चूत एक पहेली -57

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अब तक आपने पढ़ा..

पुनीत- ठीक है जानेमन.. जैसा तुम कहो.. मगर एक बार और तेरी चूत मारूँगा.. कसम से मन भरता ही.. नहीं तेरी चूत से.. पायल- हा हा हा हा.. आप तो मेरी चूत का आज भुर्ता बना के दम लोगे.. ठीक है भाई.. अब आपको मना नहीं करूँगी.. पर थोड़ा रेस्ट लेने के बाद आप आराम से चुदाई कर लेना.. पुनीत- वाहह.. ये हुई ना बात.. अच्छा अपनी हॉस्टल लाइफ के बारे में कुछ बताओ न.. तुम्हारे अन्दर ये बदलाव कैसे आया.. ये भी बताओ.. पायल ऐसे ही इधर-उधर की बातें करने लगी और पुनीत बस उसको सुनता रहा। एक घंटे तक दोनों बातें करते रहे.. उसके बाद पुनीत का मन दोबारा चुदाई का हो गया।

अब आगे..

पुनीत धीरे-धीरे पायल के जिस्म को सहलाने लगा। पायल ने नानुकुर की.. मगर पुनीत कहाँ ऐसी कच्ची कली को छोड़ता.. उसने पायल को मना ही लिया। इस बार वो सीधा लेट गया और पायल को ऊपर लेटा कर नीचे से झटके दिए, पायल भी मस्ती में आकर लौड़े पर कूदने लगी। लंबी चुदाई के बाद दोनों थक गए और नंगे ही एक-दूसरे से लिपट कर सुकून की नींद में सो गए।

सुबह का सूरज निकला.. पायल के लिए यह सुबह एकदम नई थी.. क्योंकि रात को उसकी अपने सगे भाई के साथ जो सुहागरात मनी.. उसके बाद तो उसके जीवन की यह पहली सुबह ही थी.. मगर अभी आप पायल को नहीं देख सकते.. वो कहाँ इतनी जल्दी उठने वाली है। सारी रात तो चुदाई करवा रही थी.. अब आराम से सो रही है.. तो चलो आपको कहीं और ले चलती हूँ।

सुबह के 7 बजे का वक्त था.. अर्जुन के हाथ में चाय थी, वो भाभी और निधि के पास जाकर उनको चाय देने लगा। तभी डॉक्टर वहाँ आ गया और उसने बताया कि आप रात को बहुत लेट यहाँ आए थे.. तो उनको यहाँ रुकने दिया है.. मगर अब कहीं पास में कोई होटल या धर्मशाला में कमरा ले लें.. मरीज के साथ बस एक आदमी ही यहाँ रह सकता है.. बाकी सब नहीं।

अर्जुन- डॉक्टर.. सब ठीक तो है ना.. हमको यहाँ कितने दिन रहना होगा? डॉक्टर- अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, हालत बहुत खराब है। आप कमरा किराए पर ले लो.. यही सही रहेगा.. एक हफ़्ता तो कम से कम यहाँ रुकना ही होगा.. आगे का अभी कुछ कह नहीं सकते..

डॉक्टर के जाने के बाद भाभी और निधि अर्जुन की तरफ़ देखने लगीं। भाभी- अर्जुन, हम तो यहाँ किसी को जानते भी नहीं हैं.. अब तुम ही किसी कमरे का कोई बंदोबस्त करो.. अर्जुन- चिंता मत करो.. मैं अभी कुछ न कुछ इन्तजाम करके आता हूँ.. आप तब तक चाय पिओ.. भाभी- मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ अर्जुन.. अर्जुन- जैसा आपको ठीक लगे.. चलो..

निधि- मैं अकेली यहाँ नहीं रहूँगी.. मुझे भी साथ ले चलो.. भाभी- अरे तू क्या करेगी साथ जाकर.. यहीं रुक.. तेरे भाई के पास बैठ ना.. अर्जुन- अरे आने दो.. रात से बेचारी यहीं तो बैठी है। भाभी- नहीं.. यहाँ कोई तो होना चाहिए ना.. हम कमरा देखने जा रहे हैं.. क्या पता ज्यादा वक्त लग जाए। निधि- अच्छा जाओ.. मगर जल्दी आ जाना.. कहीं दूर मत निकल जाना। अर्जुन- अरे चिंता मत करो निधि.. तुमको छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे..

वो दोनों वहाँ से बाहर निकल गए और आस-पास के लोगों से दुकान वालों से बात करने लगे.. कमरे के बारे में पूछने लगे.. अब इसे इत्तफाक कहो.. या कहानी की जरूरत कहो.. कि अपना बिहारी उन्हें वहाँ मिल गया, अब इसको तो आप जानते ही हो।

बिहारी- अरे का बात है.. तुम हियां-उहाँ का पूछ रहे हो.. ये बुड़बक तुमको कमरा नहीं दिला सकता.. हमरे पास आओ.. हम तुमको कमरा दे देंगे.. अर्जुन- अरे हाँ.. हमको कमरा ही चाहिए भाईजी.. आप दिला दोगे तो मेहरबानी होगी। बिहारी के पूछने पर अर्जुन ने सारी बात उसको बताई कि कैसे यहाँ आना हुआ और अब उनको कोई कमरा चाहिए ताकि कुछ दिन रह सकें.. बिहारी की नज़रें भाभी को घूर रही थीं.. वो अपने काले-काले होंठों पर ज़ुबान फिरा रहा था।

बिहारी- देखो भाई हमरा नाम है बिहारी बाबू.. इहाँ पूरे शहर में हमारा बहुत कमरा खाली पड़ा है.. मगर तुमको आने-जाने का दिक्कत ना हो.. तो भाई ये सामने वाली बिल्डिंग में हमरा एक ठौ फ्लैट खाली पड़ा है.. हॉस्पिटल के नज़दीक भी है.. तुम हियाँ रह सकते हो मगर… अर्जुन- मगर क्या बिहारी जी.. हमको तो बस एक कमरा चाहिए.. हम पैसे भी दे देंगे आपको.. बिहारी- अरे पैसों का बात ना है रे.. रात को हमरा कुछ सामान आएगा.. तुमको हमरे आदमी के साथ जाकर वो समान लाना है.. और उहाँ के फ्लैट के एक कमरे में वो रखने में हमार मदद करनी होगी.. बाकी तुम फ्री में इहाँ रह सकते हो.. हमको कौनऊ दिक्कत नाहीं होगी.. और जब तक तुम आओगे.. तोहार भाभी का ख्याल हम रख लेंगे.. समझ गए ना..

फ्री में रहने का नाम सुनकर भाभी खुश हो गई मगर अर्जुन तो पक्का खिलाड़ी था, वो समझ गया कि बिहारी के इरादे कुछ नेक नहीं हैं। अर्जुन- ठीक है बिहारी जी आप हमें कमरा दिखा दो.. रात से परेशान हैं.. हम थोड़ा आराम कर लें.. बिहारी- अरे इसमें सोचना कैसा.. चलो अभी दिखा देता हूँ..

बिहारी दोनों को ऊपर ले गया.. जो फ्लैट सन्नी ने उसको दिया था.. वही उसने इन दोनों को दे दिया। जाते वक्त वो अर्जुन को इशारे में समझा गया कि भाभी को मना लेना.. मैं शाम को आऊँगा.. ये कहकर वो वहाँ से चला गया।

भाभी- अरे रामा रे.. यह घर तो बड़ा ही शानदार है.. वो आदमी बहुत भला लगता है.. इतना अच्छा घर हमें मुफ्त में रहने दे दिया.. अर्जुन- भाभी अपने दिल से ये ख्याल निकाल दो.. ये शहर है गाँव नहीं.. यहाँ कोई किसी को मुफ्त में कुछ नहीं देता.. वो आपके इन बड़े-बड़े चूचों का दीवाना हो गया है.. इसलिए उसने ये मेहरबानी की है। भाभी- क्या बात करते हो.. अर्जुन तुम्हें कैसे पता? अर्जुन- उसकी नज़र मैंने देखी है.. आज शाम को आपका बैंड बजाने का उसका इरादा है.. भाभी- नहीं नहीं.. चलो यहाँ से.. हमें नहीं रहना यहाँ.. यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

अर्जुन- अरे क्या भाभी.. आप क्यों इतनी सीधी बन रही हो.. कर देना उसको भी खुश.. अब ऐसा अच्छा घर हमको और कहाँ मिलेगा.. अब मान भी जाओ.. भाभी- अरे कैसी बातें करता है.. मैं कोई वेश्या थोड़ी हूँ.. जो किसी के भी साथ सो जाऊँ.. ना बाबा ना.. और वैसे भी मेरे पति तो ऐसी हालत में है.. और मैं ऐसे काम करती रहूँ। अर्जुन- अरे भाभी.. मेरी जान.. तुझे पति की इतनी फिकर होती.. तो पहले ऐसे काम ना करती.. अब ज़्यादा सती-सावित्री मत बनो… ऐसा मस्त फ्लैट मिला है.. मज़ा भी करेंगे हम.. और अस्पताल के पास भी हैं.. मान जाओ.. वो बिहारी को खुश कर दो एक बार.. उसका काम भी बन जाएगा और हमारा भी…

भाभी- एक बात बताओ.. तुम इतने यकीन से कैसे कह सकते हो कि वो ऐसा ही चाहता है? अर्जुन- मेरी जान.. मर्दों की नियत का तुम्हें क्या बताऊँ.. कब किस पर खराब हो जाए.. कुछ कहा नहीं जा सकता। मैंने उसकी आँखों में तुम्हारे लिए हवस देखी है। भाभी- अच्छा अच्छा.. मगर निधि का क्या करोगे.. उसको इस बात का पता नहीं लगना चाहिए। अर्जुन- अरे उसका क्या करना है.. उसकी तो खुद की चूत में आग लगी हुई है.. तभी तो साथ आई है। तुम बिहारी को जलवा दिखाना.. उसकी चूत की आग मैं ठंडी कर दूँगा। भाभी- पागल हो गए हो क्या.. ऐसा सोचना भी मत.. तुम उसके साथ अस्पताल में ही रहना.. समझे.. मैं यहाँ का देख लूँगी कि क्या करना है।

अर्जुन- ओये होये मेरी जान.. अकेले में मज़ा लेगी.. अच्छा है.. अच्छा है। भाभी- बस बस.. जानती हूँ तेरे को.. जब से निधि तेरे को मिली है.. तू मेरे पास बहुत कम आता है.. तुझे तो कच्ची कली में ज़्यादा मज़ा आता है.. अर्जुन- अरे क्या भाभी.. अब बस भी करो.. ऐसी कोई बात नहीं है। अगर आपको ऐसा लगता है कि मैं निधि को ज़्यादा चाहता हूँ.. तो उस बिहारी के आगे निधि को कर देंगे.. बस खुश.. भाभी- अरे नहीं नहीं.. वो बहुत डरावना सा है.. निधि डर जाएगी। मैं ही संभाल लूँगी उसको.. अब बातें बन्द करो.. जाओ निधि को भी ले आओ.. बेचारी रात से परेशान है। तब तक मैं मुँह-हाथ धो लेती हूँ।

अर्जुन वापस गया और निधि को ले आया। अब यहाँ क्या होना था.. थके-हारे लोग आराम ही करेंगे। तो चलो हमारी पायल उठ गई होगी अब तक..

सुबह के करीब 9 बजे रॉनी की आँख खुली.. तो वो सीधा बाथरूम चला गया और करीब आधा घंटा बाद फ्रेश होकर कमरे से बाहर निकला। रॉनी सीधा नीचे चला गया.. उसे वहाँ अनुराधा दिखाई दी.. तो उसने मुस्कुराते हुए ‘गुड मॉर्निंग’ किया और वहीं सोफे पर बैठ गया। अनुराधा- तुम्हारे बड़े पापा ने क्या कहा था.. उसके बाद भी तुम रात को कहाँ थे? रॉनी- अरे हम तो गुड्डी को बाहर घुमाने ले गए थे और देर भी तो हुई नहीं हमें.. जल्दी आ गए थे.. अनुराधा- अच्छा अच्छा.. जाने दो.. आज मैं अपनी सहेली के यहाँ जा रही हूँ। वहाँ उन्होंने हवन रखवाया है.. तो रात को देर तक चलेगा। अभी मैं निकल जाऊँगी.. तो कल सुबह ही वापस आऊँगी। तब तक गुड्डी का ख्याल रखना और हाँ.. ऐसा कोई काम ना करना.. जिससे तुम्हारे बड़े पापा नाराज़ हो जाएँ.. बाहर जाना मगर ‘रात’ को जल्दी आ जाना.. समझ गए?

अनुराधा ने ‘रात’ पर कुछ ज़्यादा ज़ोर देकर कहा था.. क्योंकि वो जानती थी अक्सर ये रात को देर से आते हैं और आज घर में कोई नहीं रहेगा.. तो इनको घूमने का मौका मिल जाएगा.. इसलिए उसने ‘रात’ पर इतना ज़ोर दिया।

दोस्तो, उम्मीद है कि आपको कहानी पसंद आ रही होगी.. तो आप तो बस जल्दी से मुझे अपनी प्यारी-प्यारी ईमेल लिखो और मुझे बताओ कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है।

कहानी जारी है। [email protected]

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