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तो दोस्तो, एक बार फिर आप सबके सामने आपका प्यारा शरद एक नई कहानी के साथ हाजिर है, तैयार हो जाइएगा.. इस नई रसीली कहानी को पढ़ने के लिए। दोस्तो, मेरे द्वारा लिखी गई कहानी को कहानी ही समझ कर पढ़िए और कहानी का मजा लेकर उसकी प्रतिक्रिया मुझे जरूर भेजें.. न कि मुझसे उस चूत देने वाली का नम्बर दे दो.. आदि इत्यादि..
मैं अब प्रज्ञा, भाभी की बहन, के साथ मेरी रंगरेलियाँ कैसी मनी थीं.. उस पर आ रहा हूँ।
उस दिन मैंने एक चीज जानी कि किस तरह कोई लड़की अपने ऊपर संयम रख सकती है। प्रज्ञा ने सब कुछ किया.. लेकिन अपनी बुर में मेरा लौड़ा नहीं लिया.. तो नहीं लिया।
जैसा उसने कहा.. वैसा ही किया भी.. केवल वो अपनी दीदी को चुदती हुई देखना चाहती थी.. तो उसने अपनी दीदी को चुदती हुई ही देखा। फिर सभी लोग घर आ गए थे.. तो हमें भी संयम रखना जरूरी था.. लेकिन मैंने मौका देखते ही भाभी से बोला- कोई जुगाड़ करो.. आज रात में ही कुछ हो जाए।
भाभी मुस्कुराईं और बोलीं- चल ठीक है.. रात को खाना खाने के बाद तुम मेरे कमरे में अलमारी के पीछे पूरे कपड़े उतार कर खड़े हो जाना और जब तक मैं और प्रज्ञा नंगी न हो जाएँ.. तब तक बाहर मत निकलना। मैंने वैसा ही किया और अलमारी के पीछे जा कर चुपचाप होकर खड़ा हो गया।
करीब पंद्रह मिनट बाद दोनों बहनें ऊपर आईं। भाभी प्रज्ञा से कह रही थीं- तेरे लिए ही तो शरद को यहाँ लाई थी और तुमने अभी तक उसका स्वाद ही नहीं चखा। प्रज्ञा बोली- दीदी.. मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था.. पर मैं उससे कल ही अकेले चुदूँगी.. जब आप नीलम को लेने जाओगी। उसके बाद फिर सब मिलकर उसका रस निकालेंगे।
‘वो तो ठीक है.. लेकिन वो तेरी चूत का रस पीना चाहता है.. उसको चखा तो दो.. अगर तुम कहोगी तो मैं तुम दोनों के बीच में नहीं आऊँगी।’ ‘ऐसी बात नहीं है.. मैं तो चाहती हूँ.. चलो बुला लो उसे.. हम दोनों ही आज रात उसको अपना रज पिला देते हैं। लेकिन यह तय है कि चुदूँगी मैं कल ही।’ ‘ठीक है।’
उन दोनों का इतना बोलना था कि मैं तुरन्त ही अलमारी के पीछे से बाहर आ गया। मुझको देख कर प्रज्ञा बोली- तो तुम पूरी तैयारी से यहाँ हो। मेरे कुछ बोलने से पहले ही भाभी बोलीं- चलो हम भी अपने कपड़े उतार देते हैं। प्रज्ञा बोली- चलो, इनको नंगा रहने दो.. हम लोग थोड़ी देर बाद अपने कपड़े उतारेगें। मैंने कहा- मेरी जान.. क्यों तरसा रही हो.. बुर नहीं दे रही हो तो उसको दिखा ही दो। ‘अरे यार.. मेरी बुर अभी साफ नहीं है..’ ‘तो कोई बात नहीं.. चलो मैं तुम्हारी बुर को साफ किए देता हूँ।’
वो मुस्कुरा रही थी.. ऐसा लग रहा था कि वो मुझे तरसा कर मजा ले रही थी। तभी भाभी बोलीं- क्यों उसको तरसा रही हो.. मैं जानती हूँ कि तुम कल अकेले में चुदवाना चाह रही हो.. लेकिन इस समय उसके लंड की हालत तो देखो.. किस तरह लपलपा रहा है। चलो हम लोग भी कपड़े उतार देते हैं और तुम अपनी बुर की शेविंग अभी ही करा लो.. ताकि कल का ज्यादा समय खराब न हो।
मैं धीरे से प्रज्ञा के पीछे गया और उसको जकड़ कर बोला- प्रज्ञा रानी.. क्यों तरसा रही हो.. मान जाओ.. नहीं तो मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती कर दूँगा। इतना कहकर मैंने उसके गर्दन से बाल अलग करके उसकी गर्दन को चूम लिया।
प्रज्ञा बोली- मैं तो चाहती हूँ कि तुम मेरा देह शोषण करो.. लेकिन कल करना और वो भी बड़े प्यार से.. ताकि मैं तुम्हारे लंड की दीवानी हो जाऊँ। लेकिन मैंने प्रज्ञा को नहीं छोड़ा और उसको चूमता ही रहा और उसकी नाभि में उँगली करके उसको सहलाता रहा।
वो मुझसे अपने आप को छुड़ाने की बहुत कोशिश करती रही.. लेकिन छुड़ा न सकी। लेकिन उसके इस छुड़ाने के प्रयास में हम दोनों कब बाथरूम में आ गए.. पता ही नहीं चला।
मैं अब उसके गाउन को उठाकर उसकी बुर को सहला रहा था.. इस बीच वो कई बार अपने आपको छुड़ाने का प्रयास करती रही। अचानक मेरा हाथ गीला होने लग़ा.. मैंने प्रज्ञा से पूछा- यह मेरा हाथ गीला कैसे हो रहा है? तो प्रज्ञा बोली- मेरी जान.. मैं कई बार तुमसे बोली हूँ कि मुझे छोड़ो और अपने को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी.. लेकिन तुमने छोड़ा ही नहीं तो मेरी पेशाब निकल गई।
‘तो क्या इधर कमरे में ही कर दिया?’ ‘नहीं.. अब हम लोग बाथरूम में हैं।’
मैं मुस्कुरा दिया.. मैंने उसकी बुर से हाथ नहीं हटाया क्योंकि उसके पेशाब के गीलेपन से मुझे एक अलग अनुभूति हो रही थी। फिर मैंने उसे धीरे से अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठों के रस का स्वादन करने लगा.. क्या उसके नरम होंठ थे। अब मेरे दोनों हाथ उसके चूतड़ के उभारों पर थे और उँगली उसकी गाण्ड के छेद को ढूंढ रही थी। उसके चूतड़ों के उभार भी बहुत ही मुलायम थे।
तभी प्रज्ञा ने अपने एक पैर को उठाकर कमोड पर रखा और हाथ को पकड़ कर छेद के पास ले गई। ताकि मेरी उँगली छेद में आसानी से जा सके। प्रज्ञा मेरे होंठों को बड़े प्यार से चूम रही थी। मैं धीरे-धीरे नीचे की ओर आने लगा और जैसे ही घुटनों के बल बैठ कर उसकी बुर को चूमने ही जा रहा था.. तभी वह बोली- जानू.. आज रहने दो.. कल जो-जो तुम कहोगे.. मैं सब करूँगी। मेरा हर छेद तुम्हारा होगा।
मैंने भी उसकी बात का मान रखते हुए बोला- कम से कम मेरे सामने शेविंग कर लो.. ताकि कल इसमें समय ना जाए। उसने रिमूवर लिया और कमोड पर बैठकर जहाँ-जहाँ बाल थे.. रिमूवर लगाया और बोली- अभी इसको धोने में समय है.. लाओ तुम्हारे लंड महाराज की अकड़ भी निकाल दूँ.. कब से अकड़ा खड़ा है।
इतना कहते ही उसने मेरा लौड़ा अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। मेरी भी हालत बहुत देर से खराब हो रही थी। थोड़ी देर में ही मैं उसके मुँह में झड़ गया। उसने मेरे रस की एक-एक बूँद को निचोड़ लिया और ढीले पड़े लण्ड के मुहाने पर अपनी जीभ चला-चला करके रस की एक-एक बूँद को सफाचट कर गई।
मुझे अब पेशाब बड़ी तेज लग रही थी। मैंने प्रज्ञा से बोला- हटो मुझे पेशाब करनी है.. तो वो बोली- तुम पेशाब मेरी बुर में ही कर दो और अपनी पेशाब की धार से मेरी बुर के बाल पर लगे रिमूवर को हटा दो.. और मेरी बुर चिकनी कर दो। मैंने ऐसा ही किया और उसकी बुर पर पेशाब करके मैंने उसकी बुर को चिकना कर दिया और दूसरे दिन का वादा करके सोने के लिए चल दिए।
पर मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं करवट बदल रहा था। मैं पेट के बल लेट गया.. चूँकि मुझे अपने लौड़े को शान्त करना था इसलिए मैं सड़का मारने की पोजीशन में आ गया।
अचानक मुझे लगा कि कोई मेरे ऊपर लदा है और मेरी गाण्ड को थूक से गीला कर रहा है और ऐसा लगा कि किसी का मुँह मेरी गाण्ड में घुसेड़ कर मेरी गाण्ड को चाट रहा है और मेरे टट्टे को मसल रहा है। मैं पलटने लगा तो उसने अपना बदन ढीला किया ताकि मैं पलट सकूँ। जब मैं पलटा तो देखा कि भाभी थीं।
मैंने कहा- अरे भाभी आप..?? तो भाभी बोलीं- चुप भोसड़ी के.. मेरी बहन की बुर क्या देखी.. साले मुझे भूल गया हरामी.. ‘न भाभी.. ऐसी बात नहीं है.. मेरा भी लंड बहुत दर्द कर रहा है। प्रज्ञा कल से पहले बुर देने को तैयार नहीं है। बहुत ही संयमित लड़की है और तुम करवट ले कर सो रही थीं, इसलिए मैंने तुमको जगाना उचित नहीं समझा।
‘मादरचोद.. अगर तेरे लौड़े मे आग लगी थी.. तो मुझे हल्का सा हिला दिया होता.. मैं तुरंत ही आ जाती और तेरे लौड़े की आग को बुझा जाती।’ ‘भाभी अब गुस्सा छोड़ो.. आओ और नाग बाबा को ठंडा करो।’ ‘अच्छा चल अब मेरी गाण्ड की पालिश मत कर। मेरी बुर में भी चुदास की आग लगी है.. इसीलिए मैं अपनी चूत उठा कर आ गई। चल अब मैं जैसा कहती हूँ.. वैसा ही कर।’ मैंने कहा- ठीक.. जैसा तुम कहोगी वैसा ही करूँगा।
भाभी ने मैक्सी हल्की सी उठाई और अपनी एक टांग को पलंग के ऊपर रखा और मेरे को मैक्सी के नीचे आने के लिए इशारा किया।
दोस्तो, मेरी यह कहानी चूत चुदाई के रस से भरी हुई काल्पनिक मदमस्त काम कथा है.. आप बस इसका मजा लीजिये और अपने लण्ड-चूत को तृप्त कीजिए.. साथ ही मुझे अपने ईमेल लिखना न भूलें। [email protected]
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