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मैं अंधेरी के जिस हास्पिटल में काम करती थी.. उसके मैनेजर का नाम था दिलीप शर्मा.. वो एक मिलिट्री का रिटायर्ड फौजी था, मस्त खाता- पीता इंसान था और प्रत्येक रात को किसी न किसी नर्स को गोद में लेकर सोता था। मेरी भी दिली ख्वाइश थी कि मैं भी एक बार उसके नीचे बिछ जाऊँ और मैंने उसके लण्ड की जो तारीफ सुनी है.. उसके दीदार करूँ। लेकिन वो साला मुझे भाव नहीं देता था।
एक दिन की बात है.. मैं थोड़ी परेशान थी। पैसेज में से जा रही थी.. अचानक सामने से शर्माजी आते हुए दिखे। मेरे जेहन में एक विचार आया कि चलो आज इनको बुला ही लेते हैं.. देखें तो लड़कियाँ इनके नीचे सोने के लिए इतनी लालायित क्यों रहती हैं।
मैं थोड़ा रुक गई और उनकी पैन्ट की जिप की तरफ देखने लगी, वह कुछ उभरा-उभरा सा लग रहा था, अभी-अभी शायद प्रभा की चूत मार के आ रहा था।
प्रभा थी भी बड़ी सेक्सी लड़की… बहुत बड़ी चुदक्कड़ थी साली… चुदने के मामले में एक नंबर की चुदैल थी। किसी भी आसन से चोदो.. हमेशा तैयार रहती थी। चूत.. गाण्ड.. मुँह.. कुछ भी चोद लो.. उसे कुछ भी चलता था। कई बार तो तीन-तीन को एक साथ ले लेती थी, ग्रुप सेक्स में उसका बड़ा इंट्रेस्ट था। वो खुद ही कहती थी कि तीन जब एकदम ऊपर चढ़ते हैं ना.. तो सारी खुजली एकदम मिट जाती है।
आज तो मेरी चांदी थी, शर्माजी सीधे मेरी तरफ ही देख रहे थे, मेरा पल्लू मेरे कंधे पर रुकने को तैयार ही नहीं था, मेरे दो कबूतर जैसे मसले जाने के लिए लालायित थे। नीचे का चीरा लगा पाव जैसे खोदे जाने के लिए उत्सुक था।
‘क्यों रे रानी.. आज कोई काम नहीं है क्या..?’ शर्माजी ने पूछा। ‘हाँ.. बस जा रही हूँ.. आज थोड़ी लेट हो गई।’ ‘क्यों कहाँ गई थी?’ ‘मेरी मौसी के यहाँ..’ ‘अच्छा फिर..??’
मैं मन ही मन सोचने लगी कि कह दूँ कि मौसी के यहाँ से तुझसे चुदने के आ गई हूँ.. पर नहीं बोल सकी। शर्माजी ने मेरी तरफ देखा और एक आँख थोड़ी दबाकर बोले- मेरे केबिन में चलो.. थोड़ा ‘काम’ है तुमसे..। मैं समझ गई कि शर्मा आज मेरा नंबर लगाने वाला है। हाय… आज तो मेरी चूत की लॉटरी लगने वाली थी। शर्माजी ने कह कर मेरा हौसला और भी बढ़ा दिया था।
मैं झटपट बाथरूम में घुसी ‘हाँ बस अभी आती हूँ.. बाथरूम जाकर..’ यह कहकर मैं बाथरूम भागी।
वहाँ अपनी पैंटी निकाल कर मैंने मेरी नीचे की धोई, साबुन लगाकर मैंने उसे साफ़ किया, मेरे पास लेडीज रेजर था.. मैंने झांटों पर रेजर फिराया। पावडर वगैरह लगाकर मैंने चेहरा दर्शनीय बनाया। ब्रा उतार कर मैंने अपने पर्स में रख दी.. ताकि मेरे चूचों को दबाते समय शर्माजी को तकलीफ ना हो।
अपनी कमर लचकाती हुए मैं शर्माजी के केबिन की तरफ जाने लगी। बीच में मुझे प्रभा मिली.. उसने मेरी तरफ देखा तो उसे खुद ही पता चल गया कि आज अब मेरी बारी है। ‘बेस्ट ऑफ़ लक’ कह कर वह हँसते हुए चली गई।
मेरी चूत में आज बड़ी खुजली हो रही थी। चूत पनिया जाना कैसे होता है.. ये मुझे आज मालूम पड़ रहा था।
शर्माजी के कमरे की तरफ जाते हुए मेरी चूत में खलबली मची हुई थी। क्या करेगा आज वो? क्या सीधे-सीधे मुझे चोदेगा या फिर मेरी ऐसी की तैसी करेगा? उसका लण्ड कैसा होगा? क्या मेरी भूख को शांत कर पाएगा? सवालों पर सवाल मेरे मन में घुमड़ते जा रहे थे।
शर्माजी के कमरे के लिए मेरे पैरों को जैसे पर लग गए थे, कमरे में घुसते ही शर्माजी ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो गरम-गरम होंठों का स्पर्श.. जैसे मेरे तनबदन में आग लगा गया। ‘इस्स्स्स्स.. हाँ..’ करते हुए मैंने अपने हाथों को शर्माजी के इर्द-गिर्द लपेटा और फिर जैसे ही कमरे में वासना का तूफ़ान उमड़ा। शर्माजी ने धीरे से मेरे बदन से मेरी साड़ी का पल्लू उतार कर मेरे मम्मों पर से ब्लाउज को उतार दिया। मैंने अपने मम्मों पर से मेरी ब्रा खुद ही उतार दी।
शर्माजी ने अपने पैंट की जिप खोल कर अपना हलब्बी लण्ड बाहर निकाला। मेरी सांस जैसे अटक ही गई.. करीब-करीब साढ़े सात इंची का.. दो इंच डायामीटर वाला उसका लण्ड जो बाहर निकला.. तो मुझे भगवानदास की याद आई।
भगवानदास का भी लण्ड इसी प्रकार का था, तब तो मैंने उससे चुदने से पहले ही लण्ड चूसकर भगा दिया था लेकिन आज इस आफत को मैंने खुद बुलाया था। शर्माजी का मस्त-मौला लण्ड मेरी आँखों में नाचने लगा.. सपने में चूत की वो कुटाई करने लगा कि मैं तो मानो आसमान में उड़ने लगी।
पहला हल्का शॉट होने के बाद शर्माजी ने मुझे पेट के बल पर लिटाया। मेरे दोनों पुठ्ठों के बीच आकर मेरे पुठ्ठों को फैलाया। ‘हाय अब करने वाला था.. मेरी गाण्ड के छेद पर उसने थूका और गाण्ड के छेद में अपनी बीच की उंगली डाली। ‘स्स्स्स्सहाय..’ मैं उचकी.. उसकी उंगली ने जैसे एक बिजली का 440 बोल्ट का झटका दिया था मेरी गाण्ड में.. साला बहुत बड़ा चुदक्कड़ था।
मैं भी चुदने के मामले में कोई कम नहीं थी, आज तक एक से एक तगड़े लंडों का रिसाव मेरी चूत के अन्दर हुआ था। मगर मेरी गाण्ड किसी ने नहीं मारी थी, ये शर्मा तो आज मेरी गाण्ड मारने की तैयारी कर रहा था। मैंने गाण्ड को इधर-उधर किया, ‘उउउउह..’ करते हुए उसे मना भी किया। लेकिन वो कहाँ मानने वाला था, आज मेरी गाण्ड फटने वाली थी.. तो फटने वाली थी। शर्माजी हँस पड़े- अरे छिनाल.. तेरी गाण्ड के छेद को बड़ा करना है ना रांड.. चल उलटी सो जा.. अब तेरी गाण्ड की बारी है।
मुझे सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करूँ..? तो मैंने पानी का गिलास उठाया और अपनी गाण्ड के छेद पर पानी डाला। ‘मादरचोदी.. गाण्ड पर पानी क्यों डाल रही है..?’ शर्माजी ने पूछा। मैंने कहा- आपका मूसल लण्ड मेरी गाण्ड के छेद को फाड़ देगा ना.. इसलिए उसे गीला कर रही हूँ।
उसने दराज में से तेल की बोतल निकाली। मेरी गाण्ड के छेद में उसमें से तेल उड़ेलते हुए बड़ी गन्दी-गन्दी गालियां बकते हुए उसने मेरी गाण्ड के छेद में उंगली डाली। ‘स्स्स्सस हाँ..’ करते हुए मैंने उसे सहन किया। साले ने पहले एक उंगली डाली.. अन्दर पूरा तेल लगाया.. फिर दूसरी उंगली साथ-साथ डाली और अन्दर-बाहर करने लगा। अब मैं तैयार हो चुकी थी।
उसने पुठ्ठों को फांक कर उसके छेद में लण्ड का सुपारा भिड़ाया, पहला धक्का मारा.. तो मैं चांद पर पहुँच गई… बाप रे, कितना दर्द हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे वो दर्द कम होता गया, अब गाण्ड के छेद में लण्ड का आना-जाना जैसे सहूलियत भरा लग रहा था।
मजा भी बहुत आ रहा था.. मेरी सारी इच्छाएं जैसे पूरी हो रही थीं। चाटना चूमना.. चूसना.. चोदना.. गाण्ड मराना.. मेरी बहुत सारी इच्छाएं थीं कि कोई मेरी गाण्ड में लण्ड डाल कर मेरी गाण्ड का छेद खोल दे। आज शर्माजी ने वही किया मेरा गाण्ड का छेद खोल दिया, अब मैं पूरी तरह से तैयार माल थी, किसी से भी चुदवाने को तैयार हो गई थी। लेकिन वो ऐसे मूसल लण्ड से मेरी गान्ड की ओपनिंग होगी.. यह कामना मैंने भी नहीं की थी कि साढ़े सात इन्च का ये मूसल लण्ड जब मेरी गाण्ड में जाएगा तो मेरी गाण्ड फाड़ेगा।
तभी शर्मा बोला- साली छिनाल.. रांड.. लौड़े का माल.. चल तेरी गाण्ड और चूत एक साथ ही मारूँगा। मेरी समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये दोनों एकदम कैसे मारेगा? ‘कैसे?’ मैंने पूछा.. तो वो हँस दिया- देख मेरे लण्ड का जादू..
यह कहानी कुछ सच्ची घटनाओं पर आधारित है.. लेकिन मैंने लेखन स्वतंत्रता का सहारा लेकर इसमें मिर्च-मसाला भरा है.. इसे अन्यथा न लें। आपके ईमेल संदेशों का इन्तजार रहेगा। कहानी जारी है। [email protected]
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