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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्रणाम.. मैं अपने आपका आपसे परिचय करवा देता हूँ। मेरा नाम महेन्द्र है.. मैं जोधपुर (राजस्थान) के एक गाँव का निवासी हूँ। यह बात 2014 की है.. मुझको किसी कारण बस मुम्बई निकलना पड़ा। मैंने रात्रिकालीन जोधपुर से चलने वाली सूर्यनगरी ट्रेन का स्लीपर का टिकट अपने मित्र से मंगवा लिया और अपनी यात्रा आरम्भ कर दी।
मुझको तीन लोगों वाली सीट मिली जिस पर दो लोग पहले से ही बैठे थे। मैं अपनी सीट पर बैठ गया, जोधपुर से ट्रेन रवाना हो गई.. करीब 8 बजे ट्रेन पाली पहुँची।
यहीं से शुरू हुई मेरी कहानी।
एक जोड़ा ट्रेन में हमारे डिब्बे में चढ़ा और वे दोनों सीधे हमारी सीट की ओर आए। उन्होंने आते ही मेरे बाजू में बैठे लोगों को वहाँ से हटने को बोला- यह सीट हमारे नाम पर रिजर्व है।
लेकिन बजाय उठने के, वे लोग इसका उल्टा उस जोड़े से झगड़ने लगे। काफी देर हो गई झगड़े को शुरू हुए। और मैं आप को बता दूँ कि किसी और के झगड़े में टाँग अड़ाने की एक आदत जो मेरी ठहरी.. तो भला मैं कैसे पीछे रह जाता तो मैं भी अब लगाने लगा कि ‘ऐसे ये लोग मानने वाले नहीं हैं।’ यह कहते हुए मैं अपनी सीट से उठा और उन दो लड़कों से उलझ पड़ा।
वो दोनों सीट छोड़ कर आगे चले गए। अब उन दोनों ने ही मुझे धन्यवाद कहा और अपनी सीट पर वे दोनों बैठ गए।
मैंने भी हल्की सा मुस्कान दी और अपने फोन में फिर से मस्त हो गया। मैं खिड़की के पास बैठा था और मेरे बाजू में उस जोड़े वाली औरत बैठी थी। उसे देखने से लग रहा था कि अभी इनकी शादी को मुश्किल से 4-5 महीने ही हुए होंगे।
करीब 1 घंटे बाद उसके पति ने मुझसे पूछा- आप कहाँ जा रहे हो? मैंने कहा- मैं मुम्बई जा रहा हूँ। उन्होंने कहा- हम भी मुम्बई जा रहे हैं।
इस तरह से हमने एक-दूसरे का परिचय दिया। फिर अंकल ने पूछा- क्या करते हो आप? ‘कुछ नहीं.. अंकल पढ़ाई कर रहा हूँ।’
कुछ देर बाद खाने का समय हुआ तो वे दोनों खाना खाने की तैयारी करने लगे साथ ही अंकल और आंटी ने मुझसे भी खाना खाने की रिक्वेस्ट की.. तो मैंने भी उनके साथ खाना भी खा लिया। इसके बाद अंकल ऊपर वाले बर्थ पर सो गए। हमारे सामने वाली बर्थ वाले भी सो गए और ठंड की वजह से सभी चादर शाल आदि ओढ़ कर सो गए।
आंटी और मैं एक-दूसरे से बातें करने लगे और बातों ही बातों में मुझे पता चला कि अंकल को शूगर की बीमारी है। अंकल को शूगर की बात कहते हुए वो धीरे-धीरे रोने लगी।
मैंने ढांडस बंधाते हुए उनके हाथ पर अपना हाथ रखा। इधर मेरा हाथ रखने का हुआ और आंटी मेरे गले से लग कर रोने लगीं, मेरे तो शरीर में मानो तूफान उठ आया। मैंने भी उनको अपनी बाँहों में लेते हुए अपना एक हाथ उनकी कमर पर और दूसरा हाथ उनके सर पर फेरना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में उसका रोना बन्द हो गया और उसने भी अपना हाथ मेरी कमर सहलाने में चालू कर दिया।
अचानक उसने मेरे मुँह पर फूल से भी कोमल होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। तो मैं भी कहाँ पीछे रहने वाला था.. मैं भी मस्ती से उनके रसीले अधरों को पीने लगा। करीब पाँच मिनट तक हम दोनों ने एक-दूसरे के होंठ चूसते रहे।
अब मेरे हाथ ने आंटी के मम्मों पर अपना कमाल शुरू कर दिया। आंटी तो एकदम गरम हो गईं और मेरे हथियार के ऊपर अपने कोमल हाथ फेरने लगीं।
आपको बता देता हूँ कि मेरा हथियार 6.5″ 2.5″ का है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि भले ही आपका लिंग साईज में छोटा हो.. कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है इस बात से कि आप कितने समय तक आप उसकी बजाते हैं। बजाने में भी हमारी भावनाओं का ही रोल होता है। जितने हम दिमागी तौर पर मजबूत होंगे.. तो चुदाई का वक्त आपके मुठ्ठी में रहेगा।
तो चलते हैं अपनी बात की ओर.. फिर मैंने आंटी को 69 में होने को कहा और हम 69 में लेट कर ऊपर से एक चादर ओढ़ ली।
फिर धीरे से मैंने उनका पजामा और पैन्टी एक साथ नीचे खींच लिए। उसने भी मेरा पैन्ट और कच्छा उतार दिया। फिर वो धीरे-धीरे मेरे लण्ड के सुपारे पर पानी जीभ चलानी शुरू कर दी। दोस्तों मैं बयान नहीं कर सकता कि कितना आनन्द आया।
फिर धीरे-धीरे वो मेरा पूरा लण्ड गटक गई.. तो मारे चुदास के मेरे लण्ड की नसें फटने लगीं। मैंने जैसे ही उसकी फोकी (फुद्दी) के पास अपना मुँह लेकर गया तो मैं उसकी महक से पागल हो गया और मैं मचल कर उसकी चूत चाटने लगा। करीब 10 से 15 मिनट तक उसकी मैं उसकी फुद्दी और वो मेरा लण्ड चाटती रही।
अचानक उसने मेरे सर को कस कर टाँगों में पकड़ लिया और मेरे मुँह में अपना नमकीन मादकता से भरा पानी छोड़ दिया और मैं भी उसकी चूत का सारा पानी सफाचट कर गया। एक लम्बी सी गुदगुदी के साथ मैंने भी उसके मुँह में अपना पानी छोड़ा। साला आज तो गजब का पानी निकला.. मुठ्ठ मारने पर तो कभी इतना पानी नहीं निकला था।
ये क्या देखा कि मेरे लवड़े का सारा पानी गटकने के बाद भी वो मेरा पप्पू चूसे जा रही थी और इसी वजह से लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।
अब हम बर्थ पर कपड़े ठीक करके हम दोनों ने टॉयलेट में जाने का तय किया। हम दोनों एक ही टॉयलेट में घुस गए औऱ मैं अन्दर आते ही उस पर उस पर किसी भूखे शेर की तरह टूट पड़ा। हम दोनों ने अपने पूरे कपड़े उतार दिए औऱ चूमाचाटी में जुट गए। कामोत्तेजना इतनी अधिक थी कि हमारे शरीर के कुछ ही हिस्से चूमने से बाकी छोड़े थे, बाकी सारे हिस्से चूम चुके थे। अब तो मेरा लण्ड जबरदस्ती अपनी फुद्दी पर टिका रही थी।
मैंने भी देर ना करते हुए घोड़ी बनी हुई आंटी की फुद्दी पर.. औऱ लौड़े पर थूक लगाया.. लौड़े को पाँच-दस बार फुद्दी की दरार में रगड़ा औऱ फुद्दी पर सैट करते हुए उसके मुँह पर हाथ रखा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
फिर मैंने उसकी चूत पर एक जोरदार धक्का लगा दिया। खून की धार निकल आई औऱ लौड़ा पूरा अन्दर ठोक दिया। दर्द के मारे उसने मुँह पर रखे हुए मेरे हाथ की उंगली में हल्के से दांत गड़ा दिए। जब उसका दर्द कम हुआ तो फिर धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगे।
फिर हम दोनों ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ ली.. अब तो कस कस के पेल रहा था। वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी। आंटी के मुँह से ‘आआआआ.. आहहह.. और जोर.. आज पता चला कि सुहागरात कैसी होती है।’ शायद दो-तीन बार उसका काम हो चुका था।
करीब 15 मिनट हो गए थे, मैंने कहा- अब मैं अपने आपको नहीं रोक पा रहा हूँ। तो उसने कहा- अन्दर ही निकाल दो… आज से तुम मेरे असली पति वाला काम किया है।
बस थोड़ी ही देर में मैंने उसकी फुद्दी को पानी से भर दिया, कपड़े पहने औऱ हम दोनों एक-एक कर के टॉयलेट से बाहर आ गए.. बाहर कोई नहीं था। वो थोड़ी लंगड़ा कर चल रही थी, ऐसा पहली बार उसकी जोर की चूत चुदाई कारण हुआ था औऱ हम दोनों वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गए।
उसके साथ मैंने जो भी किया था, उसमें उसके पति की सहमति थी.. यह बात उसके घर पर जाने के बाद बताई।
फिर उसके साथ मैं उसके घर भी गया। अब जब भी मौका मिलता है। मैं आंटी की प्यास बुझाता हूँ बल्कि अब तो महीने में पाँच दिन वहीं रहता हूँ।
इसके बाद कैसे मैंने उसकी सहेली को बजाया औऱ उसकी गोद भी भर दी.. ये बताऊँगा.. लेकिन अगली बार.. दोस्तो, कैसी लगी मेरे साथ घटित ये घटना? मुझे ईमेल पते पर अपनी प्रतिक्रिया भेजें। [email protected]
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