया था की उस दिन वह नीना के घर गया था। राज घर में नहीं था। अनिल जोधपुर से कोई हेंडीक्राफ्ट की दो लकड़ी की मूर्ति लाया था। उसमें से एक उसने हमारे घर में शो केस में रखी था और दूसरी वह नीना को भेंट करना चाहता था।
जब वह मूर्ति उसने नीना को देना चाहा तो नीना ने मेंरे पति को ऐसी फटकार लगाई की उसकी सूरत रोनी सी हो गयी। नीना के घर से जब वह वापस आया तो मैं मेरे पति को देखते ही भांप गयी की मेरे ठर्कु पति को अच्छी लताड़ पड़ी थी। मैंने उसे समझाया की अगर उसे गिफ्ट देनी ही थी तो राज के घर में होते हुए देनी चाहिए थी। एक औरत घरमें अकेली हो और उसे कोई गिफ्ट देना चाहे तो वह तो उसका गलत मतलब निकालेगी ही।
अनिल झुंझलाया हुआ था। वह बोल पड़ा की नीना ने ठीक नहीं किया। अनिल ने मुझसे पूछा की अगर राज मुझे ऐसे गिफ्ट देता तो क्या मैं मना करती? मैं सोच में पड़ गयी। तब अनिल ने मुझे कहा की अगर राज मुझे कोई गिफ्ट देता है तो मैं उसे मना न करूँ। मैं इसे सुनकर हंसने लगी। क्योंकि मुझे तो गिफ्ट लेना बहुत ही पसंद था। दिवाली में जो थोड़ी बहुत गिफ्ट आती थी तो मैं उनको बड़ी सम्हाल कर रखती थी। मैंने अनिल से कह दिया की मैं तो भई कभी कोई गिफ्ट के लिए मना नहीं करूँगी। मैंने मेरे पति से कहा की मैं नीना से भी बात करुँगी की उस ने अनिल का गिफ्ट क्यों नहीं लिया।
मैं यह भली भांति जानती थी की यदि अनिल ने नीना को पाने की ठान ली, तो येन केन प्रकारेण वह नीना को अपने जाल में फांस ने की क्षमता रखता था। पर नीना ने भी शायद मेरे पति की नियत पहले से ही भांप ली थी। मैं उतना तो जान गयी थी की नीना एक मजबूत चरित्र वाली स्त्री थी। वह अनिल को ऐसी वैसी हरकत नहीं करने देगी और आसानी से मेरे पति की चाल में फंसने वाली नहीं थी। इस वजह से मैं पूरी तरह से आश्वस्त थी।
वैसे नीना का पति भी काफी स्मार्ट था। मुझे वह एक अच्छा सीधा सादा और भला इंसान लगा। अनिल की तरह वह ज्यादा चालु नहीं लग रहा था। उस दिन भी डांस में हालांकि उसने मुझसे शारीरिक स्पर्श करने की चेष्टा तो की पर और ज्यादा कुछ करने की या कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। बेचारे का लन्ड उसकी पतलून में फूला जा रहा था। खैर कुछ दिन ऐसे ही बीत गए।
मुझे मेरा घर ज़रा भी अव्यवस्थित हो यह बिलकुल पसंद नहीं था। अनिल इस मामले में एकदम निखट्टू था। मुझे यह पसंद नहीं था की घरमें कोई भी उपकरण खराब हो। मेरी शादी के पहले मैं यह उम्मीद रखती थी की अगर मेरा पति इंजिनीअर होगा तो घर की सारी चीजों को रिपेयर तो कर सकेगा। पर मेरी वह आस सफल नहीं हुई। अनिल उस मामले में भी निकम्मा था।
परंतु राज के संपर्क में आनेसे पता चला की वह न सिर्फ इंजीनियर था बल्कि वास्तव में उसे घरके यांत्रिक उपकरणों के बारेमें अच्छा खासा ज्ञान था और वह टीवी, फ्रिज, धुलाई की मशीन इत्याद्दी की छोटी मोटी क्षतियों को रिपेयर भी कर लेता था। मुझे वास्तव में तब नीना की ईर्ष्या हुई। काश मेरा पति अनिल भी ऐसा होता।
पर जब राज ने यह सामने चल कर कहा की, “मुझे यदि कोई उपकरणों के विषय में परेशानी है तो आप मुझे कभी भी बुला सकती हैं; यहाँ तक की आप मुझे आधी रात को भी बुला सकती हैं।” तब मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। घरमें इतने सारे उपकरण हैं। कभी न कभी कोई न कोई तो बिगड़ता ही है ना?
फिर तो राज का अकेले मेरे घर आना जाना बढ़ गया। अनिल राज को कई बार कुछ न कुछ ठीक करने के लिए बुला लेते। एक बार शाम को मैं जब टीवी की मेरी मन पसंद सीरियल देखने बैठी और मैंने टीवी चालु किया तो वह चालू हुआ ही नहीं। मैंने और अनिल ने बड़ी कोशिश की पर टीवी ऑन ही नहीं हुआ। उस रात को कोई ख़ास प्रसंग था और मैं अनिल के साथ बैठ कर वह प्रोग्राम देखना चाहती थी। मैंने अनिल को भी उसके लिए तैयार किया था। मैं बड़ी निराश हो गयी। तब अनिल ने राज को बुलाने के लिए कहा।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की राज ने आते ही चन्द मिनटों में टीवी को ठीक कर दिया। जब मैंने पूछा की क्या हुआ था, तब उसने कहा टीवी की मुख्य तार प्लग के अंदर से टूटी हुई थी। यह बात मेरे पति की समझ मैं क्यों नहीं आयी यह मेरी समझ से बाहर था। खैर मैं उस रात राज की बड़ी ऋणी हो गयी। इतनी देर को आना और हमारा टीवी ठीक कर देना मेरे लिए एक अत्यंत सौहार्द पूर्ण चेष्टा थी। उस रात हम सब ने (अनिल ने और मैंने राज को आग्रह कर रोका और) साथ में बैठ कर वह प्रोग्राम देखा।
उस रात मेरे पति अनिल कुछ ज्यादा ही रोमांटिक मूड में लग रहे थे और उस रोमांचक टीवी प्रोग्राम देखते हुए राज के सामने ही मुझे अपने करीब बिठाकर कभी मेरा हाथ तो कभी मेरी गर्दन चूमने लगे। एक बार तो मेरे पीछे घूम कर मेरी पीठ को चूमने लगे। मुझे बहोत अच्छा तो लगा पर राज के सामने ऐसा करना थोड़ा सा अजीब सा लगा। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
राज के चले जाने के बाद जब मैंने मेरे पति से पूछा की उन्होंने राज के सामने ऐसा क्यों किया तो वह बोले इसमें कौनसी बड़ी बात थी। अरे भाई वह अपनी पत्नी से ही तो प्यार कर रहे थे। अनिल ने यह भी कहा की राज और नीना हमारे अंतरंग मित्र हो गए थे। उनसे पर्दा क्या करना। अनिल ने मुझे हिदायत दी की ऐसा करने पर मुझे ज़रा भी बुरा मानने का कोई कारण नहीं था। बल्कि मेरे पति चाहते थे की हम राज और उसकी पत्नी को भी यह हमेशा दिखाएं की हम पति पत्नी एक दूसरे से कितना प्यार करते थे। इससे राज को भी अपनी पत्नी से और प्यार करने की प्रेरणा मिलेगी। मुझे मेरे पति का तर्क सही लगा, क्योंकि कुछ सालों के बाद पति पत्नी के प्यार में कुछ कमी जरूर आ जाती है।
ऐसा सिलसिला चालु हो गया। मेरे घर में कभी टीवी तो कभी फ्रिज तो कभी वाशिंग मशीन जब भी बिगड़ते तो अनिल राज को बुला लेते और ज्यादातर यह रात को ही होता। मैं कई बार सोचती थी की पहले तो यह सब इतनी जल्दी खराब नहीं हुआ करते थे। अक्सर मेरे पति राज को बिठा लेते और हम इधर उधर की गप मारते या टीवी देखते। हर बार मेरे पति जरूर राज के सामने ही मुझसे प्यार करने लगते और राज को यह दिखाने की कोशिश करते की वह मुझे कितना प्यार करते थे। मैं भी उनका साथ देने लग गयी क्योंकि अनिल मुझे कहते थे की राज और उसकी पत्नी नीना के बिच कई बार घर्षण होता था और अनिल चाहते थे की राज हम से प्रेरणा ले और उसकी बीबी से ज्यादा प्यार करे।
एक दो बार राज नीना को लेकर आये। तब तो मेरे पति का मूड और भी उत्तेजना पूर्ण हो जाता। वह मुझे अपनी गोद में बिठा देते और कुछ ज्यादा ही बेतकल्लुफ हो जाते थे। वह राज को भी नीना से हमारे सामने ही प्यार करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे और राज भी नीना के संग थोड़ी बहुत छूट लेने लग गए। शुरू शुरू में नीना अड़ जाती थी पर बादमें वह समझ गयी की पतियों को एक दूसरे के सामने प्यार करने में ज्यादा ही आनंद आता था तो वह भी साथ देने लगी।
एक रात तो मेरे पति अनिल ने हद ही कर दी। मैं रोज शाम को वाशिंग मशीन चलाती थी। रात को करीब दस बजे जब मैं मशीन चालु करने लगी तो पाया की हमारी वाशिंग मशीन चल नहीं रही थी। तुरंत अनिल ने राज को फ़ोन किया। नीना ने फ़ोन उठाया और राज को भेजा। हर बार की तरह राज ने कुछ ही समय में मशीन ठीक कर ली तब तक अनिल ने राज को थोड़ी व्हिस्की के लिए आग्रह किया। दोनों पीने बैठ गए। मैं उन्हें कुछ नाश्ता देकर अनिल के साथ जा बैठी। अनिल ने मुझे आग्रह किया की मैं भी उसकी गिलास मैं से कुछ घूंट पी लूँ। दोनों के आग्रह करने पर मैंने भी कुछ चुस्कीयाँ ली। उस रात अनिल ने राज के सामने ही मेरे बदन को सहलाना और एक बार तो मेरे स्तनों पर हाथ फिराना शुरू कर दिया।
मुझ पर भी हल्का सा नशा छाया हुआ था। मैंने कुछ विरोध जरूर किया, पर अनिल ने मेरी एक न सुनी और मुझे होठों पर चुम्बन देने लगे और राज से मेरे रसीले होंठ, कमसिन बदन, कसे तने स्तनों और मेरे सुआकृतिमय कूल्हों की खुली प्रशंषा करने लग गए। काफी जद्दोजहद के बाद भी जब अनिल मुझे छेड़ने से बाज़ न आये और मुझे विरोध न करने की हिदायत देने लगे। तब मैंने भी चुप रहकर अनिल का विरोध करना बंद किया और जो वह करते रहे उसे स्वीकार करती रही। तब अनिल ने राज को मेरे स्तनों आकर छूने का आवाहन दिया। मैं एकदम सकपका गयी। मेरे पति की यह बात मुझे कतई अच्छी नहीं लगी। पर राज ने अनिल की बात नहीं मानी। राज वहीँ बैठे रहे और मुझे छुआ भी नहीं। अगर उस समय राज मुझे छू लेते तो मैं कुछ भी नहीं कर पाती। मैं राज की इस अभिव्यक्ति पर मन ही मन वारी वारी सी गयी।
खैर ऐसे ही कुछ दिन चलता रहा। कुछ दिनों बाद अनिल का टूर का दौरा बढ़ने लगा। उनका काम का बोझ बढ़ गया। तब एक दिन मेरे पति अनिल ने मुझे कहा की यदि उसकी अनुपस्थिति में मुझे कोई भी दिक्कत होती है तो मैं भी राज को बुला सकती हूँ तब मुझे जैसे सब कुछ मिल गया। अनिल उन दिनों टूर पर बहुत ज्यादा रहता था।
एक दिन रात को दस बजे मुझे ध्यान आया की हमारे बाथरूम का नलका ज्यादा ही लीक कर रहा था। मैं राज को बुलाना तो चाहती थी पर बड़ा हिचकिचा रही थी।
इतनी रात को अकेले में घर बुलाना ठीक नहीं लग रहा था। पर क्या करती? मज़बूरी थी। यदि उस नलके को ठीक नहीं किया तो सुबह टंकी खाली हो सकती थी और फिर पुरे दिन पानी के बगैर क्या हाल हो सकता था वह सोचने से ही मैं घबरा गयी। फिर अनिल और राज दोनों ने ही तो कहा था की मैं राज को कभीभी बुला सकती थी? यह सोच कर मैंने राज को रात करीब साढ़े दस बजे फ़ोन किया और राज थोड़ी देर के बाद आया। वह कुछ चाभियाँ और स्क्रू ड्राइवर इत्यादि लेकर बाथरूम में घुसा।
उस रात बिना कुछ सोचे समझे मैं भी राज के साथ बाथरूम में घुसी। मैं देखना चाहती थी की आखिर समस्या क्या है, और राज उसे कैसे ठीक करता है। छोटे से बाथरूम मैं मुझे राज से सटकर खड़े रहना पड़ा। उस की साँसे मैं महसूस कर रही थी। उसके थोडासा हिलने पर उसकी कोहनी मेरे स्तन पर टकरा जाती थी। मेरे बदन में अजीब सो रोमांच हो रहा था। कई महीनों या सालों के बाद मुझे ऐसा रोमांच महसूस हुआ। मेरे स्तनोँ में जैसे बिजली का करंट बह रहा हो ऐसा मुझे लग रहा था। मेरे बदन में एक के बाद एक सिहरन की मौजें उछाल मार रही थी।
तीन सालों से अनिल से मानसिक और शारीरिक उदासीनता के कारण मेरा अंतःस्राव रुक सा गया था। राज की निकटता से जैसे सारा इकठ्ठा हुआ वह अंतःस्राव जो उदासीनता के बाँध के कारण सालों से रुंधित था उसमें दरार पड़ गई गयी और वह कोई न कोई रूप में बून्द बून्द रिसना शुरू हो गया। सालों के बाद फिरसे मेरे मनमें वह जातीयता की मचलन उजागर होने लगी।
मेरे यह भाव को आप अनैतिक कह सकते हैं। मैं भी समझती थी की ऐसा विचार करना भी पाप था। यह समझते हुए भी मैं रोमांच अनुभव कर रही थी। मैं शायद राज को एक तरह से चुनौती दे रही थी। एक सुन्दर स्त्री जब अकेले में एक युवा पुरुष को अपने स्तनोँ को बार बार सहज रूप से छूने दे तो मतलब तो साफ़ ही है न?
तब अचानक राज के हाथ से कुछ छूट कर निचे गिर ने के कारण पाइप में से पानी का फव्वारा छूटा। पानी का जोश इतना तेज था की राज और मैं दोनों ही देखते ही देखते पूरे भीग गए। मेरे हाल तो बिलकुल देखने लायक थे। उस रात को मैं सोने जा रही थी इस लिए मैंने मात्र मेरी नाइटी पहनी थी और अंदर कुछ नहीं पहना था। जब राज आया तो मैंने अपने कंधे पर चुन्नी डाल दी थी, ताकि मैं अपने बड़े स्तनोँ को कुछ हद तक छिपा सकूँ।
पानी के फव्वारे के कारण न सिर्फ मेरी चुन्नी उड़ गयी, बल्कि मेरा पूरा बदन पानी में सराबोर भीग गया, और मेरी पतली नाइटी मेरे बदन पर ऐसे चिपक गयी की ऐसा लग रहा था जैसे मैंने कोई कपडे पहने ही नहीं थे। मेरे पति के ख़ास दोस्त के सामने मैं जैसे नंगी खड़ी हुई थी। लाज से मैं कुछ भी बोलने लायक ही नहीं थी।
कहानी पढ़ने के बाद अपने विचार निचे कोममेंट सेक्शन में जरुर लिखे.. ताकि देसी कहानी पर कहानियों का ये दोर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।
राज का हाल देखते ही बनता था। उसके मुंह पर हवाइयां उड़ रहीं थीं। एक बुद्धू की तरह वह एकटक मेरे स्तनोँ को ताक रहा था। मैंने जब अपनी छाती को देखा तो समझी। मेरी निप्पले साफ़ साफ़ दिख रहीं थीं। ठण्ड और भीगने के कारण मेरी निप्पले खड़ी सख्त होगयी थीं। मेरे सख्त बड़े स्तन जैसे राज को चुनौती दे रहे थे।
मैं जान गयी की अगर मैं थोड़ी देर और वहां उस हाल में खड़ी रही तो मेरी शामत आना तय था। राज की नजरें मेरे बदन को ऐसे तक रही थीं जैसे एक भूखा प्यासा आदमी गरम, स्वादिष्ट और सुगन्धित पकवान को सामने सजाये हुए रखा देख कर ललचाता है।
मेरी जांघें पूरी नंगी दिख रही थीं। मेरी जांघों के बिच का उभार और मेरी योनि की मध्य रेखा पर फैले हलके बाल भी दिख रहे थे। मैं अपने नितम्ब नहीं देख पा रही थी। पर मुझे राज की नजर से पता लग गया था की वह भी उसकी आँखों को ठंडक और लन्ड को तेज गर्मी दे रहे होंगे। अनायास ही मेरी नजर राज के पाँव के बिच गयी। उसने भी पाजामे के निचे कुछ नहीं पहना था। मुझे उसके पाँव के बिच उसका खड़ा लन्ड नजर आया।
मैं कुछ सोचूं उसके पहले राज अपनी जगह से फव्वारे से बचने के लिए खिसका। मेरा पाँव पीछे रखी बाल्टी में फंस जाने की वजह से मैं लुढ़क कर राज पर जा गिरी। मुझे गिरने से रोकने के लिए राज ने अपनी बाँहोंसे मुझे पकड़ लिया और मैं जैसे ही फिसलने लगी तो मुझे कमर से पकड़ कर उठा लिया। पर गीले कपड़ों के कारण उसका हाथ मेरे स्तनों पर जा पहुंचा। स्वभावतः ही उसकी उंगलियां मेरे स्तनों को दबाने को मजबूर हो गयी। है राम, उस समय मेरी निप्पलें दबवाने और सहलवाने के लिए जैसे बेबाक थीं और पुरे अटेंशन में सख्त कड़क थीं। मेरी लंबी निप्पलों को जैसे राज ने ताकत से अपनी उँगलियों में पिचकाया की मैं आधी उन्माद और आधे भय से कराह उठी, “आअह्ह्ह… ओह्ह ….”
आप सब मुझे प्लीज इस ईमेल पर अपनी टिपण्णी जरूर भेजें मेरी मेल आई डी है “[email protected]”.
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