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उस दिन माँ का फोन सुबह सवेरे ही आ गया ‘बेटा.. कैसे हो.. इस बार होली पर आ रहे हो ना.. कितने साल हो गए घर आए हुए?’ ‘नहीं माँ.. मैं नहीं आ पाऊँगा.. ऑफिस से बहुत छुट्टियाँ ले चुका हूँ.. मार्च आने वाला है.. अब तो एक दिन की छुट्टी लेना भी मुश्किल है..। दो दिन तो आने-जाने में ही निकल जाएंगे.. फिर दो-तीन दिन रुकना भी पड़ेगा।’ मैंने अपनी मजबूरी बताई।
‘अच्छा.. वो आरती भी आई हुई है.. तुझे पूछ रही थी कि तू होली पर आएगा क्या.. क्या बोलूँ उसे?’ आरती का नाम सुनते ही मेरे बदन में मीठी सी सिहरन दौड़ गई.. अब कैसी होगी वो.. कैसी लगती होगी शादी के बाद..? ऐसे कितने ही प्रश्न मन में उठने लगे। ‘ठीक है माँ.. मैं कोशिश करूँगा आने की..’ मैंने कह दिया। आरती मुझे याद करे और मैं न जाऊँ ये तो संभव ही नहीं था। होली आने में अभी 8-10 दिन थे। मैंने उसी दिन शताब्दी में रिज़र्वेशन करा लिया।
ट्रेन चल पड़ी थी.. और मैं आरती के ख्यालों में खो गया। वो अठरह बरस की कमसिन कच्ची कली थी.. उसे कितनी बेरहमी से रौंदा था मैंने उस दिन.. उसका वो करुण क्रंदन.. वो चीत्कार.. वो विनती.. आज भी मुझे स्मरण होती है.. जैसे अभी अभी की बात हो। ‘बाहर निकाल लो बड़े पापा.. मैं आपका पूरा नहीं सह पाऊँगी..!’ यह कहते हुए आरती की आँखों में आंसू उमड़ आए थे।
मैं भी उसकी हालत देख दुखी हो उठा था और पछता रहा था.. लेकिन अब क्या हो सकता था। समय का चक्र पीछे नहीं घुमाया जा सकता.. अब वापस लौटना बेवकूफी ही कहलाएगी। यही सोच कर मैंने उसके अर्ध-विकसित स्तन अपनी मुट्ठियों में भर लिए फिर मैंने अपने चारों और नज़र फिरा के देखा.. जेठ की उस तपती दुपहरी में चारों ओर सन्नाटा पसरा था.. दूर-दूर तक कोई नहीं था।
मैंने जी कड़ा करके अपने लण्ड को थोड़ा सा पीछे खींचा और दांत भींच कर.. पूरी ताकत.. बेदर्दी और बेरहमी से आरती की कमसिन कुंवारी चूत में लण्ड को धकेल दिया। मेरा काला.. केले जैसा मोटा और टेड़ा लण्ड उसकी चूत की सील तोड़ता हुआ चूत में गहराई तक धंस गया।
आरती के मुँह से हृदय विदारक चीख निकली थी और वो छटपटाने लगी। तोतों का झुण्ड जो डालियों पर बैठा आम कुतर रहा था.. डर के मारे टांय-टांय करता हुआ उड़ा और दूसरे पेड़ पर जा बैठा। सहसा किसी ने मेरा कंधा पकड़ कर जोर से हिलाया.. यादों का सिलसिला टूट गया, मैंने चौंक कर देखा तो सामने टीटीई खड़ा था। ‘सर.. टिकट प्लीज.. कब से आवाज़ लगा रहा हूँ आपको..’ वो बोला। ‘ओह.. आई एम सारी..’ मैंने कहा और टिकट निकाल कर उसे दे दिया।
मित्रो.. अब तक की पूरी कहानी शुरू से सुनाता हूँ आप सबको। यह कोई इन्सेस्ट सेक्स कथा नहीं है.. यहाँ जिस आरती का जिक्र हो रहा है.. वो मेरे हम प्याला हम निवाला बचपन के लंगोटिया यार रणविजय सिंह की इकलौती पुत्री है। रणविजय को गाँव में सब लोग राजा कह कर बुलाते हैं। मैं भी उसे राजा कह कर ही बुलाता हूँ।
हाँ.. तो राजा की गाँव में बहुत बड़ी हवेली है.. खेती-बाड़ी.. फलों के बगीचे सब कुछ है.. धन-दौलत की कोई कमी नहीं.. बहुत नेक और नरम-दिल इंसान है मेरा दोस्त.. बस पीने-पिलाने और अय्याशी का शौक है। मैंने और राजा ने मिलकर न जाने कितनी कुंवारी और शादीशुदा कामिनियों का मर्दन किया है, उनके बदन को जी भर के भोगा है.. लेकिन जोर-जबरदस्ती कभी किसी के साथ नहीं की थी..
राजा की पत्नी भी बहुत सुशील सुलक्षणा है.. कौशल्या नाम है उनका.. मैं उन्हें भाभी कह कर सम्मान से बुलाता हूँ। जब आरती का जन्म हुआ.. तब मैं गाँव में ही था, वो मेरे सामने ही पैदा हुई.. मैंने उसे बचपन से तिल-तिल बढ़ते देखा है। मुझे याद है कि आरती का स्कूल में एडमिशन करवाने भी मैं ही उसे अपनी पीठ पर बैठा कर स्कूल ले गया था।
मेरी गोद में खूब खेलती थी.. मैं जब भी राजा के घर जाता.. आरती मुझे देखकर खुश होकर चिल्लाती- बड़े पापा आ गए.. बड़े पापा आ गए… मैं भी उसे प्यार से गोद में उठा लेता.. और बेटी की तरह ही प्यार-दुलार करता। मैं राजा से उम्र में दो साल बड़ा हूँ.. शायद इसी कारण वो मुझे बड़े पापा कह कर बुलाती थी। उसे ये सब किसने सिखाया.. ये तो मुझे नहीं पता.. हम लोगों के दिन इसी तरह मौज-मस्ती में बीत रहे थे। फिर मेरी नौकरी सरकारी विभाग में लग गई और मुझे गाँव छोड़ कर जाना पड़ा।
घर में मेरी सिर्फ माँ है.. थोड़ी बहुत खेती वगैरह भी है.. जिससे हमारी गुजर-बसर बड़े आराम से हो जाती थी। नौकरी लगने के बाद मेरी भी शादी हो गई और मेरा गाँव जाना भी कम हो गया। कभी-कभी तो पूरा साल निकल जाता गाँव गए हुए..
इसी तरह एक दशक से ज्यादा बीत गया.. एक दिन की बात है.. मैं गाँव गया हुआ था.. जेठ महीने की प्रचण्ड गर्मी पड़ रही थी.. मुझे हल्का-हल्का बुखार लग रहा था। शायद लू के कारण ताप चढ़ा था। मैंने सोचा कि कच्चे आम का पना पी लिया जाए.. तो आराम हो जाएगा। यही सोच कर मैं उस भरी दोपहरी में आरती के आम के बगीचे की तरफ चल दिया।
लू के थपेड़े जान लिए लेते थे.. चारों ओर सन्नाटा था.. बगीचे में कुछ आम नीचे गिरे पड़े थे.. मैंने वही उठा लिए और वापस जाने के लिए मुड़ा.. तभी मुझे कुछ दूर से कुछ लड़कियों के हँसने-खिलखिलाने की आवाजें आईं। मैं चौंक गया.. भला इस तपती दुपहरी में ये कौन लड़कियाँ हैं.. जो ऐसे खिलखिला कर हँस रही हैं? उत्सुकता वश मैं आवाज की दिशा में चल दिया.. कुछ ही दूरी पर घने पेड़ों का झुरमुट था और हँसने की आवाजें वहीं से आ रही थीं।
निकट जाकर देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई.. और आगे जाकर देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं.. मेरे सामने घनी झाड़ियों के झुरमुट में सात-आठ लड़कियाँ बिल्कुल नंगी.. गोल घेरे में बैठी थीं। सभी लड़कियों ने अपने पैर सामने की तरफ मोड़ रखे थे.. जिससे उनकी चूतें खुलकर दिखाई दे रही थीं।
मैं दबे पांव आगे बढ़ा और एक झाड़ी की ओट से देखने लगा.. उफ़.. क्या नज़ारा था.. मेरे ठीक सामने.. तीन लड़कियाँ बिल्कुल नंगी.. अपनी खुली हुई चूतों को सहला रही थीं। उनमें से दो को मैंने पहचान लिया.. मेरे ठीक सामने मेरे अजीज दोस्त राजा की बेटी आरती बैठी थी। उसके बगल में एक शादीशुदा औरत कुसुम बैठी थी.. जो अपनी चूत में दो उंगलियाँ घुसा कर जल्दी-जल्दी अन्दर-बाहर कर रही थी। उधर आरती भी अपनी चूत की दरार को आहिस्ता आहिस्ता सहला रही थी।
‘ले कुसुम भाभी.. ये घुसा अपनी चूत में.. उंगली से क्या होगा?’
किसी लड़की की आवाज़ आई और उसने एक लम्बा मोटा डिल्डो (कृत्रिम लण्ड) कुसुम की ओर उछाल दिया। कुसुम ने झट से उसे लपक लिया और इसका गोल सिरा अपनी जीभ से गीला करके अपनी चूत के छेद पर रख दिया और मेरे देखते ही देखते कुसुम ने पूरा डिल्डो अपनी चूत में ले लिया और फुर्ती से खुद को चोदने लगी।
ये सारी लड़कियाँ मेरे गाँव की ही थीं.. जिन्हें अब तक मैं बड़ी भोली-भाली.. सीधी-सादी कमसिन समझता था.. वो चुदासी होकर ऐसी बेशर्म हरकतें करेंगी.. यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
यह आरती.. मेरे दोस्त की बेटी.. जो मेरे सामने पैदा हुई थी.. आज इतनी जवान हो चुकी थी कि.. मैंने आरती को गौर से देखा.. उसकी चूत का त्रिभुज उसकी गुलाबी जाँघों के बीच में पावरोटी जैसा फूला हुआ दिख रहा था। चूत के होंठ आपस में एकदम चिपके हुए थे.. जिन पर छोटी-छोटी मुलायम झांटें उग आई थीं.. उसके अल्प विकसित मम्मे छोटे-छोटे संतरों जितने थे.. उन पर निप्पल भी किशमिश के दाने की तरह थे लेकिन उत्तेजना से फूल कर उठे हुए थे.. आरती अपनी चूत को धीरे-धीरे सहला रही थी..
कुसुम ने डिल्डो अपनी चूत में कुछ देर करने के बाद आरती की ओर बढ़ा दिया.. ‘ले आरती बन्नो.. अब इससे अपनी चूत की सील तोड़ ले..’ कुसुम बेशर्मी से हँसते हुए बोली। ‘धत्त.. मैं नहीं करती ये सब.. मेरी सील तो शादी के बाद ही तोड़ेगा मेरा होने वाला..’ आरती ने कहा और अपनी टाँगें सिकोड़ लीं। ‘अरे.. तू शादी होने तक अपनी चूत में बिना लण्ड लिए रह भी सकेगी?’ किसी लड़की की आवाज़ आई और वो सब खिलखिला कर हँस पड़ीं।
‘आरती की चूत का महूरत तो मैं अपने जीजू से करवाऊँगी.. वो आ रहे हैं शुक्रवार को.. वही तोड़ेंगे इसकी सील.. अपने काले मूसल से..’ आरती की बगल वाली लड़की बोल पड़ी और बेशर्मी से हँस दी। ‘शबनम.. तूने अपनी सील भी तो जीजू से ही तुड़वाई थी ना?’ कुसुम बोली।
‘हाँ कुसुम भाभी.. जीजू ने कैसे बेरहमी से से मेरी कुंवारी चूत फाड़ी थी.. वो मैं भूल नहीं सकती.. मैं रो रही थी.. दर्द से छटपटा रही थी.. मेरी चूत से खून बह रहा था.. पर जीजू ने ज़रा भी मुरव्वत न की.. पूरा पेल कर ही माने..’ शबनम बोली और डिल्डो कुसुम के हाथ से लेकर सट्ट से अपनी चूत में भर लिया।
‘रहने दे शबनम.. मैं तो अपने पास किसी को फटकने भी नहीं दूँगी.. मैं तेरे जैसी नहीं.. मैं चुदूँगी तो शादी के बाद ही..’ आरती बोल उठी और अपनी चूत मुट्ठी में भर ली।
ऐसे ही हंसी-ठिठोली करते हुए वे सब ये गन्दा खेल खेलती रहीं। मैं दम साधे वो सब देखता रहा.. मेरी कनपटियाँ गरम होने लगी थीं.. लण्ड तो पहले से ही खड़ा था.. अब उसमें हल्का-हल्का दर्द भी होने लगा था। मुझे आरती पर क्रोध भी आ रहा था.. लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता था। मैं जैसे-तैसे खुद को संभाले था।
दोस्तो, मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिला होगा.. एक कच्ची कली को रौंदने की घटना वास्तव में कामप्रेमियों के लिए एक चरम लक्ष्य होता है.. खैर.. दर्शन से अधिक मर्दन में सुख होता है.. इन्हीं शब्दों के साथ आज मैं आपसे विदा लेता हूँ.. अगले भाग में फिर जल्द ही मुलाक़ात होगी। आपके ईमेल मुझे आत्मसम्बल देंगे.. सो लिखना न भूलियेगा। [email protected]
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