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दोस्तो, आज मैं अपने साथ पढ़ाने वाले टीचर छबीले की कहानी लिख रहा हूँ, छबीले की ही जुबानी-
मेरा नाम छबीले है.. मैं पढ़ाने के लिए शहर आया और फिर कई साल बाद गाँव लौटा। एक सुबह टहलने निकला तो देखा कि सुनीता खेत से लौट रही थी। वो मुझे देखकर मुस्काराई.. उसे देखते ही मैं बचपन की यादों में खोता चला गया।
मेरे घर आम अमरूद.. अन्य फलों के बगीचे थे। मेरी बहन जो मुझसे 4 साल बड़ी थी। उसकी कई सहेलियाँ स्कूल के लंच में और छुट्टी में फल खाने बगीचे में आया करती थीं। अभी मेरे अंडे पर दो चार बाल उगने शुरू हुए थे।
एक दिन मैं पेड़ पर बैठकर अमरूद खा रहा था। तभी सुनीता बगीचे में आई और अपनी स्कूल की स्कर्ट ऊपर उठाकर चड्डी सरका कर मूतने लगी। चूंकि मैं पेड़ पर पत्तों के बीच था और सुनीता को मुतास बहुत जोर की लगी थी। चूंकि स्कूल का मूत्रालय कितना गंदा होता है.. यह तो आप जानते ही हैं।
मैं उसकी बुर को देख रहा था.. वहाँ काले बालों के गुच्छे उगे थे। पहली बार किसी बड़ी लड़की की बुर देख रहा था, इससे पहले छोटी लड़कियों की ही देखी थी। सुनीता की बुर में कुछ चोंच जैसी उभार थी.. जिससे मूत की धार निकल रही थी।
तभी उसकी नजर मेरे ऊपर गई पहले उसकी धार बंद हो गई.. फिर रोक ना सकी और पुनः मूतने लगी। उसके बाद मुझे बुलाया और बोली- क्या देखा? मैंने बोला- कुछ नहीं। वो बोली- सच बोलो। मैंने कहा- आपकी सूसू.. वो बोली- क्या दिखाई दिया?
मैंने कहा- ऊपर से काला दिखाई दे रहा था। वो बुर सहलाती हुई बोली- नजदीक से देखोगे? मैंने कहा- हाँ.. वो बोली- फीस लगेगी..
मैंने कहा- मेरे पास पैसे नहीं हैं.. जब मेला देखने के लिए मिलेंगे.. तब दे दूँगा। वो बोली- तुम्हारी दीदी एक अमरूद ही देती है… और वो भी कभी-कभी। अगर तुम पाँच अमरूद दो.. तो मैं तुम्हें अपनी बुर नजदीक से दिखाऊँगी। मैंने कहा- ठीक है..
उसने अपनी स्कर्ट ऊपर करके दिखाई.. मैं नजदीक से देखता ही रहा… बुर की संरचना स्पष्ट दिखाई दे रही थी। अब सुनीता रोज बुर दिखाती और 5 अमरूद ले जाती। कुछ दिन बीतने पर मैंने कहा- अपनी बुर छूने दोगी तो आम भी दूँगा। वो बोली- ठीक है..
उसने बुर खोली और मैं हाथ से सहलाने लगा.. वो धीरे-धीरे मस्ती में डूब गई और बोली- इसमें उंगली अन्दर-बाहर करो। मैंने जैसे ही उंगली छेद पर रखी.. गीली और गर्म जगह होने से उंगली चूत में घुस गई। मुझे अजीब सा मजा आ रहा था।
दस मिनट बाद उसकी बुर और ज्यादा गीली हो गई। फिर सुनीता अपनी कच्छी से पोंछ कर उठ गई। अब यह खेल रोज होता था।
एक दिन सुनीता बोली- मम्मी ने अचार बनाने के लिए 100 आम माँगे हैं.. अगर तुम दे दोगे तो और ज्यादा मजेदार खेल खेलना सिखाऊँगी। मैं बोला- ठीक है।
वो आम लेकर घर देकर आई और अपना दुपट्टा बिछा कर बैठ गई और मेरी छुन्नी हाथ मे लेकर उसके चमड़े को पीछे करने लगी। चूंकि मेरे छुन्नी की जड़ पर चमड़ा थोड़ा चिपका था.. इसलिए कभी-कभी दर्द भी होता।
फिर बोली- जैसे अपनी उंगली बुर में आगे-पीछे करते थे.. उसी तरह छुन्नी डाल कर करो। उसने टाँगें उठा लीं.. काफी कोशिशों के बाद छुन्नी थोड़ा अन्दर घुसी.. वो बोली- पूरा घुसेड़ो।
मैंने जैसे ही जोर लगाया.. छुन्नी की जड़ में चिपका चमड़ा अलग हो गया और मुझे दर्द होने लगा.. पर मजा भी आ रहा था.. उत्तेजना बढ़ने पर दर्द कम हो गया।
काफ़ी देर तक उछलने के बाद मुझे मुतास लगी। मैं बोला- अब मूतने जा रहा हूँ। वो बोली- बुर के अन्दर ही मूत दो। लेकिन मुझे लगा कि कुछ गाढ़ा निकल रहा है।
चूंकि मेरा वीर्य पहली बार निकला था। मैं डरकर रोने लगा.. सुनीता बोली- पगले.. ये तो हर नौजवान को होता है।
फिर छुन्नी के चमड़ा हटने के कारण एक हफ्ते दर्द और जलन कम करने के लिए बरनॉल क्रीम लगा कर गमछा लपेट कर रहना पड़ा.. क्योंकि चड्डी में रगड़ खाने पर छुन्नी कल्लाने लगती थी।
फिर शहर आने के बाद पता चला उसकी शादी हो गई। आज फिर उसे देखा तो मुझे एक मीठा सा अहसास होने लगा था। तभी सुनीता ने बोला- कहाँ खो गए?
मेरी तंद्रा टूटी और मैं बोला- बस बचपन की यादों में खो गया था। उससे मेरी बातें होने लगीं.. उसने बताया कि उसका पति ग्राम प्रधान के यहाँ काम करता है और प्रधान का बेटा उसे पैसे देकर चोदता है।
सुनीता की तीन बेटियाँ और एक बेटा है.. पर आज भी जवान ही लगती है, कुदरत का कमाल है। आप को कैसे लगी मेरी स्टोरी आप मेरे मित्र सुदर्शन पाठक के ईमेल पर भेज दें। [email protected]
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