This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000
अरविन्द भैया ने हम दोनों से पार्टी की बातें पूछीं और इसी तरह बातों का सिलसिला शुरू हो गया। थोड़ी ही देर के बाद रेणुका जी हाथों में ट्रे लेकर आईं और सबने अपने अपने हिस्से की कॉफ़ी ले ली। लगभग 10 मिनट तक इधर उधर की बातें हुईं और फिर मैंने सबको गुड नाईट कहकर विदाई ली।
अपने कमरे में पहुँच कर मैंने फटाफट अपने कपड़े बदले और जाकर धड़ाम से अपने बिस्तर पे गिर गया, आँखें बंद हुईं और पूरे दिन के कई सारे दृश्य फिल्म की तरह मेरे ज़हन में घूमने लगीं। यूँ तो दिन भर बहुत कुछ हुआ था लेकिन फिलहाल दिमाग बस दो घटनाओं के जद्दोजहद में फंस गया था। एक बार आँखों में वंदना का खूबसूरत चेहरा मुस्कुराता हुआ दिखाई देता तो दूसरे ही पल रेणुका के चेहरे की शरारत भरी मुस्कान और उसकी बदली हुई चाल नज़र आने लगती जो अरविन्द जी की घमासान चुदाई का सबूत दे रही थी।
मैं लाख कोशिश कर रहा था कि रेणुका के बारे में ना सोचूं लेकिन फिर भी न जाने क्यूँ रेणुका का ख़याल वंदना के साथ बिताये हुए उस हसीन और कामुक पलों पर भरी पड़ रहे थे।
हे ईश्वर… मुझे यह क्या हो रहा था, मैं खुद समझ नहीं पा रहा था। इससे पहले भी मेरे जीवन में कई लड़कियाँ और औरतें आ चुकी थीं और मैंने हर किसी के साथ सम्बन्ध बनाये थे और हमेशा इन रिश्तों को बस हल्के में लिया था। कभी किसी के लिए इतना भावुक नहीं हुआ था जितना मैं रेणुका के लिए हो रहा था।
मैं पशोपेश की स्थिति में था और नींद आँखों से कोसों दूर थी, तभी ध्यान आया कि अलमारी में वोदका की एक बोतल पड़ी है जो मैं दिल्ली से अपने साथ लाया था और उसे रखकर भूल ही गया था। भूलता भी क्यूँ ना… जिसे इतनी मस्त-मस्त और कामुक हसीनों का नशा मिल रहा था उसे शराब की क्या जरूरत !!
लेकिन अब मुझे इसकी जरूरत महसूस हो रही थी और मैंने बिस्तर से उठ कर अलमारी से बोतल निकाली, किचन में गया और फ़्रिज़ से स्प्राइट की बोतल निकल कर एक ग्लास में वोडका और स्प्राइट भर दिया, वापस अपने कमरे में आया और बिस्तर पे बैठकर एक सांस में पूरा ग्लास अपने गले के नीचे उतार लिया। एक मीठी सी जलन हुई गले में और मैंने अपनी साँसे रोक कर शराब को अपने शरीर में समा लिया.
शायद कुछ ज्यादा ही बड़ा पेग बना लिया था मैंने… अमूमन मैं शराब पीता नहीं लेकिन कभी-कभी दोस्तों के साथ बैठ कर इस बला को आजमा जरूर लेता हूँ। खैर मैंने गिलास वहीं पास रखे टेबल पर रख दिया और लेट गया। कमरे में जल रही मद्धिम रौशनी में सामने की दीवार पर पिछले कुछ दिनों के दरम्यान घटी सारी घटनाएँ एक चलचित्र की भांति नज़र आने लगीं।
दिल्ली से मेरा यहाँ आना… रेणुका जी के साथ मिलना और फिर उनके साथ प्रेम की ऊँचाईयों को पाना… फिर वंदना का मेरी ज़िन्दगी में यूँ दाखिल होना और हमारे बीच प्रेम का परवान चढ़ना… सारी घटनाएँ बरबस मेरे होठों पे मुस्कान ले आती थीं। लेकिन मेरे मन के एक कोने में एक अंतर्द्वंद चल रहा था जिसे मैं चाह कर भी अनदेखा नहीं कर पा रहा था।
रेणुका का ख्याल आते ही मेरी बेचैनी और भी बढ़ जाती थी… मैं बिस्तर से उठा और पास में रखे शराब की बोतल एक बार फिर से अपने हाथों में उठा ली… पता नहीं क्या सूझा मुझे… या यूँ कहें कि मेरे गुस्से की आग को शांत करने का मुझे बस यही एक तरीका नज़र आया.. गिलास को पूरा शराब से भर कर बिना कुछ मिलाये मैंने एक ही झटके में एक ही सांस में पूरी पी ली… उफ्फ्फ…यूँ लगा मानो पूरा गला छिल गया हो… जलन से मेरे गले का बुरा हाल हो गया। लेकिन वो कहते हैं न दोस्तो, कि जब दिल जल रहा हो तो किसी और जलन का एहसास फीका पड़ जाता है…
मैं धड़ाम से बिस्तर पे गिर गया और अपने अन्दर शराब को हलचल मचाते हुए महसूस करने लगा… गिरने की वजह से मेरे हाथ से ग्लास नीचे गिर पड़ा और एक खनकती हुई आवाज़ के साथ टूट कर बिखर गया… ग्लास के टूटने और बिखरने की आवाज़ सुनकर पता नहीं क्यूँ मुझे हंसी आ गई… और मेरा हाथ खुद बा खुद मेरे सीने के बाईं ओर चला गया और अपने आप ही दो तीन थपकी सी लगाईं मैंने… मानो मेरा दिल भी उस गिलास की तरह टूट गया हो और मैं उसे समझा रहा हूँ।
अब तो मुझे पक्का यकीन हो चला था कि मुझे इश्क़ की बीमारी लगने लगी थी, तभी मैं यूँ आशिकों वाली पागल हरकतें कर रहा था… खैर… अपने सीने पे थपकी लगाते-लगाते मैंने आँखें बंद कर लीं और शायद शराब ने भी मुझे अपने आगोश में ले लिया था… मैं यूँ ही सो गया। सुबह किचन से बर्तनों की टकराहट की आवाज़ ने मेरी नींद तोड़ी और मेरी नज़र सामने दीवार पे लटकी घड़ी पे चली गई… सुबह के 8 बज रहे थे। बिस्तर से उठने की कोशिश की तो सर इतने ज़ोरों से घूमने लगा मानो पूरी दुनिया घूम रही हो… सर में तेज़ दर्द का एहसास हुआ और मैं अपना सर पकड़ कर वापस बिस्तर पे गिर पड़ा। शायद इसे ही ‘हैंग ओवर’ कहते हैं..
तभी किसी के क़दमों की आहट सुनाई दी जो मेरे कमरे की तरफ बढ़ रही थी। आँखें खोल कर देखने की कोशिश की तो सामने रेणुका भाभी हमेशा की तरह अपने उसी रेशमी गाउन में अपने खुले बालों और भीगे होठों के साथ बिजलियाँ गिराती हुई खड़ी थीं, उनके हाथों में पानी से भरा एक गिलास था जो धुंधला सा दिख रहा था… शायद वो निम्बू पानी था।
फर्श पर कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे, उनसे अपने कदम बचाते हुए रेणुका मेरी तरफ बढ़ी और मेरे बिस्तर पे बैठते हुए मेरी तरफ गिलास बढ़ाया…- ‘पी लो…आराम मिलेगा!’ अपनी आँखों में हजारों सवाल लिए उन्होंने मुझे निम्बू पानी दिया।
मैंने भी हाथ बढ़ा कर गिलास लिया और उनसे नज़रें चुराते हुए पी गया.. उन्होंने मेरे हाथों से गिलास लिया और बिस्तर से उठते हुए वापस जाने लगी- उठकर नहा लीजिये… मैं चाय बना देती हूँ, सर का दर्द ठीक हो जायेगा। दरवाज़े पर पहुँच कर उन्होंने अपनी गर्दन घुमाते हुए मेरी तरफ देखा और इतना कह कर रसोई में चली गई।
मैं कुछ समझने की हालत में नहीं था… चुपचाप उठा और सीधे बाथरूम में घुस गया, शावर को फुल स्पीड में खोलकर सीधा अपने सर पर ठन्डे पानी की धार गिराने लगा… थोड़ी ही देर में सर का दर्द थोड़ा कम होता महसूस हुआ… झटपट नहा कर बाहर निकला और कमर में एक तौलिया लपेटे हुए अपने कमरे में दाखिल हुआ।
कमरा पूरी तरह से साफ़ और करीने से सजा हुआ था… सारी चीजें अपनी जगह पे थीं, और तो और मेरे ऑफिस जाने के लिए कपड़े भी निकल कर मेरे बिस्तर पर थे। एक नज़र कमरे के चारों ओर देखा मैंने और फिर आईने के सामने खड़े होकर अपने बाल बनाने लगा… आइना मेरे कमरे में कुछ इस तरह से लगा हुआ था कि मेरे कमरे में घुसने के दरवाज़े से आता हुआ इंसान उसमें नज़र आ जाये।
अपने बालों को संवारते हुए अचानक मेरे आईने में रेणुका हाथों में चाय का कप लेकर आती हुई दिखाई दी… चेहरे पे मुस्कराहट लेकिन आँखों में एक नई और अलग सी चमक… एकटक देखता ही रह गया मैं!
चाय का कप मेज़ पे रखकर रेणुका सीधे मेरे करीब आई और पीछे से मुझे अपनी बाहों में जकड़ कर खड़ी हो गई… उफ़्फ़… वो रेशमी एहसास… अनायास ही मेरे मुँह से एक लम्बी सांस निकल गई और मेरी आँखें खुद ब खुद बंद हो गईं।
एक ख़ामोशी सी छाई रही थोड़ी देर… सुनाई दे रहा था तो बस दो इंसानों की लम्बी लम्बी साँसें जो बिल्कुल एक साथ ही अन्दर और बाहर आ जा रही थीं… मानो दो नहीं एक ही जिस्म से निकल रही हों! ‘नाराज़ हो क्या?’ अथाह प्रेम से भरी आवाज़ में रेणुका ने हौले से पूछा।
इस सवाल ने एक बार फिर से मुझे एक आह भरने पे मजबूर कर दिया… आँखें मेरी अब भी बंद ही थीं और होंठ भी सिले हुए थे.. कहना तो बहुत कुछ चाहता था बल्कि पिछले दिनों का सारा गुबार एक ही झटके में निकाल देना चाहता था… पर पता नहीं क्यूँ कुछ कह नहीं पाया। मेरी ख़ामोशी रेणुका के दिल में हजारों सवाल उठा रही थीं… उसने मुझे अपनी तरफ घुमाया और फिर मेरे गले में अपनी बाहें डालकर अचानक से ही मेरे होठों को अपने होठों में क़ैद कर लिया।
उसके होठों की नर्मी और साँसों की गर्मी ने मुझे पिघलने पर मजबूर कर दिया और अनायास ही मैंने भी अपनी बाहें फैलाकर उसे अपने आप में समेटते हुए उसके चुम्बन का जवाब चुम्बन से देने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सारी नाराज़गी, सारा गुबार न जाने उस वक़्त कहाँ चला गया था… कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था… अगर कुछ महसूस हो रहा था तो उसकी शानदार चूचियों का गद्देदार कोमल दबाव और उसके बदन पे इधर-उधर फिरते मेरी हथेलियों में उसके रेशमी जिस्म की गर्माहट…
अभी अभी नहाकर अपे आपको ठंडा किया था मैंने लेकिन इस वक़्त मेरा पूरा बदन फिर से तपने लगा था… रेणुका के हाथ भी अब मेरे गले को छोड़ कर अब मेरे पूरे जिस्म पर रेंगने लगे थे और इतना घी काफी था मेरी आग को भड़काने के लिए… कहानी जारी रहेगी। [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000