जिस्म की जरूरत-22

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उनके होठों की नर्मी और साँसों की गर्मी ने मुझे पिघलने पर मजबूर कर दिया और अनायास ही मैंने भी अपनी बाहें फैलाकर उन्हें अपने आप में समेटते हुए उसके चुम्बन का जवाब चुम्बन से देने लगा।

सारी नाराज़गी, सारा गुबार न जाने उस वक़्त कहाँ चला गया था… कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था… अगर कुछ महसूस हो रहा था तो उनकी शानदार चूचियों का गद्देदार कोमल दबाव और उनके बदन पे इधर-उधर फिरते मेरी हथेलियों में उनके रेशमी जिस्म की गर्माहट…

अभी अभी नहाकर अपने आपको ठंडा किया था मैंने लेकिन इस वक़्त मेरा पूरा बदन फिर से तपने लगा था… रेणुका के हाथ भी अब मेरे गले को छोड़ कर अब मेरे पूरे जिस्म पर रेंगने लगे थे और इतना घी काफी था मेरी आग को भड़काने के लिए…

लंड शायद गुस्से में और भी खूंखार हो जाता है… मेरा भी हो चुका था और रेणुका के नाभि और चूत के बीच यूँ अकड़ कर ठेल रहा था मानो वहीं कोई नया सुराख बना देगा… इसका एहसास रेणुका को भी हो चला था और उनकी साँसें और भी ज्यादा तेज़ हो चली थीं… हम दोनों एक दूसरे से ऐसे ही लिपटे हुए कमरे में इधर उधर घूमने लगे…

पहले मुझे लगा था कि शायद यह बस उन्माद की वजह से हो रहा था लेकिन बाद में एहसास हुआ कि यह केवल उन्माद नहीं बल्कि रेणुका की समझदारी की वजह से हुआ था। हम मर्द जब वासना के उन्माद से भर जाते हैं तो दूसरी किसी भी बात का ध्यान नहीं रहता लेकिन इसके ठीक विपरीत औरत चाहे जितनी भी कामातुर हो जाये लेकिन नारी सुलभ लज्जा हर वक़्त उसके ज़हन में मौजूद होती है और इसी वजह से उन्हें बाकी चीज़ों का भी ख़याल रहता है…

ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि हम दोनों लिपटे हुए घूमते-घूमते दरवाज़े तक पहुँच गए थे और रेणुका ने अपना एक हाथ बढ़ा कर दरवाज़े को ठेल कर बंद कर दिया था… उनकी इस समझदारी ने मेरे होठों पे मुस्कान बिखेर दी।

लेकिन इस दरवाज़े की वजह से मेरा ध्यान कहीं और भी खिंच गया… मेरे जहन में अचानक से यह सवाल दौड़ गया कि अरविन्द भैया और वंदना तो घर पर ही होंगे… उनमें से किसी ने भी रेणुका को ढूंढने की कोशिश करी और अगर यहाँ आ गए तो मेरे कमरे में बंद हम दोनों की शामत आ जाएगी… क्यूंकि मेरे घर का मुख्य दरवाज़ा तो अब भी खुला था।

ऊपर वाले ने कुछ औरतों को यह कला दी है जिससे वो मर्द के मन में चल रही बातों को झट से ताड़ लेती हैं… रेणुका भी उन्ही में से एक थी। मेरे चिंतित चेहरे को देख कर उनके होंठों पे एक शरारती मुस्कान सी उभरी… अब इस मुस्कराहट ने मेरी चिंता और भी बढ़ा दी… मैं एक टक उसकी आँखों में देखने लगा और एक मौन सा सवाल पूछने लगा…’वंदना और उसके पापा सुबह-सुबह ही एक जरूरी काम से बाहर चले गए हैं…’ उन्होंने मुझे कहकर अपनी आँखें शर्म से नीचे कर लीं।

उफ्फ्फ… ये अदाएँ ही तो थीं रेणुका की जो मुझे उनके मोहपाश में उलझा सी देती थीं… मैं चाहकर भी उनकी अदाओं को भूल नहीं पा रहा था… खैर, अब एक निश्चिंतता ने मेरा जोश और बढ़ा दिया और मैंने रेणुका को अपनी गोद में उठा लिया… उन्होंने भी अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डालकर इस हरकत पर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया… सहसा ही मेरे होंठ फिर से उनके होंठों से जुड़ गए और एक लम्बी सांस खींचते हुए हम दोनों ने अपनी अपनी जुबां एक-दूसरे से टकरा दी और एक-दूसरे से गुत्थम-गुत्थी करने लगे…

मेरे दोस्तो, अब यह तो बताने की ज़रूरत नहीं है कि जब मर्द और औरत के जीभ एक दूसरे से खिलवाड़ करते हैं तो वासना का बुखार थर्मामीटर तोड़कर बाहर आने के लिए लालायित हो जाता है। हमारा हाल भी ऐसा ही था..

रेणुका को गोद में उठाये हुए मैं धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ा और हौले से उसे बिस्तर पर लिटा दिया… रेणुका अब बिस्तर पे इस तरीके से लेटी थी कि उनके पैर बिस्तर से नीचे थे और बाकी का पूरा शरीर बिस्तर पे था। होंठ अब भी वैसे ही जुड़े हुए थे और हमारी जीभ अब भी एक दूसरे को छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी।

मेरे शरीर की हरकतें अब थोड़ी तेज़ हो रही थीं और मेरे हाथ अब उनके बदन पर सख्त होते जा रहे थे… मेरा बदन उनके बदन से रगड़ खाने लगा था… उनके होंठों को वैसे ही अपने होंठों में जकड़े हुए ही मैं रेणुका के गुन्दाज और रेशमी बदन को अपने बदन से रगड़ते हुए उनके ऊपर चला आया और रेणुका ने मेरे बदन को अपने दोनों पैर फैलाकर इतनी जगह दे दी कि अब मेरा बदन उनके बदन के ठीक ऊपर था और मेरे दोनों पैर अब उनकी दोनों गुन्दाज जाँघों के बीच आ चुके थे।

तौलिये में लिप्त मेरा लंड अकड़ कर लोहे की तरह सख्त हो चुका था और इस अवस्था में सीधा रेणुका की दोनों चिकनी जाँघों के बीच उनकी उभरी हुई चूत पे दस्तक दे रहा था… तौलिये के अन्दर कुछ न होने की वजह से लंड को किसी भी तरह का अवरोध तो नहीं था लेकिन फिर भी तौलिया अब मुझे दीवार सा लगने लगा था… मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसको अपनी कमर से खींच कर दूर उछाल दिया..पता नहीं कहाँ गिरा वो, इस हालत में ये ख़याल ही कहाँ रहता है…

अब मेरा ‘नवाब’ यानि मेरा अकडू लंड पूरी तरह आज़ाद था… ऊपर तो मैं वैसे ही नंगा था।

रेणुका के रेशमी गाउन उनकी बदन से पूरी तरह चिपका हुआ था और ध्यान से देखने पर पता चला कि उन्होंने उसके अन्दर कुछ भी नहीं पहना था। वैसे भी मेरी पाठिकाएँ जो आम तौर पर इस तरह के रेशमी या नायलॉन या लाइक्रा से बनी गाउन या नाइटी पहनती हैं, उन्हें पता होगा की अगर अन्दर कुछ न हो तो ये आपके बदन से चिपक कर आपके बदन का हर भूगोल दर्शाती हैं…

खैर, अब जबकि मेरा लंड आज़ाद हो चुका था तो रेणुका के बदन पर फिर से लेटते ही लंड बिल्कुल सीधा होकर उस रेशमी गाउन से झांकती उनकी उभरी हुई चूत के दरार पे जाकर सेट हो गया और मेरे बदन के भार से चूत की दरारें थोड़ी सी फ़ैल गईं… इसका असर यह हुआ कि लंड का सुपारे सीधा उनके दाने से टकरा गया… और यही तो एक जगह है जो किसी भी औरत को पागल बनाने के लिए आग में घी का काम करती है..

लंड के सुपारे ने जैसे ही उनकी चूत के दाने को सहलाया वैसे ही रेणुका ने उन्माद में आकर अपना मुँह एक झटके से अलग हटाया और एक लम्बी सी गरम सांस ली… सांस नहीं अगर उन्माद भरी सिसकारी कहें तो ज्यादा सही होगा। ‘उफ्फ्फ्फ़… स्स्स्समीर…’ बस इतना ही निकल पाया उनके मुख से और एक बार फिर से उन्होंने मेरे होंठों को अपने होठों में कैद कर लिया और इस बार अभूतपूर्व जोश के साथ मेरे होठों को चूसने लगी मानो वो अभी तुरंत स्खलित होने वाली हो।

मैं उनकी दशा देखकर समझ गया और जानबूझ कर अपने लंड को और भी अच्छी तरह से चूत पे रगड़ने लगा… चूत से बहते काम रस ने गाउन की दीवार को बेंध दिया था और छलक कर बाहर आने लगी थी… गीलेपन का एहसास मेरे सुपाड़े पर होने लगा था.. एक तो रेशमी कपड़ा, ऊपर से चूत का रस जो अपने आप में इतना चिकना होता है कि क्या कहना…

लंड के सुपारे पर उत्तेजना के इतने कीड़े रेंगने लगे कि मुझे भी लगा कि मैं भी झड़ जाऊँगा… लेकिन इस तरह न तो मैं झड़ना चाहता था और ना ही रेणुका को स्खलित होने देना चाहता था, बल्कि उनकी मखमली चूत में अपना लोहे सा कड़क लंड पूरी गहराई तक अन्दर डालकर बेहतरीन झटकों के साथ स्खलित होना और करना चाहता था।

उसके लिए ज़रूरी था कि अब आगे बढ़ा जाए…

मैं धीरे से उनके ऊपर से उठा और उनके पैरों के बीच ही नीचे ज़मीन पर बैठ गया… उनका गाउन अब तक इस रगड़ा-रगड़ी में उनकी पिंडलियों तक ऊपर उठा चुका था… मैंने धीरे से उनका दाहिना पैर अपने हाथों से पकड़ा और उनके पैरों के अंगूठे को अचानक से ही अपने मुख में भर लिया। रेणुका छटपटा गई और उन्होंने एक सिसकारी भरी ‘उम्म्म म्म्म्म…’ उनके होंठ थरथरा तो रहे थे लेकिन वो कुछ बोल नहीं पा रही थी।

फिर धीरे-धीरे उनके पैरों की सभी उँगलियों को बारी-बारी से अपने मुख में भर कर अपनी जीभ की नोक से सहलाते हुए दूसरे हाथ से दूसरे पैर को सहलाता रहा।

ऐसा मैंने अपनी एक दोस्त के साथ किया था…एक प्यारी सी सहकर्मी जो दिल्ली में थी इस वक़्त… रेणुका की हालत भी बिल्कुल वैसी ही थी जैसी रीना की हुई थी… वो कहानी अगली बार बताऊंगा। वैसे मैं यह तो समझ गया था की औरत के पैरों के साथ यूँ खेलना उन्हें ज़न्नत का मज़ा देता है।

अब मैंने धीरे से उनकी उँगलियों को मुँह से निकाल कर अपने होंठों को बारी-बारी से उनके दोनों पैरों की पिंडलियों पे टिका दिया और चुम्बनों की बरसात कर दी… धीरे-धीरे मेरे हाथ उनके गाउन को ऊपर उठाते जा रहे थे और मेरे होंठ नंगी होती टाँगों पर अपनी छाप छोड़ते जा रहे थे। मेरे हर चुम्बन पर रेणुका अपने बदन को सिकोड़ और फैला कर अपने हाथ इधर-ऊधर फेंक कर अपनी बेचैनी का इज़हार कर रही थी.. उनकी हालत मैं समझ सकता था लेकिन मैं उन्हें और तड़पाना चाहता था।

अब उनका गाउन ठीक उनकी चूत के ऊपर तक आकर सिमट गया था और उनकी मखमली चूत की हल्की सी झलक मिल रही थी… मेरा नाक उन मखमली रसदार चूत की मादक खुशबू को महसूस कर सकता था… मैंने एक लम्बी सांस लेकर चूत से आ रही खुशबू को पूरी तरह अपने अन्दर भर लिया… उफ्फ्फ्फ़… कितना नशीला… इतना नशा तो बेहोश करनेवाली दवाइयों में भी नहीं होता…!!

मैंने धीरे से उनके गाउन को उनकी चूत के ऊपर सरकाना शुरू किया… शायद रेणुका जानती थी कि मेरा अगला कदम क्या होगा, तभी उन्होंने अपने साँसें रोक लीं और अपने दोनों हथेलियों में बिस्तर की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया।

मैंने भी उनकी उम्मीद को नहीं तोड़ा और अपनी जुबान बाहर निकालकर उसकी नोक को सीधा उनकी रस से डबडबाई चूत के ऊपर लगा दिया… ‘आआह्ह्ह ह्ह्हह… स्स्स्समीर, उम्म्मम्म…!!’ वासना की आग में जलकर राख हुई जा रही थी वो और मेरी जुबां की गर्माहट ने उनके सब्र का बाँध तोड़ ही दिया… ‘आआह्ह्ह्… आह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह…’ रेणुका ने अपने पूरे बदन को कड़ा कर लिया और फिर वही हुआ जिसका डर था…

एक गाढ़ा नमकीन रस रेणुका की चूत से बहता हुआ बाहर निकला और रुक-रुक कर बहता हुआ चूत से होते हुए दोनों जांघों के बीच से बिस्तर पे फ़ैल गया… इस दौरान रेणुका ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को जोर से पकड़ कर अपनी चूत पे दबा दिया था और ऊपर की तरफ तीन-चार बार ऐसे झटका दिया मानो मेरे मेरी जीभ न हो कोई लंड हो और वो झटकों के साथ उने अपनी चूत के अन्दर डाल लेना चाहती हो।

स्खलित होने के बाद भी रेणुका ने मेरा सर उसी तरह से दबाकर रखा था और लम्बी-लम्बी साँसे लेते हुए धीरे-धीरे अपने बदन को ढीला छोड़ दिया…

कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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