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अब तक आपने पढ़ा..
अर्जुन- आह्ह.. ले मेरी रानी.. आह्ह.. उहह.. तू सच में बहुत गर्म माल है.. आह्ह.. कब से तुझ पर नज़र थी.. आह्ह.. साले हरामियों ने तेरी फुद्दी का मुहूरत कर दिया.. आह्ह.. उहह.. लेकिन अब इसको पूरा मज़ा में ही दूँगा.. ले उह.. उहह.. अर्जुन अब फुल स्पीड से लौड़े को अन्दर-बाहर करने लगा था। मुनिया तो दूसरी दुनिया में चली गई और ज़ोर-ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी। अब उसकी उत्तेजना चर्म सीमा पर थी.. किसी भी पल उसकी चूत लावा उगल सकती थी..। मुनिया- उई उई.. आह.. ज़ोर से.. आह्ह.. और ज़ोर से.. आह्ह.. मैं गई.. आह्ह.. आआ उईईइ.. अर्जुन तू बहुत अच्छा है.. आह्ह.. तेज और तेज सस्सस्स.. आह.. उउईईइ.. आह..
अब आगे..
मुनिया कमर को हिला-हिला कर झड़ने लगी और कुछ देर बाद शान्त पड़ गई.. मगर अर्जुन ठहरा गाँव का गबरू जवान.. वो अभी कहाँ थकने वाला था.. वो तो दे-दनादन चूत की ठुकाई में लगा हुआ था। मुनिया- आह्ह.. आह्ह.. अर्जुन.. आह्ह.. अब बस भी कर.. आह्ह.. कितना चोदेगा.. आह्ह.. अब निकाल भी दे.. पानी.. उई मेरी चूत में जलन होने लगी है आह्ह..
अर्जुन- अरे रुक मुनिया.. अभी कहाँ जलन होने लगी.. अब तो लौड़ा गर्म हुआ है.. ज़रा बराबर मज़ा लेने दे.. उसके बाद जाकर ये ठंडा होगा। मुनिया हैरान हो गई कि इतनी चुसाई और अब कब से चुदाई के बाद भी यह झड़ नहीं रहा.. इसमें तो बहुत ताक़त है। वो अब बस पड़ी-पड़ी मज़ा लेने लगी क्योंकि लंड का घर्सण अब उसकी चूत को दोबारा उत्तेजित कर रहा था।
अर्जुन- उहह उहह.. मुनिया.. आह्ह.. आज तो मज़ा आ गया मुझे ज़रा भी मेहनत नहीं करनी पड़ी और तेरी फुद्दी मिल गई.. आह्ह.. अब तुझे रोज चोदूँगा.. आ ले उह्ह.. उह्ह.. मुनिया- आह्ह.. चोद मेरे प्यारे अर्जुन आह्ह.. अब मेरी चूत फिर से गर्म हो गई है। आह्ह.. चोद मज़ा आ रहा है और ज़ोर से चोद आह्ह..
अर्जुन बड़े प्यार से मुनिया की चुदाई कर रहा था.. कुछ देर बाद वो स्पीड से लौड़ा पेलने लगा.. उसका लंड फटने वाला था। अर्जुन- आह्ह.. ले मेरी रानी.. आह्ह.. आज तुझे मेरे लंड के पानी की धार दिखाता हूँ.. आह्ह.. बस आहह.. आने वाली है.. तेरी फुद्दी को भर दूँगा मैं.. आह्ह.. उह्ह.. उह्ह.. उह्ह..
मुनिया- आईईइ ससस्स.. आह.. मैं भी आआ गई आह्ह.. ज़ोर से कर.. आह्ह.. अर्जुन मैं गई.. आह आईईई सस्स्स स्स..
कमरे में दोनों की आवाज़ गूँज रही थीं.. और चुदाई का तूफान अपने चरम पर था। अर्जुन के लौड़े से तेज पिचकारी निकल कर मुनिया की चूत की दीवार पर लगने लगी.. जिसके साथ मुनिया की चूत भी झड़ गई। अब दोनों के पानी का मिलन होना शुरू हो गया था और दोनों झटके खाने लगे।
कुछ देर तक अर्जुन उसके ऊपर लेटा रहा और लंबी साँसें लेता रहा। उसके बाद वो एक तरफ़ हो कर लेट गया.. अब दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे। मुनिया- ऐसे क्यों दाँत दिखा रहा है… क्या हो गया तुझे?
अर्जुन- अरे होना क्या था.. तेरी फुद्दी बहुत ज़बरदस्त है.. मज़ा आ गया। वैसे एक बात है.. तू है बड़ी हिम्मत वाली.. इतना बड़ा लौड़ा आराम से ले लिया नहीं तो दूसरी लड़कियाँ बहुत चिल्लाती हैं एक तो बेहोश ही हो गई थी। मुनिया- अरे पहली बार में ज़्यादा दर्द होता है.. मैं भी बेहोश हो गई थी.. जब बाबूजी ने मुझे चोदा था..
अर्जुन- अरे पता है.. मगर मेरा लौड़ा आम आदमी से बड़ा है.. शादीशुदा भाभी को चोदा तो वो भी चिल्लाने लगी थी। उसके पति का लौड़ा 5″ का था और मेरा 9″ का लिया.. तो उसकी जान निकल गई थी..
मुनिया- चल हट.. तू क्या समझता है बस तेरे पास ही बड़ा लंड है.. रॉनी बाबूजी का भी तेरे जितना है.. बस तेरा थोड़ा मोटा ज़्यादा है.. तभी तो मुझे दर्द हुआ और तेरे में ताक़त ज़्यादा है.. कितना चोदता है तू ठंडा ही नहीं होता मेरी हालत खराब कर दी तूने तो.. अर्जुन- हा हा हा.. अरे ऐसे लौड़े बहुत कम होते हैं.. तेरे शहरी बाबू का इतना बड़ा है.. यह इत्तफ़ाक़ की बात है.. वैसे मेरे जितना शायद ही कोई चोद सकता है। पता है.. मैं एक साथ दो को ठंडा कर दूँ.. मगर मेरा पानी नहीं निकलेगा.. इतनी ताक़त है मेरे लौड़े में..
मुनिया- हाँ जानती हूँ.. मैंने देख लिया सब चल अब माई रह देख रही होगी.. बहुत देर हो गई.. अर्जुन- अरे एक बार और करेंगे ना.. तुझे तेरे शहरी बाबू ने घोड़ी नहीं बनाया क्या.. उसमें बड़ा मज़ा आता है और अबकी बार गोदी में लेकर भी तुझे चोदूँगा..
मुनिया- ना बाबा ना.. मेरी हालत नहीं है अब और चुदने की.. और वैसे भी ज़्यादा लालच ना कर.. माई को शक हो जाएगा समझे.. अर्जुन- चल तू कहती है.. तो मान लेता हूँ.. मगर अबकी बार तुझे हर तरीके से चोदूँगा.. ना मत कहना..
मुनिया- अरे नहीं करूँगी.. मेरे प्यारे अर्जुन.. वैसे भी अब मुझे चुदाई का मज़ा क्या होता है.. ये पता लग गया है। मेरी सहेली ने बहुत बार मुझे कहा था कि मैं तुझसे बात करूँ.. मगर मेरा डर मुझे रोक देता था। अब भला हो उन दोनों का जो मुझे चोद कर मेरा डर निकाल दिया। अब मैं तुम्हें पूरा मज़ा दूँगी.. ठीक है.. अब चलो..
दोनों वहाँ से निकल कर बातें करते हुए घर की तरफ़ चल पड़े। अब आप इनके साथ जाओगे क्या.. वहाँ दोनों भाई के क्या हाल हैं वो देखते हैं। दोनों भाई ऊपर कमरे में बैठे सोच रहे थे कि अब क्या होगा?
रॉनी- यार ये साला टोनी तो बहुत चालाक निकला.. हरामी घर तक आ गया.. पुनीत- ये साला पहले से गुड्डी को जानता था.. तभी तो ये छेड़ने का नाटक किया इसने.. और गुड्डी को बहला-फुसला कर घर तक आ गया। रॉनी- हाँ सही कहा.. कुत्ते ने अपने किसी आवारा दोस्तों के साथ ये गेम खेला है.. मगर अब हम क्या करें? पुनीत- यही तो अब सोचना है शाम को सन्नी से मिलकर बात करेंगे। रॉनी- भाई शाम को क्यों.. अभी कॉल करता हूँ ना.. अब वही कुछ बताएगा..
पुनीत- नहीं अभी हम घर में हैं कोई सुन सकता है.. हम शाम को ही मिलेंगे उससे..। रॉनी- भाई शाम को कुछ भी हो.. चाहे आपको टोनी से हारना पड़े.. मगर गुड्डी इस खेल का हिस्सा नहीं बनेगी.. वरना मैं चुप नहीं रहूँगा और घर में बता दूँगा।
पुनीत- तू पागल हो गया क्या.. कुछ भी बोलता है.. ऐसा कुछ नहीं होगा.. ओके.. रॉनी- सॉरी भाई.. मगर मुझे गुड्डी के बारे में ऐसा सोच कर घबराहट हो रही है। पुनीत- यार एक बात मुझे समझ नहीं आती है.. गुड्डी मेरी बहन है और उसकी फिक्र तुझे ज़्यादा है?
रॉनी- भाई ये क्या बकवास है.. वो मेरी बहन नहीं है क्या? पुनीत- अरे ग़लत मत समझ.. तेरी भी है.. मैं तो बस ये कह रहा था.. मेरी सग़ी है और तेरे अंकल की बेटी.. मगर तू उसका सगा से भी ज़्यादा ध्यान रखता है।
रॉनी- हाँ भाई बचपन से ही वो मुझे बहुत स्वीट लगती है और हमारी बनती भी अच्छी है। पुनीत- यार ये बड़ी अजीब बात है.. आंटी और गुड्डी की ज़रा भी नहीं बनती.. और तुम दोनों की खूब बनती है.. ऐसा क्यों? रॉनी- अब मॉम और गुड्डी के बीच पता नहीं क्या चल रहा है.. कितने साल हो गए.. दोनों की ज़रा भी नहीं बनती.. मगर मुझे उनसे कोई लेना-देना नहीं वो उनका अपना मामला है.. मुझे बताती भी नहीं.. दोनों से कई बार पूछ कर देख चुका हूँ।
पुनीत कुछ कहता.. तभी उसे उसकी मॉम ने आवाज़ दी- नीचे आ जाओ.. दोनों नीचे चले गए.. जहाँ पायल भी पहले से बैठी हुई थी..
दोनों नीचे खाने की टेबल पर जाकर बैठ गए.. तब तक उनके पापा भी आ गए थे और पायल को देख कर बहुत खुश हुए। उन्होंने थोड़ा गुस्सा भी किया- अगर आने का था तो बता देती.. मैं गाड़ी भेज देता.. अनुराधा- वो हॉस्टल से फ़ोन तो आया था.. मगर आप थे नहीं.. और ये दोनों गए नहीं.. आपने बाहर जाने को मना किया था ना.. संजय- सब के सब पागल हो.. मैंने ऐसे तो नहीं कहा था कि मेरी गुड्डी को लेने भी ना जाए..
पायल- ओह पापा.. अब जाने भी दो और वैसे भी फ़ोन के बारे में मुझे नहीं पता.. किसने किया था.. मैं तो अपने आप ही आने वाली थी। संजय- अच्छा अच्छा.. ठीक है.. अब आ गई हो.. तो अच्छे से एन्जॉय करो.. और हाँ अगर सिंगापुर घूमने का मन हो तो मेरे साथ चलो.. मैं आज रात ही काम के सिलसिले में जा रहा हूँ.. पायल- अरे पापा.. क्या आप भी.. मैं आई और आप जाने की बात कर रहे हो.. संजय- बेटा काम है.. तुम भी आ जाओ वहाँ एन्जॉय कर लेना..
दोस्तो, उम्मीद है कि आपको कहानी पसंद आ रही होगी.. तो आप तो बस जल्दी से मुझे अपनी प्यारी-प्यारी ईमेल लिखो और मुझे बताओ कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है। कहानी जारी है। [email protected]
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